नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
के लिए आरके शाह की उम्मीदवारी को लेकर जो 'खेल' चल रहा है, उसने आरके
अग्रवाल और उनके समर्थकों की चिंता को तो लगभग दूर कर दिया है, लेकिन आरके
शाह के समर्थकों की परेशानी को बढ़ा दिया है - उन्हें डर हुआ है कि इस खेल
में फँस कर खुद आरके शाह कहीं अपना बना/बनाया काम बिगाड़ न लें । दरअसल
आरके शाह और उनके समर्थकों की तरफ से अब जो कोशिश हो रही है, उससे संकेत
मिल रहे हैं कि आरके शाह इस वर्ष चुनाव लड़ने के लिए नहीं - बल्कि अगले वर्ष
के लिए समर्थन का आश्वासन पाने के लिए अपनी उम्मीदवारी की गर्मी 'दिखा'
रहे हैं । मजे की बात यह हुई है कि हरियाणा और दिल्ली में हुए फैसलों को
लेकर जो पूर्व गवर्नर्स अपने आप को उपेक्षित व ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं,
वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी अहमियत बनाने/दिखाने/जताने के
लिए आरके शाह की उम्मीदवारी को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं -
उनकी भी लेकिन एक सीमा है; इसलिए आरके शाह के लिए मामला थोड़ा पेचीदा बन गया
है । पेचीदा इसलिए बन गया है क्योंकि आरके अग्रवाल के समर्थक नेता भी
खेल को - और उसके पीछे की 'कहानी' को भी समझ गए हैं; अब उनके लिए सिर्फ यह
समझना बाकी है कि इस खेल के पीछे छिपे किरदारों को वह कितनी अहमियत दें ?
ऐसे में, आरके शाह का राजनीतिक भविष्य अब इस बात पर आ टिका है कि उनकी
उम्मीदवारी के जरिये अपनी अहमियत बनाने/दिखाने वाले पूर्व गवर्नर्स वास्तव
में उनकी कितनी वकालत करते हैं, और उनकी वकालत को दूसरे पूर्व गवर्नर्स
कितनी तवज्जो देते हैं ?
आरके शाह की वकालत करने वाले नेताओं का कहना है कि आरके शाह यदि उम्मीदवार बने रहते हैं और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव की नौबत आती है, तो आरके अग्रवाल के मुकाबले आरके शाह निश्चित ही चुनाव जीत जायेंगे । दिलचस्प बात यह हो रही है कि नेताओं का यह दावा ही आरके शाह के गले की फाँस बन गया है । लोगों का कहना है कि आरके शाह की जीत को लेकर जब आरके शाह और उनके समर्थक नेता इतने आश्वस्त हैं, तो फिर उन्हें उम्मीदवार बनने से रोक कौन रहा है - और वह अगली बार के लिए समर्थन का आश्वासन पाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं ? दिल्ली के कई पूर्व गवर्नर्स आरके शाह को लेकर इस बात पर भी भड़के हुए हैं कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार का चयन करने के लिए पूर्व गवर्नर्स की दिल्ली में जो मीटिंग हुई थी, उसमें आरके शाह ने पूर्व गवर्नर्स के प्रति सम्मान नहीं दिखाया था; लिहाजा अब आरके शाह उनके समर्थन और या उनके आश्वासन की जरूरत क्यों समझ रहे हैं ? उनका कहना है कि आरके शाह और उन्हें शह देने वाले पूर्व गवर्नर्स को यदि वास्तव में इस बात का भरोसा है कि आरके शाह इस वर्ष ही यदि चुनाव लड़ लेते हैं, तो जीत जायेंगे - तो इसी वर्ष चुनाव लड़ क्यों नहीं लेते हैं; वह अगले वर्ष के लिए समर्थन का आश्वासन पाने के लिए प्रयत्न क्यों कर रहे हैं ? वास्तव में यही वह सवाल है, जिस पर आरके शाह और उनकी उम्मीदवारी के सहारे अपनी अहमियत बनाने/दिखाने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं की गर्दन फँस गई है ।
