Thursday, July 25, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक द्वारा पुलिस में की गई शिकायत पर हो सकने वाली कार्रवाई से बचने की चेयरमैन हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों की कोशिश को गौरव गर्ग ने अपनी घटिया सोच के चलते मुश्किल में डाला

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पदाधिकारियों के झगड़े के पुलिस में पहुँचने से बनी स्थिति को सँभालने के लिए हो रहे प्रयासों में काउंसिल के सदस्य गौरव गर्ग ने आग में घी डालने वाला जो काम किया है, उससे सुलझता दिख रहा मामला भड़क और गया है । उल्लेखनीय है कि 20 जुलाई के सेमीनार के रद्द होने की सूचना देने वाले संदेश में जिस तरह से वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार ठहराया गया था, उससे भड़क कर श्वेता पाठक ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी । श्वेता पाठक का आरोप रहा कि रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्य उन्हें तरह तरह से अपमानित व प्रताड़ित करते रहते हैं, और उक्त संदेश इसका नया उदाहरण व सुबूत है । श्वेता पाठक की तरफ से कहा/बताया गया कि उक्त झूठा संदेश काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से तो भेजा ही गया; हरीश चौधरी जैन, नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, अविनाश गुप्ता ने अपने अपने अकाउंट से भी कुछेक लोगों को भेजा है - जो यह साबित करता है कि उक्त संदेश को काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से भेजे जाने में इन्हीं लोगों की मिलीभगत है और इस तरह से उन्हें अपमानित व प्रताड़ित करने में इन्हीं लोगों की भूमिका है । पुलिस ने श्वेता पाठक की शिकायती रिपोर्ट को आधिकारिक रूप से तो दर्ज नहीं किया, लेकिन अपने तरीके से मामले में पूछताछ शुरू की । पुलिस की पूछताछ से परेशान हुए आरोपी सदस्यों की तरफ से समझौते की कोशिशें शुरू हुईं, जिसके नतीजे के रूप में काउंसिल के आधिकारिक अकाउंट से एक और संदेश भेजा गया, जिसमें पिछले संदेश पर खेद व्यक्त किया गया । इससे लगा कि मामला सँभलने और हल होने की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन लगभग इसी समय गौरव गर्ग के आए एक संदेश ने मामले को बिगाड़ने का काम कर दिया है । 
गौरव गर्ग ने दरअसल प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक छात्र की शिकायत को मुद्दा बनाया है, और सीधे तौर पर उनके द्वारा उठाया गया मुद्दा काउंसिल के पदाधिकारियों/सदस्यों के बीच चल रहे झगड़े से संबंध रखता नहीं 'दिखता' है; लेकिन 'टाइमिंग' और 'तरीके' के आधार पर काउंसिल सदस्यों ने गौरव गर्ग के संदेश को श्वेता पाठक पर कटाक्ष करने के रूप में देखा/पहचाना और व्याख्यायित किया - और यही व्याख्या मामले को भड़काने का काम कर गई है । प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक छात्र को एक स्टाफ का व्यवहार अनुचित लगा, जिसकी उसने शिकायत की । यह शिकायत मान्य प्रक्रिया के द्वारा सुनी जानी थी, और यदि नहीं सुनी जाती तो उसके सुने जाने के लिए दबाव बनाया जा सकता था । गौरव गर्ग ने लेकिन इस मामले को 13 काउंसिल सदस्यों के छोटे से वाट्स-ऐप ग्रुप में उठाया और सनसनीखेज बनाते हुए उठाया; उन्होंने लिखा कि प्रशांत विहार लाइब्रेरी में एक 'मेल' स्टाफ ने एक 'फीमेल' छात्र को परेशान किया । काउंसिल की लाइब्रेरीज में छात्रों को तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और वह अक्सर शिकायतें करते रहते हैं; उन शिकायतों को 'मेल' फीमेल' के झगड़े का रूप शायद ही कभी दिया गया हो । संदर्भित