Sunday, July 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में रोटरी फाउंडेशन का सिर्फ पैसा ही नहीं, बल्कि रोटरी के पदाधिकारियों के विश्वास को भी 'लूटने' वाले और सजा पाए पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को ऐसा क्यों लगता है कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते, तो कुछ भी करने के बावजूद बच निकलते ?

जयपुर । डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के पैसों की लूट-खसोट की कोशिशों के जो किस्से सामने आ रहे हैं, उन्हें सुन/जान कर डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को अफसोस हो रहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट 3011 में क्यों न हुए - वहाँ होते तो रोटरी फाउंडेशन से मिली ग्लोबल ग्रांट के पैसों में घपलेबाजी करने के मामले में न पकड़े जाते और न सजा पाते ? डिस्ट्रिक्ट 3011 में करोड़ों रुपए की ग्रांट में विवाद हुआ, लेकिन अंततः मामला 'मैनेज' हो गया; अनिल अग्रवाल करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी में ऐसे फँसे कि तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित होने की सजा पा गए । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल अपने डिस्ट्रिक्ट में उसी वर्ष गवर्नर थे, जिस वर्ष विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट 3011 में गवर्नर थे । विनोद बंसल ने अपने गवर्नर-वर्ष में अपने क्लब के प्रेसीडेंट राजेश गुप्ता को एकेएस का सदस्य बनवाया और बदले में उन्हें करीब ढाई/तीन करोड़ रुपए की ग्लोबल ग्रांट दिलवाई; अनिल अग्रवाल ने अपने नजदीकियों के क्लब को करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट दिलवाई ।दोनों ग्रांट्स के इस्तेमाल को लेकर आरोप लगे और विवाद हुआ । विनोद बंसल के क्लब वाली वाली ग्रांट के इस्तेमाल को लेकर लगे आरोपों के चलते उसका तीन तीन बार ऑडिट करने की नौबत आई; ग्रांट के इस्तेमाल में घपलेबाजी के आरोपों को देखते हुए क्लब के अगले एक प्रेसीडेंट ने उक्त ग्रांट के मामले में जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया, जिस कारण उक्त ग्रांट क्लब से छिन कर दूसरे क्लब को ट्रांसफर हो गई; ग्रांट के मुख्य कर्ताधर्ता बने राजेश गुप्ता की भूमिका को संदेहास्पद मानते हुए उन्हें भी मुख्य कर्ताधर्ता का पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा - हालाँकि तब तक राजेश गुप्ता उक्त ग्रांट से जो जो फायदे ले सकते थे, वह ले चुके थे । उक्त ग्रांट के इस्तेमाल के मामले में पिछले से पिछले रोटरी वर्ष के गवर्नर रवि चौधरी ने खासा हाय-हल्ला मचाया था, लेकिन बार-बार आने वाली अड़चनों के बावजूद मामले पर अंततः धूल पड़ गई । दूसरी तरफ अनिल अग्रवाल अपने मामले में ऐसे फँसे कि रोटरी इंटरनेशनल व रोटरी फाउंडेशन के तमाम बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की मदद के बावजूद बच न सके । इसीलिए अनिल अग्रवाल को अब डिस्ट्रिक्ट 3054 में होने का अफसोस हो रहा है; उन्हें लग रहा है कि काश वह भी डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते - तो कुछ भी करके बच निकलते !
