Saturday, July 20, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन हरीश चौधरी के नाकारापन के चलते कार्यक्रमों तक को लेकर श्वेता पाठक व अविनाश गुप्ता के बीच बनी संवादहीनता ने न सिर्फ सेमीनार को रद्द करवाया, बल्कि काउंसिल के माहौल को और खराब किया

नई दिल्ली । अविनाश गुप्ता के को-ऑर्डिनेशन में आज होने वाले सेमीनार के स्थगित होने से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच चल रहा झगड़ा एक बार फिर मुखर हो उठा है । पिछले कुछेक दिनों से रीजनल काउंसिल में शांति बनी हुई थी, जिसके चलते लोगों को लग रहा था कि काउंसिल सदस्यों ने झगड़े से तौबा कर ली है और अब काउंसिल का कामकाज बिना किसी बाधा के आगे बढ़ेगा; लेकिन यह उम्मीद झूठी साबित हुई है और पता चला कि जिसे शांति-काल समझा जा रहा था - वह दरअसल तूफान से पहले की तैयारी के लिए लिया गया 'ब्रेक' था । मजे की बात यह है कि 20 जुलाई के सेमीनार के को-ऑर्डिनेटर के रूप में जब अविनाश गुप्ता का नाम सामने आया, तो कई लोगों ने पहले से ही घोषणा कर दी थी कि इस कार्यक्रम को लेकर अवश्य ही बबाल होगा और बहुत संभव है कि यह सेमीनार हो ही न सके । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि सेमीनार के रद्द होने की घोषणा वाले जिस संदेश में वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार ठहराया गया है, उसे तैयार करने तथा भेजने की अनुमति/स्वीकृति देने की जिम्मेदारी से काउंसिल के सभी सदस्य बच रहे हैं । यह किस्सा दरअसल इस बात का एक उदाहरण भी है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कामकाज आखिर हो कैसे रहा है - जब काउंसिल के किसी भी पदाधिकारी और या सदस्य ने उक्त संदेश तैयार करने व भेजने की अनुमति/स्वीकृति देने का काम नहीं किया है, तो उक्त संदेश काउंसिल की तरफ से लोगों को चला कैसे गया; और काउंसिल सदस्य इसकी जाँच-पड़ताल करने/करवाने को लेकर भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । वास्तव में सिर्फ यह किस्सा ही नहीं, बल्कि पूरा वाकया ही काउंसिल में फैली अराजकता और सदस्यों व पदाधिकारियों की मनमानियों का नजारा व सुबूत पेश करता है ।
वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक इस बात पर भड़की हुई हैं कि काउंसिल की तरफ से भेजे गए संदेश में पर्चेज ऑर्डर पर उनके द्वारा साइन न करने को सेमीनार के रद्द होने का कारण बताते हुए उन्हें लोगों के बीच बदनाम करने की कोशिश की गई है । उनकी तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि सेमीनार करने की तैयारी को लेकर उनसे जब कभी कोई बात ही नहीं की गई, उनसे न कुछ पूछा गया और न उन्हें कुछ बताया गया - तो उन्हें भला कौन से पर्चेज ऑर्डर पर साइन करने थे; क्या उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि कोई भी मनमाने तरीके से पर्चेज ऑर्डर बना ले और वह आँख बंद करके उस पर साइन कर दें ? दूसरी तरफ अविनाश गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का यह भी मानना/कहना है कि प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर के रूप में अविनाश गुप्ता यदि श्वेता पाठक से कार्यक्रम की तैयारी के संबंध में बात करते भी तो भी श्वेता पाठक कोई न कोई मीन-मेख निकाल कर बखेड़ा खड़ा करती हीं और फिर मामला खराब ही होता । इस आशंका को यदि सच मान भी लिया जाए तो भी यह सवाल तो बना ही रहता है कि एक प्रोग्राम