Wednesday, August 7, 2013

केआर रवींद्रन को रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए हरी झंडी मिलने की खबर ने मनोज देसाई और भरत पांड्या के बीच होते दिख रहे रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को खासा दिलचस्प बना दिया है

मुंबई । अशोक महाजन को वर्ष 2015-16 के रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के चुनाव में केआर रवींद्रन से मिली पराजय ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की दशा और दिशा बदल दी है । अशोक महाजन की पराजय की खबर ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार मनोज देसाई के समर्थकों और शुभचिंतकों को राहत और खुशी पहुँचाई है, क्योंकि अशोक महाजन की इस पराजय से उनके बीच उम्मीद बनी है कि अशोक महाजन अब इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को प्रभावित नहीं कर पाएंगे । उल्लेखनीय है कि अशोक महाजन ने भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने का बीड़ा उठाया हुआ है और वह हर संभव हथकंडा अपना कर भरत पांड्या को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने के अभियान में लगे हुए हैं, और इस अभियान के संदर्भ में चले गए उनके कुछेक 'मूव' सफल भी हुए हैं । दरअसल उनके कुछेक 'मूव' के सफल हो जाने के कारण ही मनोज देसाई के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच निराशा और डर पैदा हो गया था । लेकिन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की दौड़ में अशोक महाजन के पिछड़ने की खबर ने उनकी निराशा और उनके डर को ख़त्म कर दिया है । मनोज देसाई के कई समर्थक और शुभचिंतक यह कहते हुए सुने गए हैं कि जो अशोक महाजन अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सके, वह दूसरे किसी को क्या चुनाव जितवायेंगे ? इस बात में दम भी है । रोटरी में अशोक महाजन की छवि और पहचान तिकड़म में माहिर एक चतुर नेता की है; और जिनके बारे में विश्वास किया जाता है कि काम कराना/निकालना उन्हें खूब आता है । लेकिन वर्ष 2015-16 के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों से अपने पक्ष में 'काम' कराने के मामले में उन्हें जो मात खानी पड़ी है, उसने उनके पक्ष में बने 'विश्वास' को ध्वस्त कर दिया है । अशोक महाजन के पक्ष में रोटरी में बने हुए 'विश्वास' के ध्वस्त होने से मनोज देसाई के समर्थकों व शुभचिंतकों में खुशी की लहर पैदा होना/बनना स्वाभाविक ही है ।
रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अशोक महाजन के समर्थन पर सवार भरत पांड्या के समर्थक व शुभचिंतक अशोक महाजन की पराजय को लेकिन एक भिन्न नजरिये से देख/पहचान रहे हैं - और अशोक महाजन की हार को मनोज देसाई के फायदे के रूप में देखने/समझने से इंकार कर रहे हैं । उनका कहना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अशोक महाजन ने इस बार अपनी उम्मीदवारी को बहुत गंभीरता से लिया ही नहीं था, और उन्होंने इस बार तो अपनी उम्मीदवारी सिर्फ इसलिए प्रस्तुत की थी ताकि अगली बार के लिए उनका दावा मजबूत हो सके । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर चूँकि सुशील गुप्ता और शेखर मेहता की 'नज़र' को भी देखा/पहचाना जा रहा है, इसलिए उन दोनों से आगे रहने/'दिखने' के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अशोक महाजन ने इस बार अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया था । इस तथ्य के सहारे अशोक महाजन और भरत पांड्या के समर्थक तर्क दे रहे हैं कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अशोक महाजन की पराजय के कोई मतलब नहीं निकालने चाहिए । उनके अनुसार, सच बल्कि यह है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए इस बार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके अशोक महाजन ने जो 'प्राप्त' करना चाहा था, उसे उन्होंने हासिल कर लिया है - और इस तरह अशोक महाजन ने एक बार फिर यह साबित किया है कि अपने 'लक्ष्य' प्राप्त करना उन्हें आता है । जो लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर भरत पांड्या को देखना चाहते हैं, उनके अनुसार इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अशोक महाजन को मिली हार वास्तव में उनकी जीत है - और इसलिए मनोज देसाई के समर्थकों व शुभचिंतकों को उनकी नसीहत है कि अशोक महाजन की हार का ढोल पीटकर खुश होने ही जरूरत नहीं है ।
अशोक महाजन के नजदीकियों का कहना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अशोक महाजन ने अपनी उम्मीदवारी को इसलिए भी गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि केआर रवींद्रन के साथ उनके न सिर्फ भरोसे के और सहयोग के संबंध रहे हैं, बल्कि रोटरी की खेमेबाजी में भी वह दोनों एक ही खेमे में हैं । देश में इस खेमे का नेतृत्व कर रहे राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के साथ दोनों के ही अच्छे और व्यवहार के संबंध हैं । वर्ष 2015-16 के प्रेसीडेंट पद के लिए जो 'लड़ाई' चल रही थी, उसमें राजा साबू खेमे की तरफ से अशोक महाजन कवरिंग उम्मीदवार के रूप में ही मैदान में थे । राजा साबू खेमे की तरफ से वर्ष 2015-16 के प्रेसीडेंट पद के लिए जो फील्डिंग सजाई गई थी, उसका मुख्य उद्देश्य केआर रवींद्रन को चुनवाना ही था । अशोक महाजन की उम्मीदवारी तो इसलिए प्रस्तुत करवाई गई थी कि कहीं किसी कारण से केआर रवींद्रन का काम बिगड़ा तो अशोक महाजन को आगे किया जायेगा । केआर रवींद्रन का काम चूँकि नहीं बिगड़ा, इसलिए अशोक महाजन के साथ वही हुआ जिसके होने की पहले से ही 'तैयारी' थी । अशोक महाजन के नजदीकियों के अनुसार, इसलिए वर्ष 2015-16 के प्रेसीडेंट पद पर केआर रवींद्रन के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने को अशोक महाजन की पराजय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए ।
अशोक महाजन और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनका समर्थन पा रहे भरत पांड्या तथ्यों व तर्कों का हवाला देकर चाहें कितना ही दावा क्यों न करें कि वर्ष 2015-16 के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए केआर रवींद्रन के चुने जाने को अशोक महाजन की पराजय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए - लेकिन मनोज देसाई के समर्थक और शुभचिंतक अशोक महाजन की इस 'हार' को उनके खेल के ख़त्म होने के रूप में ही देख/पहचान रहे हैं । उनका तर्क है कि राजनीति में तथ्यों से ज्यादा परसेप्शन (अवधारणा) का महत्व होता है - और परसेप्शन यही बन रहा है कि अशोक महाजन को वर्ष 2015-16 के प्रेसीडेंट पद के लिए दूसरों की तो छोड़िये, अपने लोगों से भी मदद नहीं मिली । वर्ष 2015-16 के प्रेसीडेंट पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में अशोक महाजन अपनी उम्मीदवारी के लिए कोई समर्थन नहीं पा सके, तो मनोज देसाई के समर्थकों व शुभचिंतकों के अनुसार इसका मतलब यही है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में फैसलों को प्रभावित कर सकने का उनका रुतबा खत्म हो चुका है और इसी को देखते हुए कहा जा सकता है कि रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में अशोक महाजन की कोई भी सक्रियता और तिकड़म काम नहीं करेगी । वर्ष 2015-16 के रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए केआर रवींद्रन को हरी झंडी मिलने की खबर ने मनोज देसाई और भरत पांड्या के बीच होते दिख रहे रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को खासा दिलचस्प बना दिया है ।