Wednesday, August 27, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में महिला गवर्नर की चर्चा से बढ़ती दिख रही सरोज जोशी की उम्मीदवारी की धमक ने रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को खतरा महसूस कराया

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक नेता जिस तरह महिला गवर्नर की वकालत करते हुए सुने गए हैं, उससे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए एक नई समस्या और चुनौती पैदा होती हुई दिख रही है । दरअसल रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतक भी समझ रहे हैं कि महिला गवर्नर की वकालत करने वाले नेताओं का वास्तविक एजेंडा सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सहानुभूति और उनका समर्थन जुटाना है; और उनकी इस वकालत के चलते रवि चौधरी की उम्मीदवारी से लोगों का ध्यान और कंसर्न हटेगा । उल्लेखनीय है कि मौजूदा वर्ष रोटरी में महिलाओं के प्रवेश का 25वाँ वर्ष है । कुछेक लोगों ने कहना शुरू किया है कि इस 25वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए डिस्ट्रिक्ट को एक महिला को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनना चाहिए ।
उल्लेखनीय बात यह है कि जो लोग महिला गवर्नर की वकालत कर भी रहे हैं, उन्हें भी इस बात का पूरा पूरा अहसास है कि रोटरी में लीडरशिप महिलाओं की भागीदारी को लेकर उत्साहित व प्रोत्साहित करने वाली बातें चाहें जितनी करती हो, लेकिन लीडरशिप में महिलाओं के शामिल होने को लेकर उसकी सोच बहुत ही दकियानूसी और पक्षपातपूर्ण है । लीडरशिप में महिलाओं को जो भी स्थान प्राप्त हुआ है, उसके लिए उन्हें और उनके समर्थकों को बड़ा कड़ा संघर्ष करना पड़ा है । जिन डिस्ट्रिक्ट्स में महिलाएँ गवर्नर बनी हैं, उन डिस्ट्रिक्ट्स में वह कोई आसानी से नहीं बनी हैं - उसके लिए उन्हें एक उम्मीदवार रूप में तो काम करना ही पड़ा है, साथ ही पक्षपातपूर्ण व भेदभावपूर्ण सोच का भी मुकाबला करना पड़ा है । रोटरी में महिलाओं की मौजूदगी और उनकी पहचान के लिए एक बड़ी लंबी लड़ाई लड़े जाने का इतिहास है - जो ज्यादा पुराना भी नहीं है ।
यह बात तो अधिकतर लोग जानते होंगे कि रोटरी में महिलाओं को सदस्य बनने का अधिकार 1989 में काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन में किए गए एक संशोधन के बाद मिला । लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि महिलाओं को यह अधिकार देने से बचने के लिए रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन पदाधिकारियों ने काफी दावपेंच खेले और उनमें मात खाने के बाद ही वह महिलाओं को रोटरी सदस्य बनने का अधिकार देने के लिए मजबूर हुए । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को मजबूर करने की यह कहानी 1977 में उस समय शुरू हुई, जब रोटरी क्लब दुआर्ते, कैलिफोर्निया ने तीन महिलाओं को अपने क्लब का सदस्य बनाया । डिस्ट्रिक्ट से लेकर इंटरनेशनल तक के तत्कालीन पदाधिकारियों को क्लब का यह फैसला पसंद नहीं आया । रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार महिलाएँ चूँकि रोटरी क्लब की सदस्य नहीं हो सकती थीं इसलिए क्लब पर उन महिलाओं की सदस्यता निरस्त करने के लिए हर तरह का दबाव बनाया गया । क्लब नहीं माना तो मार्च 1978 में क्लब का चार्टर ही रद्द कर दिया गया । रद्द चार्टर को बहाल कराने के लिए क्लब ने अदालत का दरवाजा खटखटाया । कैलिफोर्निया सुपीरियर कोर्ट से लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली । कोर्ट ने रोटरी इंटरनेशनल के इस तर्क को सही माना कि उसे अपने सदस्यों पर अपने नियम-कानून लागू करने का हक है । क्लब के लोग इस फैसले के खिलाफ अपील में गए । कैलिफोर्निया कोर्ट ऑफ अपील्स ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया । उसने क्लब के इस तर्क को तवज्जो दी कि अपने नियम-कानूनों की आड़ में रोटरी इंटरनेशनल को महिलाओं के साथ भेदभाव करने की छूट नहीं दी जा सकती । रोटरी इंटरनेशनल ने तब कैलिफोर्निया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने लेकिन मामले की सुनवाई करने से इंकार कर दिया । इसके बाद रोटरी इंटरनेशनल ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई । 4 मई 1985 के अपने फैसले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रोटरी इंटरनेशनल को तगड़ी झाड़ पिलाई और कैलिफोर्निया कोर्ट ऑफ अपील्स के फैसले को बदलवाने के लिए दी गई याचिका को खारिज करते हुए क्लब के चार्टर को बहाल करने का आदेश दिया ।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से मिली फटकार के बाद भी रोटरी इंटरनेशनल के तत्कालीन पदाधिकारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आये थे । कोर्ट के फैसले के कारण रोटरी इंटरनेशनल को अमेरिका में तो महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने पर सहमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन बाकी देशों में महिलाओं के लिए रोक को जारी रखा गया । कुछ महीने बाद कनाडा के रोटेरियंस ने रोटरी इंटरनेशनल को इस मामले में आँखें दिखाई तो रोटरी इंटरनेशनल ने कनाडा में भी महिलाओं के लिए रोटरी के दरवाजे खोल दिए । बाकी देशों में महिलाओं के रोटरी में प्रवेश पर तब भी रोक लगी रही । तब बाकी देशों में भी महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने/बनाने को लेकर मांग उठने लगी और फिर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के लिए इस माँग को दबाना मुश्किल हो गया । ऐसे में, 1989 में काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन में एक संशोधन को स्वीकार किया गया, जिसके बाद महिलाओं के लिए रोटरी के दरवाजे पूरी तरह खोल दिए गए । रोटरी और महिलाओं के बीच संबंधों का एक बदनुमा पहलू यह भी है कि 1989 में हुए उक्त फैसले में भी काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन के करीब 27 प्रतिशत सदस्यों ने उक्त संशोधन का विरोध किया था । रोटरी फाउंडेशन के 15 ट्रस्टियों में किसी महिला को 2005 में पहली बार जगह मिल सकी थी । रोटरी इंटरनेशनल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में पहली महिला सदस्य एक जुलाई 2008 को प्रवेश पा सकी थी ।
