नई दिल्ली । मनीष गोयल इंकार करते करते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी संग्राम में आखिरकार कूद ही पड़े हैं । यही तमाशा पिछले दिनों अशोक जैन ने किया/दिखाया था; वह भी ना ना करते हुए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर बैठे थे, लेकिन जल्दी ही उन्हें यह समझ में आ गया कि यह 'खेल' उनके बस का है नहीं - सो वह चुपचाप वापस हो लिए । मनीष गोयल को जानने वालों का कहना है कि यह खेल मनीष गोयल के बस का भी नहीं है, और यदि उनकी सद्बुद्धि वापस लौटी तो वह भी अशोक जैन वाली होशियारी दिखायेंगे - अन्यथा उनका हाल रवि सचदेवा जैसा होगा । मनीष गोयल के मामले में दो बातें गौर करने वाली हैं : एक यह कि उनके नजदीकी और डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ी पिछले करीब दो महीने से उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए उकसा/भड़का रहे थे, लेकिन अपनी तात्कालिक पारिवारिक जिम्मेदारियों का वास्ता देकर वह कह/बता रहे थे कि इस वर्ष तो उम्मीदवार बन पाना उनके लिए असंभव ही होगा ।उनके नजदीकी एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इन पंक्तियों के लेखक से बताया है कि मनीष गोयल ने अपनी कुछेक ऐसी तात्कालिक पारिवारिक जिम्मेदारियों का जिक्र किया, जिन्हें सुन/जान कर उन्हें भी लगा कि इस वर्ष उम्मीदवार बनना मनीष गोयल के लिए मुसीबतभरा ही होगा और इसीलिए उन्होंने मनीष गोयल से उम्मीदवारी की बात करना बंद कर दिया था । गौर करने वाली दूसरी बात मनीष गोयल का वह सार्वजनिक कथन है जो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाए जाने पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को थैंक्यू कहते हुए दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने अपने सेक्रेटरी-वर्ष को 'लर्निंग ईयर' (सीखने वाला वर्ष) कहा था । इन दो बातों पर गौर करते हुए कह सकते हैं कि अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए मनीष गोयल ने खुद अपने द्वारा ही बताई गईं अपनी गंभीर पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लिया है; और जो 'लर्निंग' उन्हें पूरे वर्ष करनी थी, वह उन्होंने शुरू के महीने के पहले सप्ताह में ही कर ली है ।
इसीलिए मनीष गोयल की उम्मीदवारी पर सबसे पहली प्रतिक्रिया के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना यही है कि ऐसा कन्फ्यूज्ड व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनेगा भी, तो करेगा क्या ? लोगों का कहना यही है कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने में मनीष गोयल ने जितनी जो देरी की है, उससे ही साबित है कि यह उनका 'अपना' फैसला नहीं है, वह तो बस किन्हीं और लोगों के उकसाने/भड़काने के चलते उम्मीदवार बन गए हैं । मनीष गोयल किन लोगों के उकसाने/भड़काने के चलते उम्मीदवार बने हैं, इसे लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों की राय बँटी हुई है; कुछेक लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो अन्य कुछेक लोग इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को जिम्मेदार मान रहे हैं । मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है; मुकेश अरनेजा को लेकिन सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है - इसलिए यह बात पहेली भी बनी हुई है कि मनीष गोयल आखिर किस भरोसे उम्मीदवार बने हैं ? डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच चर्चा यही है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने अपने अपने 'स्वार्थ' में मनीष गोयल को बलि के लिए बकरा बना दिया है । मनीष गोयल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में कोई भी गंभीरता से लेता हुआ भले ही न दिख रहा हो, लेकिन उनकी अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को नाटकीय बनाने का काम तो किया ही है - और इस नाटकीय परिदृश्य में ललित खन्ना के लिए मुसीबत बढ़ती देखी जा रही है, और ललित खन्ना की बढ़ती मुसीबत में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को फायदा होने का अनुमान लगाया जा रहा है ।
ललित खन्ना दरअसल अभी तक दीपक गुप्ता और उनकी कोर टीम का एकतरफा समर्थन पाते हुए नजर आ रहे थे; मनीष गोयल की उम्मीदवारी के आने से जिसके बँटने का खतरा पैदा हो गया है । ललित खन्ना के कुछेक शुभचिंतकों का हालाँकि दावा है कि ललित खन्ना ने दीपक गुप्ता के लिए जो किया है, उसे देखते हुए दीपक गुप्ता उनके साथ धोखा नहीं करेंगे; लेकिन उनके सामने सवाल यह है कि मनीष गोयल की उम्मीदवारी के पीछे यदि दीपक गुप्ता नहीं हैं, तो दीपक गुप्ता उम्मीदवारी घोषित करने के बाद मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद से हटा क्यों नहीं देते हैं और क्लब्स की मीटिंग्स में उन्हें अपने साथ ले जाना बंद क्यों नहीं कर देते हैं ? दीपक गुप्ता को 'जानने' वाले लोगों का कहना तो यहाँ तक है कि दीपक गुप्ता ने वास्तव में ललित खन्ना की 'लगाम कसने' के लिए ही मनीष गोयल को उम्मीदवार बनाया है, और इसीलिए वह मनीष गोयल को डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाए रखेंगे । जो लोग मनीष गोयल की उम्मीदवारी के पीछे आलोक गुप्ता को देख रहे हैं, उनका कहना है कि अपनी गवर्नरी की 'धमक' पैदा करने के लिए उन्हें एक उम्मीदवार चाहिए था; दरअसल रोटरी में गवर्नरी तभी 'पूरी हुई' मानी जाती है जब वह किसी और को गवर्नर बनवाता है - जैसे जेके गौड़ ने सुभाष जैन को बनवाया, सुभाष जैन ने अशोक अग्रवाल को बनवाया, दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता को सतीश सिंघल के 'प्रॉडक्ट' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, दीपक गुप्ता ने ललित खन्ना का झंडा उठा लिया; आलोक गुप्ता के पास हालाँकि गवर्नरी 'पूरी' करने का अभी अगले वर्ष का मौका है, लेकिन उन्होंने जब देखा/पाया कि मनीष गोयल में 'कीड़े' तो हैं, लेकिन कीड़े अलग अलग दिशाओं में भाग रहे हैं, तो उन्होंने मौका ताड़ा और मनीष गोयल के 'कीड़ों' को एक दिशा में करके उन पर एडहेसिव टेप लगा दिया; आलोक गुप्ता को यह भी उम्मीद होगी कि मनीष गोयल के रूप में एक उम्मीदवार उनके हाथ में होगा, तो उनके कार्यक्रमों में उनके 'काम' आयेगा ।
मनीष गोयल की उम्मीदवारी को 'कठपुतली' उम्मीदवारी के रूप में देखे जाने के कारण मनीष गोयल के लिए एक उम्मीदवार के रूप में 'मूव' करना फजीहतभरा तो होगा, लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का जो काम किया है - उसने ललित खन्ना की तैयारी व स्थिति को गड़बड़ा दिया है । दरअसल मनीष गोयल की उम्मीदवारी के चलते बनते/बिगड़ते समीकरण सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करते हैं; वह सिर्फ ललित खन्ना की उम्मीदवारी के पक्ष में बनते समीकरणों को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं - इसलिए मनीष गोयल की उम्मीदवारी के चलते ललित खन्ना के समर्थन-आधार में पड़ती दिख रही सेंध सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाती लग रही है ।