लखनऊ । शिव कुमार गुप्ता ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
के लिए अपनी उम्मीदवारी को जिस तेवर और आयाम के साथ प्रस्तुत किया है, उसके
चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा हो गई है ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में शिव कुमार
गुप्ता की खूबी सिर्फ यही नहीं है कि वह डिस्ट्रिक्ट के एक अनुभवी लायन हैं
और वर्षों से डिस्ट्रिक्ट में बने बसंत और पतझड़ के मौकों के गवाह होने के
साथ-साथ उनके वाहक और पथमार्गी भी रहे हैं - उनकी खूबी यह भी है कि वह
एक जुझारू व्यक्तित्व के स्वामी भी हैं; और उनका जुझारूपन सिर्फ जोश वाला
नहीं, बल्कि होश वाला भी है । इसी कारण से, उनकी उम्मीदवारी को संशय के
घेरे में घेरने की विरोधियों की चाल सफल नहीं हो पाई है । एक उम्मीदवार के
रूप में, देरी से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले शिव कुमार गुप्ता ने
लोगों के बीच यह विश्वास बना लेने में लेकिन कोई देर नहीं लगाई है कि वह काफी दमदारी से चुनाव लड़ेंगे ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उनकी उम्मीदवारी का आयाम तब और बड़ा
हो जाता है, जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा को उनके साथ देखा/पहचाना
जाता है । केएस लूथरा को यूँ तो काफी सीधा-साधा माना/समझा जाता है, लेकिन
अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के मामले में उन्हें काफी लगनशील रहते हुए
देखा/पाया गया है । शिव कुमार गुप्ता और केएस लूथरा की जोड़ी को एक और
एक दो के गणित में नहीं, बल्कि एक और एक ग्यारह के गणित में माना/समझा जा
रहा है - और इसीलिए इन दोनों के एक साथ होने को एक बड़ी घटना के घटित होने
की आहट के रूप में ‘सुना’ और महसूस किया जा रहा है ।
शिव कुमार गुप्ता को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना है तो केएस लूथरा को गुरनाम सिंह से निपटना है । दोनों हालांकि अच्छे से जानते हैं कि उनका ‘काम’ कोई आसान काम नहीं है - लेकिन फिर भी अपने.अपने काम को लेकर यह दोनों उत्साहित दिख रहे हैं तो इसका कारण लोगों से मिल रही सकारात्मक प्रतिक्रिया में देखा/पहचाना जा रहा है । यहाँ इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किए जाने वाले केएस लूथरा के कार्यक्रमों को फेल करने की गुरनाम सिंह ने जो भी कोशिश की, उसमें गुरनाम सिंह को जरा भी सफलता नहीं मिली । डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों से लोगों को दूर रखने/करने की गुरनाम सिंह की तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों की जो भागीदारी कार्यक्रमों में रही, उससे केएस लूथरा का उत्साह ही बढ़ा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में केएस लूथरा ने प्रोजेक्ट्स करने पर जो जोर दिया, उसे भी लोगों का और क्लब्स का अच्छा समर्थन और सहयोग मिला । प्रोजेक्ट्स पर जोर देने की केएस लूथरा की प्रेरणा को क्लब्स ने और लोगों ने जिस उत्साह के साथ अपनाया, उससे यह आभास भी मिला कि डिस्ट्रिक्ट में लोग लायनिज्म के नाम पर गुरनाम सिंह की ‘सिर्फ और सिर्फ राजनीति’ से तंग आ गये हैं, और कुछ सचमुच की लायनिज्म करना चाहते हैं । इसी ‘बात’ को शिव कुमार गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को देरी से प्रस्तुत करने के कारण के रूप में रेखांकित किया है । उम्मीदवारी को देरी से प्रस्तुत करने को लेकर विरोधियों द्धारा ‘घेरे जाने’ का शिव कुमार गुप्ता ने यह कहते हुए करारा जबाव दिया है कि उनका मानना है कि चुनावी राजनीति का झमेला दूसरी कैबिनेट मीटिंग के बाद शुरू होना चाहिए, ताकि लायन वर्ष के शुरू के कुछेक महीनों में प्रोजेक्ट्स पर ध्यान दिया जा सके ।
शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी का एक प्रतीकात्मक महत्व भी है। शिव कुमार गुप्ता जिस क्लब में हैं उस क्लब में विद्या शंकर दीक्षित और नीरज बोरा हैं । चुनावी राजनीति के संदर्भ में, नए लायन सदस्यों के लिए इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानना प्रसंगिक होगा कि विद्या शंकर दीक्षित करीब दो दशक पहले गुरनाम सिंह को हरा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे; और नीरज बोरा करीब एक दशक पहले गुरनाम सिंह के खुले विरोध के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गये थे । तो क्या शिव कुमार गुप्ता के रूप में नियति ने गुरनाम सिंह के सामने एक बार फिर ‘पराजय’ को भेजा है । हालांकि कई लोगों का मानना और कहना है कि दो दशक पहले और एक दशक पहले उनके साथ चाहे जो हुआ हो, किंतु अब गुरनाम सिंह को ‘हराना’ आसान नहीं है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर गुरनाम सिंह की जैसी पकड़ है; लोगों को विरोधी खेमे से दूर करके अपने साथ लाने का उनका जो हुनर है - उसका मुकाबला करना आसान नहीं है । पुराने लायन सदस्य हालांकि बताते हैं कि विद्या शंकर दीक्षित और नीरज बोरा के लिए भी गुरनाम सिंह को हराना आसान नहीं था - लेकिन फिर भी उन्होंने गुरनाम सिंह को हराया ही था । दरअसल हर चुनाव की अपनी एक अलग केमिस्ट्री होती है - जो चुनावी नतीजे को प्रभावित करती है । गुरनाम सिंह जो चुनाव जीते हैं और या जो हारे हैं - वह उस चुनाव की केमिस्ट्री के नतीजे के रूप में सामने आये हैं । इसी आधार पर कहा जा सकता है कि इस वर्ष के चुनाव का नतीजा इस वर्ष की केमिस्ट्री पर निर्भर करेगा । केएस लूथरा और शिव कुमार गुप्ता का गठजोड़ यदि मजबूत नजर आता है, तो गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा का गठजोड़ भी कमजोर नहीं दिखता है । पिछले वर्षों में विशाल सिन्हा की सक्रियता को भी उल्लेखनीय रूप में देखा/पहचाना गया है ।
गौर करने की बात यह भी है कि विशाल सिन्हा पिछले कुछेक वर्षों में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बहुत नजदीक से शामिल रहे हैं; और इस कारण से वह चुनावी राजनीति के हथकंडों को अच्छे से जानते/पहचानते भी हैं और उन्हें इस्तेमाल करने की सलाहियत भी रखते हैं । अपने सहयोगी व्यवहार से उन्होंने लोगों को अपना दोस्त बनाया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन पक्का करने का काम भी किया है । उनके खिलाफ सिर्फ एक ही बात जाती है और वह यह कि उन्होंने अपनी स्वतंत्रा पहचान बनाने की कोशिश नहीं की और उन्हें गुरनाम सिंह के ‘भक्त’ के रूप में ही देखा और पहचाना जाता है । उनकी यह पहचान उनके लिए एक तरफ यदि फायदे का सौदा है, तो दूसरी तरफ नुकसान का कारण भी है । दरअसल अपनी इस पहचान के चलते, विशाल सिन्हा के लिए ऐसे लोगों का समर्थन जुटाना मुश्किल हो सकता है जो गुरनाम सिंह के खिलाफ रहते हैं । दरअसल, विरोधियों ने भी इसी बात को ‘इस्तेमाल’ करने की रणनीति बनाई है । विशाल सिन्हा और शिव कुमार गुप्ता के बीच मुकाबले का जो ‘स्टेज’ तैयार होता नजर आ रहा है, उसमें मुद्दा गुरनाम सिंह, उनका व्यवहार और उनकी राजनीति को ही बनना है । केएस लूथरा ने बड़ी होशियारी से इस बात को लोगों के बीच बहस के केंद्र में लाने की तैयारी की है कि गुरनाम सिंह जब उनके जैसे व्यक्ति के साथ नहीं निभा सकते हैं, तो फिर किसके साथ निभा सकेंगे ?
