गाजियाबाद
। डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए
दीपक गुप्ता द्वारा अपनाई गई रणनीति ने जिस तरह से उल्टा ही असर दिखाना
शुरू किया है, उसे देख/जान कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच ही टकराव पैदा हो गया है । उनके
कई एक समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि दीपक गुप्ता फिर पिछले वर्षों
जैसी ही गलती कर रहे हैं, और परिस्थितियोंवश
मिले एक अच्छे मौके को गँवाने का काम कर रहे हैं । ऐसा मानने और कहने वाले
लोगों का यह भी कहना है कि दीपक गुप्ता पता नहीं किसकी सलाह से काम कर रहे
हैं - पर जिसकी सलाह से भी वह काम कर रहे हैं, वह उन्हें उबारने की बजाए
डुबोने की तरफ धकेल रहा है । मजे की बात यह हुई है कि इस खुली आलोचना से वह
लोग बचाव की मुद्रा में आ गए हैं, जो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के
घोषित समर्थक व सलाहकार के रूप में पहचाने जाते हैं । लिहाजा, उनकी तरफ से
सफाई सुनने को मिल रही है कि दीपक गुप्ता जो कर रहे हैं -
वह अपनी मर्जी से कर रहे हैं, और उनकी तो बिलकुल भी नहीं सुन रहे हैं ।
कुछेक का कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता उनसे सलाह तो जरूर लेते हैं, उन्हें
ऐसा दर्शाते भी हैं कि उनकी सलाह को वह गंभीरता से लेते हैं - लेकिन
अंततः करते अपने मन की ही हैं । दीपक गुप्ता के नजदीक रहे लोगों का कहना है
कि दीपक गुप्ता की समस्या यह है कि वह जिसकी सुनते हैं, उसे अहसास तो यह
कराते हैं कि वह उनकी बात पर अमल करेंगे - लेकिन अमल फिर करते नहीं हैं,
इससे वह किसी के साथ विश्वास और भरोसे वाला संबंध नहीं बना पाते हैं । इससे
उनका किया-धरा सब व्यर्थ चला जाता है । पीएचएफ के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर जेके गौड़ तथा नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के
बीच पैदा हुई
'गर्मी' को ठंडा करने में निभाई गई अपनी भूमिका को दीपक गुप्ता जिस तरह
गवाँ दे रहे हैं, उससे भी साबित हुआ है कि मौकों को राजनीतिक फायदे में
बदलने की कला उन्होंने नहीं सीखी है - चुनावी राजनीति में जो सबसे
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
पहले, दीपक गुप्ता की
चुनावी तैयारी और उसके नतीजों को देखते हैं : सुनने में आया है कि अपनी
चुनावी तैयारी के तहत उन्होंने प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को छोटे छोटे समूहों
में अपने घर आमंत्रित करना और इस बहाने से उनके साथ नजदीकी बनाने का काम
शुरू किया है । इस मामले में उनके लिए फजीहत की बात यह हुई है कि उनके
समर्थक, नजदीकी व शुभचिंतक समझे जाने वाले लोगों को भी यह नहीं पता है कि
आमंत्रित किए जाने वाले प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के समूह किस आधार पर उन्होंने
बनाए हैं और कितने व किन प्रेसीडेंट्स इलेक्ट से उनकी बात हो चुकी है -
लेकिन इस प्रोग्राम के कारण हो रहे नुक्सान की हर तरफ चर्चा है । दरअसल इस
प्रोग्राम के कारण कई क्लब्स के मठाधीश नाराज हो रहे हैं - उनकी शिकायत है
कि दीपक गुप्ता उनसे बात किए बिना उनके क्लब के अध्यक्ष के साथ तार जोड़ रहे
हैं । उल्लेखनीय है कि हर क्लब में कुछेक मठाधीश होते ही हैं, चुनावी
राजनीति में उनकी बहुआयामी भूमिका होती है - यह ठीक है कि चुनाव में क्लब
के अध्यक्ष की भूमिका ही निर्णायक होती है, लेकिन अध्यक्ष की निर्णायक
भूमिका को नियंत्रित व प्रभावित करने का काम बहुत हद तक क्लब के मठाधीश ही
करते हैं; इसलिए मठाधीशों को इग्नोर करके सिर्फ अध्यक्ष को खुश करके चुनावी
सफलता नहीं पाई जा सकती । दीपक गुप्ता के रवैये पर मठाधीशों की नाराजगी
