नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा द्धारा सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की दो-टूक घोषणा करने के बावजूद जेके
गौड़ ने जिस तरह प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में दिखने की कोशिश
की है, उसमें कुछेक लोगों को अरनेजा गिरोह में फूट पड़ने के संकेत नजर आये
हैं । दरअसल यह बात तो सभी मानते हैं कि मुकेश अरनेजा जिस दिशा में
चलने का इशारा करेंगे, जेके गौड़ उसी दिशा में चलेंगे; इसीलिए रोटरी
इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा के खुले
ऐलान के खिलाफ जाता देख लोगों का हैरान होना स्वाभाविक ही है । हालाँकि
कईयों के लिए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल बना हुआ है कि जेके गौड़ -
गिरोह की घोषित पक्षधरता के खिलाफ जाने का साहस करेंगे; लेकिन सतीश सिंघल
की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों व शुभचिंतकों को जेके गौड़ का रवैया पहेली
भरा लगा है । उनके लिए यह बात सचमुच आश्चर्यभरी है कि मुकेश अरनेजा जब
खुलेआम सतीश सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे हैं, तब जेके गौड़ और
उनके दाएँ-बाएँ रहने वाले लोग प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को प्रमोट करने
के काम में क्यों लगे हुए हैं ?
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के संदर्भ में चुनावी समीकरण सचमुच उलझे हुए हैं ।
गाजियाबाद के जो कई प्रमुख लोग मुकेश अरनेजा और उनके गिरोह के खिलाफ हैं
वह सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में समझे जा रहे हैं - मुकेश
अरनेजा द्धारा सतीश सिंघल को अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद भी
उनमें सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव देखा/पहचाना जा रहा
है । दूसरी तरफ गाजियाबाद, दिल्ली और हरियाणा के मुकेश अरनेजा के कई
नजदीकी प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए हैं । इस उलझी हुई
स्थिति का कारण कुछ लोग तो यह मानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद
के चुनाव को अरनेजा गिरोह ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा है; और इसीलिए उसके
लोग परस्पर विपरीत दिशा में चलते/भागते हुए दिख रहे हैं - लेकिन कई अन्य
लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जो दो
उम्मीदवार हैं वह अपने अपने समीकरण ही ऐसे बना रहे हैं जिनमें अरनेजा गिरोह
के लिए एकजुट रह पाना मुश्किल है; और इसीलिए गिरोह के लोगों को परस्पर
विपरीत दिशा में चलते/भागते हुए देखा जा सकता है । अरनेजा गिरोह के
दूसरी और तीसरी पंक्ति के जो लोग हैं, विभाजित प्रस्तावित डिस्ट्रिक्ट में
उनके लिए हालात दरअसल बिलकुल बदल गए हैं और बदले हुए हालात में उनके लिए
गिरोह के नेताओं के प्रति पहले जैसी प्रतिबद्धता रख पाना संभव नहीं हो पा
रहा है ।
जेके गौड़ का ही उदाहरण लें - डिस्ट्रिक्ट 3010 में जेके गौड़ के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बताये रास्ते पर चलने के लिए गाजियाबाद के प्रमुख लोगों की उपेक्षा करना और उनके साथ राजनीति 'खेलना' आसान था; किंतु डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा । सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह की स्वामीभक्ति दिखाई थी, वैसी स्वामीभक्ति प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट में दिखा पाना उनके लिए आत्मघाती ही होगा । जेके गौड़ की 'अपनी जरूरतें' दरअसल उन्हें मजबूर कर रही हैं कि वह अरनेजा गिरोह की राजनीति के साथ अंध-भक्त की तरह न दिखें । जेके गौड़ की समस्या यह है कि उनके दाएँ-बाएँ रहने वाले कई लोग अलग-अलग कारणों से प्रसून चौधरी के नजदीक हैं - सिर्फ नजदीक ही नहीं हैं, प्रसून चौधरी के साथ उनकी मजबूत किस्म की बॉन्डिंग हैं; जेके गौड़ भी समझ रहे हैं कि इस बॉन्डिंग को वह