Monday, May 21, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डीआरएफसी बनने की पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल की कोशिशों को भावी गवर्नर्स दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता के विरोध के चलते झटका लगता दिख रहा है, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से मदद माँगने का उनका प्रयास भी सफल नहीं हो सका है

नई दिल्ली । डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) पद पाने की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की कोशिशें सफल होती हुई नहीं दिख रही हैं, और इस मामले में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने भी उनकी मदद करने में दिलचस्पी नहीं ली है । रमेश अग्रवाल के लिए राहत की बात सिर्फ यही है कि डीआरएफसी पद अपने ही पास बनाए रखने की मुकेश अरनेजा की कोशिशें भी पिटती दिख रही हैं । मजे की बात यह रही कि डीआरएफसी पद को लेकर मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बीच खासी छीनाझपटी जैसी स्थिति बनी, जिसमें दोनों की ही पहली कोशिश तो उक्त पद खुद हथियाने की रही - और दूसरी कोशिश के रूप में उनका प्रयास यह रहा कि उन्हें नहीं, तो दूसरे को भी उक्त पद न मिले । उनके इस झगड़े के चलते डिस्ट्रिक्ट 3012 में डीआरएफसी के पद के लिए फैसला होना मुश्किल बना हुआ है, और फैसले की घड़ी लगातार टलती ही जा रही है । उनके इस झगड़े का फायदा लेकिन अब जेके गौड़ को मिलता नजर आ रहा है । डीआरएफसी का पद जेके गौड़ को मिलने की संभावना के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अशोक अग्रवाल को अपने लिए भी मौके बनते दिख रहे हैं । अशोक अग्रवाल को अगले रोटरी वर्ष में यूँ तो डिस्ट्रिक्ट एडवाईजर जैसा महत्त्वपूर्ण पद मिला है, लेकिन उनके पास लोगों से मिलते रहने का कोई आधिकारिक 'बहाना' नहीं है । अशोक अग्रवाल को इस बात की बड़ी शिकायत रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अमित गुप्ता को तो क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य लोगों से संपर्क करने तथा संपर्क में रहने के बहुत मौके मिलेंगे, जबकि उन्हें नहीं मिलेंगे । लेकिन जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने पर अशोक अग्रवाल को उम्मीद है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए इसका फायदा उठा सकेंगे ।
रमेश अग्रवाल की डीआरएफसी पद पाने की कोशिशों का विफल होना रमेश अग्रवाल के लिए बड़े झटके की बात है । दरअसल डीआरएफसी पद पाने की उनकी कोशिशों की बातें रोटरी के बड़े नेताओं तक के बीच चर्चा का विषय रही हैं । यह इसलिए भी हुआ, क्योंकि इसके लिए उन्होंने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता तक की मदद लेने का प्रयास किया । सुशील गुप्ता के जरिये उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के दो भावी गवर्नर्स दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता का समर्थन जुटाने का प्रयास किया । वास्तव में इन दोनों के विरोध के चलते ही रमेश अग्रवाल को डीआरएफसी पद अपने से दूर जाता दिख रहा था, लिहाजा उन्होंने सोचा और प्रयास किया कि सुशील गुप्ता यदि इन दोनों को कहेंगे तो फिर यह विरोध की जगह उनका समर्थन करने लगेंगे । रमेश अग्रवाल की लेकिन बदकिस्मती रही कि जिन सुशील गुप्ता से उन्होंने मदद की उम्मीद की थी, उन सुशील गुप्ता ने उनकी मदद करने में दिलचस्पी ही नहीं ली । रमेश अग्रवाल ने सुशील गुप्ता का नाम लेकर दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता पर दबाव बनाने का भी प्रयास किया, लेकिन वह दोनों उनके झाँसे में आए नहीं । डीआरएफसी का पद पाना रमेश अग्रवाल को दरअसल इसलिए जरूरी लगा, ताकि रोटरी की बड़ी राजनीति में वह अपनी अहमियत बना/दिखा सकें । रमेश अग्रवाल तमाम कोशिशों के बावजूद रोटरी की बड़ी राजनीति में अपने लिए कोई जगह नहीं बना सके हैं । ले दे कर उनके पास विन्स का ही 'मंच' है, जिसे लेकिन रोटरी की बड़ी राजनीति में कोई गंभीरता से नहीं लेता है । रमेश अग्रवाल रोटरी की 'व्यवस्था' व राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं; इसलिए उन्हें जरूरी लगा कि रोटरी में उनके पास जब कोई बड़ा असाइनमेंट नहीं है - तो कम से कम डिस्ट्रिक्ट में ही वह डीआरएफसी बन जाएँ ।
दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता लेकिन उनकी जरूरत के पूरा होने के आड़े आ गए । मुकेश अरनेजा ने भी भरसक प्रयास किया कि डीआरएफसी के रूप में अगले तीन वर्ष का टर्म उन्हें और मिल जाए, लेकिन डीआरएफसी के रूप में मौजूदा टर्म में उनकी भूमिका इतनी बेईमानीभरी रही कि किसी ने भी उनके नाम पर विचार करने की जरूरत तक नहीं समझी । डीआरएफसी के पद पर रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा के सीन से बाहर होने पर जेके गौड़ की लॉटरी निकलती दिख रही है । एक विकल्प हालाँकि शरत जैन का भी है, लेकिन उन्हें शायद पता है कि उनकी दाल नहीं ही गलेगी, इसलिए उन्होंने अपने आपको इस दौड़ से अलग ही रखा है । ऐसे में एक अकेले जेके गौड़ ही बचे रह जाते हैं । उम्मीद की जा रही है कि न चाहते हुए भी तीनों भावी गवर्नर्स उन्हें ही डीआरएफसी चुन लेंगे । इससे जेके गौड़ की किस्मत का दरवाजा भी खुलता हुआ दिखा है, अन्यथा पिछले दो मौकों पर उन्हें फजीहत का ही सामना करना पड़ा था : पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए हुए चुनाव में उन्हें रमेश अग्रवाल के मुकाबले पराजय का सामना करना पड़ा, और फिर दीपक गुप्ता के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का उनका मौका मुकेश अरनेजा ने उनसे छीन लिया । मजेदार संयोग है कि रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा से बारी बारी से झटका खा चुके जेके गौड़ को अब इन दोनों के झगड़े के चलते डीआरएफसी का पद मिलता नजर आ रहा है । जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में अशोक अग्रवाल को अपना फायदा भी होता हुआ दिख रहा है । उन्हें लग रहा है कि जेके गौड़ के डीआरएफसी बनने से उन्हें भी क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच पैठ बनाने तथा उन्हें प्रभावित करने का मौका मिलेगा ।