Tuesday, August 13, 2013

पवन बंसल कांड में सुनील गुप्ता के ‘पकड़े’ जाने के बाद, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के चुनावी खिलाडि़यों को चंडीगढ़ में अब दूसरे ठिकाने खोजने/बनाने होंगे क्या ?

चंडीगढ़ । रेलमंत्री के रूप में पवन बंसल की कारस्तानियों की पोल खुलने से इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल व नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के लिए चंडीगढ़ में वोट जुटाने की समस्या पैदा हो गई है । दरअसल पवन बंसल अकेले नहीं डूबे हैं, वह अपने साथ सुनील गुप्ता को भी ले डूबे हैं । सुनील गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, और पवन बंसल के साथ उनकी मिलीभगत के तथ्य सामने आये हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में सुनील गुप्ता की चंडीगढ़ में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में खासी धाक रही है । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नार्दर्न रीजन में  सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल के जिन उम्मीदवारों को चंडीगढ़ में वोट जुटाने होते हैं, उसके लिए सबसे पहले सुनील गुप्ता के यहाँ माथा टेकना जरूरी माना जाता रहा है । सुनील गुप्ता ने भी प्रायः किसी को निराश नहीं किया है । उनका ‘कारोबार’ दरअसल इतना फैला हुआ रहा है कि वह हर किसी की ‘मदद’ करने में समर्थ रहे हैं । कुछेक लोग हालाँकि कहते रहे हैं कि सुनील गुप्ता मदद नहीं करते, बल्कि मदद का झांसा देते हैं । अब सच चाहे जो हो, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में सुनील गुप्ता का जलवा तो रहा है और वह ‘दिखता’ भी रहा है । एसपी बबूटा की राजनीतिक दुर्गति होने के बाद तो सुनील गुप्ता का जलवा और बढ़ा ही - क्योंकि एसपी बबूटा की राजनीतिक दुर्गति के लिए सुनील गुप्ता को ही जिम्मेदार माना/पहचाना गया था, जिससे सुनील गुप्ता के राजनीतिक भाव और बढ़े ।
मजे की बात यह है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में एसपी बबूटा को आगे बढ़ाने का श्रेय भी सुनील गुप्ता को ही दिया जाता है । वर्ष 1996-97 में जब सुनील गुप्ता चंडीगढ़ ब्रांच के चेयरमैन थे, तो ब्रांच में सेक्रेटरी का पद एसपी बबूटा के पास ही था । एसपी बबूटा चंडीगढ़ ब्रांच में चेयरमैन वर्ष 2002-03 में बन पाये, जब सुनील गुप्ता ने दिलचस्पी ली । सुनील गुप्ता के दिलचस्पी लेने के बाद ही एसपी बबूटा नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने जा सके थे । एसपी बबूटा को जिन सुनील गुप्ता ने धूल से उठाया था, उन्हीं सुनील गुप्ता ने फिर वापस धूल में मिला दिया, तो इसका कारण सिर्फ यह रहा कि रीजनल काउंसिल में चुने जाने के बाद एसपी बबूटा ने चंडीगढ़ में सुनील गुप्ता की ‘जगह’ लेने की कोशिश की; अपनी इस कोशिश के कारण एसपी बबूटा को ऐसी बुरी मात खानी पड़ी कि उसके चलते उन्हें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति से बाहर ही हो जाना पड़ा । यह प्रसंग इसलिए और भी उल्लेखनीय है कि एसपी बबूटा चंडीगढ़ ब्रांच में जिस वर्ष सुनील गुप्ता से बर्चस्व की निर्णायक लड़ाई लड़ रहे थे, उसमें उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के तत्कालीन प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा का खुला समर्थन प्राप्त था, लेकिन फिर भी सुनील गुप्ता ने उनका ऐसा बाजा बजाया कि एसपी बबूटा के लिए खड़े रह पाना तक मुश्किल हो गया और अंततः उन्हें समर्पण के लिए ही मजबूर होना पड़ा । एसपी बबूटा से निपटने के लिए सुनील गुप्ता ने जो जाल