Tuesday, December 25, 2012

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की खाली हुई कुर्सी को भरने का मामला कहीं राकेश त्रेहन और विजय शिरोहा के बीच के झगड़े का शिकार तो नहीं बनेगा ?

नई दिल्ली । सुभाष गुप्ता के आकस्मिक निधन से खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को भरने के लिए डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में हलचल तेज हो गई है । इस हलचल में खेमों की दीवारें टूटती हुई सी दिख रही हैं और नई खेमेबाजियाँ आकार लेती हुई नजर आ रही हैं । हालांकि अभी कुछ भी पक्के तौर पर कहना संभव नहीं है, लेकिन तेजी से घटते हुए घटनाचक्र में कई बातें ऐसी हो रही हैं जिनके होने के कई.कई अर्थ लगाये जा रहे हैं - और उन अर्थों के भरोसे नए समीकरणों को बनते-बिगड़ते देखा जा रहा है । नए समीकरणों की बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस हलचल ने कई दबे-ढके झगड़ों को पुनः सतह पर ला दिया है | ऊपर से साथ-साथ दिखने वाले चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर के बीच नेतृत्व की होड़ का मामला हो; या रोहतक मीटिंग की सफलता के बाद इन दोनों का राजिंदर बंसल से खतरा महसूस करने का मुद्दा हो; या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन से तनातनी की घटनाओं के बाद फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा का रोहतक मीटिंग में जाना और फिर वहाँ वाह-वाही लूटने का किस्सा हो; या चंद्रशेखर मेहता के साथ राकेश त्रेहन की नजदीकियों की कहानियाँ हों - खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को भरने के लिए होने वाली जोड़-तोड़ में यह सब बातें अचानक से महत्वपूर्ण हो उठी हैं ।
खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को भरने के लिए होने वाली जोड़-तोड़ में कुछेक लोगों को राकेश त्रेहन के साथ नजदीकी के चलते चंद्रशेखर मेहता की भूमिका महत्वपूर्ण लग रही है, तो कुछेक लोगों को राजिंदर बंसल और विजय शिरोहा के बीच बढ़ती ‘दिखती’ नजदीकी में एक अलग खिचड़ी के पकने की ‘खुशबू’ महसूस हो रही है । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि चंद्रशेखर मेहता के साथ राकेश त्रेहन की नजदीकी को राकेश त्रेहन के साथी नेताओं ने कभी भी ऐप्रीशियेट नहीं किया - और उनकी नजदीकी को हमेशा ही संशय के साथ देखा/पहचाना है; लेकिन फिर भी राकेश त्रेहन ने चंद्रशेखर मेहता के साथ अपनी नजदीकी को न सिर्फ बनाये रखने पर, बल्कि किसी न किसी रूप में उसे ‘दिखाते’ रहने पर भी जोर दिया है । कुछेक लोगों को लगता है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की खाली जगह को भरने के मामले में सारा खेल चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन के हाथ में है, इसलिए उनकी मदद से चंद्रशेखर मेहता अपना काम बना लेंगे । चंद्रशेखर मेहता अपना काम बना लेंगे या नहीं बना लेंगे - यह तो बाद में पता चलेगा; काम बना लेने की चर्चाओं के बीच अभी केएल खट्टर को ही यह बात पसंद नहीं आ रही है कि चंद्रशेखर मेहता इस मामले में नाहक ही नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं । इन दोनों के बीच नेतृत्व को लेकर जो होड़ है, वह इस मामले के कारण और मुखर हो गई है । केएल खट्टर का कहना है कि चंद्रखेखर मेहता कर कुछ भी नहीं पायेंगे, इस तरह की बातें उड़वा कर बस अपने आप को चर्चा में बनाये रखेंगे । मजे की बात यह है कि एक तरफ तो यह दोनों आपस में लड़ रहे हैं, और दूसरी तरफ इन्हें राजिंदर बंसल और विजय शिरोहा के बीच बढ़ती नजदीकी में अपने लिए खतरा नजर आ रहा है ।
रोहतक में राजिंदर बंसल की पहल पर आयोजित डिस्ट्रिक्ट के ‘हरियाणवी’ नेताओं की मीटिंग में विजय शिरोहा ने जिस तरह से वाह-वाही लूटी, उसे देख कर चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर के तो होश ही उड़ गये हैं । उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि राजिंदर बंसल ने ‘अपने मंच’ पर विजय शिरोहा को इतनी महत्ता क्यों दी कि कार्यक्रम की सारी रौनक विजय शिरोहा लूट ले गये । चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर को इसके पीछे राजिंदर बंसल और विजय शिरोहा के बीच कुछ खिचड़ी पकने की महक आ रही है । इस महक के प्रभाव में रहते हुए, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खाली पद को भरने के लिए आरके