Tuesday, November 13, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत होने के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पैदा हुई हलचल को कुशलता के साथ इस्तेमाल करते हुए अशोक अग्रवाल ने चुनावी मुकाबले में अपनी बढ़त को और पुख्ता करने का काम किया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो हलचल पैदा की, उसने उम्मीदवारों और उनके समर्थकों को असमंजस में तो डाला और परेशान तो किया - लेकिन अशोक अग्रवाल ने इस असमंजसता व परेशानी से निकलने में जो तत्परता दिखाई, उसका फिर दूसरे उम्मीदवारों ने भी अनुसरण किया है और राजनीतिक माहौल धीरे धीरे सामान्य होता नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन माँगे जाने से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हलचल एकदम से तेज हो गई थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय की इस कार्रवाई में हालाँकि अप्रत्याशित कुछ भी नहीं था - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के नाम नवंबर तक आधिकारिक हो ही जाते रहे हैं; लेकिन पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता को चुनाव जितवाने के उद्देश्य से जो झाँसेबाजी हुई थी, उससे धोखा खाए डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आशंका हुई कि कहीं इस वर्ष भी कहीं वैसा ही कोई 'खेल' तो नहीं खेला जा रहा है । नामांकन माँगे जाने की कार्रवाई शुरू होते ही उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के बीच भारी हलचल मच गई और उनकी तरफ से 'अस्त्र-शस्त्र सँभालने' तथा 'युद्ध के निर्णायक क्षण' के लिए तैयार होने की कार्रवाई शुरू हो गई । हर किसी को लगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिसंबर में चुनाव हो जायेगा । इस अनुमान के चलते लोगों को पिछले वर्ष जैसी कहानी दोहराती हुई लगी/दिखी, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन फरवरी/मार्च में चुनाव करवाने की बात कहते सुने जाते रहे हैं । नवंबर में नामांकन करवाने की कार्रवाई से मची हलचल में लेकिन लोगों को आशंका हुई कि चुनाव कहीं जल्दी तो नहीं होने जा रहे हैं ।
इस संबंध में लोगों ने जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से पूछताछ की, तो उन्होंने इस बात को आधिकारिक रूप से पूछने/बताने का तर्क देते हुए इस बारे में बात करने से ही इंकार कर दिया । जिन लोगों ने सुभाष जैन से चुनाव को लेकर बात करने का प्रयास किया, उनके अनुसार सुभाष जैन का कहना रहा कि आपसी और/या टेलीफोनिक बातचीत में बात को कुछ का कुछ समझ लिया जाता है और फिर उसकी मनमाफिक व्याख्या की जाती है जिससे बात का बतंगड़ बन जाता है, इसलिए चुनाव को लेकर जिसे जो कोई भी सवाल पूछना है, वह अपना सवाल उन्हें ईमेल करे, वह ईमेल पर ही उसका जबाव देंगे । सुभाष जैन ने स्पष्ट किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर वह कोई विवाद नहीं चाहते हैं और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते हैं, जिससे उनकी भूमिका पक्षपातपूर्ण लगे/दिखे और चुनावी प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े हों और किसी भी तरह के आरोप लगें । मजे की बात यह रही कि चुनाव को लेकर कानाफूसी करने वाले लोगों की तरफ से चुनाव को लेकर कोई आधिकारिक पूछताछ हुई ही नहीं । दरअसल इस बात को हतोत्साहित करने का काम अशोक अग्रवाल ने किया । शुरुआती हलचल के बीच अशोक अग्रवाल ने अपने आपको संयत दिखाते/जताते हुए कहना/बताना शुरू किया कि चुनाव कभी भी हों, उम्मीदवार के रूप में उन पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है; लोगों के बीच उन्होंने दावा किया कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी उम्मीदवारी को जो व्यापक समर्थन है, उसके चलते वह चुनाव के लिए हमेशा तैयार हैं - चुनाव चाहें अभी दिसंबर में हो जाएँ, और या फरवरी/मार्च में हों, लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी के लिए जो समर्थन है, वह पक्का है और उनके लिए समस्या की कोई बात नहीं है ।