की खबर फैली तो दीपक गुप्ता की तरफ से सफाई सुनने को मिली कि वह मठाधीशों
को भी घर बुलायेंगे । समस्या की बात लेकिन यह है कि जब तक बुलायेंगे, तब तक
वह अपना काफी नुकसान करा चुके होंगे । उनके कुछेक शुभचिंतकों का कहना है
कि दीपक गुप्ता का यह तरीका ही गलत है, क्योंकि इससे माहौल नहीं बनता है ।
यह तरीका सपोर्टिव तो हो सकता है, किंतु यदि इसे ही मुख्य गतिविधि बना
लिया गया - तो यह किसी भी तरह से उपयोगी साबित नहीं होता है ।
दीपक गुप्ता के समर्थक व शुभचिंतक ही नहीं, उनकी उम्मीदवारी के विरोधी भी मानते और कहते हैं कि दीपक गुप्ता के लिए इस बार परिस्थितियाँ बहुत ही अनुकूल हैं - क्योंकि उनके अलावा और जो उम्मीदवार हैं, उनमें से कोई भी अभी तक एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को संयोजित नहीं कर सका है । इसके अलावा, विरोधी खेमे के नेताओं के बीच 'अपने' उम्मीदवार को लेकर विवाद है - कुछेक नेता अशोक जैन को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, तो कुछेक नेता ललित खन्ना की वकालत कर रहे हैं । नेताओं के बीच के इस मतभेद/विवाद के कारण अशोक जैन व ललित खन्ना भी अभी उम्मीदवार के 'रूप' में दिखने से बच रहे हैं, और नेताओं से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं । यह स्थिति दीपक गुप्ता की राह को आसान बनाने का काम करती है । लेकिन यहाँ दीपक गुप्ता के लिए एक बड़ा खतरा भी छिपा हुआ है - दरअसल जो स्थिति है, उसमें दीपक गुप्ता ने अपने आप को विजेता मान लिया है, और वह अपनी उम्मीदवारी को लापरवाही से ले रहे हैं । अनुकूल स्थितियों के बावजूद दीपक गुप्ता के सामने बड़ी चुनौती अभी भी यह है कि डिस्ट्रिक्ट का सत्ताधारी खेमा उनके प्रति उदारता बरतने के मूड में बिलकुल नहीं है । सत्ताधारी खेमा अंततः उम्मीदवार के नाम पर एकमत होगा ही, और तब 'वह' उम्मीदवार भी सक्रिय होगा ही - जिसके नतीजे में तब दीपक गुप्ता के लिए हालात उतने आसान संभवतः नहीं रह जायेंगे, जितने आसान वह आज नजर आ रहे हैं । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर वास्तव में यही है कि दीपक गुप्ता ने जिस तरह से अपने आपको अभी से विजेता मान/समझ लिया है, उसमें खतरा यह है कि जब उनके सामने सचमुच की चुनौती पेश होगी - तब तक वह अपनी स्थिति का कहीं इतना कबाड़ा न कर लें कि फिर संभलना ही मुश्किल हो जाए । दीपक गुप्ता के नजदीकी ही कहते/बताते हैं कि दीपक गुप्ता में अपनी अच्छी-भली स्थिति को खराब कर लेने का बड़ा हुनर है - कई बार तो लगता है जैसे कि इस विषय में उन्होंने बड़ी मेहनत से पीएचडी की हुई है ।
दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का डर इस कारण भी है, क्योंकि वह देख रहे हैं कि दीपक गुप्ता जो कुछ भी कर रहे हैं - उसके राजनीतिक ऐंगल पर उनका कोई ध्यान नहीं है; जिसका नतीजा है कि वह जिन बातों का राजनीतिक फायदा ले सकते हैं, उनका फायदा नहीं ले पा रहे हैं; और जिन बातों से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है, उनसे बचने का वह कोई प्रयास नहीं करते हैं । पीएचएफ के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के बीच के झगड़े में दीपक गुप्ता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इस महत्त्वपूर्ण भूमिका का वह कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले सके हैं । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ ने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को झाँसा दिया था कि वह उनके सदस्यों को साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बना/बनवा देंगे, लेकिन साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से पैसे जब जेके गौड़ की अंटी में आ गए तब जेके गौड़ अपने वायदे से मुकर गए । रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं के सामने गंभीर संकट पैदा हुआ - उनके क्लब के सदस्य नए रोटेरियन हैं; उनके साथ 'धोखाधड़ी' तो जेके गौड़ ने की, लेकिन वह तो क्लब के कर्ताधर्ताओं को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते । ऐसे में, दीपक गुप्ता अवतरित हुए और उन्होंने अपने प्वाइंट्स देकर पीएचएफ बनाने/बनवाने की राह को खोला और गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को मुसीबत से उबारा । इस मामले में जेके गौड़ ने अपना अवसरवादी रवैया फिर दिखाया - जैसे ही उन्हें दीपक गुप्ता के इरादे का पता चला वैसे ही उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं व पदाधिकारियों के सामने दावा करना/जताना शुरू कर दिया कि दीपक गुप्ता को अपने प्वाइंट्स देने के लिए उन्होंने राजी किया है । जेके गौड़ चुनावी खेमेबाजी में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं - इसलिए दीपक गुप्ता यदि राजनीतिक होशियारी से काम लेते तो पीएचएफ बनने/बनाने के काम में इस्तेमाल होने वाले अपने प्वाइंट्स से वह राजनीतिक फायदा उठा सकते थे; पर वास्तव में हुआ यह कि उनके राजनीतिक विरोधी जेके गौड़ ने उनके प्वाइंट्स का 'मुफ्त' में इस्तेमाल कर लिया ।
दीपक गुप्ता की इसी तरह की बिना सोची-समझी 'मनमानी' कार्रवाइयों को देखते हुए लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता का एक ही राजनीतिक दुश्मन है - और वह हैं खुद दीपक गुप्ता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें दूसरों से उतना नहीं निपटना है, जितना कि अपने आप से निपटना है । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही लगता है कि दीपक गुप्ता ने यदि खुद को नहीं संभाला तो मौजूदा अनुकूल चुनावी स्थितियों को वह अपने खुद के कामों से ही प्रतिकूल बना लेंगे ।
दीपक गुप्ता के समर्थक व शुभचिंतक ही नहीं, उनकी उम्मीदवारी के विरोधी भी मानते और कहते हैं कि दीपक गुप्ता के लिए इस बार परिस्थितियाँ बहुत ही अनुकूल हैं - क्योंकि उनके अलावा और जो उम्मीदवार हैं, उनमें से कोई भी अभी तक एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को संयोजित नहीं कर सका है । इसके अलावा, विरोधी खेमे के नेताओं के बीच 'अपने' उम्मीदवार को लेकर विवाद है - कुछेक नेता अशोक जैन को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, तो कुछेक नेता ललित खन्ना की वकालत कर रहे हैं । नेताओं के बीच के इस मतभेद/विवाद के कारण अशोक जैन व ललित खन्ना भी अभी उम्मीदवार के 'रूप' में दिखने से बच रहे हैं, और नेताओं से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं । यह स्थिति दीपक गुप्ता की राह को आसान बनाने का काम करती है । लेकिन यहाँ दीपक गुप्ता के लिए एक बड़ा खतरा भी छिपा हुआ है - दरअसल जो स्थिति है, उसमें दीपक गुप्ता ने अपने आप को विजेता मान लिया है, और वह अपनी उम्मीदवारी को लापरवाही से ले रहे हैं । अनुकूल स्थितियों के बावजूद दीपक गुप्ता के सामने बड़ी चुनौती अभी भी यह है कि डिस्ट्रिक्ट का सत्ताधारी खेमा उनके प्रति उदारता बरतने के मूड में बिलकुल नहीं है । सत्ताधारी खेमा अंततः उम्मीदवार के नाम पर एकमत होगा ही, और तब 'वह' उम्मीदवार भी सक्रिय होगा ही - जिसके नतीजे में तब दीपक गुप्ता के लिए हालात उतने आसान संभवतः नहीं रह जायेंगे, जितने आसान वह आज नजर आ रहे हैं । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर वास्तव में यही है कि दीपक गुप्ता ने जिस तरह से अपने आपको अभी से विजेता मान/समझ लिया है, उसमें खतरा यह है कि जब उनके सामने सचमुच की चुनौती पेश होगी - तब तक वह अपनी स्थिति का कहीं इतना कबाड़ा न कर लें कि फिर संभलना ही मुश्किल हो जाए । दीपक गुप्ता के नजदीकी ही कहते/बताते हैं कि दीपक गुप्ता में अपनी अच्छी-भली स्थिति को खराब कर लेने का बड़ा हुनर है - कई बार तो लगता है जैसे कि इस विषय में उन्होंने बड़ी मेहनत से पीएचडी की हुई है ।
दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का डर इस कारण भी है, क्योंकि वह देख रहे हैं कि दीपक गुप्ता जो कुछ भी कर रहे हैं - उसके राजनीतिक ऐंगल पर उनका कोई ध्यान नहीं है; जिसका नतीजा है कि वह जिन बातों का राजनीतिक फायदा ले सकते हैं, उनका फायदा नहीं ले पा रहे हैं; और जिन बातों से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है, उनसे बचने का वह कोई प्रयास नहीं करते हैं । पीएचएफ के मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ तथा नए बने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के पदाधिकारियों के बीच के झगड़े में दीपक गुप्ता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इस महत्त्वपूर्ण भूमिका का वह कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले सके हैं । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ ने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को झाँसा दिया था कि वह उनके सदस्यों को साढ़े तीन सौ डॉलर में पीएचएफ बना/बनवा देंगे, लेकिन साढ़े तीन सौ डॉलर के हिसाब से पैसे जब जेके गौड़ की अंटी में आ गए तब जेके गौड़ अपने वायदे से मुकर गए । रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं के सामने गंभीर संकट पैदा हुआ - उनके क्लब के सदस्य नए रोटेरियन हैं; उनके साथ 'धोखाधड़ी' तो जेके गौड़ ने की, लेकिन वह तो क्लब के कर्ताधर्ताओं को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते । ऐसे में, दीपक गुप्ता अवतरित हुए और उन्होंने अपने प्वाइंट्स देकर पीएचएफ बनाने/बनवाने की राह को खोला और गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं को मुसीबत से उबारा । इस मामले में जेके गौड़ ने अपना अवसरवादी रवैया फिर दिखाया - जैसे ही उन्हें दीपक गुप्ता के इरादे का पता चला वैसे ही उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद विकास के कर्ताधर्ताओं व पदाधिकारियों के सामने दावा करना/जताना शुरू कर दिया कि दीपक गुप्ता को अपने प्वाइंट्स देने के लिए उन्होंने राजी किया है । जेके गौड़ चुनावी खेमेबाजी में दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं - इसलिए दीपक गुप्ता यदि राजनीतिक होशियारी से काम लेते तो पीएचएफ बनने/बनाने के काम में इस्तेमाल होने वाले अपने प्वाइंट्स से वह राजनीतिक फायदा उठा सकते थे; पर वास्तव में हुआ यह कि उनके राजनीतिक विरोधी जेके गौड़ ने उनके प्वाइंट्स का 'मुफ्त' में इस्तेमाल कर लिया ।
दीपक गुप्ता की इसी तरह की बिना सोची-समझी 'मनमानी' कार्रवाइयों को देखते हुए लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता का एक ही राजनीतिक दुश्मन है - और वह हैं खुद दीपक गुप्ता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें दूसरों से उतना नहीं निपटना है, जितना कि अपने आप से निपटना है । दीपक गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को ही लगता है कि दीपक गुप्ता ने यदि खुद को नहीं संभाला तो मौजूदा अनुकूल चुनावी स्थितियों को वह अपने खुद के कामों से ही प्रतिकूल बना लेंगे ।