Thursday, December 27, 2012

विनोद बंसल ने रंजन ढींगरा के जरिये मंजीत साहनी को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव से 'बाहर' करने की रणनीति बनाई

नई दिल्ली । मंजीत साहनी को इंटरनेशनल डायरेक्टर का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव से बाहर रखने के लिए रंजन ढींगरा को आगे करने की जो चाल विनोद बंसल ने चली है, उसके कारण उक्त नोमीनेटिंग कमेटी का चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । उल्लेखनीय है कि इस चुनाव में मंजीत साहनी को पहले कोई रूचि नहीं थी, लेकिन फिर अचानक से उन्हें इस चुनाव की होड़ में शामिल देखा जाने लगा । माना/समझा गया कि उन्हें ऊपर के नेताओं से इसके लिए इशारा और समर्थन का भरोसा मिला होगा । यही मानने/समझने के चलते नोमीनेटिंग कमेटी के लिए मंजीत साहनी की उम्मीदवारी को गंभीरता के साथ देखा/पहचाना जाने लगा । चुनावी राजनीति के समीकरणों को समझने/पहचानने वाले लोगों ने भी मान लिया कि मंजीत साहनी उम्मीदवार हुए तो चुनावबाज मुकेश अरनेजा भी उम्मीदवार बने रहने का दम नहीं बनाये रख पायेंगे और मंजीत साहनी निर्विरोध ही चुन लिए जायेंगे । लेकिन विनोद बंसल के एक 'राजनीतिक' स्ट्रोक ने इस संभावना के घुर्रे उड़ा दिए हैं ।
मंजीत साहनी के निर्विरोध चुने जाने की संभावना में रूकावट पैदा करने के उद्देश्य से विनोद बंसल ने बड़ी होशियारी से नोमीनेटिंग कमेटी के लिए रंजन ढींगरा की वकालत शुरू कर दी । विनोद बंसल की होशियारी यह रही कि उन्होंने भाँप लिया कि वह यदि मंजीत साहनी की उम्मीदवारी का सिर्फ विरोध करेंगे तो उनकी बात कोई नहीं सुनेगा और वह सफल नहीं होंगे, और कि वह रंजन ढींगरा को आगे करके ही मंजीत साहनी का 'शिकार' कर सकते हैं । इसी समझ के साथ, विनोद बंसल ने काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों में मंजीत साहनी के विरोधियों की पहचान करते हुए चर्चा चलाई कि मंजीत साहनी का समर्थन करने को लेकर कुछेक लोगों को ऐतराज है, इसलिए उनके नाम पर सहमति बनना मुश्किल है; लेकिन रंजन ढींगरा के नाम पर सहमति बनाई जा सकती है । विनोद बंसल ने तर्क दिया कि रंजन ढींगरा चूँकि पिछली बार नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव हार गए थे, इसलिए इस बार उन्हें चुन लिए जाने पर सहमति बनाई जा सकती है । मजे की बात यहाँ यह है कि रंजन ढींगरा की उम्मीदवारी के प्रति सहमति बनाये जाने की कोई वकालत या कोशिश विनोद बंसल ने उस समय तक बिलकुल भी नहीं की थी, जब तक कि मंजीत साहनी ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं की थी । उस समय तो वह रंजन ढींगरा के लिए समर्थन जुटने/जुटाने की मुश्किलों का ही विवरण दिया करते थे । लेकिन अब वह रंजन ढींगरा के बड़े समर्थक बन गए हैं ।
रंजन ढींगरा को आगे करके मंजीत साहनी को 'बाहर' करने की विनोद बंसल की तरकीब के पीछे कुछेक लोगों को मुकेश अरनेजा की मदद करने की रणनीति भी दिख रही है । मुकेश अरनेजा के प्रति विनोद बंसल का समर्थन-भाव राजेश बत्रा के कारण मुसीबत में है । राजेश बत्रा को मुकेश अरनेजा फूटी आँख भी नहीं भाते हैं । मुकेश अरनेजा के साथ विनोद बंसल के संबधों को लेकर राजेश बत्रा विभिन्न तरीकों से अपनी नाराजगी जता चुके हैं । राजेश बत्रा के रवैये को देख कर विनोद बंसल ने मुकेश अरनेजा को लेकर थोड़ा सावधानी रखना तो शुरू किया है, लेकिन रंजन ढींगरा का नाम लेकर उन्होंने जो राजनीति शुरू की है - उसके पीछे उनकी राजेश बत्रा को धोखे में रख कर मुकेश अरनेजा का काम आसान करने की तरकीब को देखा/पहचाना जा रहा है । तरकीब यह कि मंजीत साहनी और रंजन ढींगरा मुकाबले में रहेंगे तो मुकेश अरनेजा के विरोधियों में फूट पड़ेगी और उसका फायदा स्वाभाविक रूप से मुकेश अरनेजा को मिलेगा ।
विनोद बंसल की इस राजनीति की बात लोगों को चूंकि अशोक अग्रवाल के मुँह से सुनने को मिल रही है, इसलिए भी विनोद बंसल की इस राजनीति के पीछे मुकेश अरनेजा की मदद को देखा/पहचाना जा रहा है । जेके गौड़ को प्राप्त हुई चुनावी जीत के बाद से अशोक अग्रवाल को 'सुपर गवर्नर' के अवतार में देखा जा रहा है और वह लगातार मंजीत साहनी तथा अमित जैन को निशाना बना रहे हैं और उनके बारे में गाली-गलौजपूर्ण अपशब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग करते हुए लोगों को बता रहे हैं कि मंजीत साहनी का ईलाज तो विनोद बंसल करेंगे । अशोक अग्रवाल के अनुसार ही विनोद बंसल ने रंजन ढींगरा रूपी इंजेक्शन से मंजीत साहनी का ईलाज शुरू भी कर दिया है । मंजीत साहनी से अशोक अग्रवाल की नाराजगी इस बात को लेकर है क्योंकि मंजीत साहनी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी के चुनाव में जेके गौड़ की बजाये सुधीर मंगला का साथ दिया । मंजीत साहनी के रवैये का हो सकता है कि जेके गौड़ को भी बुरा लगा हो, लेकिन जेके गौड़ अपनी बड़ी हो गई जिम्मेदारी को समझते हुए अब सभी का साथ लेने की जरूरत को समझते हुए चुप हैं; लेकिन अशोक अग्रवाल आपे से बाहर दिख रहे हैं । विनोद बंसल की भी मंजीत साहनी से कुछ पुरानी खटपट है - लिहाजा उन्होंने रंजन ढींगरा के कंधे का सहारा लेकर मंजीत साहनी को निशाने पर लिया तो अशोक अग्रवाल को भी मंजीत साहनी के खिलाफ भड़ास निकालने का मौका मिल गया है । अशोक अग्रवाल की भड़ास ने लेकिन विनोद बंसल की राजनीति को सबके सामने ला दिया है ।