Monday, July 29, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग तथा विजय झालानी पर हालात को बिगाड़ने का आरोप लगा कर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन व उनके नजदीकियों ने रीजनल काउंसिल में फैली अराजकता की तरफ से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास किया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन तथा काउंसिल में उनके नजदीकी सदस्यों ने काउंसिल में फैली/पसरी अराजकता के लिए इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल सदस्य चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग और सरकार द्वारा नामित सदस्य विजय झालानी को जिम्मेदार ठहराना शुरू किया है । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकी सदस्य लोगों के साथ की जाने वाली बातचीतों में लगातार आरोप लगाने लगे हैं कि अपने अपने स्वार्थ में यह तीनों रीजनल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को भड़काए रखते हैं, और तरह तरह से उन्हें समर्थन देते रहते हैं - जिसके चलते काउंसिल के कुछेक पदाधिकारी तथा सदस्य किसी न किसी बहानेबाजी से कामकाज में बाधा डालते हुए झगड़े बनाए/बढ़ाए रखते हैं । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों का मानना/कहना है कि विजय झालानी ने अविनाश गुप्ता व श्वेता पाठक के बीच हुए मामले में श्वेता पाठक का पक्ष लेते हुए 10 अप्रैल को चैयरमैन हरीश चौधरी जैन को फटकार लगाने वाला ईमेल संदेश न लिखा होता, तो मामला इतना न बिगड़ता । उनका कहना है कि सरकार ने विजय झालानी को इंस्टीट्यूट में इसलिए नामित नहीं किया है कि वह रीजनल काउंसिल के मामलों में अपनी टाँग अड़ाते फिरे और वहाँ झगड़े बढ़ाएँ । उसके बाद, 6 जून को बुलाई गई रीजनल काउंसिल की अधिकृत मीटिंग के रद्द हो जाने के बाद हुई अनौपचारिक मीटिंग में चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग ने नियम-कानूनों का वास्ता देकर मेलमिलाप कराने के जो प्रयास किए, वह वास्तव में हरीश चौधरी और उनके नजदीकियों को हतोत्साहित करने वाले थे । उक्त अनौपचारिक मीटिंग में चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग ने साफ साफ कहा कि यह नियम भी है और भलाई भी इसी में है कि चेयरमैन और सेक्रेटरी मिलजुल कर फैसले लें और हर फैसले में दोनों की भागीदारी सुनिश्चित हो । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों का कहना है कि उक्त मीटिंग के बाद से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में झगड़े और बढ़े हैं तथा हालात और ज्यादा बिगड़े हैं । 
हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों का कहना है कि विजय झालानी को चूँकि सेंट्रल काउंसिल में कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही है, इसलिए अपने आप को व्यस्त रखने के लिए वह रीजनल काउंसिल के मामले में दिलचस्पी लेते हैं और यहाँ अपनी अहमियत दिखाने का प्रयास करते रहते हैं; चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को चिंता है कि राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर के सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने से उनके लिए मुकाबला चुनौतीपूर्ण हो जायेगा - इसलिए वह अभी से ही उन दोनों के पर कतर कर रखना चाहते हैं । उनकी खुशकिस्मती है कि राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर ने अपनी अपनी हरकतों से उन्हें मौका भी दे दिया है । हंसराज चुग को सुमित गर्ग व अविनाश गुप्ता की संभावित उम्मीदवारी से भी चुनौती मिल सकने का डर है ।कई लोगों को लगता है कि यह दोनों भी सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत कर सकते हैं, और इन्होंने यदि सचमुच उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तो यह हंसराज चुग के लिए मुसीबत बनेंगे । मजेदार संयोग यह है कि राजेंद्र अरोड़ा, नितिन कँवर, सुमित गर्ग, अविनाश गुप्ता को ही चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । गंभीर आरोप यही है कि इन्हीं चारों के दबाव में हरीश चौधरी जैन फैसले करते हैं और काउंसिल के वाइस चेयरपरसन, सेक्रेटरी व ट्रेजरर को अलग थलग रखते हैं । हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों के लिए मुसीबत की बात यह है कि उन्हें 'बाहर' से कहीं किसी का समर्थन प्राप्त नहीं है; उनकी कार्रवाईयों को उचित ठहराने वाला कोई नहीं है । विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग को लेकर उनके आरोप यदि सच भी हैं, तो भी कोई भी यह कहने/मानने वाला नहीं है कि उन्होंने कोई अनुचित बात की है, या अनामंत्रित रूप से घुसपैठ करने की कोशिश की है; वह तो मामले में तभी पड़े हैं, जब उनसे शिकायत की गई और उन्हें हालात को निपटाने में भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया गया । यह अलग बात है कि उन्हें मौका मिला और उन्होंने अपनी अपनी 'जरूरतों' के हिसाब से मौके का फायदा उठाया ।
हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकियों ने विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को जिस तरह से निशाना बनाना शुरू किया है - उससे रीजनल काउंसिल में हालात सुधरेंगे, इसकी तो किसी को उम्मीद नहीं है; उससे लेकिन रीजन की चुनावी राजनीति में नए बबाल जरूर पैदा होंगे । समझा जाता है कि विजय झालानी के साथ-साथ चरनजोत सिंह नंदा व हंसराज चुग को निशाने पर लेकर हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों ने दो उद्देश्य एक साथ साधने का प्रयास किया है - एक तरफ तो वह इन्हें दबाव में लेना/रखना चाहते हैं ताकि यह रीजनल काउंसिल के मामलों से दूर रहें, और दूसरी तरफ सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति में यह अपनी अहमियत दिखाना चाहते हैं; लोगों के बीच यह अभी से इस बात को पहुँचाना चाहते हैं कि इनकी उम्मीदवारी की संभावना मात्र से सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को अगले चुनाव में अपने पुनर्निर्वाचन को लेकर डर पैदा हो गया है । हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों को एक तीसरा फायदा यह होता दिख रहा है कि उनके आरोपों से लोगों का ध्यान चुनावी राजनीति के समीकरणों पर जायेगा और रीजनल काउंसिल में फैली अराजकता की तरफ से हटेगा । हालाँकि कई लोगों को लगता है कि हरीश चौधरी जैन तथा उनके नजदीकियों ने यह जो राजनीति खेली है, इससे उन्हें तात्कालिक रूप से भले ही कोई फायदा होता हुआ दिखे, लेकिन कुल मिलाकर यह राजनीति उनकी मुसीबतों को बढ़ाने वाली ही साबित होगी । उनकी राजनीति क्या करेगी और उसका क्या नतीजा होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन उनके दाँव ने नॉर्दर्न रीजन के राजनीतिक खिलाड़ियों को चर्चा/कुचर्चा का अच्छा मौका जरूर दे दिया है ।