हापुड़ । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के
लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से हापुड़ में आयोजित हुई मीटिंग में जितने
जो लोग जुटे उससे सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को खासा बल मिला है । सतीश
सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थक व शुभचिंतक हापुड़ में हुई मीटिंग की सफलता
से काफी गद्गद हैं और मान रहे हैं कि सतीश सिंघल अपनी उम्मीदवारी को लेकर
अब सचमुच गंभीर हो रहे हैं तथा फार्म में आ रहे हैं । सतीश सिंघल की
उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की दरअसल अभी तक एक बड़ी शिकायत और
चिंता यही थी कि चुनाव अभियान में जो 'नाजुक तत्व' होते हैं और जो चुनावी
नतीजे को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं - उन पर सतीश सिंघल कोई ध्यान नहीं
देते हैं । इसी कारण से सतीश सिंघल अपनी खूबियों का भी लाभ नहीं ले पा रहे
थे । सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन और सहानुभूति का भाव रखने
वाले लोगों का यही मानना और कहना रहा है कि सतीश सिंघल एक रोटेरियन के रूप में
जो हैं, रोटरी में उनके जैसे जो काम हैं और उनकी जो उपलब्धियाँ हैं - अपनी
उम्मीदवारी के संदर्भ में वह उनकी 'मार्केटिंग' ठीक तरीके से नहीं कर पा
रहे हैं । इसी कारण से सतीश सिंघल के दसियों वर्ष पुराने कुछेक दोस्त
उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी के साथ खड़े दिख रहे हैं; और
इसी वजह से उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी बहुत ही कम समय में
लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने में कामयाब रहे हैं ।
लेकिन हापुड़ वाले आयोजन से सतीश सिंघल ने यह बताने/दिखाने/जताने का जोरदार प्रयास किया है कि उन्होंने अपने समर्थकों व शुभचिंतकों की बातों पर ध्यान दिया है और चुनाव को 'व्यावहारिक' गंभीरता के साथ लेना शुरू किया है ।
हापुड़ वाले उनके आयोजन में जो 'दिखा', उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति
के खिलाड़ियों ने जाना कि इस आयोजन को न सिर्फ एक्सक्लुसिव तरीके से डिजाइन
किया गया, बल्कि इसे संभव बनाने के लिए भी चौतरफा तैयारी की गई । इस आयोजन
के डिजाइन की सबसे बड़ी खूबी यही रही कि इसे हापुड़ क्षेत्र के रोटेरियंस के
लिए खास तौर से आयोजित किया गया । हापुड़ क्षेत्र के रोटेरियंस को इतनी
एक्सक्लुसिव तवज्जो पहले शायद कभी नहीं मिली होगी । हापुड़ क्षेत्र में
होने वाले आयोजनों में और कहीं के नहीं तो गाजियाबाद के लोगों को तो शामिल
कर ही लिया जाता रहा है - और इसके चलते उनकी पहचान हमेशा 'दूसरे दर्जे'
वाले और 'छोटे भाई' वाले रोटेरियन की ही बनी रही है । सतीश सिंघल ने अपने इस आयोजन के जरिये हापुड़ क्षेत्र के रोटेरियंस को शायद पहली बार एक स्वतंत्र पहचान देने का काम किया । हापुड़ क्षेत्र के क्लब्स के लोगों ने उनके इस 'काम' को पहचाना भी और रेखांकित भी किया और पूरे उल्लास के साथ उसमें शामिल भी हुए ।
सतीश
सिंघल ने इस डिजाइन को सफल बनाने के लिए एक काम यह और किया कि क्षेत्र के
प्रत्येक क्लब से हर महत्वपूर्व रोटेरियन को अपने इस आयोजन में शामिल कराने
का उन्होंने प्रयास किया । दरअसल शुरू में कुछेक प्रमुख रोटेरियन सतीश
सिंघल के निमंत्रण को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखा रहे थे - 'पहले वाले'
सतीश सिंघल होते तो ऐसे लोगों की परवाह नहीं करते; किंतु 'बदले हुए वाले'
सतीश सिंघल ने उनकी परवाह की और अलग-अलग तरह से उनकी ऐसी घेराबंदी की कि
फिर उक्त प्रमुख लोग सतीश सिंघल के आयोजन के प्रति उत्साह दिखाने लगे और न
सिर्फ खुद उनके आयोजन में शामिल हुए बल्कि अपने साथ ही महत्वपूर्ण और लोगों
को भी आयोजन में लाए । इस तरह सतीश सिंघल यह 'दिखाने' में सफल रहे कि
उनके इस आयोजन को कामयाब बनाने में उनके साथ हापुड़ क्षेत्र के प्रमुख समझे
जाने वाले नेता लोग भी लगे हुए थे ।
सतीश सिंघल ने हापुड़
क्षेत्र के रोटेरियंस के लिए आयोजित हुए आयोजन की तैयारी और व्यवस्था में
अपने क्लब के कई लोगों को शामिल 'दिखा' कर उन लोगों का भी मुँह बंद करने की
कोशिश की है जो लगातार यह प्रचार करते आ रहे हैं कि उन्हें अपने ही क्लब
के सदस्यों का समर्थन और सहयोग नहीं मिल रहा है । क्लब के सदस्यों के समर्थन को लेकर तो सतीश सिंघल को समस्या नहीं रही, लेकिन सहयोग की बात जरूर सवालों के घेरे में रही है ।
उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार प्रसून चौधरी के साथ उनके क्लब के लोग जिस
संलग्नता के साथ जुटे दिखते हैं, सतीश सिंघल अपने क्लब के सदस्यों को अपने
साथ उस तरह जुटा हुआ अभी तक नहीं दिखा पाए थे । हापुड़ वाले आयोजन में सतीश
सिंघल ने इस स्थिति को भी बदलने का प्रयास किया है; और अपने क्लब के
सदस्यों को अपनी उम्मीदवारी के साथ सहयोग करते 'दिखाया' है ।
इस तरह, हापुड़ वाले आयोजन और उसकी व्यापक सफलता ने सतीश सिंघल के चुनाव अभियान में खासी गर्मी ला दी है । इस आयोजन के जरिए उन्होंने दरअसल यह जताने/बताने का 'काम' भी कर लिया है कि चुनाव अभियान की 'व्यावहारिक' जरूरतों को वह जानते/समझते हैं तथा मौका पड़ने पर उन्हें अपना भी सकते हैं ।
सतीश सिंघल के इस आयोजन ने उनके समर्थकों व शुभचिंतकों में उत्साह तो पैदा
किया ही है, उन्हें आश्वस्त भी किया है । यह सब देख/जान कर सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति हमदर्दी और समर्थन का भाव रखने वाले लोगों को लगने लगा है कि प्रसून चौधरी ने अपनी और अपने समर्थकों की सक्रियता से जो चुनावी चुनौती पैदा की है, सतीश सिंघल उसे गंभीरता से समझने लगे हैं और उसका मुकाबला करने के लिए तरकीबें लगाने लगे हैं । इससे चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने का अनुमान लगाया जा रहा है ।