Tuesday, December 18, 2012

सुरेश जैन के यह स्वीकार करने के साथ ही कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को पर्याप्त समर्थन नहीं मिला है, जेके गौड़ की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद की चुनावी जीत का रास्ता साफ हुआ

नई दिल्ली । सुरेश जैन के सुधीर मंगला को मिले समर्थन की सच्चाई को जान/समझ लेने के साथ ही वह हुआ जिसकी तथ्यपूर्ण ठोस संभावना 'रचनात्मक संकल्प' में लगातार व्यक्त की जाती रही थी । उल्लेखनीय है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश जैन को सुधीर मंगला के समर्थन में उस समय से बताया/देखा/पहचाना जा रहा था जिस समय में, बाद में सुधीर मंगला के समर्थन में आये नेता लोग सुधीर मंगला को चुनावी दौड़ में कहीं भी नहीं देख/पहचान रहे थे । सुधीर मंगला जब चुनावी दौड़ में शामिल होते हुए-से दिखे तब तीन सदस्यीय चुनावी कमेटी के एक सदस्य होने के नाते से सुरेश जैन की सुधीर मंगला के प्रति समर्थन की बात खासी महत्वपूर्ण हो उठी । सुरेश जैन की भूमिका तब और महत्वपूर्ण हो गई जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद का चुनाव डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के दो खेमों के झगड़े में बदलता हुआ दिखा । गौर करने की बात है कि पिछले कुछ दिनों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के चुनाव के बहाने से पूर्व गवर्नर नेताओं ने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली थी - रंग बदलने में गिरगिट को भी मात देने वाले मुकेश अरनेजा और मुहावरे की भाषा में 'थूक कर चाटने वाले' रमेश अग्रवाल ने जैसे ही जेके गौड़ की चुनावी स्थिति को मजबूत पाया, जेके गौड़ की उम्मीदवारी का झंडा लपक लिया । डिस्ट्रिक्ट में बनी मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की बदनामी का फायदा उठाने के उद्देश्य से मंजीत साहनी ने सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का झंडा थाम लिया । मुकेश अरनेजा और मंजीत साहनी की इस पोजीशनिंग ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी के चुनाव को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव की रिहर्सल में बदल दिया । मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर यश पाल दास की एंट्री ने इस रिहर्सल को और व्यापक बना दिया । यश पाल दास की एंट्री के बाद, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति के दूसरे खिलाड़ियों के लिए डिस्ट्रिक्ट 3010 की चुनावी राजनीति से दूर 'दिखना' मुश्किल हो गया और फिर वह भी इस लड़ाई में कूद पड़े ।
पिछले दो-तीन दिनों में तेजी से घटे घटना चक्र में पहले तो यह माहौल बनता हुआ नजर आया कि यश पाल दास डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के चुनाव के झगड़े को सुलटायेंगे, लेकिन फिर जल्दी ही दूसरे इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता का नजरिया सुनने को मिला कि रोटरी के बड़े नेताओं को इस तरह के झगड़ों में पार्टी नहीं बनना चाहिए । शेखर मेहता के इस नजरिये के साथ पार्टी बनने की खबर मिलते ही यश पाल दास ने अपने बढ़े हुए क़दमों को पीछे खींच लिया । शेखर मेहता के इस नजरिये ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के चुनाव को झगड़े में फँसाने की कोशिश करने वाले लोगों को तगड़ा झटका दिया और वह एकदम से शांत हो गए । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी की आड़ में राजनीति करने का जुगाड़ देखने वाले नेताओं के लिए सच्चाई को अनदेखा करना संभव नहीं रह गया । रिकॉर्ड पर जो चीजें थीं उन्हें देख/जान कर सुधीर मंगला के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले सुरेश जैन ने भी समझ लिया कि सुधीर मंगला उतना समर्थन सचमुच नहीं जुटा सके हैं, जितने समर्थन की जरूरत थी - और तब उन्होंने भी जेके गौड़ की चुनावी जीत की घोषणा पर मुहर लगाने में देर नहीं की ।
'रचनात्मक संकल्प' में लगातार कहा जाता रहा है कि सुधीर मंगला को अपने तथाकथित समर्थक नेताओं का ही समर्थन नहीं मिला । मंजीत साहनी का ही उदहारण लें - तो हर कोई मानता और जानता है कि मंजीत साहनी यदि सचमुच सुधीर मंगला की मदद करना चाहते तो वह पाँच-छह क्लब्स का समर्थन तो आराम से दिलवा सकते थे, लेकिन उन्होंने अंतिम समय तक जिस तरह से असमंजस बनाये रखा - उससे साफ हुआ कि सुधीर मंगला की उम्मीदवारी का झंडा थामने के बावजूद उनका उद्देश्य सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए कुछ करना नहीं था; वह तो बस अपने आप को एक खेमे का नेता दिखाना चाहते थे । समर्थन और सहयोग जेके गौड़ को भी अपने तथाकथित समर्थक नेताओं से नहीं मिला । जेके गौड़ की चुनावी जीत का श्रेय लेने की होड़ में आगे दिखने की कोशिश करने वाले मुकेश अरनेजा के बारे में कौन नहीं जानता कि जेके गौड़ की उम्मीदवारी को रोकने के लिए मुकेश अरनेजा ने ही आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करवाया था और जेके गौड़ को हतोत्साहित करने के उद्देश्य  से आलोक गुप्ता के गले में बाहें डाल कर लोगों के सामने घूमा करते थे । सिर्फ इतना ही नहीं, नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला होने से ठीक एक दिन पहले ही मुकेश अरनेजा ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरीश मल्होत्रा से डॉक्टर सुब्रा के समर्थन में फैसला करवाने को लेकर बात की थी । लेकिन जब नोमीनेटिंग कमेटी में जेके गौड़ का पलड़ा भारी दिखा तो मुकेश अरनेजा ने यह सूँघने में देर नहीं की कि जेके गौड़ के साथ होने में ही फायदा है ।
इस बार के चुनाव से एक बार फिर साबित हुआ है कि चुनाव में नेता लोग काम नहीं आते - जितना आते भी हैं मजबूरी में ही आते हैं; काम अपनी ही सक्रियता और अपना ही व्यवहार आता है । जेके गौड़ की चुनावी जीत उनकी अपनी सक्रियता, उनके अपने व्यवहार और चुनावी समीकरणों को अपने अनुकूल करने की उनकी अपनी तत्परतापूर्ण पहल का ही नतीजा है । जेके गौड़ की उम्मीदवारी को लेकर हर छोटा-बड़ा नेता जिस तरह की बातें करता रहा है, उन्हें याद करते और ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि जेके गौड़ की चुनावी जीत ने बड़बौले नेताओं को बौना साबित किया है ।