महिलाओं के रोटरी सदस्य बनने और लीडरशिप का हिस्सा बनने के संघर्ष के तथ्यों को यहाँ याद करने के पीछे उद्देश्य सिर्फ इस सच्चाई को रेखांकित करना है कि महिलाओं को रोटरी में जो स्थान आज मिला हुआ है, रोटरी में आज उनकी जो पहचान है - उसे एक लंबे और कड़े संघर्ष से हासिल किया गया है; जो यह भी दिखाता/बताता है कि रोटरी में महिलाओं को जगह तथा पहचान देने के मामले में विरोध की जड़ें खासी गहरी हैं । इस संघर्ष का लेकिन एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि रोटरी में महिलाओं के प्रवेश को संभव बनाने का संघर्ष पुरुषों ने ही किया है - वास्तव में यह संघर्ष वही कर ही सकते थे; महिलाएँ जब सदस्य ही नहीं थीं तो वह संघर्ष भी कैसे करती ?
इन तथ्यों तथा इन तथ्यों के संदर्भ में प्रकट काले और उजले पक्षों की पृष्ठभूमि में डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में महिला गवर्नर की वकालत के सुने जा रहे स्वर महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इन स्वरों को पश्चाताप करने और गलती सुधारने का मौका बनाने के प्रयत्न के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि इससे पहले विजया जोशी की उम्मीदवारी के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लगातार दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट के लिए एक महिला गवर्नर चुनने का मौका मिला था - लोगों ने लेकिन उनकी जगह पहले असित मित्तल को और दूसरी बार रमेश अग्रवाल को चुना । इन दोनों ने ही अपनी अपनी कारस्तानियों से रोटरी और डिस्ट्रिक्ट को अलग-अलग तरीके से कलंकित करने का ही काम किया है । इन दोनों का साथ देने वाले कई लोगों का मानना और कहना है कि उस समय उन्होंने यदि विजया जोशी को चुना होता तो डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को इतना कलंकित नहीं होना पड़ता । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को लगता है कि इस तरह की बातों से प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति सहानुभूति और समर्थन का माहौल बनता है । रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों के लिए चिंता की बात यह भी है कि इस तरह की बातों से रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति एक नकारात्मक माहौल बनता है, क्योंकि रवि चौधरी को असित मित्तल और रमेश अग्रवाल के 'गिरोह' के सदस्य के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है ।
बात सिर्फ देखने/पहचानने तक ही सीमित नहीं है - रमेश अग्रवाल बाकायदा रवि चौधरी को 'अपने' उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों से वह कई कई बार कह चुके हैं कि वह भले ही प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में भी उनका राजपाट रवि चौधरी के जरिये चलेगा । रमेश अग्रवाल ने इसी तरह के दावे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन को लेकर भी किये थे । डॉक्टर सुब्रमणियन लेकिन बड़ी होशियारी के साथ रमेश अग्रवाल के इस तरह दावों की पकड़ से बाहर निकल आये हैं । रवि चौधरी अभी तक भी इस तरह की होशियारी नहीं सीख पाये हैं - या हो सकता है कि वह सचमुच रमेश अग्रवाल के ही उम्मीदवार के रूप में मुकाबले में रहना चाहते हों । उनके नजदीकियों का कहना है कि रवि चौधरी लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट 3011 में प्रमुख व सक्रिय भूमिका निभाने वाले नेताओं के साथ उन्होंने विश्वास के संबंध बनाने का कोई प्रयास तक नहीं किया है, जिसके कारण वह रमेश अग्रवाल के भरोसे रहने  के लिए मजबूर हैं । उनकी यह मजबूरी ही उनका काम बिगाड़े दे रही है ।
सरोज जोशी ने कम समय में ही अपनी उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह की सहानुभूति और समर्थन को जुटा लिया है, उसे रवि चौधरी की उम्मीदवारी के प्रति बने नकारात्मक व विरोधी माहौल के नतीजे के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे में, कुछेक लोगों द्धारा शुरू की गई महिला गवर्नर की वकालत के पीछे भी सरोज जोशी की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की सोची-समझी राजनीति को पहचाना जा रहा है । यह सच है - रोटरी के इतिहास को देखते हुए यह सच और भी सघन दिखता है - कि महिला गवर्नर की वकालत करने मात्र से सरोज जोशी की उम्मीदवारी का दम बढ़ नहीं जाता है; लेकिन उससे उनकी उम्मीदवारी की धमक तो निश्चित रूप से बढ़ ही जाती है । दरअसल इस बढ़ी हुई धमक को पहचानते/समझते हुए ही रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को महिला गवर्नर की वकालत से खतरा महसूस हुआ है ।