गुरनाम सिंह दरअसल ‘डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा’ को वह हक और सम्मान नहीं दे सके, जिसके ‘डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा’ पूरी तरह हकदार थे । अंदर की बात जानने वालों का दावा है कि केएस लूथरा ने गुरनाम सिंह को झेलने की बहुत कोशिश की, लेकिन गुरनाम सिंह के तौर-तरीके जब हद से बाहर ही होते गये, तो अपने आत्मसम्मान को बचाये रखने की खातिर केएस लूथरा को उनकी गिरफ्त से बाहर आने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । केएस लूथरा को बदनाम करने में गुरनाम सिंह और उनके लोगों ने हालांकि कोई कसर नहीं छोड़ी है; लेकिन गुरनाम सिंह की बदकिस्मती है कि लोग उन्हें भी जानते हैं और केएस लूथरा को भी जानते हैं । इसलिए केएस लूथरा को कठघरे में खड़े करने की उनकी कोई भी तरकीब काम करती हुई नहीं दिख रही है । इसी कारण से, केएस लूथरा और शिव कुमार गुप्ता को लग रहा है कि गुरनाम सिंह का पहले जैसा जलवा अब नहीं रह गया है । लेकिन कई लोगों का मानना और कहना है कि केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी न करने देने के मामले में गुरनाम सिंह को भले ही मुँहकी खानी पड़ी हो, लेकिन चुनावी मुकाबले के मामले में गुरनाम सिंह को कमजोर समझना भूल होगी । यह बात तो सच है, लेकिन शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा का जैसा जो खुला और सक्रिय समर्थन मिल रहा है, उसके चलते विशाल सिन्हा के लिए मुश्किलें तो बढ़ गईं हैं ।
शिव कुमार गुप्ता को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना है तो केएस लूथरा को गुरनाम सिंह से निपटना है । दोनों हालांकि अच्छे से जानते हैं कि उनका ‘काम’ कोई आसान काम नहीं है - लेकिन फिर भी अपने.अपने काम को लेकर यह दोनों उत्साहित दिख रहे हैं तो इसका कारण लोगों से मिल रही सकारात्मक प्रतिक्रिया में देखा/पहचाना जा रहा है । यहाँ इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किए जाने वाले केएस लूथरा के कार्यक्रमों को फेल करने की गुरनाम सिंह ने जो भी कोशिश की, उसमें गुरनाम सिंह को जरा भी सफलता नहीं मिली । डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों से लोगों को दूर रखने/करने की गुरनाम सिंह की तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों की जो भागीदारी कार्यक्रमों में रही, उससे केएस लूथरा का उत्साह ही बढ़ा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में केएस लूथरा ने प्रोजेक्ट्स करने पर जो जोर दिया, उसे भी लोगों का और क्लब्स का अच्छा समर्थन और सहयोग मिला । प्रोजेक्ट्स पर जोर देने की केएस लूथरा की प्रेरणा को क्लब्स ने और लोगों ने जिस उत्साह के साथ अपनाया, उससे यह आभास भी मिला कि डिस्ट्रिक्ट में लोग लायनिज्म के नाम पर गुरनाम सिंह की ‘सिर्फ और सिर्फ राजनीति’ से तंग आ गये हैं, और कुछ सचमुच की लायनिज्म करना चाहते हैं । इसी ‘बात’ को शिव कुमार गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को देरी से प्रस्तुत करने के कारण के रूप में रेखांकित किया है । उम्मीदवारी को देरी से प्रस्तुत करने को लेकर विरोधियों द्धारा ‘घेरे जाने’ का शिव कुमार गुप्ता ने यह कहते हुए करारा जबाव दिया है कि उनका मानना है कि चुनावी राजनीति का झमेला दूसरी कैबिनेट मीटिंग के बाद शुरू होना चाहिए, ताकि लायन वर्ष के शुरू के कुछेक महीनों में प्रोजेक्ट्स पर ध्यान दिया जा सके ।
शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी का एक प्रतीकात्मक महत्व भी है। शिव कुमार गुप्ता जिस क्लब में हैं उस क्लब में विद्या शंकर दीक्षित और नीरज बोरा हैं । चुनावी राजनीति के संदर्भ में, नए लायन सदस्यों के लिए इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानना प्रसंगिक होगा कि विद्या शंकर दीक्षित करीब दो दशक पहले गुरनाम सिंह को हरा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे; और नीरज बोरा करीब एक दशक पहले गुरनाम सिंह के खुले विरोध के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गये थे । तो क्या शिव कुमार गुप्ता के रूप में नियति ने गुरनाम सिंह के सामने एक बार फिर ‘पराजय’ को भेजा है । हालांकि