अशोक अग्रवाल के इस रवैये को उनकी 'पॉस्चरिंग' के रूप में देखा/पहचाना गया, और माना/समझा गया कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर मची अफरातफरी को भी अशोक अग्रवाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं । अशोक अग्रवाल का 'खेल' समझ में आते ही दूसरे उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने भी चुनाव को लेकर कयास लगाने बंद कर दिए और मानने/कहने लगे कि उनकी बला से चुनाव कभी भी हों । इससे चुनाव के समय को लेकर असमंजसता दूर हुई और अफरातफरी भी शांत पड़ गई । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत होने के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पैदा हुई हलचल अशोक अग्रवाल के लिए वरदान साबित हुई । अशोक अग्रवाल ने दरअसल पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट की कई एक छोटी-बड़ी घटनाओं और स्थितियों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए कुशलता के साथ इस्तेमाल किया है और जिनकी मदद से चुनावी मुकाबले में वह अपनी बढ़त बनाने में सफल रहे हैं । चुनावी प्रक्रिया के पूरा होने के समय को लेकर डिस्ट्रिक्ट में मची अफरातफरी व असमंजसता के मौके को भी अशोक अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में कुशलता के साथ इस्तेमाल कर लिया । अशोक अग्रवाल ने चुनावी समय के पचड़े में सिर खपाने की बजाये अपने आपको निश्चिंत 'दिखाने' का जो काम किया, उसने अपनी उम्मीदवारी और अपनी जीत के प्रति उनके विश्वास को तो प्रकट किया ही - साथ ही लोगों के बीच भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति हवा बनाने का काम किया ।

Monday, November 5, 2018

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में जयपुर में हुए स्वागत समारोह की व्यवस्था और भव्यता की सुशील गुप्ता द्वारा की गई प्रशंसा को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता की दावेदारी को मजबूत करने/बनाने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । दिल्ली, जयपुर और कोलकाता में हुए स्वागत समारोहों में जयपुर के आयोजन की भूरि भूरि प्रशंसा करके इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता ने रोटरी की राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । जयपुर के आयोजन की उनकी तारीफ के पीछे रोटरी की चुनावी राजनीति में अशोक गुप्ता को उनकी तरफ से हरी झंडी मिलने के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । रोटरी जोन 4 में दो वर्ष बाद होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के संदर्भ में सुशील गुप्ता की इस हरी झंडी के खास अर्थ निकाले/बताए जा रहे हैं । मजे की बात यह है कि खास अर्थ निकाले जाने का ज्यादा काम सुशील गुप्ता के अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में हो रहा है, जहाँ इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए तीन उम्मीदवार तैयारी करते हुए सुने जा रहे हैं । जयपुर के आयोजन की सुशील गुप्ता द्वारा की गई प्रशंसा ने दिल्ली में हुए स्वागत समारोह के जरिये बढ़त लेने की विनोद बंसल की कोशिश को तो तगड़ा झटका दिया है । दरअसल सुशील गुप्ता के मुँह से तारीफ सुनने के बाद और लोगों के मुँह भी खुल गए और फिर सभी कहने/बताने लगे कि दिल्ली