बिछाया, उसमें चंडीगढ़ ब्रांच के अधिकतर पूर्व चेयरमैन सुनील गुप्ता के पक्ष में थे और एसपी बबूटा चंडीगढ़ में लगभग अकेले पड़ गये । एसपी बबूटा के उत्थान और पतन में सुनील गुप्ता की जो भूमिका थी, और इस भूमिका को उन्होंने जिस तरह निभाया उससे उनकी पहचान रॉबिनहुड जैसी बनी । उनकी इसी पहचान के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की राजनीति में दिल्ली का हर सूरमा चंडीगढ़ पहुँच कर सुनील गुप्ता के सामने भीगी बिल्ली ही बना नजर आता । सुनील गुप्ता भी हर किसी की मदद ‘करते’। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के चुनाव के समय चंडीगढ़ में जो हैसियत सुनील गुप्ता की होती है, वह चंडीगढ़ में और या दूसरे किसी शहर में और किसी को नसीब नहीं हुई है ।
लेकिन रेलमंत्री के रूप में पवन बंसल की कारस्तानियों के उजागर होने और पवन बंसल की कारस्तानियों में सुनील गुप्ता की मिलीभगत होने के तथ्यों ने सुनील गुप्ता की उक्त हैसियत के बने रहने पर सवाल खड़ा कर दिया है । चंडीगढ़ में सुनील गुप्ता के नजदीक रहे लोगों का ही कहना है कि सुनील गुप्ता ने बिजनेस का लालच देकर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपने साथ जोड़ा हुआ था, जिसमें अब उनके लिए मुश्किल आयेगी । इन्हीं नजदीकियों का कहना है कि सुनील गुप्ता के राजनीतिक लोगों से अच्छे कामकाजी संबंध रहे हैं, और अपने इन संबंधों के कारण वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के काम भी आते रहे हैं । किन्हीं किन्हीं मौकों पर वह जिस तरह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के काम आये हैं, उनके किस्से इस तरह प्रचारित हुए कि सुनील गुप्ता की छवि ‘पहुँच वाले’ और ‘काम आने वाले’ व्यक्ति की बनी । सुनील गुप्ता पर्दे के पीछे से पूरी राजनीति करते रहे, लेकिन पर्दे के सामने आने की उन्होंने कभी कोई खास कोशिश नहीं की - इसका नतीजा यह हुआ कि राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा रखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से उनका सीधा टकराव नहीं हुआ; और जब-जब उन्हें जरूरत हुई, चंडीगढ़ के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स नेता उनके साथ खड़े हुए । रेलमंत्री के रूप में पवन बंसल की कारस्तानियों की जो पोल खुली और पवन बंसल के साथ सुनील गुप्ता की मिली भगत के जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे सुनील गुप्ता को दो तरफा नुकसान हुआ है । एक तरफ तो पवन बंसल के खुले और छिपे कारोबार में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम दिलवाने की सुनील गुप्ता की हैसियत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा; और दूसरी तरफ चंडीगढ़ की राजनीति में पवन बंसल के जिन राजनीतिक विरोधियों के साथ सुनील गुप्ता के कारोबारी किस्म के संबंध थे, वह प्रभावित होंगे । दरअसल अभी तक चंडीगढ़ में यह तो जाना/पहचाना जाता था कि सुनील गुप्ता के पवन बंसल के साथ गहरे संबंध हैं, लेकिन इसका अंदाजा लोगों को नहीं था कि यह संबंध ‘कितने’ गहरे हैं । इस ‘गहराई’ का पवन बंसल के परिवार की कंपनियों में सुनील गुप्ता के ऑडीटर होने की बात से उतना अंदाजा नहीं लगता, जितना पवन बंसल के परिवार की कंपनियों में सुनील गुप्ता की पत्नी के डायरेक्टर होने के तथ्य के उजागर होने से लगता है । पवन बंसल के परिवार की कंपनियों में यदि सुनील गुप्ता की पत्नी को भी डायरेक्टर का पद मिला है, तो सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि पवन बंसल के खुले और ‘छिपे’ कारोबार में सुनील गुप्ता की किस हद तक की ‘हिस्सेदारी’ होगी ।
