आगरा
। पारस अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई में तेजपाल
खिल्लन को उन्हीं की 'छड़ी' से 'पीटने' की जो तैयारी की है, उसने तेजपाल
खिल्लन के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है । उल्लेखनीय है कि तेजपाल
खिल्लन कहते/बताते रहे हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए जीत का
फार्मूला उन्होंने समझ लिया है और वह यह है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर्स को पैसे दो, बदले में उसका वोट लो - और चेयरमैन बनो । पिछले दिनों
एक कार्यक्रम में पारस अग्रवाल ने तेजपाल खिल्लन से कह दिया कि उनके ही
फार्मूले से वह इस बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनेंगे । लोगों ने पाया है
कि पीने के बाद पारस अग्रवाल कुछ ज्यादा ही बहक जाते हैं और बदतमीजी पर उतर
आते हैं; तेजपाल खिल्लन से उक्त दावा भी पारस अग्रवाल ने बहकते हुए ही
किया था और तेजपाल खिल्लन को चुनौती दी थी कि चेयरमैन के चुनाव में तुमसे
ज्यादा पैसे खर्च करूँगा । पारस अग्रवाल के इस व्यवहार से जल-भुन गए
तेजपाल खिल्लन ने तुरंत ही उन्हें जबाव दिया था कि मैं देखूँगा कि तू कितना
पैसे वाला है । पारस अग्रवाल और तेजपाल खिल्लन के बीच हुई इस 'तू' 'तू'
'मैं' 'मैं' को जिन लोगों ने सुना, और उनसे जिसने सुना - उसने यही
माना/समझा कि इस बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव खासा धमाकेदार होगा ।
लेकिन अभी हाल ही में जीरकपुर में आयोजित हुए मल्टीपल सेमीनार में तेजपाल खिल्लन के तेवर लोगों को कुछ ढीले ढीले से लगे । इससे लोगों को आभास मिला कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में तेजपाल खिल्लन अपने आप को पारस अग्रवाल से पिछड़ा हुआ मान बैठे हैं । तेजपाल खिल्लन की बातों से लगा कि डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम के व्यवहार से उन्हें तगड़ा झटका लगा है । तेजपाल खिल्लन ने कुछेक लोगों को बताया कि वंदना निगम ने उनसे कहा है कि पारस अग्रवाल ने उनका वोट पाने के लिए उन्हें मोटी रकम ऑफर की है; वंदना निगम ने यह बात उनसे इस अंदाज में कही, जैसे वह उनसे जानना चाह रही हों कि वह उन्हें अपने उम्मीदवार से कितनी रकम दिलवायेंगे ? मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए तेजपाल खिल्लन इस वर्ष स्वर्ण सिंह खालसा और इंद्रजीत सिंह में से किसी एक पर दाँव लगाना चाहते हैं । लेकिन यह दोनों ही पैसे नहीं खर्च करना चाहते हैं । इसके अलावा, स्वर्ण सिंह खालसा का लोगों के साथ ज्यादा कम्यूनिकेशन भी नहीं है, और इंद्रजीत सिंह का विरोध इस आधार पर हो सकता है कि एक ही डिस्ट्रिक्ट से लगातार दूसरी बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन कैसे और क्यों बन सकता है ।
मुश्किलें पारस अग्रवाल के सामने भी कम नहीं हैं । मल्टीपल काउंसिल के चुनाव में पैसे खर्च होते हैं, यह बात तो सच है - लेकिन सच यह भी है कि सिर्फ पैसे से ही काउंसिल चेयरमैन बना जा सकता होता, तो इस वर्ष विनय गर्ग की बजाए अनिल तुलस्यान चेयरमैन होते । विनय गर्ग सफल इसलिए हुए, क्योंकि उन्होंने पैसे खर्च करने के साथ-साथ चुनावी समीकरणों को भी साधने का काम किया । पारस अग्रवाल के साथ समस्या यह है कि उनके पास कोई ऐसा सलाहकार या मददगार नहीं है, जो प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बना सकने का हुनर रखता हो । ले दे कर वह जिन जितेंद्र चौहान पर निर्भर हैं, वह जितेंद्र चौहान उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाए बढ़ाने का काम और कर रहे हैं । पारस अग्रवाल ने तेजपाल खिल्लन के 'फार्मूले' को अपना कर तेजपाल खिल्लन को अभी तो धराशाही कर दिया है, लेकिन तेजपाल खिल्लन जैसी शातिराना राजनीति का तोड़ वह कैसे करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।
लेकिन अभी हाल ही में जीरकपुर में आयोजित हुए मल्टीपल सेमीनार में तेजपाल खिल्लन के तेवर लोगों को कुछ ढीले ढीले से लगे । इससे लोगों को आभास मिला कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में तेजपाल खिल्लन अपने आप को पारस अग्रवाल से पिछड़ा हुआ मान बैठे हैं । तेजपाल खिल्लन की बातों से लगा कि डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम के व्यवहार से उन्हें तगड़ा झटका लगा है । तेजपाल खिल्लन ने कुछेक लोगों को बताया कि वंदना निगम ने उनसे कहा है कि पारस अग्रवाल ने उनका वोट पाने के लिए उन्हें मोटी रकम ऑफर की है; वंदना निगम ने यह बात उनसे इस अंदाज में कही, जैसे वह उनसे जानना चाह रही हों कि वह उन्हें अपने उम्मीदवार से कितनी रकम दिलवायेंगे ? मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए तेजपाल खिल्लन इस वर्ष स्वर्ण सिंह खालसा और इंद्रजीत सिंह में से किसी एक पर दाँव लगाना चाहते हैं । लेकिन यह दोनों ही पैसे नहीं खर्च करना चाहते हैं । इसके अलावा, स्वर्ण सिंह खालसा का लोगों के साथ ज्यादा कम्यूनिकेशन भी नहीं है, और इंद्रजीत सिंह का विरोध इस आधार पर हो सकता है कि एक ही डिस्ट्रिक्ट से लगातार दूसरी बार मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन कैसे और क्यों बन सकता है ।
मुश्किलें पारस अग्रवाल के सामने भी कम नहीं हैं । मल्टीपल काउंसिल के चुनाव में पैसे खर्च होते हैं, यह बात तो सच है - लेकिन सच यह भी है कि सिर्फ पैसे से ही काउंसिल चेयरमैन बना जा सकता होता, तो इस वर्ष विनय गर्ग की बजाए अनिल तुलस्यान चेयरमैन होते । विनय गर्ग सफल इसलिए हुए, क्योंकि उन्होंने पैसे खर्च करने के साथ-साथ चुनावी समीकरणों को भी साधने का काम किया । पारस अग्रवाल के साथ समस्या यह है कि उनके पास कोई ऐसा सलाहकार या मददगार नहीं है, जो प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बना सकने का हुनर रखता हो । ले दे कर वह जिन जितेंद्र चौहान पर निर्भर हैं, वह जितेंद्र चौहान उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाए बढ़ाने का काम और कर रहे हैं । पारस अग्रवाल ने तेजपाल खिल्लन के 'फार्मूले' को अपना कर तेजपाल खिल्लन को अभी तो धराशाही कर दिया है, लेकिन तेजपाल खिल्लन जैसी शातिराना राजनीति का तोड़ वह कैसे करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।