मामला यदि 'मेल' 'फीमेल' की प्रकृति का था भी, तो गौरव गर्ग को पूरी बात स्पष्ट करना चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की । दूसरी बात यह प्रसंग 13 काउंसिल सदस्यों के छोटे से वाट्स-ऐप ग्रुप में रखने का कोई मतलब नहीं था । गौरव गर्ग को शिकायत करने वाली छात्रा को यदि सचमुच न्याय दिलवाना था, तो उन्हें काउंसिल के उचित मंच पर इसे उठाना/रखना था । उन्होंने लेकिन उस छात्रा की शिकायत को 'इस्तेमाल' किया । इसी से कुछेक काउंसिल सदस्यों को गौरव गर्ग की बदनीयती का शक हुआ, और माना/समझा गया कि उक्त मामले के जरिए गौरव गर्ग ने दरअसल हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों की तरफ से श्वेता पाठक को निशाना बनाया है और उन पर कटाक्ष किया है । 
यह मानने/समझने का कारण यह भी रहा कि गौरव गर्ग पिछले कुछ समय से चेयरमैन हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों के रूप में पहचाने जाने वाले नितिन कँवर, राजेंद्र अरोड़ा, अविनाश गुप्ता के साथ जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं । समझा जा रहा है कि गौरव गर्ग ने अपने इस 'खेल' के जरिए वास्तव में हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों की तरफ से 'बैटिंग' की है; उनकी इस बैटिंग ने लेकिन श्वेता पाठक और उनके समर्थकों को भड़का दिया है । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों की तरफ से श्वेता पाठक के पुलिस में शिकायत करने को गलत परंपरा स्थापित करना बताया जा रहा है; इनका कहना है कि काउंसिल के प्रशासनिक विवाद को यदि पुलिस में ले जाने की परंपरा बनी, तो यह बहुत ही खतरनाक बात होगी । इन्हीं लोगों का यह भी कहना है कि काउंसिल में इस समय जो भी विवाद हैं, वह प्रशासनिक फैसलों से जुड़े विवाद हैं, न की 'मेल' 'फीमेल' के झगड़े हैं - जैसा कि श्वेता पाठक बनाने/बताने का कर रही हैं । श्वेता पाठक से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि प्रशासनिक विवादों को हल करने के लिए जब चीखना-चिल्लाना, अपशब्दों व अशालीन व गाली-गलौच पूर्ण शब्दों का प्रयोग होने लगे तो फिर वह सिर्फ प्रशासनिक विवाद नहीं रह जाता और पुलिस में शिकायत का कारण बन जाता है । प्रशासनिक विवाद में कल यदि कोई किसी का सिर फोड़ दे और कहे कि यह पुलिस का मामला नहीं है, सिर्फ प्रशासनिक विवाद है - तो यह मान्य नहीं होगा । कई लोगों का कहना है कि प्रशासनिक विवाद के नाम पर काउंसिल के कुछेक सदस्य श्वेता पाठक के साथ जिस बदतमीजी से पेश आते हैं, वह सिर्फ एक प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, बल्कि एक स्त्री के सम्मान को भी चोट पहुँचाने का मामला है; और श्वेता पाठक को हक है कि अपने सम्मान को बनाए रखने तथा न्याय पाने के लिए वह किसी की भी मदद लें । उल्लेखनीय है कि काउंसिल के पिछले टर्म में भी कई एक बार नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा के बदतमीजीभरे रवैये से परेशान होकर पुलिस में शिकायत करने की नौबत आई थी । इस बार अभी जो नौबत आई है, उससे निपटने की कोशिशों को गौरव गर्ग की हरकत से झटका लगता देखा जा रहा है । लोगों को हैरानी यह देख कर भी है कि अभी तीन दिन पहले ही गौरव गर्ग के पिता का निधन हुआ है; जिस समय उन्होंने प्रशांत विहार लाइब्रेरी की एक शिकायत की आड़ में श्वेता पाठक पर कटाक्ष करने का काम किया है, उस समय तक शायद उनके पिता की अस्थियाँ भी विसर्जित नहीं हुई होंगी - ऐसे मुश्किल निजी समय में भी वह काउंसिल की राजनीति में अपना गंदा खेल खेलने से नहीं चूके; यह उनकी घटिया सोच और व्यवहार को ही सामने लाता है ।