नई दिल्ली । सरोज जोशी ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन
जुटाने हेतु जो सक्रियता दिखाई है, उसके चलते रवि चौधरी की पिछले दिनों की
गई सारी मेहनत पर पानी पड़ता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट
3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी का पद पाने के लिए रवि चौधरी ने पिछले दिनों 'दुश्मनों' को दोस्त
बनाने का अभियान चलाया हुआ था । रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने हवा यह बनाई
हुई थी कि उक्त पद के लिए चूँकि और कोई नाम सामने नहीं आ रहा है, इसलिए
रवि चौधरी के 'दुश्मनों' के सामने भी उनका दोस्त बनने के अलावा कोई चारा
नहीं बचा है । रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना को भी अपने लपेटे में ले लिया था और यह दावा
करना शुरू कर दिया था कि तीन वर्ष पहले संजय खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ते
हुए रवि चौधरी और उनके समर्थक नेताओं ने संजय खन्ना के खिलाफ जो
कारस्तानियाँ की थीं, उन्हें भूल कर संजय खन्ना ने उन्हें माफ़ कर दिया है
और रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया है । मजे की बात यह रही
कि खुद संजय खन्ना ने कभी भी रवि चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने की
बात नहीं कही; किंतु रवि चौधरी के शुभचिंतकों की तरफ से संजय खन्ना का
समर्थन मिलने का झूठा दावा लगातार किया जाता रहा ।
रवि चौधरी की तरफ से रवि दयाल के साथ अपने झगड़े को सुलझा लेने का भी दावा बढ़चढ़ कर किया गया । यह दावा करने की जरूरत दरअसल इसलिए भी पड़ी ताकि संजय खन्ना के समर्थन के दावे को विश्वसनीय बनाया जा सके । रवि दयाल के संजय खन्ना के साथ जैसे नजदीकी संबंध हैं उसके चलते रवि दयाल के साथ झगड़े को सुलटाये बिना संजय खन्ना का समर्थन मिलने का दावा उन लोगों को अविश्वसनीय लगता जिन्हें यह पता है कि किस तरह रवि चौधरी द्धारा खड़ी की गई अपमानजनक परिस्थितियों के चलते रवि दयाल को अपने कुछेक साथियों के साथ रोटरी क्लब दिल्ली वैस्ट छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था । जो लोग भी उस एपीसोड को जानते हैं, उनके लिए यह स्वीकार करना मुश्किल ही होगा कि रवि दयाल अपनी उस फजीहत और अपमान को भूल सकेंगे । रवि दयाल और संजय खन्ना चूँकि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के एक बड़े खेमे के सदस्य के रूप में देखे जाते हैं इसलिए रवि चौधरी को इन दोनों के साथ अपने लफड़ों/झगड़ों को सुलझा लेना जरूरी लगा । रवि चौधरी ने इसकी कोशिश भी की - समस्या लेकिन यह हुई कि अपनी कोशिश को उन्होंने कामयाब हुआ भी खुद ही मान लिया और अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीटना भी शुरू कर दिया ।
रवि चौधरी की तरफ से रवि दयाल के साथ अपने झगड़े को सुलझा लेने का भी दावा बढ़चढ़ कर किया गया । यह दावा करने की जरूरत दरअसल इसलिए भी पड़ी ताकि संजय खन्ना के समर्थन के दावे को विश्वसनीय बनाया जा सके । रवि दयाल के संजय खन्ना के साथ जैसे नजदीकी संबंध हैं उसके चलते रवि दयाल के साथ झगड़े को सुलटाये बिना संजय खन्ना का समर्थन मिलने का दावा उन लोगों को अविश्वसनीय लगता जिन्हें यह पता है कि किस तरह रवि चौधरी द्धारा खड़ी की गई अपमानजनक परिस्थितियों के चलते रवि दयाल को अपने कुछेक साथियों के साथ रोटरी क्लब दिल्ली वैस्ट छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था । जो लोग भी उस एपीसोड को जानते हैं, उनके लिए यह स्वीकार करना मुश्किल ही होगा कि रवि दयाल अपनी उस फजीहत और अपमान को भूल सकेंगे । रवि दयाल और संजय खन्ना चूँकि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के एक बड़े खेमे के सदस्य के रूप में देखे जाते हैं इसलिए रवि चौधरी को इन दोनों के साथ अपने लफड़ों/झगड़ों को सुलझा लेना जरूरी लगा । रवि चौधरी ने इसकी कोशिश भी की - समस्या लेकिन यह हुई कि अपनी कोशिश को उन्होंने कामयाब हुआ भी खुद ही मान लिया और अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीटना भी शुरू कर दिया ।
रवि
चौधरी के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि रवि
चौधरी अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ते, लेकिन अपने प्रयासों में पता
नहीं क्यों वह तिकड़मों और साजिशों का तड़का लगाते रहते हैं, जिस कारण उनका
बनता-बनता काम बिगड़ जाता है । दोस्तों का चुनाव करने में वह ऐसी लापरवाही
करते हैं कि तगड़ा नुकसान उठाते हैं । रोटरी में बिजनेस करने लिए उन्होंने असित मित्तल को चुना, जो आजकल तिहाड़ जेल में हैं । उनके
साथ के बिजनेस संबंध का सहारा लेकर रवि चौधरी ने रोटरी की राजनीति में लंबी
छलांग लगाने की कोशिश की - लेकिन उन्होंने बिजनेस में भी घाटा खाया और
राजनीति में भी औधें गिरे । तीन वर्ष पहले संजय खन्ना से चुनाव जीतने के लिए रवि चौधरी ने जिस अरनेजा गिरोह की मदद ली थी, उस अरनेजा गिरोह की हरकतें ही वास्तव में उनकी पराजय का कारण बनीं थीं । इस बार रवि चौधरी ने दीपक तलवार का दामन पकड़ा - जिनका तौर-तरीका भी अरनेजा गिरोह के तौर-तरीकों से मिलता है और जिनका खुद का पहला चुनाव खासे फसाद का शिकार हुआ था । अशोक घोष के
