नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने उनके अपने सदर्न रीजन से लेकर इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तक में बुरी तरह से खलबली मचा दी है । एमपी
विजय कुमार का सेंट्रल काउंसिल में पहला टर्म है । यूँ तो पहली टर्म वाले
धीरज खंडेलवाल और मनु अग्रवाल भी अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत किए हुए
हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है ।
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी समीकरणों में दिलचस्पी रखने वाले
लोगों को हालाँकि यही लग रहा है कि पहली टर्म वाले सदस्यों की उम्मीदवारी -
और कुछ नहीं, बल्कि सिर्फ किसी गंभीर उम्मीदवार का खेल बनाने और या किसी
का खेल बिगाड़ने का ही काम करेगी, और इस सोच के कारण सबसे बुरी दशा में धीरज
खंडेलवाल और मनु अग्रवाल हैं । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के
चुनाव में हमेशा ही अपनी टाँग फँसाए रखने वाले फुर्सती पूर्व प्रेसीडेंट
उत्तम अग्रवाल के समर्थन की चर्चा के चलते धीरज खंडेलवाल को तो कुछ समय
लोगों ने गंभीरता से लिया भी, मनु अग्रवाल को लेकिन उम्मीदवार के रूप में
कभी भी तवज्जो नहीं मिली । लोगों को यही सोच सोच कर हैरानी है कि मनु
अग्रवाल आखिर किस भरोसे वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बन गए हैं ।
कानपुर में उनके नजदीकियों से मजाक भी सुने गए हैं कि पनकी वाले हनुमान
मंदिर के बाबा ने मनु अग्रवाल को (वाइस) प्रेसीडेंट बनने का आशीर्वाद दिया
हुआ है, और वह उसी आशीर्वाद के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट बनने की लाइन में लग
गए हैं । उत्तम अग्रवाल और पनकी वाले बाबा के कारण क्रमशः धीरज खंडेलवाल और
मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के बारे में भले ही मजाक सुने जा रहे हों,
लेकिन एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने अलग अलग कारणों से कइयों को
सांसत में डाला हुआ है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में एमपी विजय कुमार का क्या हाल होगा और
वह जीतेंगे या नहीं, यह तो नतीजा मिलने पर ही पता चलेगा - लेकिन उनकी
उम्मीदवारी ने इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में चौतरफा बबाल जरूर काटा हुआ है ।
सबसे ज्यादा बबाल उनके अपने सदर्न रीजन में ही मचा हुआ है, और उनकी उम्मीदवारी सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए दिलचस्पी का विषय बनी हुई है । एमपी विजय कुमार ने दरअसल सेंट्रल काउंसिल के पिछले चुनाव में सदर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त किए थे, और इस तरह से वह देवराज रेड्डी के लिए दुःस्वप्न साबित हुए थे । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट में यह रिकॉर्ड रहा है कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाला अपने रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाता है । देवराज रेड्डी के मामले में लेकिन यह रिकॉर्ड टूट गया, क्योंकि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनाव लड़ने वाले देवराज रेड्डी को एमपी विजय कुमार से कम वोट मिले और वह अपने रीजन में दूसरे नंबर पर रहने के लिए मजबूर हुए । सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे लोगों को डर है कि एमपी विजय कुमार यदि वाइस प्रेसीडेंट बन गए, तो इस वर्ष वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में कितने वोट पायेंगे - और किस किस का काम बिगाड़ेंगे ? इसलिए सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे कई उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता अपने अपने तरीके से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की राह को मुश्किल बनाने का काम कर रहे हैं । जिस बेचारे की वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई भूमिका नहीं है, वह प्रार्थना करके एमपी विजय कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश कर रहा है ।
एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने लेकिन बड़ा काम प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बीच के 'झगड़े' को सामने लाने का किया है । नवीन गुप्ता को यूँ तो महा-नाकारा सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जिनकी इंस्टीट्यूट के किसी काम में कभी कोई सक्रियता नहीं रही और जो सिर्फ अपने पिताजी की बदौलत काउंसिल में सदस्य बन गए और फिर वाइस प्रेसीडेंट भी बन गए - लेकिन एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी के खिलाफ उनकी गजब की सक्रियता है । नवीन गुप्ता के अनुसार, वाइस प्रेसीडेंट चाहे कोई भी बन जाए, बस एमपी विजय कुमार न बने । एमपी विजय कुमार से नवीन गुप्ता की नाराजगी का कारण - एमपी विजय कुमार का नीलेश विकमसे के नजदीक होना/रहना है । नवीन गुप्ता की नाराजगी वास्तव में नीलेश विकमसे से है । इंस्टीट्यूट के इतिहास में प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट के बीच इतने खराब रिश्ते शायद ही कभी रहे हों, जितने इस वर्ष रहे हैं । नवीन गुप्ता की शिकायत रही है कि प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे ने उन्हें कभी किसी मौके पर कोई अहमियत नहीं दी, और उन्हें पूरी तरह से उपेक्षित रखा । इस स्थिति के लिए कई लोग हालाँकि नवीन गुप्ता को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं । उनका कहना है कि नवीन गुप्ता किसी लायक हैं ही नहीं; इसलिए नीलेश विकमसे ने अपना समय और एनर्जी बचाने के लिए ही उन्हें किसी मौके पर अहमियत नहीं दी । अब वजह चाहें जो हो, नीलश विकमसे से तवज्जो न मिलने के कारण नवीन गुप्ता उनसे बुरी तरह खफा हैं; और नीलेश विकमसे से अपनी नाराजगी का बदला वह एमपी विजय कुमार से लेने की कोशिश कर रहे हैं - क्योंकि एमपी विजय कुमार इस वर्ष नीलेश विकमसे के बड़े खास रहे हैं । नवीन गुप्ता के लिए नीलेश विकमसे का तो कुछ बिगाड़ पाना संभव नहीं है, इसलिए वह उनके खास रहे एमपी विजय कुमार से ही बदला लेकर अपने कलेजे को ठंडक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं ।
वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की इस सक्रियता ने एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी को खास बना दिया है । लोगों का कहना/मानना है कि एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ही है, जिसने नीलेश विकमसे और नवीन गुप्ता के बीच के झगड़े को सार्वजनिक चर्चा का विषय बना दिया है । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी का क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी परिदृश्य को रोचक जरूर बना दिया है ।
सबसे ज्यादा बबाल उनके अपने सदर्न रीजन में ही मचा हुआ है, और उनकी उम्मीदवारी सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए दिलचस्पी का विषय बनी हुई है । एमपी विजय कुमार ने दरअसल सेंट्रल काउंसिल के पिछले चुनाव में सदर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त किए थे, और इस तरह से वह देवराज रेड्डी के लिए दुःस्वप्न साबित हुए थे । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट में यह रिकॉर्ड रहा है कि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने वाला अपने रीजन में सबसे ज्यादा वोट पाता है । देवराज रेड्डी के मामले में लेकिन यह रिकॉर्ड टूट गया, क्योंकि वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनाव लड़ने वाले देवराज रेड्डी को एमपी विजय कुमार से कम वोट मिले और वह अपने रीजन में दूसरे नंबर पर रहने के लिए मजबूर हुए । सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे लोगों को डर है कि एमपी विजय कुमार यदि वाइस प्रेसीडेंट बन गए, तो इस वर्ष वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में कितने वोट पायेंगे - और किस किस का काम बिगाड़ेंगे ? इसलिए सदर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे कई उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता अपने अपने तरीके से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की राह को मुश्किल बनाने का काम कर रहे हैं । जिस बेचारे की वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई भूमिका नहीं है, वह प्रार्थना करके एमपी विजय कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश कर रहा है ।
एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ने लेकिन बड़ा काम प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे और वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बीच के 'झगड़े' को सामने लाने का किया है । नवीन गुप्ता को यूँ तो महा-नाकारा सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में देखा/पहचाना जाता है, जिनकी इंस्टीट्यूट के किसी काम में कभी कोई सक्रियता नहीं रही और जो सिर्फ अपने पिताजी की बदौलत काउंसिल में सदस्य बन गए और फिर वाइस प्रेसीडेंट भी बन गए - लेकिन एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी के खिलाफ उनकी गजब की सक्रियता है । नवीन गुप्ता के अनुसार, वाइस प्रेसीडेंट चाहे कोई भी बन जाए, बस एमपी विजय कुमार न बने । एमपी विजय कुमार से नवीन गुप्ता की नाराजगी का कारण - एमपी विजय कुमार का नीलेश विकमसे के नजदीक होना/रहना है । नवीन गुप्ता की नाराजगी वास्तव में नीलेश विकमसे से है । इंस्टीट्यूट के इतिहास में प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट के बीच इतने खराब रिश्ते शायद ही कभी रहे हों, जितने इस वर्ष रहे हैं । नवीन गुप्ता की शिकायत रही है कि प्रेसीडेंट के रूप में नीलेश विकमसे ने उन्हें कभी किसी मौके पर कोई अहमियत नहीं दी, और उन्हें पूरी तरह से उपेक्षित रखा । इस स्थिति के लिए कई लोग हालाँकि नवीन गुप्ता को ही जिम्मेदार मानते/ठहराते हैं । उनका कहना है कि नवीन गुप्ता किसी लायक हैं ही नहीं; इसलिए नीलेश विकमसे ने अपना समय और एनर्जी बचाने के लिए ही उन्हें किसी मौके पर अहमियत नहीं दी । अब वजह चाहें जो हो, नीलश विकमसे से तवज्जो न मिलने के कारण नवीन गुप्ता उनसे बुरी तरह खफा हैं; और नीलेश विकमसे से अपनी नाराजगी का बदला वह एमपी विजय कुमार से लेने की कोशिश कर रहे हैं - क्योंकि एमपी विजय कुमार इस वर्ष नीलेश विकमसे के बड़े खास रहे हैं । नवीन गुप्ता के लिए नीलेश विकमसे का तो कुछ बिगाड़ पाना संभव नहीं है, इसलिए वह उनके खास रहे एमपी विजय कुमार से ही बदला लेकर अपने कलेजे को ठंडक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं ।
वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की इस सक्रियता ने एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी को खास बना दिया है । लोगों का कहना/मानना है कि एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी ही है, जिसने नीलेश विकमसे और नवीन गुप्ता के बीच के झगड़े को सार्वजनिक चर्चा का विषय बना दिया है । इसी से लोगों को कहने का मौका मिला है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एमपी विजय कुमार की उम्मीदवारी का क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी परिदृश्य को रोचक जरूर बना दिया है ।