Saturday, August 31, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवार विक्रम शर्मा को बिना खाये-'पिये' लौटे लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है

नई दिल्ली । नरेश गुप्ता को आगे करके 30 अगस्त की शाम/रात को आयोजित हुई भाई-चारा मीटिंग में भाई-चारा कितना बना, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी तो वहाँ गए कई लोग इस बात का रोना रो रहे हैं कि उन्हें वहाँ न खाने को मिला और न 'पीने' को । वहाँ खिलाने-'पिलाने' की जिम्मेदारी किसकी थे, यह तो अधिकतर लोगों को नहीं पता - लेकिन खाना-'पीना' कम पड़ जाने के लिए लोगों ने कोसा विक्रम शर्मा को । इस भाई-चारा मीटिंग को चूँकि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित कसरत के रूप में देखा/पहचाना गया, इसलिए वहाँ गए लोगों ने माना/समझा कि उन्हें खिलाने-'पिलाने' की जिम्मेदारी विक्रम शर्मा की थी । वह जिम्मेदारी चूँकि ठीक से नहीं निभाई गई, इसलिए बदइंतजामी के लिए विक्रम शर्मा को ही जिम्मेदार ठहराया गया । भूखे-'प्यासे' लौटे कुछेक लोगों ने शिकायती स्वर में कहा भी कि विक्रम शर्मा के बस की जब बुलाये गए लोगों को खिलाना-'पिलाना' भी नहीं है, तो फिर वह उम्मीदवार क्यों बन रहे हैं ? विक्रम शर्मा की तरफ से लोगों को हालाँकि सफाई सुनने को मिली कि आयोजन में चूँकि उम्मीद से ज्यादा लोग आ गए थे, इसलिए खाना-'पीना' कम पड़ गया, लेकिन उनकी यह सफाई किसी के गले नहीं उतरी है ।
विक्रम शर्मा के लिए दोहरी मुसीबत की बात हुई । एक तरफ तो उन्हें बिना खाये-'पिये' लौटे लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ा, और दूसरी तरफ उन्हें राकेश त्रेहन की लताड़ सुननी पड़ी कि तुमने फलाँ-फलाँ लोगों को क्यों आमंत्रित कर लिया ? राकेश त्रेहन दरअसल उक्त मीटिंग में विरोधी खेमे के समझे जाने वाले कुछ लोगों की उपस्थिति से खासे भड़के हुए थे । राकेश त्रेहन ने समझा कि उन्हें विक्रम शर्मा ने आमंत्रित किया होगा, सो उनकी उपस्थिति से गुस्साये राकेश त्रेहन ने अपना गुस्सा विक्रम शर्मा पर निकाला । विक्रम शर्मा ने लेकिन यह बता कर उनसे अपनी जान बचाई कि जिन लोगों को मीटिंग में उपस्थित देख कर वह भड़के हुए हैं, उन्हें उन्होंने आमंत्रित नहीं किया था, बल्कि नरेश गुप्ता ने आमंत्रित किया था । यह सुन कर राकेश त्रेहन ने नरेश गुप्ता के लिए भी फटकारने वाली बातें कहीं - कि नरेश को पता नहीं कब अकल आयेगी, राजनीति तो बिलकुल समझता ही नहीं है । राकेश त्रेहन ने यह बात नरेश गुप्ता से कहीं या नहीं - यह पता नहीं चल पाया है ।
नरेश गुप्ता के अपने ग्रुप के नेताओं के साथ बड़े दिलचस्प किस्म के संबंध हैं - दोनों साथ भी हैं और एक-दूसरे से 'दुखी' भी रहते हैं । नरेश गुप्ता के दुखी होने का कारण यह है कि उनके ग्रुप के नेताओं ने उन्हें अपना मुखबिर समझ रखा है और वे उनसे हमेशा यही पूछते रहते हैं कि 'दूसरी तरफ' के लोग क्या कह रहे थे ? नरेश गुप्ता के ग्रुप के नेता डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में गये तो नहीं थे, लेकिन उनका मन और उनके कान लगे वहीं थे - वह