कई लोगों का मानना और कहना है कि दो दशक पहले और एक दशक पहले उनके साथ चाहे जो हुआ हो, किंतु अब गुरनाम सिंह को ‘हराना’ आसान नहीं है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर गुरनाम सिंह की जैसी पकड़ है; लोगों को विरोधी खेमे से दूर करके अपने साथ लाने का उनका जो हुनर है - उसका मुकाबला करना आसान नहीं है । पुराने लायन सदस्य हालांकि बताते हैं कि विद्या शंकर दीक्षित और नीरज बोरा के लिए भी गुरनाम सिंह को हराना आसान नहीं था - लेकिन फिर भी उन्होंने गुरनाम सिंह को हराया ही था । दरअसल हर चुनाव की अपनी एक अलग केमिस्ट्री होती है - जो चुनावी नतीजे को प्रभावित करती है । गुरनाम सिंह जो चुनाव जीते हैं और या जो हारे हैं - वह उस चुनाव की केमिस्ट्री के नतीजे के रूप में सामने आये हैं । इसी आधार पर कहा जा सकता है कि इस वर्ष के चुनाव का नतीजा इस वर्ष की केमिस्ट्री पर निर्भर करेगा । केएस लूथरा और शिव कुमार गुप्ता का गठजोड़ यदि मजबूत नजर आता है, तो गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा का गठजोड़ भी कमजोर नहीं दिखता है । पिछले वर्षों में विशाल सिन्हा की सक्रियता को भी उल्लेखनीय रूप में देखा/पहचाना गया है ।
गौर करने की बात यह भी है कि विशाल सिन्हा पिछले कुछेक वर्षों में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बहुत नजदीक से शामिल रहे हैं; और इस कारण से वह चुनावी राजनीति के हथकंडों को अच्छे से जानते/पहचानते भी हैं और उन्हें इस्तेमाल करने की सलाहियत भी रखते हैं । अपने सहयोगी व्यवहार से उन्होंने लोगों को अपना दोस्त बनाया है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन पक्का करने का काम भी किया है । उनके खिलाफ सिर्फ एक ही बात जाती है और वह यह कि उन्होंने अपनी स्वतंत्रा पहचान बनाने की कोशिश नहीं की और उन्हें गुरनाम सिंह के ‘भक्त’ के रूप में ही देखा और पहचाना जाता है । उनकी यह पहचान उनके लिए एक तरफ यदि फायदे का सौदा है, तो दूसरी तरफ नुकसान का कारण भी है । दरअसल अपनी इस पहचान के चलते, विशाल सिन्हा के लिए ऐसे लोगों का समर्थन जुटाना मुश्किल हो सकता है जो गुरनाम सिंह के खिलाफ रहते हैं । दरअसल, विरोधियों ने भी इसी बात को ‘इस्तेमाल’ करने की रणनीति बनाई है । विशाल सिन्हा और शिव कुमार गुप्ता के बीच मुकाबले का जो ‘स्टेज’ तैयार होता नजर आ रहा है, उसमें मुद्दा गुरनाम सिंह, उनका व्यवहार और उनकी राजनीति को ही बनना है । केएस लूथरा ने बड़ी होशियारी से इस बात को लोगों के बीच बहस के केंद्र में लाने की तैयारी की है कि गुरनाम सिंह जब उनके जैसे व्यक्ति के साथ नहीं निभा सकते हैं, तो फिर किसके साथ निभा सकेंगे ?
गुरनाम सिंह दरअसल ‘डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा’ को वह हक और सम्मान नहीं दे सके, जिसके ‘डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा’ पूरी तरह हकदार थे । अंदर की बात जानने वालों का दावा है कि केएस लूथरा ने गुरनाम सिंह को झेलने की बहुत कोशिश की, लेकिन गुरनाम सिंह के तौर-तरीके जब हद से बाहर ही होते गये, तो अपने आत्मसम्मान को बचाये रखने की खातिर केएस लूथरा को उनकी गिरफ्त से बाहर आने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । केएस लूथरा को बदनाम करने में गुरनाम सिंह और उनके लोगों ने हालांकि कोई कसर नहीं छोड़ी है; लेकिन गुरनाम सिंह की बदकिस्मती है कि लोग उन्हें भी जानते हैं और केएस लूथरा को भी जानते हैं । इसलिए केएस लूथरा को कठघरे में खड़े करने की उनकी कोई भी तरकीब काम करती हुई नहीं दिख रही है । इसी कारण से, केएस लूथरा और शिव कुमार गुप्ता को लग रहा है कि गुरनाम सिंह का पहले जैसा जलवा अब नहीं रह गया है । लेकिन कई लोगों का मानना और कहना है कि केएस लूथरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी न करने देने के मामले में गुरनाम सिंह को भले ही मुँहकी खानी पड़ी हो, लेकिन चुनावी मुकाबले के मामले में गुरनाम सिंह को कमजोर समझना भूल होगी । यह बात तो सच है, लेकिन शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा का जैसा जो खुला और सक्रिय समर्थन मिल रहा है, उसके चलते विशाल सिन्हा के लिए मुश्किलें तो बढ़ गईं हैं ।