गाजियाबाद । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थन में मनीष
अग्रवाल और राजीव गुप्ता ने तथा प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में
रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उसके चलते
डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर खासी गर्मी पैदा हो गई है । मजे की बात यह है कि मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार डिस्ट्रिक्ट में 'ग्रुप 26' के नाम से जाने/पहचाने जाने वाले
एक प्रमुख ग्रुप के सदस्य हैं, जिसके सदस्यों ने आपस में बड़ी कसमें/बसमें
खाई हुई हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चक्कर में ग्रुप के सदस्य
अपनी एकता पर आँच नहीं आने देंगे । लेकिन इन दोनों के अलग-अलग
उम्मीदवारों के साथ खुल कर सक्रिय होने से उक्त ग्रुप की एकता खतरे में पड़
गई है । मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार की मजबूरी भी है - जब इनके अपने अपने
क्लब से उम्मीदवार आ रहे हैं, तो इन्हें उनके समर्थन में सक्रिय होना भी है
। इस प्रसंग की एक और दिलचस्प बात यह है कि सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की
उम्मीदवारी घोषित होने से पहले संभावित उम्मीदवारों की जो सूची लोगों
के बीच चर्चा में थी उसमें मनीष अग्रवाल और रमणीक तलवार के नाम थे; लेकिन
उम्मीदवारी जब चर्चा की चुगलखोरियों से निकल कर जमीन पर उतरी तो सतीश सिंघल
और प्रसून चौधरी के नाम सामने आये ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मनीष अग्रवाल की सक्रियता से तो बल मिला ही है, साथ ही रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के राजीव गुप्ता की सक्रियता से भी ताकत मिली है । राजीव गुप्ता ने निजी दिलचस्पी लेकर अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को न सिर्फ आमंत्रित किए गए अतिथियों की संख्या को बढ़वा कर बड़ा करवाया बल्कि उसे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक-आयोजन में भी तब्दील कर दिया । किसी उम्मीदवार को किसी दूसरे क्लब में इतना खुला समर्थन शायद ही कभी मिला हो, जितना रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार में सतीश सिंघल को मिला । कुछेक लोगों को हालाँकि यह कहते हुए भी सुना गया कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के बहाने राजीव गुप्ता ने वास्तव में अगले वर्षों में प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार का काम किया है । यह बात यदि सच भी है तो भी - राजीव गुप्ता ने जो किया उससे अभी तो सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को ही ताकत मिली है । इससे पहले, सतीश सिंघल और मनीष अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह को अच्छे से आयोजित करने में तथा दूसरे क्लब्स के महत्वपूर्ण लोगों की उपस्थिति को संभव बनाने में मनीष अग्रवाल ने अतिरिक्त सक्रियता दिखाई । क्लब के लोगों को ही कहते हुए सुना गया कि मनीष अग्रवाल यदि सक्रिय न होते तो क्लब का अधिष्ठापन समारोह वैसा न होता, जैसा कि वह हुआ ।
मनीष अग्रवाल और राजीव गुप्ता ने यदि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मुकाबले में लाने का काम किया है तो रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा ने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की हवा बनाने में योगदान दिया है । उम्मीदवार के रूप में प्रसून चौधरी के सामने सबसे बड़ी समस्या लोगों के साथ अपने अपरिचय को लेकर थी । वह खुद भी ज्यादा लोगों को नहीं जानते/पहचानते थे और विभिन्न क्लब्स के लोग भी उन्हें नहीं जानते/पहचानते थे । लोगों के साथ उनके इस अपरिचय को दूर करने में उन्हें रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा की सक्रियता से बहुत मदद मिली । रमणीक तलवार चूँकि चुनावी लटकों-झटकों से भी अच्छी