समस्या की बात दरअसल यह है कि डिस्ट्रिक्ट जिन हालात में सुधरने की दिशा में बढ़ना शुरू हुआ है, उसमें कोई भी पूर्व गवर्नर अपने माथे पर हालात को बिगाड़ने का कलंक नहीं लेना चाहता है । इस कारण से फर्स्ट और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ है और जिस तरीके से हुआ है - उस पर ऐतराज रखने/दिखाने वाले नेताओं के लिए भी अपना ऐतराज रखना/दिखाना मुश्किल हुआ है । उनके लिए आरके शाह की उम्मीदवारी का खुलकर समर्थन करना मुश्किल ही होगा । आरके शाह ने हालात में गर्मी तो पैदा की हुई है, लेकिन अभी तक भी वह यह दिखा/जता सकने में असफल ही हैं कि जमीनी स्तर पर काम करने के लिए उनके पास कोई स्पष्ट रणनीति और टीम है । आरके शाह पूरी तरह से आरके अग्रवाल की कमजोरी पर निर्भर हैं; आरके अग्रवाल को हरियाणा में कोई नहीं जानता है - इस तथ्य को आरके शाह अपनी ताकत मान रहे हैं और अभी भी वह इसी उम्मीद में हैं कि आरके अग्रवाल के चयन से नाखुश हुए नेता उनकी नैय्या पार लगवा देंगे । नेताओं की अपनी समस्या है - आरके अग्रवाल के चयन से वह नाखुश भले ही हों, लेकिन वह कोई ऐसा काम भी नहीं करना चाहते हैं, जिससे उनके माथे पर बदनामी का दाग लगे । इसीलिए बीच का फार्मूला यह चुना गया है कि आरके शाह के लिए अगले वर्ष में समर्थन का आश्वासन ले लिया जाए - इससे किसी के माथे पर कलंक भी नहीं लगेगा और उन्हें हवा दे रहे नेताओं की नेतागिरी भी चमक जायेगी । नेतागिरी चमकाने की कोशिश करने वाले नेताओं को लगता है कि यह फार्मूला आरके अग्रवाल के समर्थक नेता भी आसानी से स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि इससे उन्हें भी चुनावी झंझट में नहीं फँसना पड़ेगा ।
आरके अग्रवाल के समर्थक नेता अभी लेकिन आरके शाह को अगले वर्ष में समर्थन का आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं । इस वर्ष चुनाव लड़ने पर अड़े आरके शाह के रवैये को दरअसल वह गीदड़भभकी के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि आरके शाह चुनाव लड़ने की बात जरूर कर रहे हैं, लेकिन चुनाव लड़ना उनके बस की बात है नहीं - आरके शाह अभी भी नेताओं का ही समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं और किसी भी तरह से अगले वर्ष के लिए अपना मामला पक्का करने की जुगाड़ में हैं । इसीलिए आरके अग्रवाल के समर्थक नेता आरके शाह और उनके समर्थक नेताओं को अभी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - और इस स्थिति ने आरके शाह के लिए मामले को और भी ज्यादा पेचीदा व मुश्किल बना दिया है ।
आरके शाह की वकालत करने वाले नेताओं का कहना है कि आरके शाह यदि उम्मीदवार बने रहते हैं और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव की नौबत आती है, तो आरके अग्रवाल के मुकाबले आरके शाह निश्चित ही चुनाव जीत जायेंगे । दिलचस्प बात यह हो रही है कि नेताओं का यह दावा ही आरके शाह के गले की फाँस बन गया है । लोगों का कहना है कि आरके शाह की जीत को लेकर जब आरके शाह और उनके समर्थक नेता इतने आश्वस्त हैं, तो फिर उन्हें उम्मीदवार बनने से रोक कौन रहा है - और वह अगली बार के लिए समर्थन का आश्वासन पाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं ? दिल्ली के कई पूर्व गवर्नर्स आरके शाह को लेकर इस बात पर भी भड़के हुए हैं कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार का चयन करने के लिए पूर्व गवर्नर्स