अहमदाबाद
। चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत
अनिकेत तलति की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कमान उनके पिता और
इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति द्वारा संभाल लिए जाने से अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । अहमदाबाद
में सेंट्रल काउंसिल के लिए पराग रावल तथा पुरुषोत्तम खंडेलवाल की भी
उम्मीदवारी की चर्चा है । पराग रावल ने पिछली बार भी सेंट्रल काउंसिल का
चुनाव लड़ा था और पहली वरीयता में 2322 वोट के साथ 6ठे नंबर पर रहने के
बावजूद वह ग्यारह विजेताओं की सूची में नहीं आ सके थे । पुरुषोत्तम
खंडेलवाल ने पिछली बार रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, जिसमें पहली वरीयता
में 1728 वोटों के साथ वह तीसरे नंबर पर रहे थे । पिछली बार अनिकेत तलति ने
भी रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में
1469 वोटों के साथ वह छठे नंबर पर रहे थे । उससे पहले, अहमदाबाद ब्रांच के
चुनाव में भी अनिकेत तलति की स्थिति पुरुषोत्तम खंडेलवाल की तुलना में बहुत
ही पतली थी । इन तथ्यों की रोशनी में सेंट्रल काउंसिल के लिए
उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे तीनों उम्मीदवारों में अनिकेत
तलति को तीसरे नंबर पर देखा/पहचाना जा रहा है । अनिकेत तलति के लिए यह बड़ी
खतरनाक और चुनौतीपूर्ण स्थिति है । दरअसल आकलन यह किया जा रहा है कि
सेंट्रल काउंसिल के लिए वह उम्मीदवार कामयाब होगा, जो अपने आप को पहले
'बाहर होने' से बचा ले सकेगा । अहमदाबाद के उम्मीदवारों को दूसरी/तीसरी
वरीयता के वोट भी अहमदाबाद में ही मिलने की उम्मीद है, इसलिए अहमदाबाद के
तीनों उम्मीदवारों में जो पिछड़ा हुआ रहेगा - उसके लिए मुकाबले में बने रह
पाना मुश्किल क्या, असंभव ही होगा । सुनील तलति को अनिकेत तलति की
उम्मीदवारी की कमान अभी से संभालने की जरूरत दरअसल इसीलिए पड़ी है, ताकि
अहमदाबाद के तीन उम्मीदवारों में तीसरी समझी/पहचानी जा रही अनिकेत तलति की
स्थिति को वह सुधार कर बेहतर बना सकें ।
उल्लेखनीय है कि
पिछली बार, रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिकेत तलति की उम्मीदवारी को भी
कमजोर देखा/समझा जा रहा था - लेकिन सुनील तलति जब उनकी उम्मीदवारी के लिए
समर्थन जुटाने निकले, तो अनिकेत तलति की चुनावी नैय्या पार लग ही गई ।
पिताजी की मदद से अनिकेत तलति ने चुनाव तो जीत लिया, लेकिन अहमदाबाद ब्रांच
के चुनाव में पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पिछड़ने की जो स्थिति बनी हुई थी - वह
रीजनल काउंसिल के चुनाव में भी बनी रही । एक और तथ्य पर गौर करना
प्रासंगिक होगा । पिछली बार रीजनल काउंसिल के चुनाव में, इंस्टीट्यूट के
तीन पूर्व प्रेसीडेंट्स के बेटा/बेटी उम्मीदवार थे - सुश्रुत चिताले,
दृष्टि देसाई और अनिकेत तलति; इनमें अनिकेत तलति ही सबसे पीछे रहे ।
इसका एक बड़ा और प्रमुख कारण हालाँकि उनका अहमदाबाद - या मुंबई से बाहर का
होना भी है । इंस्टीट्यूट के चुनाव में मुंबई के उम्मीदवारों की तुलना में
मुंबई से बाहर के उम्मीदवारों के लिए मुसीबत या चुनौती अपेक्षाकृत बड़ी होती
है । हालाँकि इसके बावजूद, पहले पराग रावल ने और फिर पुरुषोत्तम खंडेलवाल
ने रीजनल काउंसिल में अनिकेत तलति और मुंबई के अधिकतर उम्मीदवारों की तुलना
में बेहतर परफॉर्म किया ही है । पिछली से भी पिछली बार रीजनल काउंसिल के
चुनाव में पराग रावल सबसे ज्यादा वोट पाकर पहले नंबर पर रहे थे । इसलिए
अनिकेत तलति अहमदाबाद - या मुंबई के बाहर के होने का एक्सक्यूज नहीं ले
सकते हैं । जाहिर है कि अनिकेत तलति पर दोहरा दबाव है । इस दोहरे दबाव से
ही उन्हें मुक्त कराने के लिए उनके पिताजी ने अब मोर्चा संभाल लिया है ।
सुनील
तलति के मोर्चा संभालने पर अनिकेत तलति की बनने वाली स्थिति को लेकर लोगों
की राय लेकिन बँटी हुई है । कुछ लोगों को लगता है कि सुनील तलति के मोर्चा
संभालने से अनिकेत तलति की स्थिति में सुधार होगा, लेकिन कई लोगों को लगता
है कि अहमदाबाद ब्रांच तथा रीजनल काउंसिल के चुनाव में अनिकेत तलति को
अपने पिता की सक्रियता से भले ही लाभ हुआ हो, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में चूँकि
एक अलग ही केमिस्ट्री चलती है - इसलिए पिता की सक्रियता यहाँ उनके काम नहीं
आने वाली है । सुनील तलति के बेटे होने की पहचान रखने तथा उनके सक्रिय
समर्थन के चलते अनिकेत तलति ब्रांच और रीजनल काउंसिल के चुनाव जीतने में कामयाब भले ही हुए हों, लेकिन वह कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सके हैं । उनके लिए मुसीबत की बात यह रही कि अहमदाबाद में ही उन्हें जिन
चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उनसे निपट पाना ही उनके लिए मुश्किल बना
रहा है । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में उनके लिए यह चुनौती और भी
बड़ी है । पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में वह यदि अब की बार भी पराग
रावल और पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पीछे रह गए, तो फिर उनका जीत पाना मुश्किल
क्या असंभव ही होगा । इस खतरे को जानते/पहचानते हुए ही सुनील तलति ने
अनिकेत तलति के चुनाव की बागडोर अभी से संभाल ली है । सुनील तलति के सक्रिय
होने से अनिकेत तलति को फायदा होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा -
अभी लेकिन यह जरूर हुआ है कि अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट का चुनावी परिदृश्य रोचक हो उठा है ।