देहरादून । तमाम ना-नुकुर के बावजूद राजेश गुप्ता और अश्वनी काम्बोज सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मैदान में आखिरकार कूद ही पड़े हैं । मजे
की बात है कि दोनों ही उम्मीदवार इस उम्मीद में उम्मीदवार बने हैं कि
दूसरा जल्दी ही मैदान छोड़ देगा - और तब वह निर्विरोध सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिया जायेगा । अन्य कुछेक लोगों को भी आशंका है कि
चुनावी तस्वीर साफ होते-होते इनमें से कोई एक मैदान छोड़ देगा, पर
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के मँझे हुए खिलाड़ियों का मानना/कहना है कि
दोनों ही उम्मीदवार अब चुनावी चक्रव्यूह में फँस गए हैं, और उनके लिए वापस
लौटना अब मुश्किल ही नहीं - बल्कि असंभव ही होगा । खेमेबाजी के लिहाज से,
मुकेश गोयल के उम्मीदवार के रूप में राजेश गुप्ता की स्थिति बेहतर
मानी/समझी जा रही है - पिछले दो चुनाव मुकेश गोयल के उम्मीदवारों ने जिस
बड़े बहुमत से जीते हैं और जिन स्थितियों में जीते हैं, इस बार स्थितियाँ
उनसे और ज्यादा अनुकूल हैं । दरअसल इसीलिए अश्वनी काम्बोज इस बार चुनावी
मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं कर रहे थे । पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज
तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तमाम पक्षपातपूर्ण बेईमानी और वोटों की
खरीद-फरोख्त करने के बावजूद जिस बुरी तरह से चुनाव हारे थे, उसे देखते हुए
इस वर्ष उन्हें अपने लिए कोई संभावना या उम्मीद नहीं नजर आ रही थी; और
इसीलिए वह चुनावी पचड़े में पड़ने से बच रहे थे । लेकिन उम्मीदवार के रूप में
राजेश गुप्ता के 'कमजोरी' दिखाने और मौजूदा व भावी गवर्नर्स के उनके खिलाफ
होने की स्थितियों ने अश्वनी काम्बोज में हवा भरने का काम किया ।
अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि उन्होंने अपनी
उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने के लिए हामी तब भरी, जब वह इस सूचना पर पूरी तरह आश्वस्त हो गए कि राजेश गुप्ता उम्मीदवार नहीं बनेंगे ।
इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का मजेदार पक्ष यह है कि हर कोई हर किसी से डरा हुआ है - राजेश गुप्ता को डर है कि अश्वनी काम्बोज कहीं ज्यादा पैसा खर्च करके उनके सामने समस्या न खड़ी कर दें; अश्वनी काम्बोज को डर है कि पिछली बार की तरह उनसे पैसे खाकर क्लब्स के पदाधिकारी इस बार भी कहीं उन्हें धोखा न दे दें; मुकेश गोयल को मौजूदा व भावी गवर्नर्स की बगावत का डर है; मौजूदा व भावी गवर्नर्स को डर है कि बगावत करने के बावजूद मुकेश गोयल की राजनीति को वह यदि फेल नहीं कर सके तो क्या होगा; विरोधी खेमे को डर है कि अनुकूल स्थिति के बावजूद वह इस बार भी यदि मुकेश गोयल 'को' नहीं हरा सके तो क्या होगा; अश्वनी काम्बोज के पैसों पर राजनीति करने वाले नेताओं को डर है कि पिछली बार की तरह इस बार भी उन्हें अश्वनी काम्बोज के पैसों पर मौज करने का मौका मिलेगा या नहीं; अश्वनी काम्बोज इस बार नेताओं के पेट भरने से बचने की कोशिश तो करते दिख रहे हैं, लेकिन डर भी रहे हैं कि उन्होंने नेताओं का पेट यदि नहीं भरा तो नेता लोग पता नहीं इसका बदला कैसे लेंगे; आदि-इत्यादि । अश्वनी काम्बोज वास्तव में पूरी तरह मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर हैं, उन्हें डर है कि फूट यदि सचमुच में नहीं हुई, तो उनका क्या होगा ?
