Monday, May 30, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकियों की बातों से लगता है कि वह जेपी सिंह को जल्दी से 'छोड़ेंगे' नहीं

नई दिल्ली । जेपी सिंह को अंततः अपने 'कमाऊ पूत' लायंस ब्लड बैंक से भी हाथ धोना पड़ा, और लोगों के जबर्दस्त विरोध के चलते उन्हें बेआबरू होकर लायंस ब्लड बैंक के कूचे से बाहर आने के लिए मजबूर होना पड़ा । गौर करने की मजे की बात यह है कि लायंस ब्लड बैंक को संचालित करने वाले लायंस सर्विस ट्रस्ट की वार्षिक आम सभा में किसी ने भी जेपी सिंह एंड टीम को ब्लड बैंक पर से कब्ज़ा छोड़ने के लिए नहीं कहा था, वार्षिक आम सभा में तो लोग लायंस ब्लड बैंक के खातों की गड़बड़ियों व बेईमानियों पर सवाल उठा रहे थे । जेपी सिंह एंड टीम ने उन सवालों का सामना करने व उनका जबाव देने की बजाए वार्षिक आम सभा से निकल भाग लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी - उन्होंने समझ लिया कि लोगों के सवालों के जरिए जिस तरह की गड़बड़ियों व बेईमानियों की पोल खुल रही है, उसके चलते उनके लिए लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा बनाए रख पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । लिहाजा मौके की नजाकत को पहचानते हुए जेपी सिंह एंड टीम ने लायंस ब्लड बैंक पर अपनी चौधराहट बचाए/बनाए रखने का कोई प्रयास नहीं किया और लायंस सर्विस ट्रस्ट की वार्षिक आम सभा से चुपचाप निकल भागे । उन्हें विश्वास है कि लायंस ब्लड बैंक पर अपने कब्ज़े को वह आसानी से छोड़ देंगे, तो ब्लड बैंक के लाखों/करोड़ों की घपलेबाजी का हिसाब देने से बच जायेंगे - और यह कोई घाटे का सौदा नहीं है । लायंस ब्लड बैंक की आड़ में लूट-खसोट करने के लगातार लगते रहे आरोपों पर जेपी सिंह हमेशा यही कहते/बताते रहे हैं कि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है, और विरोधी पक्ष की तरफ से यह आरोप लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से लगाए जा रहे हैं ।
इसी सोच के चलते जेपी सिंह को विश्वास है कि विरोधी पक्ष को अब जब लायंस ब्लड बैंक का कब्ज़ा मिल गया है, तो वह अपने ही द्वारा लगाए गए आरोपों को भूल जायेंगे । लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा पाने वाले नए पदाधिकारियों का कहना लेकिन यह है कि पदाधिकारी बनने से उनके लिए लायंस ब्लड बैंक में की जा रही धाँधलियों की जाँच करना तथा उन्हें पकड़ना आसान हो जायेगा, और तब वह घपला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे । लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों का दावा है कि ब्लड बैंक में घपलेबाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति, चाहें वह कितना भी बड़ा हो और या बड़े लोगों का चहेता हो, बचेगा नहीं । लायंस ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों तथा उनके नजदीकियों की बातों से लगता है कि वह जेपी सिंह को जल्दी से 'छोड़ेंगे' नहीं । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए जेपी सिंह की जो फजीहत हुई, और उसके बाद लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़े की लड़ाई में जेपी सिंह ने जितनी जल्दी हार मान ली - उससे जेपी सिंह के विरोधियों के हौंसले खासे बुलंद हैं । उन्हें लगता है कि यह अच्छा मौका है कि वह जेपी सिंह को इतना पीछे धकेल दें, कि फिर वह आगे न आ सकें । दरअसल उन्हें भी लगता है कि जेपी सिंह अभी हारे तो जरूर हैं, लेकिन पूरी तरह से 'ख़त्म' नहीं हुए हैं । जेपी सिंह उचित मौके का इंतजार करेंगे, तथा जैसे ही परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी, जेपी सिंह वापसी के लिए प्रयास करेंगे ।
