नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस
प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने प्रेसीडेंट बने नवीन गुप्ता की
खुशियों पर जैसे मट्ठा डाल दिया है । नवीन गुप्ता यूँ तो चुनावी
समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने के खेल में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते हैं -
वैसे भी वह किसी काम में दिलचस्पी लेते नहीं देखे गए हैं - लेकिन प्रफुल्ल
छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ उनमें गजब का जोश था । नवीन गुप्ता को यद्यपि
प्रफुल्ल छाजेड़ से कोई शिकायत नहीं थी; वह तो प्रफुल्ल छाजेड़ की
उम्मीदवारी के खिलाफ सिर्फ इसलिए थे, क्योंकि प्रफुल्ल छाजेड़ को नीलेश
विकमसे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । प्रेसीडेंट के
रूप में नीलेश विकमसे ने वाइस प्रेसीडेंट होने के बावजूद नवीन गुप्ता की जो
गत बना कर रखी हुई थी, उसके कारण नवीन गुप्ता को नीलेश विकमसे से भारी
नाराजगी थी - और उनकी इस नाराजगी का शिकार बन रही थी प्रफुल्ल छाजेड़ की
उम्मीदवारी । प्रफुल्ल छाजेड़ को नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में
'दिखाने' और प्रचारित करने का काम वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में हमेशा ही
अपनी टाँग फँसाए रखने वाले पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल ने किया । यह
उत्तम अग्रवाल की चाल थी । दरअसल वाइस प्रेसीडेंट के इस वर्ष के चुनाव में
प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ अब्राहम बाबु और निहार जम्बूसारिया को ही मजबूत
उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - और इनमें भी प्रफुल्ल
छाजेड़ की स्थिति को अपेक्षाकृत बेहतर माना जा रहा था । 'रचनात्मक
संकल्प' ने 6 जनवरी की अपनी रिपोर्ट में इस बात का विस्तृत विवरण दिया था
और बताया था कि इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में प्रफुल्ल छाजेड़ को जीतने से 'रोकने' के लिए उत्तम अग्रवाल क्या क्या
चालें चल रहे हैं ।
उत्तम अग्रवाल की चाल वास्तव में यही थी कि प्रफुल्ल छाजेड़ को वह नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में 'दिखायेंगे' और प्रचारित करेंगे, तो नीलेश विकमसे के साथ अलग अलग कारणों से विरोध के चलते कई सेंट्रल काउंसिल सदस्य खुद-ब-खुद प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ हो जायेंगे । नवीन गुप्ता वास्तव में उत्तम अग्रवाल की इसी चाल का शिकार हो गए; और इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने इंस्टीट्यूट की राजनीति में एनडी गुप्ता के हमेशा विरोधी रहे उत्तम अग्रवाल को एनडी गुप्ता के बेटे नवीन गुप्ता का समर्थन मिलने का दिलचस्प नजारा देखा । इस तरह नवीन गुप्ता ने अपने पिता की राजनीतिक दुश्मनी के बोझ से अपने आप को मुक्त किया । इस मुक्ति के बावजूद लेकिन वह अपना ध्येय पाने में विफल रहे । नवीन गुप्ता और उत्तम अग्रवाल मिलकर भी प्रफुल्ल छाजेड़ को वाइस प्रेसीडेंट बनने से नहीं रोक सके । 6 जनवरी की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में एक मजेदार तथ्य यह बताया गया था कि वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल का विकमसे भाइयों के साथ पुराना बैर है, और जब जब भी उनके बीच सीधी चुनावी टक्कर हुई है - उत्तम अग्रवाल को हमेशा ही विकमसे भाइयों से हारना ही पड़ा है । इसी बात का बदला लेने की खुन्नस में उत्तम अग्रवाल ने इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के सामने तरह तरह से मुसीबतें खड़ी करने के प्रयास किए ।
प्रफुल्ल छाजेड़ ने लेकिन होशियारी से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अपना अभियान चलाया । सबसे ज्यादा होशियारी उन्होंने इस बात में दिखाई कि अपनी उम्मीदवारी के अभियान को उन्होंने बहुत ही लो-प्रोफाइल रखा । प्रफुल्ल छाजेड़ ने शुरू से ही इस बात का ध्यान रखा कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो उम्मीदवार ज्यादा 'उड़ता' है, लोग उसे गिराने में लग जाते हैं - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह 'उड़ने' से बचे रहे, और लो-प्रोफाइल में रहे । इससे उन्हें नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के 'टैग' से छुटकारा पाने में भी मदद मिली । प्रफुल्ल छाजेड़ ने नीलेश विकमसे से मिल सकने वाले फायदे को तो 'लिया', लेकिन साथ ही नीलेश विकमसे के कारण हो सकने वाले नुकसान से अपने आप को बचाया भी । उत्तम अग्रवाल की अति सक्रियता भी प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए फायदे का सौदा रही । उत्तम अग्रवाल की बेमतलबभरी दखलंदाजी से लोग वास्तव में अब चिढ़ने लगे हैं; उत्तम अग्रवाल के पास राजनीति करने के लिए कुछ होता भी नहीं है - वह तो बस कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा लेकर अपनी राजनीति का कुनबा जोड़ने का प्रयास करते हैं, और जो जीतता हुआ दिखता है उसे अपना बताने लगते हैं । इस वर्ष उत्तम अग्रवाल ने पहले तो धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी का झंडा पकड़ा, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि धीरज खंडेलवाल का कहीं कोई काम नहीं बन सकेगा तो फिर वह अब्राहम बाबु और निहार जम्बूसारिया की स्थिति को 'तोलने' लगे । उत्तम अग्रवाल को शुरू से यह तो पता था कि उन्हें किसी भी तरह से प्रफुल्ल छाजेड़ को 'रोकना' है, लेकिन वह यह अंत तक तय नहीं कर सके कि 'लाना' किसे हैं । प्रफुल्ल छाजेड़ के विरोध में उन्हें नवीन गुप्ता का भी समर्थन मिल गया, लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की राजनीतिक होशियारी के सामने उन्हें अंततः मुहँकी ही खानी पड़ी । वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने प्रेसीडेंट बनने की नवीन गुप्ता की खुशी को फीका कर दिया है ।
उत्तम अग्रवाल की चाल वास्तव में यही थी कि प्रफुल्ल छाजेड़ को वह नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के रूप में 'दिखायेंगे' और प्रचारित करेंगे, तो नीलेश विकमसे के साथ अलग अलग कारणों से विरोध के चलते कई सेंट्रल काउंसिल सदस्य खुद-ब-खुद प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के खिलाफ हो जायेंगे । नवीन गुप्ता वास्तव में उत्तम अग्रवाल की इसी चाल का शिकार हो गए; और इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने इंस्टीट्यूट की राजनीति में एनडी गुप्ता के हमेशा विरोधी रहे उत्तम अग्रवाल को एनडी गुप्ता के बेटे नवीन गुप्ता का समर्थन मिलने का दिलचस्प नजारा देखा । इस तरह नवीन गुप्ता ने अपने पिता की राजनीतिक दुश्मनी के बोझ से अपने आप को मुक्त किया । इस मुक्ति के बावजूद लेकिन वह अपना ध्येय पाने में विफल रहे । नवीन गुप्ता और उत्तम अग्रवाल मिलकर भी प्रफुल्ल छाजेड़ को वाइस प्रेसीडेंट बनने से नहीं रोक सके । 6 जनवरी की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में एक मजेदार तथ्य यह बताया गया था कि वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल का विकमसे भाइयों के साथ पुराना बैर है, और जब जब भी उनके बीच सीधी चुनावी टक्कर हुई है - उत्तम अग्रवाल को हमेशा ही विकमसे भाइयों से हारना ही पड़ा है । इसी बात का बदला लेने की खुन्नस में उत्तम अग्रवाल ने इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के सामने तरह तरह से मुसीबतें खड़ी करने के प्रयास किए ।
प्रफुल्ल छाजेड़ ने लेकिन होशियारी से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अपना अभियान चलाया । सबसे ज्यादा होशियारी उन्होंने इस बात में दिखाई कि अपनी उम्मीदवारी के अभियान को उन्होंने बहुत ही लो-प्रोफाइल रखा । प्रफुल्ल छाजेड़ ने शुरू से ही इस बात का ध्यान रखा कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो उम्मीदवार ज्यादा 'उड़ता' है, लोग उसे गिराने में लग जाते हैं - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह 'उड़ने' से बचे रहे, और लो-प्रोफाइल में रहे । इससे उन्हें नीलेश विकमसे के उम्मीदवार के 'टैग' से छुटकारा पाने में भी मदद मिली । प्रफुल्ल छाजेड़ ने नीलेश विकमसे से मिल सकने वाले फायदे को तो 'लिया', लेकिन साथ ही नीलेश विकमसे के कारण हो सकने वाले नुकसान से अपने आप को बचाया भी । उत्तम अग्रवाल की अति सक्रियता भी प्रफुल्ल छाजेड़ के लिए फायदे का सौदा रही । उत्तम अग्रवाल की बेमतलबभरी दखलंदाजी से लोग वास्तव में अब चिढ़ने लगे हैं; उत्तम अग्रवाल के पास राजनीति करने के लिए कुछ होता भी नहीं है - वह तो बस कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा लेकर अपनी राजनीति का कुनबा जोड़ने का प्रयास करते हैं, और जो जीतता हुआ दिखता है उसे अपना बताने लगते हैं । इस वर्ष उत्तम अग्रवाल ने पहले तो धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी का झंडा पकड़ा, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि धीरज खंडेलवाल का कहीं कोई काम नहीं बन सकेगा तो फिर वह अब्राहम बाबु और निहार जम्बूसारिया की स्थिति को 'तोलने' लगे । उत्तम अग्रवाल को शुरू से यह तो पता था कि उन्हें किसी भी तरह से प्रफुल्ल छाजेड़ को 'रोकना' है, लेकिन वह यह अंत तक तय नहीं कर सके कि 'लाना' किसे हैं । प्रफुल्ल छाजेड़ के विरोध में उन्हें नवीन गुप्ता का भी समर्थन मिल गया, लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की राजनीतिक होशियारी के सामने उन्हें अंततः मुहँकी ही खानी पड़ी । वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत ने प्रेसीडेंट बनने की नवीन गुप्ता की खुशी को फीका कर दिया है ।