Sunday, August 17, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में लोगों की प्रतिक्रियाओं से लगता है कि शरत जैन और रमेश अग्रवाल के सामने दीपक गुप्ता की कमजोरियों से फायदा उठाने के मौके भी बहुत ज्यादा और आसान नहीं हैं; तथा उनके सामने चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर है

नई दिल्ली ।  रमेश अग्रवाल ने अभी हाल ही में अपनी तरफ से फोन करके हालचाल पूछ कर कई ऐसे लोगों को चौंकाया है, जिन्हें 'गवर्नरी के नशे में' रहने के चलते अभी तक वह पहचानने से भी बचते रहे थे । मजे की बात यह है कि ऐसे कई लोगों में वह लोग भी हैं जिन्हें रमेश अग्रवाल के गवर्नर बनने से पहले रमेश अग्रवाल के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता था । गवर्नरी का नशा यूँ तो सभी को हो जाता है - लेकिन रमेश अग्रवाल को कुछ ज्यादा ही हो गया था । गवर्नरी के नशे का ही असर था कि जिन केके भटनागर के आगे-पीछे वह गुरु जी-गुरु जी कहते हुए घूमते थे, उन्हीं केके भटनागर से वह ऐसी बदतमीजी कर गुजरे कि पिटते पिटते बचे । हालाँकि राजेंद्र जैना से बदतमीजी करने के बाद उनके लिए बचना थोड़ा मुश्किल हुआ - महिलाओं के बीच छिप कर किसी तरह उन्होंने अपने आप को राजेंद्र जैना के क्रोध से बचाया । गवर्नरी के नशे में ही रमेश अग्रवाल ने रोटरी क्लब गाजियाबाद मिडटाउन के अध्यक्ष को पेट्स में ले जाने से ऐन मौके पर इंकार कर दिया था, जिसके कारण उमेश चोपड़ा से उन्होंने खूब खरी-खोटी सुनी थी; और गवर्नरी के नशे में ही उन्होंने रोटरी क्लब गाजियाबाद की मैचिंग ग्रांट ही रोक ली थी ।
गवर्नरी के नशे में ही रमेश अग्रवाल ने क्लब्स के पदाधिकारियों पर दबाव बनाये थे कि जीओेवी वह अधिष्ठापन कार्यक्रम में ही करें और उसमें उनके अलावा किसी अन्य 'गवर्नर' को अतिथि के रूप में भी आमंत्रित न करें - जिसके चलते पिछले वर्षों में गवर्नर रहे लोगों को ही नहीं, उनके बाद गवर्नर बनने वाले विनोद बंसल और संजय खन्ना को भी कई जगह अपमानित तक होना पड़ा । रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के कार्यक्रम में तो विनोद बंसल ने खुद को इतना अपमानित महसूस किया कि कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर चले गए थे । गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट की टेनिस प्रतियोगिता में अपने क्लब को बेईमानी से जितवाने की कोशिश की और इस कोशिश में उन्होंने समीर गुप्ता और रमणीक तलवार से अपनी खासी फजीहत करवाई । गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल ने अपने कई नजदीकियों को अपने खिलाफ कर लिया । गवर्नरी का उनका नशा सीओएल में मिली पराजय के बाद से कुछ उतरना शुरू हुआ है । नशे का ही असर था कि सीओएल के चुनाव को वह आसानी से जीत लेने का दावा कर रहे थे । घमंड और बड़बोलेपन से भरे दावे की हवा निकली तो उसमें उनका नशा भी उड़ना शुरू हुआ । 