के आयोजन के मुकाबले जयपुर का आयोजन कहीं ज्यादा भव्य, व्यवस्थित और प्रभावी रहा । जयपुर के आयोजन की तारीफ और उसकी तुलना में दिल्ली के आयोजन को कमजोर व अव्यवस्थित बताने की कुछेक लोगों की कोशिशों के पीछे विनोद बंसल को 'कमजोर' करने/'दिखाने' का उद्देश्य भी देखा/पहचाना गया है । जयपुर में हुए स्वागत समारोह की व्यवस्था की सुशील गुप्ता द्वारा की गई प्रशंसा ने दिल्ली के आयोजन के जरिये चुनावी राजनीति में पैठ बनाने की विनोद बंसल की कोशिश पर विराम लगाने में जुटे लोगों को अच्छा मसाला दे दिया है ।
सुशील गुप्ता के दिल्ली में हुए स्वागत समारोह की बड़ी खास व प्रभावी बात यह रही थी कि उक्त आयोजन में देश की रोटरी राजनीति का प्रत्येक बड़ा नेता उपस्थित हुआ था । दिल्ली के उक्त आयोजन को 'अपना' आयोजन 'दिखाते'/जताते हुए विनोद बंसल ने इस तथ्य को इस रूप में व्याख्यायित किया कि रोटरी का देश का हर बड़ा नेता 'उनके' साथ है । 'पक्षपातपूर्ण' आरोपों के चलते आयोजन में हुई बदइंतजामी तथा अव्यवस्था के कारण विनोद बंसल को आयोजन के दौरान भी तथा उसके बाद भी जो आलोचना सुननी पड़ी, उससे आयोजन की इस 'उपलब्धि' का लेकिन वह कोई लाभ नहीं उठा सके हैं । विनोद बंसल की खुशकिस्मती रही कि जयपुर में हुए सुशील गुप्ता के स्वागत समारोह में रोटरी के बड़े नेताओं में एक अकेले पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ही पहुँचे, और इस कारण से बड़े नेताओं की उपस्थिति के संदर्भ में उनके दिल्ली के आयोजन का पलड़ा ही भारी रहा - लेकिन जयपुर के आयोजन की व्यवस्था और भव्यता ने विनोद बंसल को उक्त उपलब्धि का लाभ नहीं लेने/मिलने दिया । दरअसल दिल्ली के आयोजन में जिम्मेदारियों को लेने/देने तथा बड़े नेताओं को तवज्जो देने के जोश में संतुलन गड़बड़ा देने के चलते विनोद बंसल को अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ बड़े नेताओं की भी आलोचना सुननी पड़ी । 'अपने' डायरेक्टर पीटी प्रभाकर के प्रति दिखाए अतिरिक्त लगाव के चलते विनोद बंसल को आयोजन के दौरान ही कई एक बड़े नेताओं से उलाहने सुनने को मिले । आयोजन में विभिन्न मौकों पर आगे रहने वाले लोगों के चयन को लेकर विनोद बंसल को अपने डिस्ट्रिक्ट के खास लोगों की जो नाराजगी झेलना पड़ी, वह अलग बात है । इससे विनोद बंसल की 'लीडरशिप' क्षमताओं पर सवाल उठे । 
जयपुर आयोजन में लोगों को ऐसा कोई तमाशा देखने/सुनने को नहीं मिला - और इस बात को अशोक गुप्ता की 'लीडरशिप' की खूबी के रूप में देखा/पहचाना गया । दरअसल जयपुर में सुशील गुप्ता के स्वागत कार्यक्रम की जो परिकल्पना रची गई - उसमें सांस्कृतिक नजारा भी था, वैभव के परंपरागत तरीके भी थे और इस सबसे बड़ी बात अनुशासन का पालन भी था; जिससे आयोजन को एक अलग तरह की गरिमा मिली और जिसने हर किसी को प्रभावित किया । जो लोग जयपुर नहीं भी पहुँच सके, उन्हें आयोजन की तस्वीरों ने आयोजन की भव्यता व अनुशासन से परिचित तो करवाया ही - उसके प्रभाव की गिरफ्त में भी लिया । जयपुर के आयोजन को - और या आयोजन की तस्वीरों को - देखकर हर किसी को दिल्ली के आयोजन की कमियाँ और ज्यादा महसूस हुईं और कईयों के तो जैसे 'घाव' ताजा हो गए । स्वागत समारोह की व्यवस्था और भव्यता देख कर खुद सुशील गुप्ता जिस तरह से भाव-विह्वल हो गए और स्वागत आयोजन की जोरदार शब्दों में प्रशंसा कर बैठे, उससे जयपुर आयोजन की राजनीतिक महत्ता व राजनीतिक प्रभाव खासा व्यापक हो गया और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में अशोक गुप्ता की दावेदारी को मजबूत करने/बनाने का काम कर गया है । 

Sunday, November 4, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल काउंसिल चुनाव में अमरजीत चोपड़ा से मिले धोखे से झटका खाए हंसराज चुग और उनके समर्थकों ने अमरजीत चोपड़ा के खिलाफ मोर्चा खोला