अनिल अग्रवाल की घपलेबाजी की कहानी वैसे किसी तिलस्मी कहानी से कम नहीं है, और यह कहानी 'बताती' है कि उनमें एक लेखक होने के गुण खूब हैं । पिछले करीब पाँच महीने से वह रोटरी के बड़े पदाधिकारियों को तरह तरह से लिखित में बता रहे हैं कि वह थोड़ा थोड़ा करके रोटरी फाउंडेशन के करीब 20 लाख रुपए चुका देंगे, लेकिन पट्ठे ने अभी तक इकन्नी भी नहीं दी है । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल ने पहले रोटरी फाउंडेशन को लिखित में विश्वास दिलाया था कि वह 31 मार्च तक चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर देंगे । फाउंडेशन के पदाधिकारी उनकी बातों में आ गए और उनके खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई को उन्होंने स्थगित कर दिया । किंतु जब 20 अप्रैल तक भी फाउंडेशन को कोई पैसा नहीं मिला, तो 25 अप्रैल को उन्हें सजा सुना दी गई । अपनी सजा को खत्म करवाने के लिए अनिल अग्रवाल ने नया झाँसा दिया और विश्वास दिलाया कि वह 30 जून तक पूरा पैसा दे देंगे । उन्होंने लिख कर बताया कि वह अलग अलग तारीखों के अलग अलग रकम के चेक जमा करा रहे हैं, लेकिन जो कभी जमा नहीं कराये गए । इस बीच उन्होंने नाटक रचा कि वह तो पैसे दे रहे हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी पैसे ले ही नहीं रहे हैं । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारी तक अनिल अग्रवाल की झाँसापट्टी में फँस गए कि वह जब पैसा देने को तैयार हैं, तो डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी पैसे ले क्यों नहीं रहे हैं ? उन्होंने मामले की जाँच  के लिए डिस्ट्रिक्ट 3150 के पूर्व गवर्नर लक्कराजु सत्यनारायण उर्फ टिक्कू के नेतृत्व में दो सदस्यीय कमेटी बना दी, जो जाँच के लिए जयपुर आई - अनिल अग्रवाल ने उनके सामने पैंतरा बदला और 30 जून तक पूरा पैसा देने की बात से मुकर कर 30 जून तक पाँच लाख रुपए की पहली किस्त दे देने की लिखित घोषणा की, लेकिन जिस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है । इससे पहले अनिल अग्रवाल की बातों में आकर निवर्त्तमान इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने अनिल अग्रवाल के साथ रियायत बरतने तथा उनके खिलाफ कोई कठोर फैसला न लेने का अनुरोध करते हुए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वाहनवती से बाकायदा लिखित में सिफारिश तक कर दी थी । 
इस तरह अनिल अग्रवाल ने रोटरी का सिर्फ पैसा ही नहीं 'लूटा' - रोटरी और रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों का विश्वास भी लूटा, और हर मौके पर उन्हें बेवकूफ बनाने की ही कोशिश की है । 30 जून के बाद अनिल अग्रवाल ने एक नया नाटक शुरू किया - उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों से कहा/पूछा कि वह एक लाख रुपए जमा कराना चाहते हैं और नगद जमा कराना चाहते हैं, किस अकाउंट में करवाएँ । अनिल अग्रवाल पिछले पाँच महीने में छत्तीस बार अकाउंट नंबर पूछ चुके हैं, और उन्हें छतीस बार अकाउंट नंबर बताया जा चुका है । इस बार भी उन्हें सूचित किया गया कि अकाउंट नंबर वही है, जो उन्हें पहले कई बार बताया जा चुका है; साथ ही उन्हें बताया गया कि लेन देन संबंधी नियमों के अनुसार यह रकम वह नगद में जमा नहीं करा सकते हैं, यह रकम वह चेक से ही जमा करा सकते हैं । अनिल अग्रवाल ने इस पर फिर पुराना राग छेड़ दिया कि वह तो पैसा दे रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी ले ही नहीं रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी यह सोच सोच कर परेशान हैं कि अनिल अग्रवाल जो एक लाख रुपए देना चाह रहे हैं, वह क्या चोरी-चकारी के पैसे हैं जो वह नगद देने पर जोर दे रहे हैं । इससे भी बड़ा नाटक अनिल अग्रवाल ने रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ के जरिए किया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ से दो लाख रुपए ट्रांसफर होने की जानकारी मिली, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने क्लब के प्रेसीडेंट