नरेश गुप्ता को बार-बार फोन कर कर के पूछ रहे थे - कितने लोग आये हैं ? कौन-कौन आया है ? कौन किसके साथ ज्यादा देर बैठा ? कौन किसके साथ कम देर बैठा ? किसको ज्यादा तवज्जो मिल रही है ? किसको कम तवज्जो मिल रही है ? फलाँने ने क्या कहा ? फलाँने ने जो कहा, उस पर ढिकाँने ने क्या कहा ? आदि-इत्यादि । दिल्ली में बैठे नेताओं के इस तरह के सवालों के जबाव देते-देते नरेश गुप्ता कई बार बुरी तरह झल्लाए भी और किसी किसी से उन्होंने कहा भी कि इन नेताओं ने तो उन्हें अपना अपना मुखबिर समझ लिया है । नरेश गुप्ता के ग्रुप के नेताओं को जब भी पता चलता कि वह 'दूसरी तरफ' के किसी व्यक्ति से मिले हैं तब ही नरेश गुप्ता पर अलग-अलग नेताओं की तरफ से सवालों की बौछार होने लगती कि क्या बात हुई ? क्या कहा ? क्या पूछा ? नरेश गुप्ता से उनके ग्रुप के लोगों के दुखी होने/रहने का कारण यही है कि वह 'दूसरी तरफ' के लोगों के साथ दोस्ती भी बनाये हुए हैं और उनकी पूरी बात उन्हें बताते भी नहीं हैं । राकेश त्रेहन इस बात को लेकर नरेश गुप्ता से बुरी तरह खफा हुए कि 30 अगस्त की भाई-चारा मीटिंग के निमंत्रण नरेश गुप्ता ने 'दूसरी तरफ' के कई लोगों को दे दिए ।
30 अगस्त की भाई-चारा मीटिंग के अचानक से आयोजित होने का कारण भी खासा मजेदार रहा । यह मीटिंग दरअसल 26 अगस्त को 'दूसरी तरफ' के लोगों द्धारा आयोजित हुई भाई-चारा मीटिंग का जबाव देने की कोशिश के रूप में आयोजित हुई । उल्लेखनीय है कि 26 अगस्त को दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया । विजय शिरोहा का जन्मदिन मनाने वालों ने होशियारी यह की कि यह आयोजन उन्होंने भाई-चारा मीटिंग के नाम पर किया । दिल्ली को अपना 'इलाका' मानने वाले नेताओं को ऐन मौके पर जब पता चला कि उनके 'इलाके' में विजय शिरोहा का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा है, तो उनका तो धुआँ निकल गया । आनन-फानन में उन्होंने दो काम तय किये - एक के तहत उन्होंने लोगों को रोकने की कोशिश की कि वह विजय शिरोहा के जन्मदिन समारोह में न जायें और दूसरा काम उन्होंने यह किया कि 30 अगस्त का अपना भाई-चारा कार्यक्रम घोषित कर दिया ।
उनकी मेहनत रंग भी लाई - संख्या-बल के हिसाब से देखें तो 30 अगस्त के आयोजन में 26 अगस्त के आयोजन के मुकाबले ज्यादा लोग जुटे । 30 अगस्त के कार्यक्रम के आयोजक इस बात पर इतरा भी सकते हैं और यह दावा कर सकते हैं कि दिल्ली में उनके साथ ज्यादा लोग हैं - लेकिन यह दावा उन्होंने पिछले चुनाव में भी किया था और इस दावे को साबित करके भी दिखाया था, किन्तु फिर भी उनका उम्मीदवार चुनाव हार गया था । इसलिए दावा अपनी जगह और उसका 'नतीजा' अपनी जगह ! 30 अगस्त के कार्यक्रम के आयोजकों को इस बात की तसल्ली तो है कि उनके यहाँ ज्यादा लोग जुटे; लेकिन जुटे लोगों में से कई बिना खाये-'पिये' लौटने के कारण उन्हें जिस तरह कोस रहे हैं और उनके संभावित उम्मीदवार विक्रम शर्मा को लेकर जिस तरह की नकारात्मक बातें कर रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि ज्यादा लोगों को जुटा लेने का अब भी उन्हें कोई फायदा नहीं मिला है ।