नई
दिल्ली । राजेश अग्रवाल को धमका/फुसला कर अपने समर्थन में लाने/करने में
असफल रहने के बाद पंकज पेरिवाल को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनवाने में लगे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अब राजेश अग्रवाल को निशाने पर लेकर अपने 'लक्ष्य' को साधने की रणनीति बनाई है । उल्लेखनीय
है कि रीजनल काउंसिल के सदस्य राजेश अग्रवाल की गर्दन मनीलॉन्ड्रिंग के एक
केस में फँसी हुई है, जिसके चलते वह जेल में भी रह चुके हैं, और फिलहाल
जमानत पर हैं । रीजनल काउंसिल में अपने ग्रुप के अल्पमत स्टेटस को बहुमत
में बदलने लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा कई बार उन्हें अपने ग्रुप
में लाने की कोशिश कर चुके हैं । पिछले महीनों में जब जब राजेश शर्मा के
ग्रुप को बहुमत की जरूरत पड़ी, तब तब राजेश शर्मा ने अपने भाजपाई कनेक्शन का
वास्ता देकर उन्हें कभी 'बच नहीं पाओगे' की धमकी देकर तो कभी 'हम बचा सकते
हैं' का लालच देकर अपनी तरफ करने की कोशिशें कीं, लेकिन असफल रहे । पंकज
पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के लिए तो राजेश शर्मा ने राजेश अग्रवाल का
समर्थन लेने का जोरदार प्रयास किया, और इसके बदले में उन्हें चेयरमैन के
अलावा कोई भी पद लेने का ऑफर दिया । राजेश अग्रवाल लेकिन 'हार्ड बारगेनर'
निकले । उन्होंने माँग की कि चेयरमैन पद के लिए उनके नाम की पर्ची डाली जाए
। राजेश शर्मा इस माँग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए ।
उन्हें डर हुआ कि पर्ची कहीं राजेश अग्रवाल की निकल आई, तो उनकी तो सारी
कारस्तानी पर पानी फिर जाएगा । इस तरह, पंकज पेरिवाल को चेयरमैन बनवाने के
लिए राजेश अग्रवाल के साथ की जा रही सौदेबाजी असफल हो गईं ।
पंकज पेरिवाल के समर्थक नेताओं ने राजेश अग्रवाल का समर्थन न मिलने की स्थिति में पैंतरा बदल कर उनके विरोध का झंडा उठा लिया है । राजेश अग्रवाल को चेयरमैन के अलावा कोई भी पद देने के लिए तैयार रहने वाले नेताओं ने रंग बदलते हुए अब घोषणा की है कि राजेश अग्रवाल की काउंसिल के किसी भी पद के लिए उम्मीदवारी आई, तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भी वोटिंग करवाई जायेगी - ताकि राजेश अग्रवाल जैसे 'आरोपी' को काउंसिल में कोई पद न मिले । तर्क दिया जा रहा है कि राजेश अग्रवाल चूँकि मनीलॉन्ड्रिंग के मामले में आरोपी हैं और जेल की हवा भी खा चुके हैं, इसलिए उनका काउंसिल में किसी भी पद पर होना इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मामला होगा । पंकज पेरिवाल के समर्थकों ने इस घोषणा के जरिए दरअसल बहुमत खेमे में एक तरफ तो फूट डालने की चाल चली है, और दूसरी तरफ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रीजनल काउंसिल के चुनाव में शामिल होने की 'भूमिका' तैयार की है । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को उम्मीद है कि राजेश अग्रवाल को लेकर वह जो पेंच फँसा रहे हैं, उससे काउंसिल के सात सदस्यीय बहुमत खेमे में फूट पड़ जाएगी, जो उनका काम बनाएगी; और यदि बहुमत खेमे के लोगों ने आपसी समझदारी का परिचय देते हुए अपनी एकता को बनाए रखा, तो पंकज पेरिवाल के समर्थक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को बहाना मिल जायेगा कि वह तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा बचाने के लिए चुनाव में कूदे हैं । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को विश्वास है कि उनका यह गिरगिटी रंग बदलता रवैया - कि राजेश अग्रवाल यदि 'हमारे' साथ है तब तो ठीक है, लेकिन यदि किसी और के साथ है तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की बदनामी हो जाएगी; और तब इस बदनामी को रोकने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को चुनाव में आना ही पड़ेगा - उन्हें अवश्य ही सफलता दिलवायेगा ।
यह सचमुच दिलचस्प नजारा है कि इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी को बचाने की जिम्मेदारी राजेश शर्मा जैसों के कंधे पर आ पड़ी है । यह तो बड़ा चुटकुला हो गया है । राजेश शर्मा की करतूतों ने इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की कितनी और कैसी बदनामी करवाई है, यह बात क्या किसी से छिपी है ? जिस राजेश शर्मा के लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' 'राजेश शर्मा दलाल है' जैसे नारे गूँजे हों - वह राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी से बचाने की बात करते हैं, तो इसे एक अवसरवादी व्यवहार के रूप में ही देखा/पहचाना जायेगा । रही बात राजेश अग्रवाल की - तो उन पर जो आरोप है, वह जगजाहिर है; उसके बाद भी वह रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, तो जाहिर है कि न तो देश का कोई कानून और न इंस्टीट्यूट का कोई नियम/कानून उन्हें काउंसिल की गतिविधियों में शामिल होने से रोक सकता है । राजेश अग्रवाल को लेकर जो लोग बदनामी की बात कर रहे हैं, वह विभिन्न कार्यक्रमों में राजेश अग्रवाल के साथ खड़े होकर तस्वीरें खिंचवा चुके हैं । सेंट्रल काउंसिल के जो सदस्य राजेश अग्रवाल के रीजनल काउंसिल में पदाधिकारी बनने को इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मानते हैं, उन्होंने यह प्रयास आखिर कभी क्यों नहीं किया कि राजेश अग्रवाल को काउंसिल की गतिविधियों से अलग-थलग किया जाए - क्या इसलिए क्योंकि वह भी जानते हैं कि मनीलॉन्ड्रिंग के जैसे जो आरोप राजेश अग्रवाल पर हैं, वैसे काम-धंधे तो कई एक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के भी बताए जाते हैं; अभी फर्क सिर्फ इतना है कि राजेश अग्रवाल पकड़े जा चुके हैं, जबकि दूसरे लोग अभी पकड़ में नहीं आए हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सीए डे के फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खुली लताड़ लगाई ही थी, इसलिए मनीलॉन्ड्रिंग के आरोप में फँसे राजेश अग्रवाल को काउंसिल पदाधिकारी न बनने देने के नाम पर की जाने वाली राजनीति वास्तव में घड़ियाली आँसूं बहाने तथा नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने की तैयारी करने जैसा मामला ही है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में यह नाटक भी देखने को मिलेगा, यह भला किसने सोचा था ?
