गाजियाबाद । अमित गुप्ता के
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने
के प्रयास जिस तरह बेअसर से साबित हो रहे हैं, उससे उनसे सहानुभूति रखने
वाले लोग निराश होते जा रहे हैं । अमित गुप्ता से
सहानुभूति रखने वाले कुछेक लोगों ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि
अमित गुप्ता पिछले दिनों कुछेक प्रमुख नेताओं से मिले, जिनमें से कुछेक को
उन्होंने अपने घर बुलाया और कुछेक के घर या ऑफिस वह खुद गए - और इस तरह
उनके साथ काफी समय व्यतीत किया, लेकिन जिन लोगों से अमित गुप्ता मिले उनकी
प्रतिक्रिया अमित गुप्ता के लिए कोई उत्साहजनक नहीं रही । लोगों को अमित
गुप्ता की बातों व उनके व्यवहार में बनावटीपन नजर आया और अपनी बातों व अपने
व्यवहार से वह लीडर हो सकने की छाप छोड़ पाने में विफल ही रहे । अमित
गुप्ता की गतिविधियों को नजदीक से देखने/परखने वाले अनुभवी लोगों का मानना
और कहना है कि अमित गुप्ता की गतिविधियाँ दरअसल एक उम्मीदवार की गतिविधियों
के अनुरूप नहीं बन पा रही हैं, और वह सामान्य मेल-मिलाप की गतिविधियाँ ही
बन कर रह जा रही हैं - इसीलिए एक उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता को उनका
कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है । अमित गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात
यह रही कि पेट्स और सेट्स की सफलता को सेलीब्रेट करने तथा अगले रोटरी
वर्ष में मेजर डोनर बनने की घोषणा करने वाले रोटेरियंस के फेलिसिटेशन के
लिए आयोजित हुए अपने ही क्लब के कार्यक्रम का अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ
में वह कोई लाभ नहीं उठा सके । उक्त कार्यक्रम में मौजूद रहे कुछेक लोगों
के अनुसार, अमित गुप्ता ने लाभ उठाने का प्रयास तो जरूर किया, लेकिन
कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी एक आउटसाइडर जैसी ही रही । अपने शिक्षण संस्थान
की एक नई ब्रांच के उद्घाटन अवसर का 'राजनीतक लाभ' उठाने का भी उनके पास
एक अच्छा मौका था, उनके नजदीकियों के अनुसार ही लेकिन जिसके लिए उन्होंने
कोई प्रयास भी नहीं किया ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि तमाम मौकों और गतिविधियों के बावजूद एक उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता चुनावी सीन में अपने लिए कोई स्पेस नहीं बना पा रहे हैं, तो इसका प्रमुख कारण उनकी रोटरी की राजनीतिक अनुभवहीनता है । उनकी अनुभवहीनता उनके लिए मुसीबत की बात इसलिए भी है, क्योंकि उनका चुनावी मुकाबला जिन अशोक अग्रवाल से होता हुआ नजर आ रहा है, वह रोटरी की चुनावी राजनीति की नस नस से परिचित हैं, और छोटे छोटे मौकों को भी राजनीतिक रंग दे देने की कला में पारंगत हैं । पिछले वर्षों में हुए चुनावों में अशोक अग्रवाल की किसी न किसी रूप में सहभागिता रही ही है और इसके चलते चुनावी दाँव-पेंचों को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा/पहचाना/परखा है । पिछले वर्षों में हुए चुनावों में अशोक अग्रवाल जिन के साथ/समर्थन में रहे हैं, उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा है - लेकिन उन पराजयों ने अशोक अग्रवाल के राजनीतिक अनुभवों को और समृद्ध करने का ही काम किया है, जो अब उनके अपने चुनाव में उनके लिए लाभकारी साबित हो रहे हैं । रोटरी की चुनावी राजनीति के अच्छे-बुरे पक्षों को गहराई से समझने के कारण ही अशोक अग्रवाल कम समय और अपेक्षाकृत कम सक्रियता के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के चुनावी सीन में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुए हैं । अमित गुप्ता ने किन्हीं किन्हीं लोगों के सामने अशोक अग्रवाल और अपनी गतिविधियों की तुलना करते हुए गतिविधियों के मामले में अपने पलड़े को भारी बताने/दिखाने का प्रयास किया भी, किंतु उनके इस प्रयास का उन्हें कोई फायदा नहीं मिला - क्योंकि बात गतिविधियों के कम या ज्यादा होने की नहीं है, बात आउटपुट की है । कम गतिविधि के बावजूद अशोक अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के चुनावी सीन में यदि अमित गुप्ता के मुकाबले बहुत बहुत आगे नजर आ रहे हैं, तो अमित गुप्ता के लिए यह चिंता और चुनौती की बात तो होनी ही चाहिए ।