से पूछा कि यह रकम किसलिए है ? प्रेसीडेंट ने उन्हें बताया कि डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में कोई रकम भेजे जाने की उन्हें कोई जानकारी नहीं है, वह पता करके बताते हैं । बाद में प्रेसीडेंट ने उन्हें सूचित किया कि उक्त रकम गलती से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में ट्रांसफर हो गई है, और उस रकम को वह क्लब के अकाउंट में वापस कर दें । इस बीच लेकिन अनिल अग्रवाल ने दावा किया कि रोटरी क्लब जयपुर नॉर्थ से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में जो दो लाख रुपए गए हैं, वह रोटरी फाउंडेशन को वापस किए जाने वाले करीब 20 लाख रुपए की पहली किस्त है । अनिल अग्रवाल के दावों की जाँच के लिए रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से लक्कराजु सत्यनारायण उर्फ टिक्कू के नेतृत्व वाली जो जाँच कमेटी जयपुर आई थी, उसके सामने भी उन दो लाख रुपयों का मामला आया । वहाँ भी अनिल अग्रवाल ने प्रेसीडेंट पर दबाव बनाने की कोशिश की कि वह उनके दावे का समर्थन करे । प्रेसीडेंट ने लेकिन साफ कह दिया कि इस बारे में फैसला लेने का अधिकार क्लब के बोर्ड को है, और वह किसी दावे का समर्थन नहीं कर सकते हैं । तब जाँच कमेटी के सदस्यों ने प्रेसीडेंट से कहा कि वह दो/चार दिन में क्लब के बोर्ड के फैसले से अवगत करवाएँ । दो/चार दिन में क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को फैसला सुना दिया गया कि उक्त रकम गलती से डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में चली गई है, और उसे जल्दी वापस किया जाए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने क्लब की तरफ से मिले इस फैसले से जाँच कमेटी के सदस्यों को अवगत करवाया और उनसे पूछा कि उन दो लाख रुपयों कह क्या करें ? जाँच कमेटी के सदस्य बेचारे मुँह में दही जमाये बैठे हैं कि क्या जबाव दें ?
अनिल अग्रवाल ने झूठे दावे करके और तरह तरह से झाँसे देकर रोटरी के जिन पदाधिकारियों और नेताओं का समर्थन जुटाने का प्रयास किया, उन सभी को मामले से संबद्ध लोगों के सामने लज्जित होना पड़ा है । अनिल अग्रवाल के चक्कर में अभी हाल ही में विनोद बंसल को भी विवाद व खासी फजीहत का शिकार होना पड़ा । दरअसल 12 जुलाई को रोटरी क्लब जयपुर के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में विनोद बंसल को मुख्य अतिथि तथा अनिल अग्रवाल को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था । चर्चा रही कि अनिल अग्रवाल ने ही उक्त समारोह में विनोद बंसल को मुख्य अतिथि बनवाया था, और मुख्य अतिथि बनने के लालच में विनोद बंसल भी रोटरी इंटरनेशनल द्वारा दोषी ठहराए गए तथा सजा प्राप्त अनिल अग्रवाल के साथ मंच शेयर करने के लिए तैयार हो गए । विनोद बंसल को कई लोगों ने समझाया था कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी को ध्यान में रखते हुए उन्हें अनिल अग्रवाल जैसे 'सजायाफ्ता' के साथ मंच शेयर नहीं करना चाहिए, लेकिन विनोद बंसल को पहले तो यह बात समझ में नहीं आई लेकिन 'रचनात्मक संकल्प' में 9 जुलाई को रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जो बबाल मचा, तो फिर विनोद बंसल और अनिल अग्रवाल को रोटरी क्लब जयपुर के कार्यक्रम में एकसाथ दिखने की योजना को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा । इस तरह अनिल अग्रवाल का हर दाँव उल्टा पड़ता जा रहा है । अनिल अग्रवाल के शुभचिंतकों की कमी नहीं है; रोटरी के बड़े बड़े पदाधिकारी और नेता उन्हें बचाने के प्रयासों में लगे हैं, लेकिन अनिल अग्रवाल ने अपनी झाँसेबाजियों से मामला इस कदर उलझा लिया है कि उन्हें बचाने तथा उनके साथ खड़े/बैठने दिखने के लिए तैयार रहने वाले लोगों को भी फजीहत का शिकार होना पड़ता है । डिस्ट्रिक्ट 3011 की घटनाओं को देखते हुए अनिल अग्रवाल को लेकिन लग रहा है कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट 3011 में होते तो घपलेबाजी करने के मामले में यदि पकड़े भी जाते, तो भी सजा पाने से तो बच ही जाते !