नई दिल्ली । हंसराज चुग और उनके नजदीकी इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा के 'दलबदलू' व्यवहार से इस कदर खफा हैं कि उनकी तरफ से अमरजीत चोपड़ा की पोल खोलने का अभियान ही शुरू हो गया है । हंसराज चुग की तरफ से अभी हाल ही में जालंधर व लुधियाना में सेमीनार के नाम पर जो पार्टियाँ हुईं, उनमें जुटे लोगों के बीच होने वाली अनौपचारिक बातचीत में हंसराज चुग तथा उनके नजदीकियों ने अमरजीत चोपड़ा को जमकर निशाना बनाया और कोसा । हंसराज चुग और उनके नजदीकी अमरजीत चोपड़ा से दरअसल इसलिए खफा हैं, क्योंकि अमरजीत चोपड़ा ने सेंट्रल काउंसिल चुनाव में मदद करने का उनसे वायदा तो किया था, लेकिन जब मदद करने की बारी आई तो अमरजीत चोपड़ा ने दलबदल कर उनकी बजाये संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया - और हंसराज चुग ठगे से खड़े देखते रह गए । हालाँकि ऐसा नहीं है कि अमरजीत चोपड़ा ने हंसराज चुग की कोई मदद ही नहीं की; उन्होंने हंसराज चुग की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए 'अपने' कुछेक लोगों से कहा है - लेकिन हंसराज चुग और उनके नजदीकियों के अनुसार, उनका यह कहना महज खानापूर्ति की तरह ही रहा और इससे हंसराज चुग की उम्मीदवारी को सचमुच में कोई फायदा नहीं मिला । हंसराज चुग के लिए झटके की बात यह रही कि जालंधर और लुधियाना में अमरजीत चोपड़ा के नजदीकी समझे जाने वाले लोगों ने हंसराज चुग की पार्टियों से पूरी तरह दूरी बना कर रखी, जिसके चलते हंसराज चुग की पार्टियाँ चुनावी नजरिये से फ्लॉप रहीं । हंसराज चुग और उनके नजदीकी पंजाब की ब्रांचेज में अपने चुनाव अभियान के कमजोर पड़ने के लिए अमरजीत चोपड़ा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनकी तरफ से साफ आरोप सुना जा रहा है कि अमरजीत चोपड़ा ने उन्हें धोखा दिया है ।
अमरजीत चोपड़ा की तरफ से मिले धोखे ने हंसराज चुग के सारे चुनावी समीकरणों को चूँकि खासा गड़बड़ा दिया है, इसलिए उससे पैदा हुई निराशा में हंसराज चुग व उनके नजदीकियों का गुस्सा अमरजीत चोपड़ा पर फूट फूट रहा है । उनके बीच होने वाली अनौपचारिक चर्चाओं में कहा/बताया जा रहा है कि बिग फोर एकाउंटिंग फर्म ईवाई में प्रोफेशनल लाभ उठाने के लालच में अमरजीत चोपड़ा ने यह दलबदल किया है और हंसराज चुग के साथ वायदाखिलाफी की है । हंसराज चुग और उनके नजदीकियों के लिए ही नहीं, बल्कि अमरजीत चोपड़ा को जानने वाले अन्य लोगों के लिए भी ईवाई के प्रतिनिधि के रूप में संजीव सिंघल की उम्मीदवारी को अमरजीत चोपड़ा का समर्थन मिलना हैरानी की बात बना हुआ है । अमरजीत चोपड़ा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में भी और उसके बाद भी बिग फोर फर्म्स के खिलाफ रहे हैं, और उन्हें भारतीय फर्म्स तथा भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के हितों के खिलाफ कहते/बताते रहे हैं । वास्तव में, बिग फोर फर्म्स के तौर-तरीकों के खिलाफ निरंतर सक्रियता बनाये रखने के चलते ही अमरजीत चोपड़ा को आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अच्छी पहचान और प्रभावी समर्थन मिला है । वास्तव में इसी कारण से इंस्टीट्यूट से जुड़े हर किसी व्यक्ति को हैरानी है कि अमरजीत चोपड़ा का अचानक से यह हृदय परिवर्तन कैसे और क्यों हो गया है और अभी कल तक बिग फोर फर्म्स के खिलाफ बातें करते रहने वाले अमरजीत चोपड़ा ने बिग फोर फर्म के प्रतिनिधि को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में भेजने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर आखिर क्यों उठा ली है ?
