Saturday, February 17, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपने आपको प्रफुल्ल छाजेड़ का पक्का वाला समर्थक बताने/दिखाने की अतुल गुप्ता की जोरशोर से की जा रही कोशिशों से अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का तो सिर ही चकरा गया है

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता को प्रफुल्ल छाजेड़ के 'विजय जुलूस' में शामिल देख अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का सिर चकराया हुआ है - तो देवराज रेड्डी को नवीन गुप्ता द्वारा नई कमेटियाँ गठित न करने के कारण विजय गुप्ता की जिद के चलते प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट के साथ मंच पर बैठने का मौका नहीं मिला । यह कुछ घटनाएँ इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट चुनाव के ऑफ्टर व साइड इफेक्ट्स हैं, जिनमें अगले वर्ष होने वाले चुनाव की तैयारी की झलक भी देखी/पहचानी जा सकती है । वाइस प्रेसीडेंट पद पर प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के बाद सेंट्रल काउंसिल के जितने सदस्य उन्हें वोट देने की बात कह/कर रहे हैं, उसे देख/सुन कर खुद प्रफुल्ल छाजेड़ को हैरानी हो रही है । हैरानी उन्हें इस बात पर हो रही है कि यदि सचमुच उन्हें इतने लोगों ने वोट दिया होता तो वह तो पहले दौर की गिनती में ही साफ विजेता बन गए होते । चूँकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए जाहिर है कि प्रफुल्ल छाजेड़ को वोट देने की बात करने/कहने वाले कुछेक लोग तो स्पष्ट रूप से झूठ बोल रहे हैं - और इस झूठ के जरिए वास्तव में वह प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक होने/दिखने की कोशिश कर रहे हैं । वोट देने का तरीका चूँकि ऐसा है कि दावे के साथ यह पता करना मुश्किल क्या असंभव ही है कि सचमुच किसने किसे वोट दिया है, इसलिए सदस्यों के झूठ को पकड़ना भी मुश्किल क्या असंभव ही है; लेकिन चूँकि वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव बहुत छोटा चुनाव है, जिसमें कुल 32 वोटर हैं - तो यह समझ पाना कोई बहुत मुश्किल भी नहीं है कि कौन किसके साथ था ।
इस मामले में सबसे मजेदार स्थिति बनी है, अतुल गुप्ता की । और यह स्थिति बनाने में खुद उनकी अपनी भूमिका ही निर्णायक रही है । दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के वाइस प्रेसीडेंट घोषित होते ही अतुल गुप्ता जोरशोर से उनके 'विजय जुलूस' में शामिल हो गए । अपने आपको प्रफुल्ल छाजेड़ का पक्का वाला समर्थक और वोटर बताने/दिखाने की अतुल गुप्ता की जोरशोर से की गई कोशिशों ने लोगों का ध्यान खींचा - खासकर अब्राहम बाबु, एमपी विजय कुमार, मनु अग्रवाल और धीरज खंडेलवाल का तो सिर ही चकरा गया । पोल खुली कि अतुल गुप्ता तो इन चारों को ही समर्थन देने की न सिर्फ बात कर रहे थे, बल्कि इन्हें चुनाव भी लड़वा रहे थे । अतुल गुप्ता अलग अलग तरीके से इन चारों को टिप्स दे रहे थे, दूसरे उम्मीदवारों व वोटरों के बीच बन/जुड़ रहे समीकरणों की चुगली कर रहे थे और इन्हें बता रहे थे कि किस वोटर से क्या कहना है या क्या नहीं कहना है और किसको किससे फोन करवाना है, आदि-इत्यादि । लिहाजा अब जब अतुल गुप्ता खुद ही दावा कर रहे हैं कि वह तो प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ थे, तो इन चारों का यह सोच-सोच कर सिर चकरा रहा है कि अतुल गुप्ता यदि सचमुच प्रफुल्ल छाजेड़ के साथ थे - तो उनके साथ वह क्या खेल कर रहे थे ? ऐसे में, लोगों को कहने का मौका मिला है कि अतुल गुप्ता सचमुच किसके साथ थे - यह बात या तो वह जानते हैं, और या ऊपर वाला जानता है ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों को लगता है कि प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में अपनी (सच्ची या झूठी) भूमिका जोरशोर से 'दिखाने' के पीछे अतुल गुप्ता की दरअसल अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव जीतने की तैयारी की योजना है । वह प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक होकर अगले वर्ष के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उनका समर्थन पाने की 'योजना' के चलते कुछ ज्यादा जोरशोर से प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत का श्रेय लेने का काम कर रहे हैं । उनका यह काम अगले वर्ष उनके काम आयेगा या नहीं, यह तो अगले वर्ष ही पता चलेगा - लेकिन अभी इस काम के चक्कर में उनका खूब मजाक बन रहा है । अतुल गुप्ता