नई दिल्ली । नवीन गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जितवाने के लिए
उनके पापा ने तो दिन-रात एक किया हुआ है, लेकिन नवीन गुप्ता को काउंसिल की
मीटिंग में शामिल होना ही पसंद नहीं है । नवीन गुप्ता के पापा एनडी
गुप्ता से पूछा जाना चाहिए कि उनके बेटे को जब काउंसिल की मीटिंग्स में कोई
दिलचस्पी ही नहीं है और काउंसिल की मीटिंग्स में शामिल होना वह जरूरी नहीं
समझते हैं तो उन्हें काउंसिल में चुनवाने को लेकर वह इतना परेशान क्यों हो
रहे हैं ? एनडी गुप्ता इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट रह चुके हैं; इस
लिहाज से उनसे इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह अपने बेटे को काउंसिल
की मीटिंग्स में उपस्थित रहने की आवश्यकता और अहमियत बताते/समझाते । काउंसिल
की मीटिंग्स में उपस्थिति को लेकर नवीन गुप्ता का जो रिकार्ड है, उसे देख
कर लगता है कि या तो उनके पापा ने उन्हें मीटिंग्स में उपस्थित होने की
आवश्यकता और अहमियत बताई नहीं है और या पापा के बताये जाने के बावजूद
उन्होंने उसे एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया है । यही कारण है कि फरवरी 2010 से जून 2012 के बीच काउंसिल की कुल हुईं 15 मीटिंग्स में से नवीन गुप्ता नौ मीटिंग्स में गायब रहे ।
'रचनात्मक संकल्प' के पास फरवरी 2010 से जून 2012 के बीच हुईं 15 मीटिंग्स का ब्यौरा है । नवीन गुप्ता इनमें से कुल छह मीटिंग्स में उपस्थित हुए । इन 15 में से जो 5 मीटिंग्स वर्ष 2011 तथा 2012 में हुईं हैं, उनमें से तो एक में भी नवीन गुप्ता शामिल नहीं हुए । यह जान कर हो सकता है कि उन लोगों की नाराजगी कुछ कम हो जाये, जिन्हें शिकायत रही है कि नवीन गुप्ता उनके फोन तक नहीं उठाते हैं और जरूरत पड़ने पर जिनसे संपर्क करना तक मुश्किल होता है । इस तरह की शिकायत रखने वाले लोगों को संतोष हो सकता है कि नवीन गुप्ता को जब काउंसिल की मीटिंग्स में शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं है तो उनके फोन उठाने में वह क्यों दिलचस्पी लें ? नवीन गुप्ता को पूरा हक़ है कि वह किसी के फोन न उठाये और काउंसिल की मीटिंग्स में शामिल न हों - लेकिन तब उन्हें और उनके पापा को लोगों को यह तो बताना ही चाहिए न कि उन्हें काउंसिल के लिए दोबारा क्यों चुना जाये ? स्कूल-कॉलिज तक में नियम है कि उपस्थिति कम होने पर छात्र को परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाता है । लेकिन इन बाप-बेटे ने इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की हैसीयत ऐसी बना दी है कि इसे स्कूल-कॉलिज से भी गई-बीती हालत में पहुँचा दिया है ।
इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की ऐसी दशा करने के लिए अकेले यही बाप-बेटे जिम्मेदार नहीं हैं - कुछेक दूसरे काउंसिल सदस्यों का रिकॉर्ड भी नवीन गुप्ता से कुछ ही बेहतर है । संदर्भित 15 मीटिंग्स में चरनजोत सिंह नंदा कुल आठ में और पंकज त्यागी नौ में उपस्थित रहे । विनोद जैन ग्यारह मीटिंग्स में उपस्थित हुए, जबकि संजय वॉयस ऑफ सीए अग्रवाल का 13 उपस्थिति के साथ रिकॉर्ड सबसे अच्छा रहा । अमरजीत चोपड़ा भी 13 मीटिंग्स में उपस्थित रहे । काउंसिल की मीटिंग्स का इस कारण से महत्त्व होता है कि उनमें खास मुद्दों पर विचार-विमर्श होता है जिनके आधार पर नीतिगत फैसले होते हैं । काउंसिल की मीटिंग्स में उपस्थिति के मामले में फिसड्डी रहने के बावजूद अपनी सदस्यता को बचाये रखने के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि वह जब काउंसिल की मीटिंग्स में उपस्थित रहना जरूरी नहीं समझते हैं तो उन्हें फिर से क्यों चुना जाये ?
'रचनात्मक संकल्प' के पास फरवरी 2010 से जून 2012 के बीच हुईं 15 मीटिंग्स का ब्यौरा है । नवीन गुप्ता इनमें से कुल छह मीटिंग्स में उपस्थित हुए । इन 15 में से जो 5 मीटिंग्स वर्ष 2011 तथा 2012 में हुईं हैं, उनमें से तो एक में भी नवीन गुप्ता शामिल नहीं हुए । यह जान कर हो सकता है कि उन लोगों की नाराजगी कुछ कम हो जाये, जिन्हें शिकायत रही है कि नवीन गुप्ता उनके फोन तक नहीं उठाते हैं और जरूरत पड़ने पर जिनसे संपर्क करना तक मुश्किल होता है । इस तरह की शिकायत रखने वाले लोगों को संतोष हो सकता है कि नवीन गुप्ता को जब काउंसिल की मीटिंग्स में शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं है तो उनके फोन उठाने में वह क्यों दिलचस्पी लें ? नवीन गुप्ता को पूरा हक़ है कि वह किसी के फोन न उठाये और काउंसिल की मीटिंग्स में शामिल न हों - लेकिन तब उन्हें और उनके पापा को लोगों को यह तो बताना ही चाहिए न कि उन्हें काउंसिल के लिए दोबारा क्यों चुना जाये ? स्कूल-कॉलिज तक में नियम है कि उपस्थिति कम होने पर छात्र को परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाता है । लेकिन इन बाप-बेटे ने इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की हैसीयत ऐसी बना दी है कि इसे स्कूल-कॉलिज से भी गई-बीती हालत में पहुँचा दिया है ।
इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की ऐसी दशा करने के लिए अकेले यही बाप-बेटे जिम्मेदार नहीं हैं - कुछेक दूसरे काउंसिल सदस्यों का रिकॉर्ड भी नवीन गुप्ता से कुछ ही बेहतर है । संदर्भित 15 मीटिंग्स में चरनजोत सिंह नंदा कुल आठ में और पंकज त्यागी नौ में उपस्थित रहे । विनोद जैन ग्यारह मीटिंग्स में उपस्थित हुए, जबकि संजय वॉयस ऑफ सीए अग्रवाल का 13 उपस्थिति के साथ रिकॉर्ड सबसे अच्छा रहा । अमरजीत चोपड़ा भी 13 मीटिंग्स में उपस्थित रहे । काउंसिल की मीटिंग्स का इस कारण से महत्त्व होता है कि उनमें खास मुद्दों पर विचार-विमर्श होता है जिनके आधार पर नीतिगत फैसले होते हैं । काउंसिल की मीटिंग्स में उपस्थिति के मामले में फिसड्डी रहने के बावजूद अपनी सदस्यता को बचाये रखने के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि वह जब काउंसिल की मीटिंग्स में उपस्थित रहना जरूरी नहीं समझते हैं तो उन्हें फिर से क्यों चुना जाये ?