देहरादून । राजा साबू और उनके दरबार
में नंबर एक 'बनने' की दौड़ में शामिल पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने डीसी
बंसल के सिर पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी का ताज सजाने की जो तैयारी की थी,
क्लब्स के पदाधिकारियों ने खासी चतुराई दिखाते हुए उसे धूल में मिला दिया
है - जो हुआ है, उसे देख/जान कर राजा साबू व उनके 'शार्प शूटर' पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स सकते में हैं और उन्हें अपनी इज्ज़त बचाने का कोई
तरीका समझ नहीं आ रहा है । जो हुआ है, वह टीके रूबी व डीसी बंसल के बीच हुए
चुनाव का नतीजा भर नहीं है - बल्कि राजा साबू की तिकड़मी राजनीति पर ऐसा
झन्नाटेदार तमाचा है, जिसकी गूँज देर तक व दूर तक सुनी जाएगी । मजे की
बात हालाँकि यह है कि राजा साबू की चुनाव में कोई खुली भूमिका नहीं थी,
किंतु चुनाव में कदम कदम पर उनके नाम का हवाला पूरा था । यशपाल दास, मधुकर
मल्होत्रा, शाजु पीटर व अन्य जो लोग डीसी बंसल के पक्ष में वोट इकट्ठा कर
रहे थे, वह खुल कर राजा साबू का नाम ले रहे थे; और राजा साबू के नाम पर
क्लब्स के पदाधिकारियों पर भावनात्मक व प्रशासनिक दबाव बना कर उन्हें मजबूर
कर रहे थे । यशपाल दास को तो अपने ही क्लब में राजा साबू के नाम की
दुहाई देनी पड़ी । यह हरकतें राजा साबू के संज्ञान में थीं, किंतु उन्होंने
कभी भी चुनावी राजनीति में अपना नाम घसीटे जाने पर आपत्ति नहीं की - तो
इसका कारण यही था कि इस हरकत में उनकी सिर्फ मिलीभगत ही नहीं थी, बल्कि यह
हरकत वास्तव में उनका ही प्लान थी । इस प्लान में राजा साबू एक तरफ यह
'दिखाने' का प्रयास कर रहे थे कि वह तो इस चुनाव से दूर ही हैं, और दूसरी
तरफ वह चुनाव को निर्णायक तरीके से प्रभावित भी कर रहे थे । राजा साबू 'इसी
तरीके' से अपने 'कामों' को अंजाम देते रहे हैं - इस बार लेकिन उन्हें
क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से ऐसा जबाव मिला है, कि उनकी सारी होशियारी
हवा हो गई है ।
राजा साबू की चाल को सफल बनाने में लगे
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा व शाजु पीटर अभी हाल ही में संपन्न हुई
डिस्ट्रिक्ट असेम्बली तथा उससे पहले तक दावा करते सुने गए थे कि डीसी बंसल
के पक्ष के अस्सी वोट तो उनके पास आ चुके हैं । इन दावों के भरोसे ही
वोटों की गिनती शुरू होने तक हर किसी को डीसी बंसल की भारी जीत घोषित होने
का इंतजार था । लेकिन वोटों की गिनती जब पूरी हुई, तो नतीजा देख/सुन कर हर
कोई हैरान रह गया । टीके रूबी और डीसी बंसल को बराबर बराबर वोट मिले और
नतीजा टाई के रूप में निकला । यह तथ्य तो सिर्फ नतीजा है, इससे पूरी बात
पता नहीं चलती है । पूरी बात तब पता चलेगी, जब वोटों का पूरा विवरण
जानेंगे - और तभी जान सकेंगे कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ
राजा साबू की धूर्त राजनीति को सबक सिखाने के लिए क्लब्स के पदाधिकारियों
ने किस तरह का 'कौशल' दिखाया । उल्लेखनीय है कि कुल वोट 129 थे, जिनमें
से टीके रूबी और डीसी बंसल को 39-39 वोट मिले, तथा 43 वोट अवैध घोषित हुए -
और 14 वोट डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय पहुँचे ही नहीं । रोटरी के किसी भी
चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में वोटों का अवैध होना तथा गायब हो जाना -
जबकि एक एक वोट के लिए भयानक मारामारी मची हुई हो, और डिस्ट्रिक्ट के बड़े
बड़े सूरमा वोट जुटाने के काम में लगे हुए हों - भारी हैरान करने वाली बात
है । लेकिन इस हैरान करने वाली बात में ही क्लब्स के पदाधिकारियों का वह
'कौशल' छिपा है, जो उन्होंने राजा साबू की धूर्त राजनीति से निपटने में
इस्तेमाल किया । यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि की तरफ से
दावा किया गया है कि अवैध व गायब हुए वोट डीसी बंसल के थे, और जिनके सहारे
डीसी बंसल को बड़ी जीत मिलनी थी । उनकी तरफ से किए जा रहे इस दावे को हर कोई
सच भी मान रहा है, किंतु सच्चाई यह है कि अवैध व गायब हुए वोट डीसी बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में पड़े तो जरूर - लेकिन वह इस तरह 'पड़े' कि डीसी बंसल के काम न आ सके ।
समझा
जा रहा है कि क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच राजा साबू की धूर्त राजनीति
के खिलाफ जो रोष पैदा हुआ, वोटों को जानबूझ कर अवैध व गायब करके क्लब्स के
पदाधिकारियों ने उसका इजहार किया है । राजा साबू का नाम लेकर यशपाल दास,
मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि ने क्लब्स के पदाधिकारियों पर जिस तरह का
दबाव बनाया, उससे क्लब्स के पदाधिकारियों ने अपने आपको अपमानित महसूस किया
और पाया कि राजा साबू तथा उनके लोगों ने उन्हें तो जैसे अपना 'पालतू' समझ
लिया है - और उनके नाम पर कैसी भी मनमानी करने लगते हैं । खुद को