शाह की सक्रियता के बारे में जानते/सुनते हुए चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर को कुछ ज्यादा ही बेचैनी होने लगी है । पहले विजय शिरोहा को तवज्जो देकर और फिर आरके शाह को आगे करके राजिंदर बंसल ने हरियाणवी नेताओं के बीच तो अपना कद बढ़ा ही लिया है - क्योंकि उन्होंने दिखा दिया है कि उनके पास योजना भी है; योजना को क्रियान्वित करने का हुनर भी है; और मौका आने पर आगे बढ़ाने के लिए उम्मीदवार भी है । चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर के पास सिर्फ बातें ही बातें हैं । विजय शिरोहा के साथ राजिंदर बंसल की बढ़ती नजदीकी में चंद्रशेखर मेहता और केएल खट्टर को इसलिए खतरा नजर आ रहा है क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन के साथ विजय शिरोहा की तनातनी की खबरें अब आम हैं और डिस्ट्रिक्ट के बाहर भी सुनी/बताई जाती हैं । ऐसे में, कई एक लोगों को आशंका है कि चुनावी खेमेबाजी कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को आगे करके तो नए समीकरण नहीं बनायेगी । सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं का हालाँकि दावा है कि राकेश त्रेहन और विजय शिरोहा के बीच के झगड़े को सुलझा लिया गया है, और दोनों के बीच के झगड़े को इस्तेमाल करके सत्ता खेमे में फूट डालने का सपना देखने वाले लोगों को निराशा ही हाथ लगेगी ।
सत्ता खेमे के नेताओं ने यह दावा कर तो दिया है लेकिन उन्हें भी पता है कि इसे पूरा करना उनके लिए आसान नहीं है । दरअसल इसीलिए सत्ता खेमे की तरफ भी, खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अभी किसी नाम पर सहमति बनना तो दूर, आपस में विचार.विमर्श भी नहीं हुआ है । दरअसल, हर कोई एक दूसरे की तरफ देख रहा है कि कौन किसका नाम लाता है और क्यों लाता है ? राकेश त्रेहन और विजय शिरोहा के बीच की तनातनी ने खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी के लिए होने वाले ‘चुनाव’ को सत्ता खेमे के लिए एक बड़ी चुनौती बना दिया है । चुनौती इसलिए क्योंकि सत्ता खेमे के नेता भी जानते और मानते हैं कि राकेश त्रेहन और विजय शिरोहा के बीच किसी बड़े मुद्दे को लेकर झगड़ा नहीं है, बल्कि बहुत छोटी-छोटी बातों का बखेड़ा भर है - लेकिन यदि छोटी-छोटी बातें बड़ा बखेड़ा खड़ा कर सकती हैं तो फिर उस बखेड़े के कारण पैदा हुआ परस्पर अविश्वास और अपनी.अपनी चलाने की जिद खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को भरने के मामले में क्या-क्या नजारे पेश कर सकती है ? यह बात तब और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब खाली हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को भरने के मामले में पैसे देने-लेने की चर्चाएँ भी सुनी/बताई जा रही हैं । सत्ता खेमे के नेताओं के सामने एक चुनौती यह भी है कि उन्होंने ‘दिल्ली के’ इस मामले को यदि होशियारी से हल नहीं किया तो फिर डर यह है कि कहीं ‘हरियाणा का’ मामला भी उनके हाथ से न निकल जाये । सत्ता खेमे के नेताओं को ‘हरियाणा के’ संभावित उम्मीदवार संजय खन्ना ने जिस तरह से छकाया हुआ है, उसके कारण ‘हरियाणा का’ मामला उनके लिए पहले से ही परेशानी का सबब बना हुआ है । अचानक से पैदा हो गये ‘दिल्ली के’ मामले ने सत्ता खेमे के नेताओं को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने/करने का हालांकि एक बड़ा मौका दे दिया है - लेकिन इस मौके के साथ बनी परिस्थितियों ने उनके सामने यह खतरा भी पैदा कर दिया है कि ‘यहाँ’ से आगे का रास्ता उन्हें बढ़ा भी सकता है और घटा भी सकता है । सत्ता खेमे के नेता भी समझ रहे हैं और मान रहे हैं कि ‘दिल्ली के’ मामले को हल करने में उन्होंने जरा सा भी चूक की, तो ‘हरियाणा का’ मामला उनके हाथ से निकलने में देर नहीं लगेगी । सत्ता खेमे के नेताओं की खुशकिस्मती सिर्फ इतनी ही है कि उन्हें फँसाने/गिराने को लेकर विरोधी खेमे के नेताओं में एका नहीं है - विरोधी खेमे के नेता हालाँकि अपने-अपने स्तर पर मौके का फायदा उठाने की कोशिश में जरूर लगे हुए हैं, और सीमित दायरे में सफलता पाने की तरफ बढ़ने का आभास भी दे रहे हैं । जाहिर है कि सत्ता खेमे के सामने दोहरी चुनौती है - एक चुनौती उन्हें विरोधी खेमे के नेताओं से मिल रही है; और दूसरी चुनौती उन्हें अपने आपस के अंतर्विरोधों से, आपस के अविश्वासों व अपनी-अपनी जिदों से मिल रही है ।