डिस्टर्ब करने की कोशिश करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे - और इसलिए ही वह भी प्रसून चौधरी के पक्ष में 'दिखने' में ही अपनी भलाई देख/पहचान रहे हैं । कुछ लोगों का कहना है कि जेके गौड़ अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं; और ऐसा करते हुए यह भूल जा रहे हैं कि उनके अपने चुनाव में सतीश सिंघल ने उनकी कितनी मदद की थी । जेके गौड़ के नजदीकियों का तर्क लेकिन यह है कि जहाँ हर कोई अपना अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में लगा हो, वहाँ यदि जेके गौड़ भी ऐसा कर रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ? इस संबंध में मुकेश अरनेजा को निशाने पर लेते हुए उनका कहना है कि मुकेश अरनेजा वैसे तो 'अपने' अध्यक्षों के साथ खड़े होने के दावे करते रहते हैं, किंतु अब जब 'उनके' अध्यक्षों को उनकी मदद की जरूरत है तो तरह-तरह की बहानेबाजी करके वह 'अपने' अध्यक्षों के खिलाफ खड़े हैं ।
जेके गौड़ का ही उदाहरण लें - डिस्ट्रिक्ट 3010 में जेके गौड़ के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बताये रास्ते पर चलने के लिए गाजियाबाद के प्रमुख लोगों की उपेक्षा करना और उनके साथ राजनीति 'खेलना' आसान था; किंतु डिस्ट्रिक्ट 3012 में जेके गौड़ के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा । सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ ने जिस तरह की स्वामीभक्ति दिखाई थी, वैसी स्वामीभक्ति प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट में दिखा पाना उनके लिए आत्मघाती ही होगा । जेके गौड़ की 'अपनी जरूरतें' दरअसल उन्हें मजबूर कर रही हैं कि वह अरनेजा गिरोह की राजनीति के साथ अंध-भक्त की तरह न दिखें । जेके गौड़ की समस्या यह है कि उनके दाएँ-बाएँ रहने वाले कई लोग अलग-अलग कारणों से प्रसून चौधरी के नजदीक हैं - सिर्फ नजदीक ही नहीं हैं, प्रसून चौधरी के साथ उनकी मजबूत किस्म की बॉन्डिंग हैं; जेके गौड़ भी समझ रहे हैं कि इस बॉन्डिंग को वह डिस्टर्ब करने की कोशिश करेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे - और इसलिए ही वह भी प्रसून चौधरी के पक्ष में 'दिखने' में ही अपनी भलाई देख/पहचान रहे हैं । कुछ लोगों का कहना है कि जेके गौड़ अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं; और ऐसा करते हुए यह भूल जा रहे हैं कि उनके अपने चुनाव में सतीश सिंघल ने उनकी कितनी मदद की थी । जेके गौड़ के नजदीकियों का तर्क लेकिन यह है कि जहाँ हर कोई अपना अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में लगा हो, वहाँ यदि जेके गौड़ भी ऐसा कर रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ? इस संबंध में मुकेश अरनेजा को निशाने पर लेते हुए उनका कहना है कि मुकेश अरनेजा वैसे तो 'अपने' अध्यक्षों के साथ खड़े होने के दावे करते रहते हैं, किंतु अब जब 'उनके' अध्यक्षों को उनकी मदद की जरूरत है तो तरह-तरह की बहानेबाजी करके वह 'अपने' अध्यक्षों के खिलाफ खड़े हैं ।
मुकेश अरनेजा के लिए बदले हुए हालात में समस्या यह तक हो गई है
कि सतीश सिंघल भी उनके समर्थन पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं ।
सतीश सिंघल को यह सावधानी रखनी पड़ रही है कि मुकेश अरनेजा का खुला समर्थन
मिलने के बावजूद वह मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में न दिखें । सतीश
सिंघल ने दरअसल एक बड़ा कमाल यह किया हुआ है कि मुकेश अरनेजा द्धारा उन्हें
अपने छाते के नीचे खींचने की कोशिश करने के बावजूद उन्होंने कई ऐसे लोगों
का समर्थन प्राप्त करने में लगभग सफलता पाई हुई है जिन्हें घोषित रूप से
मुकेश अरनेजा के खिलाफ देख़ा/पहचाना जाता है । उनका यह कमाल बना रहे -
इसके लिए उन्हें यह आवश्यक लग रहा है कि वह मुकेश अरनेजा के साथ 'पास और
दूर के' संबंध में सामंजस्य बनाये रखे । इस सामंजस्य को बनाये रखना हालाँकि