की दिल्ली में जो मीटिंग हुई थी, उसमें आरके शाह ने पूर्व गवर्नर्स के प्रति सम्मान नहीं दिखाया था; लिहाजा अब आरके शाह उनके समर्थन और या उनके आश्वासन की जरूरत क्यों समझ रहे हैं ? उनका कहना है कि आरके शाह और उन्हें शह देने वाले पूर्व गवर्नर्स को यदि वास्तव में इस बात का भरोसा है कि आरके शाह इस वर्ष ही यदि चुनाव लड़ लेते हैं, तो जीत जायेंगे - तो इसी वर्ष चुनाव लड़ क्यों नहीं लेते हैं; वह अगले वर्ष के लिए समर्थन का आश्वासन पाने के लिए प्रयत्न क्यों कर रहे हैं ? वास्तव में यही वह सवाल है, जिस पर आरके शाह और उनकी उम्मीदवारी के सहारे अपनी अहमियत बनाने/दिखाने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं की गर्दन फँस गई है ।
समस्या की बात दरअसल यह है कि डिस्ट्रिक्ट जिन हालात में सुधरने की दिशा में बढ़ना शुरू हुआ है, उसमें कोई भी पूर्व गवर्नर अपने माथे पर हालात को बिगाड़ने का कलंक नहीं लेना चाहता है । इस कारण से फर्स्ट और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जिन उम्मीदवारों का चयन हुआ है और जिस तरीके से हुआ है - उस पर ऐतराज रखने/दिखाने वाले नेताओं के लिए भी अपना ऐतराज रखना/दिखाना मुश्किल हुआ है । उनके लिए आरके शाह की उम्मीदवारी का खुलकर समर्थन करना मुश्किल ही होगा । आरके शाह ने हालात में गर्मी तो पैदा की हुई है, लेकिन अभी तक भी वह यह दिखा/जता सकने में असफल ही हैं कि जमीनी स्तर पर काम करने के लिए उनके पास कोई स्पष्ट रणनीति और टीम है । आरके शाह पूरी तरह से आरके अग्रवाल की कमजोरी पर निर्भर हैं; आरके अग्रवाल को हरियाणा में कोई नहीं जानता है - इस तथ्य को आरके शाह अपनी ताकत मान रहे हैं और अभी भी वह इसी उम्मीद में हैं कि आरके अग्रवाल के चयन से नाखुश हुए नेता उनकी नैय्या पार लगवा देंगे । नेताओं की अपनी समस्या है - आरके अग्रवाल के चयन से वह नाखुश भले ही हों, लेकिन वह कोई ऐसा काम भी नहीं करना चाहते हैं, जिससे उनके माथे पर बदनामी का दाग लगे । इसीलिए बीच का फार्मूला यह चुना गया है कि आरके शाह के लिए अगले वर्ष में समर्थन का आश्वासन ले लिया जाए - इससे किसी के माथे पर कलंक भी नहीं लगेगा और उन्हें हवा दे रहे नेताओं की नेतागिरी भी चमक जायेगी । नेतागिरी चमकाने की कोशिश करने वाले नेताओं को लगता है कि यह फार्मूला आरके अग्रवाल के समर्थक नेता भी आसानी से स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि इससे उन्हें भी चुनावी झंझट में नहीं फँसना पड़ेगा ।
आरके अग्रवाल के समर्थक नेता अभी लेकिन आरके शाह को अगले वर्ष में समर्थन का आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं । इस वर्ष चुनाव लड़ने पर अड़े आरके शाह के रवैये को दरअसल वह गीदड़भभकी के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि आरके शाह चुनाव लड़ने की बात जरूर कर रहे हैं, लेकिन चुनाव लड़ना उनके बस की बात है नहीं - आरके शाह अभी भी नेताओं का ही समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं और किसी भी तरह से अगले वर्ष के लिए अपना मामला पक्का करने की जुगाड़ में हैं । इसीलिए आरके अग्रवाल के समर्थक नेता आरके शाह और उनके समर्थक नेताओं को अभी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - और इस स्थिति ने आरके शाह के लिए मामले को और भी ज्यादा पेचीदा व मुश्किल बना दिया है ।