जेपी सिंह के नजदीकियों का कहना भी है कि लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़े की लड़ाई में जेपी सिंह एंड टीम अभी इसीलिए पीछे हटी है, क्योंकि परिस्थितियाँ अभी पूरी तरह उनके खिलाफ हैं और वह जान/समझ रहे हैं कि अभी वह यदि लड़ाई लड़ेंगे भी तो निश्चित ही हारेंगे । हारने की इस निश्चितता को पहचानते हुए ही जेपी सिंह एंड टीम ने लड़ने की बजाए समर्पण करने की रणनीति अपनाई । उनका सोचना और कहना है कि विरोधी पक्ष को अभी तक तो सिर्फ आरोप लगाने होते थे, सो वह बहुत जोश में रहते थे; पर अब जब उन्हें काम करना पड़ेगा - तो आधा जोश तो उनका वैसे ही हवा हो जायेगा । जेपी सिंह तथा उनके नजदीकियों को लगता है कि विरोधी पक्ष के लोगों ने लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा तो ले लिया है, पर अब जब वह काम करेंगे तो गलतियाँ भी करेंगे - तब आरोप लगाने का मौका उन्हें मिलेगा; और तभी जेपी सिंह एंड टीम को वापसी करने का अवसर मिलेगा । जेपी सिंह को लगता है कि उन्हें यदि फिर से अपनी चौधराहट को पाना है, तो कुछ समय के लिए उन्हें राजनीतिक पचड़ों से दूर रहना चाहिए । राजनीति के चक्कर में उन्होंने अपने तमाम दुश्मन बना लिए हैं । उन्हें उम्मीद है कि राजनीतिक पचड़ों से वह दूर रहेंगे, तो उनके दुश्मनों की संख्या भी कम होगी । जेपी सिंह की इस सोच में लेकिन विरोधाभास यह है कि वह यदि राजनीति से दूर रहेंगे, तो लोगों के बीच अपना प्रभाव कैसे बनायेंगे ? अभी तक उन्होंने अपना जो प्रभाव बनाया था, वह राजनीति करके ही तो बनाया था । जाहिर है कि खोट राजनीति में नहीं, बल्कि राजनीति के 'तरीके' में है । जेपी सिंह का राजनीति का जो तरीका रहा, वह अभी तक भले ही कामयाब रहा हो - लेकिन अब उनका तरीका पिटने लगा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के 'चुनाव' में जेपी सिंह की जो फजीहत हुई, वह इस बात का सुबूत है कि जेपी सिंह के राजनीतिक हथकंडे अब पुराने पड़ गए हैं, तथा उनके भरोसे अब उन्हें कामयाबी नहीं मिलने वाली है । लायंस ब्लड बैंक की आड़ में घपलेबाजी के जो आरोप उनपर रहे हैं, और जिन आरोपों के कारण बने दबाव के चलते लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा छोड़ने के लिए वह मजबूर हुए - उससे जेपी सिंह की राजनीतिक परेशानी में और इजाफा हुआ है ।
लायंस ब्लड बैंक पर कब्ज़ा करने के साथ ही विरोधी पक्ष के लोगों ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं, और जेपी सिंह को और और पीछे धकेलने के प्रति अपने 'उद्देश्य' को जाहिर किया है, उससे लग रहा है कि जेपी सिंह के खिलाफ उनका अभियान अभी जारी रहेगा । लायंस सर्विस ट्रस्ट की सदस्यता को लेकर नए पदाधिकारियों ने तुरंत से जो कदम उठाए हैं, उससे लायंस सर्विस ट्रस्ट तथा लायंस ब्लड बैंक में फिर से घुसपैठ करना जेपी सिंह के लिए मुश्किल ही होगा । जेपी सिंह ने अपनी राजनीति ज़माने में इन दोनों संस्थाओं का जमकर फायदा उठाया है । आगे की राजनीतिक यात्रा उन्हें इनकी मदद के बिना ही करना होगी - जाहिर है कि जेपी सिंह के लिए आगे की राजनीतिक यात्रा आसान नहीं होगी । उनके विरोधी जल्दी जल्दी प्राप्त की गईं दो दो जीतों के कारण जिस तरह के जोश में हैं, और जेपी सिंह को पूरी तरह मटिया देने के हुंकारे भर रहे हैं - उसे देख/सुनकर तो जेपी सिंह की आगे की राजनीतिक यात्रा बहुत ही चुनौतीपूर्ण लग रही है । आगे क्या होगा; जेपी सिंह अपनी राजनीतिक वापसी कर पायेंगे या नहीं, यह तो आगे पता चलेगा - किंतु अभी जो बात पता चल रही है वह यह है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में आगे बहुत दिलचस्प नज़ारे देखने को जरूर मिलेंगे ।