आसान नहीं होगा - क्योंकि इसे बनाये रखने का प्रयास करना सिर्फ सतीश सिंघल के हाथ में ही नहीं है; इसमें उन्हें मुकेश अरनेजा का 'सहयोग' भी चाहिए होगा । मुकेश अरनेजा के जो तेवर रहते हैं उनका संज्ञान लें तो 'इसमें' उनका सहयोग मिलना अनिश्चयभरा दिखता है । दरअसल सतीश सिंघल के लिए यही स्थिति चुनौतीपूर्ण है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि मुकेश अरनेजा के साथ 'पास और दूर के' संबंध में सामंजस्य को बनाये रखने में सतीश सिंघल जितना कामयाब रहेंगे - एक उम्मीदवार के रूप में कामयाबी के वह उतना ही नजदीक पहुँचेंगे ।
प्रस्तावित
विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के
उम्मीदवारों को समर्थन देने के मामले में अरनेजा गिरोह में जो फूट दिख रही
है, उसमें रमेश अग्रवाल की भूमिका तो अप्रासंगिक-सी होती नजर आ रही है । मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ की भूमिकाएँ तो लोगों को 'दिख'
रही हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल को गफलत में देखा जा रहा है । रमेश अग्रवाल
के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी में
से किसके साथ जाएँ । हाल-फिलहाल में रमेश अग्रवाल की जिन लोगों से बात
हुई है, उनमें से जिनसे इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है उनका कहना
है कि रमेश ने तो सिर्फ शरत जैन की और दीपक गुप्ता की ही बात की; दूसरे वाले चुनाव की या उसके उम्मीदवारों की उन्होंने कोई बात ही नहीं की ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के मामले में अरनेजा गिरोह जिस तरह बिखरा हुआ नजर आ रहा है, उसे देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार शरत जैन के शुभचिंतकों को शरत जैन के लिए खतरा महसूस होने लगा है । शरत जैन की उम्मीदवारी को ले दे कर अरनेजा गिरोह के समर्थन का ही तो भरोसा है । उनके प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता ने अपनी सक्रियता के बल पर अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जो समर्थन-आधार तैयार किया है, उसका मुकाबला शरत जैन अपनी सक्रियता के भरोसे कर सकने का संकेत देने में अभी तक तो असफल ही रहे हैं; ले दे कर उनका भरोसा यही है कि वह अरनेजा गिरोह की मदद से दीपक गुप्ता की तरफ से मिलने वाली चुनौती का मुकाबला कर सकेंगे । इसीलिए शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को यह डर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के मामले में दिख रही अरनेजा गिरोह की फूट यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के उम्मीदवारों तक आ पहुँची तो शरत जैन की उम्मीदवारी का तो सहारा ही छिन्न-भिन्न हो जायेगा ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के मामले में अरनेजा गिरोह जिस तरह बिखरा हुआ नजर आ रहा है, उसे देख कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार शरत जैन के शुभचिंतकों को शरत जैन के लिए खतरा महसूस होने लगा है । शरत जैन की उम्मीदवारी को ले दे कर अरनेजा गिरोह के समर्थन का ही तो भरोसा है । उनके प्रतिद्धंद्धी दीपक गुप्ता ने अपनी सक्रियता के बल पर अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जो समर्थन-आधार तैयार किया है, उसका मुकाबला शरत जैन अपनी सक्रियता के भरोसे कर सकने का संकेत देने में अभी तक तो असफल ही रहे हैं; ले दे कर उनका भरोसा यही है कि वह अरनेजा गिरोह की मदद से दीपक गुप्ता की तरफ से मिलने वाली चुनौती का मुकाबला कर सकेंगे । इसीलिए शरत जैन की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को यह डर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के मामले में दिख रही अरनेजा गिरोह की फूट यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के उम्मीदवारों तक आ पहुँची तो शरत जैन की उम्मीदवारी का तो सहारा ही छिन्न-भिन्न हो जायेगा ।