के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि इस बार के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में विजय गुप्ता की 'टेबल टर्न' करने वाली जो भूमिका रही, उसने अतुल गुप्ता को चिंतित किया है - क्योंकि अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में विजय गुप्ता के भी उम्मीदवार होने का अनुमान लगाया जा रहा है । इस वर्ष के चुनाव में विजय गुप्ता किसके साथ थे, यह तो विजय गुप्ता ही जानते होंगे - लेकिन एक बात सब जानते हैं कि इस बार विजय गुप्ता ने उत्तम अग्रवाल का खेल बिगाड़ने का काम जरूर किया । मजे की बात यह है कि एक समय उत्तम अग्रवाल खेमे के व्यक्ति के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले विजय गुप्ता यूँ तो पिछले दो/तीन वर्षों से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल के खेल से बाहर और अलग ही बने रहे हैं, लेकिन फिर भी उत्तम अग्रवाल खेमे का टैग उनके ऊपर लगा ही रहा - जिससे इस बार उन्होंने मुक्ति पाई । इस बार टैग से मुक्ति दरअसल उन्हें इसलिए मिल पाई, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से इस बात को कहा कि उत्तम अग्रवाल के नजदीक होने के बावजूद उन्हें उत्तम अग्रवाल से कभी कोई मदद नहीं मिली । विजय गुप्ता ने यह बात कही तो अपने बारे में थी, लेकिन उनकी यह बात वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के संदर्भ में एक बड़े 'स्टेटमेंट' में बदल गई और फिर इससे जो माहौल बना - उसका फायदा प्रफुल्ल छाजेड़ को मिला ।
दरअसल विजय गुप्ता की कही बात को तरुण घिआ, निहार जम्बूसारिया और जय छैरा ने भी अपने अपने तरीके से एंडोर्स किया । उत्तम अग्रवाल ने तीन/चार उम्मीदवारों को समर्थन दिलवाने का झाँसा दिया हुआ था और मजे की बात यह रही कि सभी ने माना/पाया कि उत्तम अग्रवाल ने उनके साथ धोखा किया है । इस तरह की स्थितियों और चर्चाओं ने विजय गुप्ता की कही बात को खासा बड़ा बना दिया और इसी बात ने इस बार के चुनावी नतीजे में निर्णायक भूमिका निभाई । इससे प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत में विजय गुप्ता की भूमिका को देखा/पहचाना जाने लगा । इससे अतुल गुप्ता की चिंता बढ़ी । लिहाजा उन्होंने झट से प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के जुलूस में शामिल होने का फैसला किया, ताकि वह भी प्रफुल्ल छाजेड़ की जीत के वाहक बन सकें और प्रफुल्ल छाजेड़ के नजदीक हो सकें ।
अतुल गुप्ता इस बीच घटी उस घटना से काफी उत्साहित हैं, जिसमें विजय गुप्ता के कारण पूर्व प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी को प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ मंच पर बैठने का मौका नहीं मिला । उल्लेखनीय है कि नीलेश विकमसे के साथ देवराज रेड्डी मंच पर बैठने और आगे आगे रहने की 'आजादी' खूब ले चुके हैं । यही आजादी उन्होंने ताज होटल में नवीन गुप्ता व प्रफुल्ल छाजेड़ की प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेने की कोशिश की । उनका कहना रहा कि पूर्व प्रेसीडेंट होने के नाते उन्हें मंच पर बैठने का मौका मिलना चाहिए । पीआर कमेटी के चेयरमैन के रूप में मंच की व्यवस्था संभाल रहे विजय गुप्ता ने लेकिन तर्क दिया कि प्रोटोकॉल के तहत निवर्तमान प्रेसीडेंट को तो यह मौका मिल सकता है, 'किसी' भी पूर्व प्रेसीडेंट को लेकिन यह मौका नहीं दिया जा सकता है । विजय गुप्ता के सख्त रवैये पर देवराज रेड्डी को मनमसोस कर रह जाना पड़ा । देवराज रेड्डी ने इसकी खुन्नस नवीन गुप्ता पर यह कहते हुए निकाली कि प्रेसीडेंट का पदभार संभालते ही उन्हें नई कमेटियाँ बना लेने का काम करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि नवीन गुप्ता ने चूँकि नई कमेटियाँ नहीं बनाई हैं, इसलिए पीआर कमेटी के चेयरमैन के रूप में विजय गुप्ता ही प्रेसीडेंट व वाइस प्रेसीडेंट की प्रेस कॉन्फ्रेंस को नियोजित व नियंत्रित कर रहे थे । मंच पर जगह न मिलने से नाराज हुए देवराज रेड्डी को नवीन गुप्ता और विजय गुप्ता के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करता देख तो अतुल गुप्ता को मजा आया, लेकिन यह देख/जान कर उन्हें निराशा भी हुई कि नवीन गुप्ता और प्रफुल्ल छाजेड़ ने विजय गुप्ता की कार्रवाई का समर्थन ही किया । सेंट्रल काउंसिल सदस्य इन घटनाओं को वाइस प्रेसीडेंट चुनाव के ऑफ्टर व साइड इफेक्ट्स के रूप में ही देख पहचान रहे हैं, और उनका कहना है कि इस तरह के अभी और दृश्य देखने को मिलेंगे ।