अपमानित महसूस करने तथा रोष में होने के बावजूद उन्हें जब राजा साबू की
धूर्त राजनीति का खुला विरोध करना मुश्किल लगा, तो उन्होंने 'असहयोग' का
रास्ता अपनाया और विरोध का ऐसा तरीका अपनाया - जिसकी किसी ने कल्पना भी
नहीं की थी । अपनी नाराजगी, अपने गुस्से, अपने विरोध को जाहिर करने के
खासे अनोखे अनोखे तरीके दुनिया के इतिहास में खूब मिलते हैं - डिस्ट्रिक्ट
3080 के क्लब्स के पदाधिकारियों ने उनमें जो इजाफा किया है, उसे दुनिया को व
समाज को रोटरी की एक देन के रूप में निश्चित ही पहचाना जायेगा । रोटरी
ने दुनिया को व समाज को बहुत कुछ दिया है, इसलिए शातिर व धूर्त लोगों को
सबक सिखाने के लिए अपनाया गया विरोध का यह तरीका भी रोटरी की देन के रूप
में ही देखा जायेगा ।
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर की तिकड़ी के रूप में 'टीम राजा साबू' ने हालाँकि अभी भी सबक नहीं सीखा है और वह चुनावी नतीजे को प्रभावित करने की कोशिशों से बाज नहीं आ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि
रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानून में स्पष्ट निर्देश है कि चुनाव में बराबर
बराबर वोट होने की स्थिति में नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत
उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जायेगा । इस निर्देश के अनुसार, नोमीनेटिंग
कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को विजेता घोषित होना
चाहिए । किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन ने रोटरी इंटरनेशनल के
इस स्पष्ट निर्देश का पालन करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली । चर्चा रही कि
राजा साबू की तरफ से उन्हें निर्देश मिला कि टीके रूबी को विजेता घोषित
करने की बजाए, चोर दरवाजे व बहाने खोजे जाएँ - जिनकी आड़ लेकर डीसी बंसल को
विजेता घोषित किया जाए । तर्क दिया गया है कि रोटरी इंटरनेशनल के फैसले
के कारण वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव नए सिरे से हुआ है,
इसलिए टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार होने की बात स्वतः खारिज हो जाती है -
और इसलिए अब यह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अधिकार-क्षेत्र की बात हो जाती है
कि बराबर बराबर वोट पाने वाले उम्मीदवारों में से वह किसे विजेता घोषित करे
। राजा साबू का नाम लेकर यह तर्क दिया तो गया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर डेविड हिल्टन की इस पर अमल करने की हिम्मत नहीं हुई । सुरक्षित
तरीका यह समझा गया कि इस पर रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की राय माँगी जाए ।
यशपाल दास, मधुकर मल्होत्रा, शाजु पीटर आदि की तरफ से दावा किया जा रहा है
कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से राजा साबू मनमाफिक फैसला करवा ही लेंगे और
अंततः वही होगा - जो 'हम' चाहेंगे ।
उल्लेखनीय है कि ठीक 15 महीने पहले - 22
फरवरी 2015 को टीके रूबी नोमीनेटिंग कमेटी के द्वारा अधिकृत उम्मीदवार
चुने गए थे, जिसके बाद से ही राजा साबू के नेतृत्व में उन्हें डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर पद से दूर रखने की तरकीबें लगाना शुरू हो गईं थीं । इससे पहले तक
नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुना गया अधिकृत उम्मीदवार ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
बनता रहा है; लेकिन टीके रूबी के मामले में डिस्ट्रिक्ट में चली आ रही इस
महान परंपरा को तिलांजलि दे दी गई । पिछले पंद्रह महीनों से चला आ रहा
घटनाक्रम देखें तो पाते हैं कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नहीं हो रहा है, बल्कि एक जंग हो रही है; जंग भी ऐसी जिसमें भारी भरकम फौज एक अकेले उम्मीदवार के खिलाफ पिली पड़ी है ।
राजा साबू के नेतृत्व में डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की फौज ने
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को इस हद तक अपना गुलाम बना लिया है कि टीके रूबी
द्धारा आयोजित एक कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट टीम के जो पदाधिकारी शामिल
हुए, उन्हें डिस्ट्रिक्ट टीम से निकाल दिया गया । तमाम हरकतों के बावजूद 'टीम राजा साबू'
को अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिली है, और डिस्ट्रिक्ट से लेकर रोटरी
इंटरनेशनल तक उनकी चालबाजियाँ पिटती रही हैं । आज के चुनावी नतीजे से यह भी
साफ हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट में टीम राजा साबू के खिलाफ माहौल पूरी तरह से पक चुका है । इसके बावजूद जिस तरह से टीम राजा साबू अपनी हरकतों से बाज आती हुई नहीं दिख रही है, उससे लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में अभी और दिलचस्प नज़ारे देखने को मिलेंगे ।