Friday, January 11, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की लड़ाई में नरेश गुप्ता के जरिये सत्ता खेमे के नेताओं ने सुरेश बिंदल को क्या 'पप्पू' बना दिया है

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता को आगे करके डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं ने एक तरफ विपक्षी नेताओं को तो दूसरी तरफ अलग होने की कोशिश करते दिख रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन को दबाव में ले लिया है । मजे की बात यह है कि दो दिन पहले दिल्ली के पूर्व गवर्नरों की मीटिंग में नरेश गुप्ता का नाम जिन सुरेश बिंदल ने आगे किया था, वही सुरेश बिंदल अपने लोगों के बीच नरेश गुप्ता को लेकर अपनी नापसंदगी व्यक्त कर रहे हैं । सुरेश बिंदल के कुछेक नजदीकी बता रहे हैं कि नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी सुरेश बिंदल के गले में ऐसी फँसी है जिसे सुरेश बिंदल के लिए न उगलते बन रहा है और न निगलते बन रहा है । उल्लेखनीय है कि सुरेश बिंदल ने पहले अपने क्लब के एस जयरमन का नाम आगे बढ़ाया था लेकिन किसी का समर्थन नहीं मिलने के कारण उन्हें मुहँकी खानी पड़ी । नेता बनने की कोशिश में सुरेश बिंदल ने तब लायंस क्लब दिल्ली प्रभात के प्रमोद अग्रवाल और देवेंद्र जैन को राजी करने का प्रयास किया । इन दोनों ने लेकिन इस झमेले में पड़ने से इंकार कर दिया । सुरेश बिंदल भी तब यह सोच कर चुप बैठ गए कि अभी उनकी किस्मत में 'डिस्ट्रिक्ट का नेता' बनना है नहीं । नरेश गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, यही वजह रही कि जब नरेश गुप्ता ने सुरेश बिंदल से उनका नाम आगे बढ़ाने के लिए कहा, तो सुरेश बिंदल ने साफ इंकार कर दिया । सुरेश बिंदल ने नरेश गुप्ता की सिफारिश करने वाले प्रभात क्लब के सदस्यों से कहा भी कि इसे कौन उम्मीदवार स्वीकार करेगा ? नरेश गुप्ता और उनके समर्थकों ने सुरेश बिंदल को किसी तरह बड़ी मुश्किल से इस बात के लिए राजी किया कि वह नरेश गुप्ता का नाम आगे तो बढ़ायें ।
सुरेश बिंदल ने पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग में बहुत ही बेमन से नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी की बात रखी । लेकिन वह यह देख कर हैरान रह गए कि मीटिंग में मौजूद सभी पूर्व गवर्नर्स ने नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति सकारात्मक रवैया ही दिखाया । सुरेश बिंदल के लिए चौंकने की बात यह रही कि सत्ता खेमे के मुखिया डीके अग्रवाल ने तो आगे बढ़ कर यह सुझाव भी दिए कि नरेश गुप्ता को किस तरह अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए काम करना चाहिए । सुरेश बिंदल जब तक माजरा समझते, तब तक नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी की बात पूर्व गवर्नर्स के बीच स्थापित हो चुकी थी । दरअसल उस मीटिंग में और किसी उम्मीदवार का नाम ही नहीं लिया गया । एक अकेले नरेश गुप्ता का नाम आया और किसी ने भी उनके नाम पर नकारात्मक रवैया नहीं दिखाया । नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर नकारात्मक बातें होना तो बाद में शुरू हुईं; और यह नकारात्मक बातें सुरेश बिंदल के प्रभाव वाले क्लब्स के लोगों की ही तरफ से ज्यादा आईं । अधिकतर लोगों को लगता है कि नरेश गुप्ता तो ज्यादा सक्रिय ही नहीं हैं; न वह डिस्ट्रिक्ट में लोगों को जानते/पहचानते हैं, और न लोग ही उन्हें जानते/पहचानते हैं - ऐसे में वह कैसे गवर्नर बन सकते हैं और कैसे और क्यों सुरेश बिंदल ने उनका नाम आगे बढ़ाया ।
नरेश गुप्ता की उम्मीदवारी से हतप्रभ लोगों को लगता है कि सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं ने बड़ी होशियारी से नरेश गुप्ता को तैयार करके सुरेश बिंदल के जरिये उनका नाम आगे बढ़वाया है; और इस तरह सत्ता खेमे के नेताओं ने नरेश गुप्ता के जरिये सुरेश बिंदल को 'पप्पू' बना दिया । सत्ता खेमे के सामने समस्या दरअसल यह है कि उनके पास 'अपना' कोई उम्मीदवार ही नहीं है । दूसरे लोगों के बीच सत्ता खेमे के उम्मीदवार के रूप में जिन ओंकार सिंह को देखा/पहचाना भी जा रहा है; सत्ता खेमे में ही उन्हें राकेश त्रेहन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है और यही बात उनके विरोध का कारण बनी हुई है । सत्ता खेमे में ओंकार सिंह से किसी को शिकायत नहीं है, लेकिन राकेश त्रेहन के नजदीक होना ही उनके लिए मुसीबत बन गया है । सत्ता खेमे के नेताओं की चिंता यह भी है कि राकेश त्रेहन कहीं विपक्षी खेमे के साथ मिल कर ओंकार सिंह को न नोमिनेट करवा लें - इसलिए उन्हें एक ऐसा उम्मीदवार चाहिए, जिसके नाम पर विपक्षी खेमा ऐतराज न व्यक्त कर सके । समझा जाता है कि इसी चाहत में उनकी निगाह नरेश गुप्ता पर पड़ी । कहने/दिखाने को तो नरेश गुप्ता विपक्षी खेमे के हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेता उन्हें विपक्षी खेमे में अपने 'आदमी' के रूप में देखते/पहचानते हैं । सत्ता खेमे के नेताओं ने जिस होशियारी के साथ नरेश गुप्ता को सुरेश बिंदल के गले में फँसाया है, उसके चलते सुरेश बिंदल अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि सत्ता खेमे के नेताओं ने अपनी इस चाल से अपने दोनों हाथों में पत्ते कर लिए हैं - उन्हें यदि नरेश गुप्ता के रवैये को लेकर कोई समस्या हुई तो वह यह कह/बता कर बच निकल सकते हैं कि उनकी उम्मीदवारी से सुरेश बिंदल ही बिदके हुए थे; और यदि उन्हें कोई बेहतर विकल्प नहीं मिला और वह नरेश गुप्ता को ही नोमिनेट करवाने के लिए मजबूर हुए तो सुरेश बिंदल के बिदकने की परवाह करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है । सत्ता खेमे के एक प्रमुख नेता ने इन पंक्तियों के लेखक से साफ कहा कि होगा वह जो 'वे' चाहेंगे; दूसरे लोगों का कहना लेकिन यह है कि मौटे तौर पर तो यह बात सच है कि होगा वही, जो 'वे' चाहेंगे लेकिन सत्ता खेमे के लोगों के बीच जिस तरह की उठा-पटक और विकल्पहीनता की स्थिति है उसे समझते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि 'वे' जो चाहेंगे उसे खुशी से चाहेंगे या मजबूरी में स्वीकार करेंगे ?