तरह परिचित हैं, इसलिए रमणीक तलवार की सक्रियता के कारण प्रसून चौधरी ने कम समय में चुनावी-यात्रा की जितनी दूरी तय कर ली है, वह अन्यथा उनके लिए मुश्किल क्या - शायद असंभव ही होती । संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में रवि चौधरी के पक्ष में जुटे चुनावी महारथियों के जबड़े से संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन को खींचने का जो लोमहर्षक काम हुआ था, उसे करने वालों में एक नाम रमणीक तलवार का भी था । तभी से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों की सूची में रमणीक तलवार का भी नाम जुड़ा है । संजय खन्ना के चुनाव में रमणीक तलवार ने जिस तरह की जो भूमिका निभाई थी, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट के प्रायः सभी क्लब्स में उनका परिचय है जिसका फायदा वह प्रसून चौधरी को दिलवा रहे हैं । विकास चोपड़ा इस वर्ष असिस्टेंट गवर्नर हैं, जिस नाते उनके लिए लोगों के बीच पैठ बनाने की सुविधा है । विकास चोपड़ा की इस सुविधा ने प्रसून चौधरी के कई कामों को आसान बना दिया है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की एक कॉमन समस्या है - और वह यह कि राजनीतिक तिकड़मों को संभव करने के मामले में दोनों ही कच्चे हैं । सतीश सिंघल की रोटरी में लंबी सक्रियता रही है । रोटरी में उन्होंने काम भी बहुत किए हैं लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उन्हें कभी इन्वॉल्व होते हुए नहीं देखा/पाया गया । यही कारण रहा कि रोटरी में कामकाजी उपलब्धियों के लिहाज से उन्हें डिस्ट्रिक्ट में जो जगह मिलना चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी । प्रसून चौधरी अपने क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट हैं और प्रेसीडेंट के रूप में उन्होंने कुछेक ऐसे उल्लेखनीय काम किए जो डिस्ट्रिक्ट में उदाहरण बने; किंतु उनका क्लब डिस्ट्रिक्ट में पहचाना जाता है 'रमणीक तलवार के क्लब' के रूप में । सतीश सिंघल भी और प्रसून चौधरी भी अपने काम से राजनीतिक फायदा उठाने का हुनर नहीं सीख सके । सामान्य परिस्थितियों में तो इसे एक अच्छी बात के तौर पर लिया जाता; लेकिन चुनावी राजनीति के संदर्भ में यह 'कमजोरी' है । जाहिर है कि उम्मीदवार के रूप में दोनों के सामने अपनी इस 'कमजोरी' पर विजय पाने की गंभीर चुनौती है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में जिस तरह अपने अपने नजदीकी समर्थकों पर निर्भर हैं और उनके नजदीकी समर्थक भी उन्हें जिस तरह से मदद पहुँचा रहे हैं - उसके चलते दोनों के बीच होने वाले चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प और काँटे का हुआ जा रहा है ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मनीष अग्रवाल की सक्रियता से तो बल मिला ही है, साथ ही रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार के राजीव गुप्ता की सक्रियता से भी ताकत मिली है । राजीव गुप्ता ने निजी दिलचस्पी लेकर अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को न सिर्फ आमंत्रित किए गए अतिथियों की संख्या को बढ़वा कर बड़ा करवाया बल्कि उसे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक-आयोजन में भी तब्दील कर दिया । किसी उम्मीदवार को किसी दूसरे क्लब में इतना खुला समर्थन शायद ही कभी मिला हो, जितना रोटरी क्लब दिल्ली मयूर विहार में सतीश सिंघल को मिला । कुछेक लोगों को हालाँकि यह कहते हुए भी सुना गया कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के बहाने राजीव गुप्ता ने वास्तव में अगले वर्षों में प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए जमीन तैयार का काम किया है । यह बात यदि सच भी है तो भी - राजीव गुप्ता ने जो किया उससे अभी तो सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को ही ताकत मिली है । इससे पहले, सतीश सिंघल और मनीष अग्रवाल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह को अच्छे से आयोजित करने में तथा दूसरे क्लब्स के महत्वपूर्ण लोगों की उपस्थिति को संभव बनाने में मनीष अग्रवाल ने अतिरिक्त सक्रियता दिखाई । क्लब के लोगों को ही कहते हुए सुना गया कि मनीष अग्रवाल यदि सक्रिय न होते तो क्लब का अधिष्ठापन समारोह वैसा न होता, जैसा कि वह हुआ ।