गवर्नर-काल में हुए वीरेंद्र उर्फ़ बॉबी जैन के मुकाबले में मिली दीपक
तलवार की जीत को बेईमानी से मिली जीत के रूप में आरोपित किया गया था; और
रोटरी इंटरनेशनल ने उनकी जीत के फैसले को अमान्य घोषित करते हुए दोबारा
चुनाव कराने का आदेश दिया था । दोबारा हुए चुनाव में दीपक तलवार को हार का सामना करना पड़ा था । उन्हीं दीपक तलवार के हाथ में रवि चौधरी ने इस बार अपनी उम्मीदवारी की कमान सौंपी हुई है । लोगों
का मानना और कहना है कि शायद यही कारण है कि पिछले दिनों रवि चौधरी की तरफ
से किए गए दावों को किसी ने भी विश्वसनीय नहीं माना है ।
संजय
खन्ना और रवि दयाल को 'मना' लेने के झूठे दावों के साथ-साथ रवि चौधरी के
शुभचिंतकों ने सरोज जोशी की उम्मीदवारी के प्रति भी लोगों को बरगलाने की
कोशिश की, और बीमारी के कारण हुई उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाने का प्रयास
किया । उल्लेखनीय है कि सरोज जोशी ने प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट
3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को घोषित
किया हुआ था; और इसी नाते से उन्होंने पेम थर्ड के आयोजन में अपने क्लब को हिस्सेदार बनवाया था ।
पिछले दिनों चूँकि बीमार होने के कारण सरोज जोशी के लिए कहीं आना-जाना
संभव नहीं हो पाया, तो रवि चौधरी के शुभचिंतकों ने कहना/उड़ाना शुरू कर दिया
कि सरोज जोशी ने तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का इरादा त्याग दिया है ।
रवि चौधरी की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों ने लोगों को विश्वास दिलाने की
कोशिश की कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी पद के लिए एक अकेले रवि चौधरी ही उम्मीदवार हैं । स्वस्थ होने के
बाद सरोज जोशी जब अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु सक्रिय हुईं
तब रवि चौधरी के शुभचिंतकों द्धारा फैलाये जा रहे झूठ की पोल खुली ।
सरोज जोशी की उम्मीदवारी रवि चौधरी के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से खासी चुनौतीपूर्ण है । किसी भी चुनावी राजनीति की तरह रोटरी की चुनावी राजनीति में भी प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है - इसी संदर्भ में रवि चौधरी के लिए समस्या की बात यह है कि उन्हें लोगों के बीच अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है, जबकि सरोज जोशी को अरनेजा गिरोह के हथकंडों का निशाना बने उम्मीदवार के रूप में पहचाना जाता है । रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह के दूसरे सदस्यों ने हर तरह का हथकंडा अपनाया था । उस समय वह सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करवाने में तो कामयाब नहीं हुए थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को सशंकित करने में वह जरूर सफल रहे थे । उस प्रकरण के चलते सरोज जोशी के प्रति अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों की सहानुभूति पैदा हुई । इस सहानुभूति को सरोज जोशी किस तरह अपने समर्थन में बदल सकेंगी - यह तो उनकी सक्रियता से तय होगा; अभी लेकिन रवि चौधरी के लिए चुनौती की बात यह है कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों का जो वर्चस्व है - उसमें वह अपनी उम्मीदवारी के लिए स्वीकार्यता कैसे बनाये ?
सरोज जोशी की उम्मीदवारी रवि चौधरी के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से खासी चुनौतीपूर्ण है । किसी भी चुनावी राजनीति की तरह रोटरी की चुनावी राजनीति में भी प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है - इसी संदर्भ में रवि चौधरी के लिए समस्या की बात यह है कि उन्हें लोगों के बीच अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है, जबकि सरोज जोशी को अरनेजा गिरोह के हथकंडों का निशाना बने उम्मीदवार के रूप में पहचाना जाता है । रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करने के लिए रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह के दूसरे सदस्यों ने हर तरह का हथकंडा अपनाया था । उस समय वह सरोज जोशी की उम्मीदवारी को निरस्त करवाने में तो कामयाब नहीं हुए थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को सशंकित करने में वह जरूर सफल रहे थे । उस प्रकरण के चलते सरोज जोशी के प्रति अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों की सहानुभूति पैदा हुई । इस सहानुभूति को सरोज जोशी किस तरह अपने समर्थन में बदल सकेंगी - यह तो उनकी सक्रियता से तय होगा; अभी लेकिन रवि चौधरी के लिए चुनौती की बात यह है कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में अरनेजा गिरोह के विरोधी लोगों का जो वर्चस्व है - उसमें वह अपनी उम्मीदवारी के लिए स्वीकार्यता कैसे बनाये ?