अमित गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि वह ऐसे रोटेरियंस का भी कोई सहयोग नहीं ले पा रहे हैं, जिन्हें रोटरी की चुनावी राजनीति का कोई अनुभव हो और जो अमित गुप्ता की गतिविधियों को 'राजनीतिक रंग' दे सकें । उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि दरअसल इसके लिए उनकी तरफ से कोई प्रयास भी नहीं हुआ है । पिछले तीन-चार वर्षों से अमित गुप्ता हालाँकि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में काफी सक्रिय रहे हैं, किंतु लगता है कि उस सक्रियता से उन्होंने न तो सच्चे दोस्त बनाए और न रोटरी की राजनीति के गुण ही सीखे हैं । मौजूदा रोटरी वर्ष में सतीश सिंघल के साथ उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में प्रमुख और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन सतीश सिंघल के मुसीबत में पड़ने/घिरने से उनकी उस भूमिका पर ही पानी पड़ गया है । इससे भी बड़ी आफत अमित गुप्ता के लिए यह बात बनी है कि सतीश सिंघल के खास और नजदीकी रहे लोग भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी को सहयोग और समर्थन देते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । इस तरह से देखा जाए, तो सतीश सिंघल के साथ जुड़ कर अमित गुप्ता ने अपना जो समय, एनर्जी और पैसा लगाया - उसका उन्हें अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है । यह सब देख/जान कर अमित गुप्ता के नजदीकियों और शुभचिंतकों को लगने लगा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई लड़ना उनके बस की बात शायद है ही नहीं, और वह यहाँ बेकार में ही अपना समय, एनर्जी और पैसा बर्बाद कर रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि तमाम मौकों और गतिविधियों के बावजूद एक उम्मीदवार के रूप में अमित गुप्ता चुनावी सीन में अपने लिए कोई स्पेस नहीं बना पा रहे हैं, तो इसका प्रमुख कारण उनकी रोटरी की राजनीतिक अनुभवहीनता है । उनकी अनुभवहीनता उनके लिए मुसीबत की बात इसलिए भी है, क्योंकि उनका चुनावी मुकाबला जिन अशोक अग्रवाल से होता हुआ नजर आ रहा है, वह रोटरी की चुनावी राजनीति की नस नस से परिचित हैं, और छोटे छोटे मौकों को भी राजनीतिक रंग दे देने की कला में पारंगत हैं । पिछले वर्षों में हुए चुनावों में अशोक अग्रवाल की किसी न किसी रूप में सहभागिता रही ही है और इसके चलते चुनावी दाँव-पेंचों को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा/पहचाना/परखा है । पिछले वर्षों में हुए चुनावों में अशोक अग्रवाल जिन के साथ/समर्थन में रहे हैं, उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा है - लेकिन उन पराजयों ने अशोक अग्रवाल के राजनीतिक अनुभवों को और समृद्ध करने का ही काम किया है, जो अब उनके अपने चुनाव में उनके लिए लाभकारी साबित हो रहे हैं । रोटरी की चुनावी राजनीति के अच्छे-बुरे पक्षों को गहराई से समझने के कारण ही अशोक अग्रवाल कम समय और अपेक्षाकृत कम सक्रियता के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के चुनावी सीन में अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुए हैं । अमित गुप्ता ने किन्हीं किन्हीं लोगों के सामने अशोक अग्रवाल और अपनी गतिविधियों की तुलना करते हुए गतिविधियों के मामले में अपने पलड़े को भारी बताने/दिखाने का प्रयास किया भी, किंतु उनके इस प्रयास का उन्हें कोई फायदा नहीं मिला - क्योंकि बात गतिविधियों के कम या ज्यादा होने की नहीं है, बात आउटपुट की है । कम गतिविधि के बावजूद अशोक अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट के चुनावी सीन में यदि अमित गुप्ता के मुकाबले बहुत बहुत आगे नजर आ रहे हैं, तो अमित गुप्ता के लिए यह चिंता और चुनौती की बात तो होनी ही चाहिए ।
अमित गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि वह ऐसे रोटेरियंस का भी कोई सहयोग नहीं ले पा रहे हैं, जिन्हें रोटरी की चुनावी राजनीति का कोई अनुभव हो और जो अमित गुप्ता की गतिविधियों को 'राजनीतिक रंग' दे सकें । उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि दरअसल इसके लिए उनकी तरफ से कोई प्रयास भी नहीं हुआ है । पिछले तीन-चार वर्षों से अमित गुप्ता हालाँकि रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में काफी सक्रिय रहे हैं, किंतु लगता है कि उस सक्रियता से उन्होंने न तो सच्चे दोस्त बनाए और न रोटरी की राजनीति के गुण ही सीखे हैं । मौजूदा रोटरी वर्ष में सतीश सिंघल के साथ उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में प्रमुख और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन सतीश सिंघल के मुसीबत में पड़ने/घिरने से उनकी उस भूमिका पर ही पानी पड़ गया है । इससे भी बड़ी आफत अमित गुप्ता के लिए यह बात बनी है कि सतीश सिंघल के खास और नजदीकी रहे लोग भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी को सहयोग और समर्थन देते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । इस तरह से देखा जाए, तो सतीश सिंघल के साथ जुड़ कर अमित गुप्ता ने अपना जो समय, एनर्जी और पैसा लगाया - उसका उन्हें अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है । यह सब देख/जान कर अमित गुप्ता के नजदीकियों और शुभचिंतकों को लगने लगा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई लड़ना उनके बस की बात शायद है ही नहीं, और वह यहाँ बेकार में ही अपना समय, एनर्जी और पैसा बर्बाद कर रहे हैं ।