समझा जाता है कि दो वर्ष पहले अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनवा कर राजेश गुप्ता ने विनय मित्तल के सामने जो मुश्किल खड़ी की थी, उसकी याद करते/रखते हुए विनय मित्तल किसी भी रूप में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । अनुमान लगाया जा रहा था कि अश्वनी काम्बोज इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विनय मित्तल का समर्थन पाने की कोशिश करेंगे और चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में झुका लेंगे । अश्वनी काम्बोज लेकिन पता नहीं किस गलतफहमी में रहे और उन्होंने राजेश गुप्ता के प्रति विनय मित्तल की नाराजगी वाली स्थिति का फायदा उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अपनी अकड़ में अश्वनी काम्बोज उम्मीद करते रहे कि विनय मित्तल खुद उनके पास आयेंगे और इस तरह समय गवाँ बैठे । अश्वनी काम्बोज अपनी चुनावी जीत के लिए मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर तो हैं, पर उसके लिए अपनी तरफ से कोई प्रयास करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । वह इस उम्मीद में हैं कि राजेश गुप्ता के चक्कर में मुकेश गोयल खेमे में जो दरारें दिख रही हैं, वह अपने आप ही चौड़ी होंगी और उनकी मदद करेंगी । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों को लगता है कि अनुकूल स्थितियों के बावजूद अश्वनी काम्बोज का यह 'कर्महीन' आशावादी नजरिया ही उनकी लुटिया डुबोने का काम करेगा । क्या होगा, और सचमुच किसकी लुटिया डूबेगी - यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी महसूस की जाने लगी है ।
इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का मजेदार पक्ष यह है कि हर कोई हर किसी से डरा हुआ है - राजेश गुप्ता को डर है कि अश्वनी काम्बोज कहीं ज्यादा पैसा खर्च करके उनके सामने समस्या न खड़ी कर दें; अश्वनी काम्बोज को डर है कि पिछली बार की तरह उनसे पैसे खाकर क्लब्स के पदाधिकारी इस बार भी कहीं उन्हें धोखा न दे दें; मुकेश गोयल को मौजूदा व भावी गवर्नर्स की बगावत का डर है; मौजूदा व भावी गवर्नर्स को डर है कि बगावत करने के बावजूद मुकेश गोयल की राजनीति को वह यदि फेल नहीं कर सके तो क्या होगा; विरोधी खेमे को डर है कि अनुकूल स्थिति के बावजूद वह इस बार भी यदि मुकेश गोयल 'को' नहीं हरा सके तो क्या होगा; अश्वनी काम्बोज के पैसों पर राजनीति करने वाले नेताओं को डर है कि पिछली बार की तरह इस बार भी उन्हें अश्वनी काम्बोज के पैसों पर मौज करने का मौका मिलेगा या नहीं; अश्वनी काम्बोज इस बार नेताओं के पेट भरने से बचने की कोशिश तो करते दिख रहे हैं, लेकिन डर भी रहे हैं कि उन्होंने नेताओं का पेट यदि नहीं भरा तो नेता लोग पता नहीं इसका बदला कैसे लेंगे; आदि-इत्यादि । अश्वनी काम्बोज वास्तव में पूरी तरह मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर हैं, उन्हें डर है कि फूट यदि सचमुच में नहीं हुई, तो उनका क्या होगा ?
समझा जाता है कि दो वर्ष पहले अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनवा कर राजेश गुप्ता ने विनय मित्तल के सामने जो मुश्किल खड़ी की थी, उसकी याद करते/रखते हुए विनय मित्तल किसी भी रूप में राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । अनुमान लगाया जा रहा था कि अश्वनी काम्बोज इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विनय मित्तल का समर्थन पाने की कोशिश करेंगे और चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में झुका लेंगे । अश्वनी काम्बोज लेकिन पता नहीं किस गलतफहमी में रहे और उन्होंने राजेश गुप्ता के प्रति विनय मित्तल की नाराजगी वाली स्थिति का फायदा उठाने का कोई प्रयास ही नहीं किया । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अपनी अकड़ में अश्वनी काम्बोज उम्मीद करते रहे कि विनय मित्तल खुद उनके पास आयेंगे और इस तरह समय गवाँ बैठे । अश्वनी काम्बोज अपनी चुनावी जीत के लिए मुकेश गोयल खेमे की फूट पर निर्भर तो हैं, पर उसके लिए अपनी तरफ से कोई प्रयास करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । वह इस उम्मीद में हैं कि राजेश गुप्ता के चक्कर में मुकेश गोयल खेमे में जो दरारें दिख रही हैं, वह अपने आप ही चौड़ी होंगी और उनकी मदद करेंगी । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों को लगता है कि अनुकूल स्थितियों के बावजूद अश्वनी काम्बोज का यह 'कर्महीन' आशावादी नजरिया ही उनकी लुटिया डुबोने का काम करेगा । क्या होगा, और सचमुच किसकी लुटिया डूबेगी - यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी महसूस की जाने लगी है ।