का को-ऑर्डिनेटर यदि पर्चेज कमेटी के मुखिया को प्रोग्राम की तैयारी तथा उसकी जरूरतों से अवगत नहीं करवाता है, तो पर्चेज कमेटी का मुखिया आखिर किस बिना पर पर्चेज ऑर्डर पर साइन कर दे ? दरअसल काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों के बीच संवाद हीनता की स्थिति ने ही ऐसे हालात बनाए हुए हैं और काउंसिल के कामकाज को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है । काउंसिल के पदाधिकारियों तथा सदस्यों के बीच संवाद या तो है ही नहीं, और जो है उसमें प्रायः तेज चीखने-चिल्लाने व गाली-गलौच भरे शब्द हैं । 'रचनात्मक संकल्प' को चार से पाँच मिनट का एक ऐसा ऑडियो मिला है, जिसमें चेयरमैन हरीश मल्होत्रा के साथ रीजनल काउंसिल के ही कुछेक सदस्य खासी आक्रामक, अशालीन व गाली-गलौच भरी भाषा में बात कर रहे हैं; बात क्या कर रहे हैं, उन्हें हड़का रहे हैं । काउंसिल सदस्यों तथा स्टॉफ के सदस्यों का कहना/बताना है कि काउंसिल के पदाधिकारी और सदस्य एक-दूसरे से प्रायः सड़कछाप तरीके से ही पेश आते हैं और एक दूसरे के साथ चीखते-चिल्लाते हुए व गाली-गलौच करते हुए ही बात करते हैं ।
इस सारी स्थिति के लिए हर कोई चेयरमैन हरीश चौधरी को ही जिम्मेदार ठहराता है । काउंसिल के हालचाल से परिचित लोगों का कहना है कि चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी में न तो कोई अपनी अक्ल/समझ है, और न ही वह नियम-कानून का पालन करने में दिलचस्पी लेते हैं - और इसीलिए लगातार वह खुद भी फजीहत का शिकार बनते हैं और काउंसिल का कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । पिछले दिनों एक अनौपचारिक मीटिंग में वरिष्ठ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उन्हें स्पष्ट रूप से समझाया/बताया था कि नियमानुसार काउंसिल में वह कोई भी काम सेक्रेटरी की सहमति/स्वीकृति के बिना नहीं कर सकते हैं । कई वरिष्ठ व अनुभवी लोगों का मानना और कहना है कि हरीश चौधरी यदि फैसलों की प्रक्रिया में सेक्रेटरी पंकज गुप्ता को शामिल रखें तो बहुत ही समस्याएँ पैदा ही नहीं होंगी । माना जा रहा है कि कई मुसीबतों को हरीश चौधरी ने स्वयं ही पैदा किया हुआ है - जिस धोखाधड़ी से वह चेयरमैन बने, उसके चलते रतन सिंह यादव व अजय सिंघल उनसे खफा हैं और वह तरह तरह से उनके सामने मुश्किलें खड़ी करते रहते हैं; उन मुश्किलों से बचाने के लिए नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता उनकी मदद करते हैं तो श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता जैसे पदाधिकारियों की उपेक्षा होती है और तब वह अपने दाँव चलते हैं; उनके दाँव से बचने के लिए हरीश चौधरी उनकी सुनते हैं तो नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता उनकी ऐसीतैसी करने में जुट जाते हैं । इन सब से वह किसी तरह बचते हैं तो 'न तीन में न तेरह में' वाले गौरव गर्ग धरने जैसी नौटंकी करने लगते हैं । इस सब नौटंकी से परिचित लोगों का कहना है कि वास्तव में चेयरमैन के रूप में हरीश चौधरी के नाकारापन तथा ढुलमुल रवैये के कारण ही काउंसिल में अराजकता का माहौल बना है और कामकाज का मजाक बना हुआ है । 'सर्वे, सर्च एंड सीज़र' जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर आज होने वाला सेमीनार जिस तरीके से रद्द हुआ है, उससे आभास मिल रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात जल्दी नहीं सुधरने वाले हैं ।