गवर्नरी के नशे में रमेश अग्रवाल द्धारा की गई कारस्तानियाँ शरत जैन के लिए बड़ी मुसीबत बनी हैं । शरत जैन के कई समर्थकों व शुभचिंतकों ने उन्हें शुरू से आगाह किया हुआ है कि रमेश अग्रवाल के भरोसे रहोगे तो कुछ नहीं पाओगे । लोगों ने उनके सामने तर्कपूर्ण उदाहरण भी दिया कि रमेश अग्रवाल अपनी बदनामी के चलते जब अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सके तो उन्हें क्या जितवायेंगे ? शरत जैन की समस्या लेकिन दोहरी है - एक तरफ तो वह लोगों को अभी तक यह भरोसा नहीं दिला पाये हैं कि वह रमेश अग्रवाल के 'आदमी' नहीं हैं; और दूसरी तरफ उनके लिए अकेले अपने भरोसे कुछ कर पाना अभी तक संभव नहीं होता 'दिखा' है । रमेश अग्रवाल की (कु)ख्याति कुछ ऐसी है कि लोग यह मान रहे हैं कि रमेश अग्रवाल ने जैसे जेके गौड़ को अपना 'गुलाम' बनाया हुआ है, वैसे ही शरत जैन भी उनके 'गुलाम' बन कर ही रहेंगे; शरत जैन की समस्या यह है कि वह यह भी नहीं कह सकते हैं कि जेके गौड़ भले ही रमेश अग्रवाल के 'गुलाम' बन गए हों, लेकिन वह नहीं बनेंगे ।
शरत जैन ने अपने बल पर अपना अभियान चलाने का प्रयास किया - लेकिन उन्हें कोई खास सफलता मिलती नहीं दिखी है । दरअसल शरत जैन का चूँकि पहले से लोगों के साथ कोई परिचय नहीं है; और लोगों के बीच उनकी पहचान रमेश अग्रवाल के 'आदमी' के रूप में ही है - इसलिए अपनी स्वतंत्र पहचान के साथ लोगों से निकटता बनाने के उनके प्रयासों का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला है । यही कारण बना कि शरत जैन की मदद करने के लिए रमेश अग्रवाल को खुद सक्रिय होने की जरूरत महसूस हुई है । रमेश अग्रवाल ने अब ऐसे लोगों से संपर्क साधना शुरू किया है जो कभी उनके नजदीक हुआ करते थे, लेकिन पिछले बहुत समय से उनका कोई संपर्क नहीं है और संपर्क न होने कारण जिनसे उनका कोई टकराव भी नहीं हुआ है । रमेश अग्रवाल ने अपनी तरफ से तो अक्लमंदी दिखाई, किंतु वह यह भूल गए कि जिन लोगों को वह अपने 'अच्छे' दिनों में भूले हुए थे - वह अब उनके फोन करने और हालचाल पूछने से क्यों उनके साथ आ जायेंगे ? जिन लोगों से रमेश अग्रवाल ने हाल-फिलहाल में संपर्क किया है उन्होंने रमेश अग्रवाल की 'इस' मुहिम को अवसरवादी मुहिम के रूप में ही देखा/पहचाना है ।
रमेश अग्रवाल ने एक और होशियारी की - उन्होंने गाजियाबाद में ऐसे लोगों से भी संपर्क किया है जो उनके भी खिलाफ हैं, लेकिन दीपक गुप्ता के साथ भी नहीं हैं । रमेश अग्रवाल को लगता है कि उनके जिन विरोधियों को दीपक गुप्ता अभी तक भी अपने साथ नहीं जोड़ सके हैं; उन्हें दीपक गुप्ता के खिलाफ कर पाना उनके लिए आसान होगा । ऐसे लोगों को निशाने पर लेते हुए रमेश अग्रवाल ने उन्हें दीपक गुप्ता के खिलाफ भड़काने/उकसाने की चाल चली है । रमेश अग्रवाल ने चाल तो अच्छी चली है लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा शायद नहीं है कि लोगों के बीच उनके खिलाफ किस तरह की और कितनी गहरी नाराजगी है । उनकी करतूतें वास्तव में ऐसी रही हैं कि लोग उन्हें जल्दी से भूलने को तैयार नहीं हैं । ऐसे लोगों में से कुछेक से जिनसे इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उनका कहना है कि यह सच है कि दीपक गुप्ता के साथ उनके कुछ झंझट हैं, लेकिन वह झंझट इतने बड़े नहीं हैं कि उन्हें हल न किया जा सके; जिस दिन दीपक गुप्ता प्रयास करेंगे, वह झंझट सुलट जायेंगे; इसलिए उन झंझटों के सहारे रमेश अग्रवाल अपनी दाल गलाने की कोशिश न करें । इस तरह की प्रतिक्रियाओं से लगता है कि शरत जैन और रमेश अग्रवाल के सामने दीपक गुप्ता की कमजोरियों से फायदा उठाने के मौके भी बहुत ज्यादा और आसान नहीं हैं; तथा उनके सामने चुनौती कहीं ज्यादा गंभीर है ।