इस ‘हिस्सेदारी’ के खुलासे ने और पवन बंसल के गर्दिश में जाने के कारण सुनील गुप्ता पर चैतरफा मार पड़ी है । हालाँकि उनके नजदीकियों का कहना है कि सुनील गुप्ता के कई सत्ताधारी नेताओं के साथ नजदीकी और ‘कारोबारी’ संबंध हैं, इसलिए पवन बंसल कांड के कारण सुनील गुप्ता को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है । कुछेक अन्य लोगों का मानना और कहना लेकिन है कि ‘कारोबार’ संबंधी नुकसान सुनील गुप्ता को भले ही न हो, लेकिन इससे उनके राजनीतिक ऑरा (आभामंडल) पर प्रतिकूल असर अवश्य ही पड़ा है । चंडीगढ़ ब्रांच में सक्रिय और या रसूख रखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर अपने ऑरा का इस्तेमाल करते हुए चंडीगढ़ की चुनावी राजनीति में अपनी चैधराहट चला पाना सुनील गुप्ता के लिए अब आसान नहीं होगा । जो पोल खुली है, ऐसा नहीं है कि उसे कोई जानता नहीं था - सभी इन बातों को पहले से जानते थे; बल्कि जानते होने के कारण ही लोग सुनील गुप्ता के नजदीक थे, या नजदीक होना चाहते थे । पोल खुल जाने के बाद लेकिन उन्हीं लोगों का रवैया और समीकरण बदल जाता है । सुनील गुप्ता और उन पर आश्रित रहने वाले लोग इस बात को अच्छी तरह जानते/समझते हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स प्रोफेशन में यह आम बात भी है । एंट्री का काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ एंट्री का काम करने के कारण ही दूसरे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनके क्लाइंट्स जुड़े होते हैं, लेकिन आयकर विभाग की पकड़ में आने के बाद एंट्री का काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट से अभी तक काम कराने वाले उसके साथी तथा अन्य लोग बचने लगते हैं । यही कहानी सुनील गुप्ता के साथ है । पवन बंसल के साथ उनकी जो नजदीकी अभी तक उनके लिए वरदान बनी हुई थी, उस नजदीकी के पकड़ में आने के बाद वही नजदीकी अब उनके लिए अभिशाप बन गई है । सुनील गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना है कि सुनील गुप्ता ने ही इस बात का रोना रोया है कि उनके जिन दूसरे सत्ताधारियों के साथ संबंध हैं, अब वह सत्ताधारी उनके साथ संबंधों को लेकर सतर्क हो गये हैं ।
सुनील गुप्ता का क्या होगा - यह हालाँकि काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि पवन बंसल की कारस्तानियों की जांच.पड़ताल किस रास्ते पर जाती है, और उनका क्या होता है ? किंतु वह सब कारोबार संबंधी बातें हैं । हम यहाँ पवन बंसल की कारस्तानियों की पोल खुलने और पवन बंसल के साथ सुनील गुप्ता की मिलीभगत के तथ्य के ‘पकड़े’ जाने के कारण इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल व रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के लिए चंडीगढ़ में वोट जुटाने को लेकर पैदा हुई समस्या को समझने की कोशिश कर रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल और रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति के खिलाडि़यों का मानना और कहना है कि जो हुआ है उससे सुनील गुप्ता के कारोबार पर क्या फर्क पड़ेगा, यह तो वह जानें - लेकिन उनके राजनीतिक रसूख पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा । सुनील गुप्ता के लिए समस्या यह भी होगी कि वह अपने ‘कारोबार’ को संभाले या अपनी राजनीति को - ऐसे में, उनकी 'राजनीति' के ही पिछड़ने की ज्यादा संभावना है । इसका मतलब, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाडि़यों को चंडीगढ़ में अब दूसरे ठिकाने खोजने/बनाने पड़ेंगे क्या ?