पंकज पेरिवाल के समर्थक नेताओं ने राजेश अग्रवाल का समर्थन न मिलने की स्थिति में पैंतरा बदल कर उनके विरोध का झंडा उठा लिया है । राजेश अग्रवाल को चेयरमैन के अलावा कोई भी पद देने के लिए तैयार रहने वाले नेताओं ने रंग बदलते हुए अब घोषणा की है कि राजेश अग्रवाल की काउंसिल के किसी भी पद के लिए उम्मीदवारी आई, तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की भी वोटिंग करवाई जायेगी - ताकि राजेश अग्रवाल जैसे 'आरोपी' को काउंसिल में कोई पद न मिले । तर्क दिया जा रहा है कि राजेश अग्रवाल चूँकि मनीलॉन्ड्रिंग के मामले में आरोपी हैं और जेल की हवा भी खा चुके हैं, इसलिए उनका काउंसिल में किसी भी पद पर होना इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मामला होगा । पंकज पेरिवाल के समर्थकों ने इस घोषणा के जरिए दरअसल बहुमत खेमे में एक तरफ तो फूट डालने की चाल चली है, और दूसरी तरफ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के रीजनल काउंसिल के चुनाव में शामिल होने की 'भूमिका' तैयार की है । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को उम्मीद है कि राजेश अग्रवाल को लेकर वह जो पेंच फँसा रहे हैं, उससे काउंसिल के सात सदस्यीय बहुमत खेमे में फूट पड़ जाएगी, जो उनका काम बनाएगी; और यदि बहुमत खेमे के लोगों ने आपसी समझदारी का परिचय देते हुए अपनी एकता को बनाए रखा, तो पंकज पेरिवाल के समर्थक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को बहाना मिल जायेगा कि वह तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा बचाने के लिए चुनाव में कूदे हैं । पंकज पेरिवाल के समर्थकों को विश्वास है कि उनका यह गिरगिटी रंग बदलता रवैया - कि राजेश अग्रवाल यदि 'हमारे' साथ है तब तो ठीक है, लेकिन यदि किसी और के साथ है तो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की बदनामी हो जाएगी; और तब इस बदनामी को रोकने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को चुनाव में आना ही पड़ेगा - उन्हें अवश्य ही सफलता दिलवायेगा ।
यह सचमुच दिलचस्प नजारा है कि इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी को बचाने की जिम्मेदारी राजेश शर्मा जैसों के कंधे पर आ पड़ी है । यह तो बड़ा चुटकुला हो गया है । राजेश शर्मा की करतूतों ने इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की कितनी और कैसी बदनामी करवाई है, यह बात क्या किसी से छिपी है ? जिस राजेश शर्मा के लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' 'राजेश शर्मा दलाल है' जैसे नारे गूँजे हों - वह राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनामी से बचाने की बात करते हैं, तो इसे एक अवसरवादी व्यवहार के रूप में ही देखा/पहचाना जायेगा । रही बात राजेश अग्रवाल की - तो उन पर जो आरोप है, वह जगजाहिर है; उसके बाद भी वह रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं, तो जाहिर है कि न तो देश का कोई कानून और न इंस्टीट्यूट का कोई नियम/कानून उन्हें काउंसिल की गतिविधियों में शामिल होने से रोक सकता है । राजेश अग्रवाल को लेकर जो लोग बदनामी की बात कर रहे हैं, वह विभिन्न कार्यक्रमों में राजेश अग्रवाल के साथ खड़े होकर तस्वीरें खिंचवा चुके हैं । सेंट्रल काउंसिल के जो सदस्य राजेश अग्रवाल के रीजनल काउंसिल में पदाधिकारी बनने को इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बदनामीभरा मानते हैं, उन्होंने यह प्रयास आखिर कभी क्यों नहीं किया कि राजेश अग्रवाल को काउंसिल की गतिविधियों से अलग-थलग किया जाए - क्या इसलिए क्योंकि वह भी जानते हैं कि मनीलॉन्ड्रिंग के जैसे जो आरोप राजेश अग्रवाल पर हैं, वैसे काम-धंधे तो कई एक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के भी बताए जाते हैं; अभी फर्क सिर्फ इतना है कि राजेश अग्रवाल पकड़े जा चुके हैं, जबकि दूसरे लोग अभी पकड़ में नहीं आए हैं । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सीए डे के फंक्शन में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को खुली लताड़ लगाई ही थी, इसलिए मनीलॉन्ड्रिंग के आरोप में फँसे राजेश अग्रवाल को काउंसिल पदाधिकारी न बनने देने के नाम पर की जाने वाली राजनीति वास्तव में घड़ियाली आँसूं बहाने तथा नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने की तैयारी करने जैसा मामला ही है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के चुनाव में यह नाटक भी देखने को मिलेगा, यह भला किसने सोचा था ?