मनीष अग्रवाल और राजीव गुप्ता ने यदि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को मुकाबले में लाने का काम किया है तो रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा ने प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की हवा बनाने में योगदान दिया है । उम्मीदवार के रूप में प्रसून चौधरी के सामने सबसे बड़ी समस्या लोगों के साथ अपने अपरिचय को लेकर थी । वह खुद भी ज्यादा लोगों को नहीं जानते/पहचानते थे और विभिन्न क्लब्स के लोग भी उन्हें नहीं जानते/पहचानते थे । लोगों के साथ उनके इस अपरिचय को दूर करने में उन्हें रमणीक तलवार और विकास चोपड़ा की सक्रियता से बहुत मदद मिली । रमणीक तलवार चूँकि चुनावी लटकों-झटकों से भी अच्छी तरह परिचित हैं, इसलिए रमणीक तलवार की सक्रियता के कारण प्रसून चौधरी ने कम समय में चुनावी-यात्रा की जितनी दूरी तय कर ली है, वह अन्यथा उनके लिए मुश्किल क्या - शायद असंभव ही होती । संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में रवि चौधरी के पक्ष में जुटे चुनावी महारथियों के जबड़े से संजय खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन को खींचने का जो लोमहर्षक काम हुआ था, उसे करने वालों में एक नाम रमणीक तलवार का भी था । तभी से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों की सूची में रमणीक तलवार का भी नाम जुड़ा है । संजय खन्ना के चुनाव में रमणीक तलवार ने जिस तरह की जो भूमिका निभाई थी, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट के प्रायः सभी क्लब्स में उनका परिचय है जिसका फायदा वह प्रसून चौधरी को दिलवा रहे हैं । विकास चोपड़ा इस वर्ष असिस्टेंट गवर्नर हैं, जिस नाते उनके लिए लोगों के बीच पैठ बनाने की सुविधा है । विकास चोपड़ा की इस सुविधा ने प्रसून चौधरी के कई कामों को आसान बना दिया है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी की एक कॉमन समस्या है - और वह यह कि राजनीतिक तिकड़मों को संभव करने के मामले में दोनों ही कच्चे हैं । सतीश सिंघल की रोटरी में लंबी सक्रियता रही है । रोटरी में उन्होंने काम भी बहुत किए हैं लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उन्हें कभी इन्वॉल्व होते हुए नहीं देखा/पाया गया । यही कारण रहा कि रोटरी में कामकाजी उपलब्धियों के लिहाज से उन्हें डिस्ट्रिक्ट में जो जगह मिलना चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी । प्रसून चौधरी अपने क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट हैं और प्रेसीडेंट के रूप में उन्होंने कुछेक ऐसे उल्लेखनीय काम किए जो डिस्ट्रिक्ट में उदाहरण बने; किंतु उनका क्लब डिस्ट्रिक्ट में पहचाना जाता है 'रमणीक तलवार के क्लब' के रूप में । सतीश सिंघल भी और प्रसून चौधरी भी अपने काम से राजनीतिक फायदा उठाने का हुनर नहीं सीख सके । सामान्य परिस्थितियों में तो इसे एक अच्छी बात के तौर पर लिया जाता; लेकिन चुनावी राजनीति के संदर्भ में यह 'कमजोरी' है । जाहिर है कि उम्मीदवार के रूप में दोनों के सामने अपनी इस 'कमजोरी' पर विजय पाने की गंभीर चुनौती है ।
सतीश सिंघल और प्रसून चौधरी अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में जिस तरह अपने अपने नजदीकी समर्थकों पर निर्भर हैं और उनके नजदीकी समर्थक भी उन्हें जिस तरह से मदद पहुँचा रहे हैं - उसके चलते दोनों के बीच होने वाले चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प और काँटे का हुआ जा रहा है ।