अमरजीत चोपड़ा के चुनावी रवैये में आए बदलाव के चलते धोखा खाए हंसराज चुग और उनके साथियों के बीच होने वाली चर्चाओं में सुनने को यही मिल रहा है कि अमरजीत चोपड़ा ने अपने निजी स्वार्थ में राजनीतिक पाला बदला है और हंसराज चुग को धोखा दिया है । चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि अमरजीत चोपड़ा ने लगता है कि ईवाई फर्म से कुछ बड़ा काम लेने और या फर्म में बड़ी पोजीशन लेने का जुगाड़ बैठा लिया है, और उसके ऐवज में उन्होंने फर्म के उम्मीदवार संजीव सिंघल को सेंट्रल काउंसिल चुनाव जितवाने का 'ठेका' ले लिया है । सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे लोगों का कहना/बताना है कि अमरजीत चोपड़ा हालाँकि पिछले चुनाव में बिग फोर फर्म के उम्मीदवार संजीव चौधरी के लिए भी वोट जुटाने का काम कर चुके हैं, लेकिन तब यह काम उन्होंने बहुत छोटे स्तर पर तथा दबे-छिपे रूप में ही किया था । संजीव चौधरी की मदद के पीछे उनकी 'दोस्ती' को कारण के रूप में देखा/पहचाना गया था, इसलिए तब बिग फोर फर्म के उम्मीदवार को उनकी मदद पर कोई बबाल नहीं हुआ था । इस बार लेकिन अमरजीत चोपड़ा ने बिग फोर फर्म के उम्मीदवार के रूप में संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा जिस 'मजबूती' के साथ उठाया है, और इसके चलते वह हंसराज चुग से किए गए वायदे को भी भूल गए हैं - उसके कारण वह लोगों के निशाने पर आ गए हैं । अमरजीत चोपड़ा के निजी स्वार्थ में बदले रवैये ने चूँकि सेंट्रल काउंसिल चुनाव में हंसराज चुग की उम्मीदवारी के अभियान को तगड़ा झटका दिया है, इसलिए अमरजीत चोपड़ा उनके निशाने पर ज्यादा हैं ।

Saturday, November 3, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में आरके शाह के सबसे बड़े विरोधी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस अपनी हरकतों के चलते उनके सबसे बड़े मददगार साबित हो रहे हैं

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की भारी बदनामी और हर किसी के उनके खिलाफ होने की स्थिति ने आरके शाह को बड़ी राहत दी है, और उन्हें विश्वास हो चला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बावजूद वीके हंस उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने से नहीं रोक सकेंगे । डिस्ट्रिक्ट में बड़ा मजेदार सीन बना हुआ है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अकेले उम्मीदवार आरके शाह से बुरी तरह नाराज हैं, जिसके चलते उन्होंने ठाना हुआ है कि वह आरके शाह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देंगे; और इसके लिए वह बड़ी सक्रियता से एक उम्मीदवार की तलाश कर रहे हैं । अभी तक ओंकार सिंह रेनु को उनके उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था; वीके हंस को जहाँ कहीं मौका मिलता/दिखता था, वह वहाँ ओंकार सिंह रेनु को आगे बढ़ाते व प्रमोट करते नजर आते थे - लेकिन पिछले कुछ दिनों से वीके हंस महसूस कर रहे हैं कि ओंकार सिंह रेनु चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे और पीछे हट जायेंगे, इसलिए वीके हंस ने एक नए उम्मीदवार की तलाश शुरू कर दी और कुछेक लोगों को उम्मीदवार बनने के लिए तैयार करने का काम किया । वीके हंस को अभी अपने इस 'काम' में हालाँकि सफलता नहीं मिली है, किंतु उन्हें विश्वास है कि उन्हें जल्दी ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एक उम्मीदवार मिल जायेगा ।
वीके हंस के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अपनी बातों और अपनी हरकतों से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को अपना दुश्मन और या विरोधी बना लिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज हालाँकि उनके शुभचिंतक बने हुए हैं, लेकिन उम्मीदवार के 'खोज-अभियान' में वह भी कोई मदद करते हुए नहीं दिख रहे हैं । दरअसल वीके हंस ने डिस्ट्रिक्ट में अपनी ऐसी हालत बना ली है, कि कोई भी न तो उन पर भरोसा करने को तैयार है और न उनके साथ मिलकर कोई राजनीति करने को उत्सुक है । वास्तव में इसीलिए डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज भी उनके साथ 'ज्यादा आगे' नहीं जाना चाहते हैं, और सीमित रूप में ही उनके साथ जुड़े रहने में अपनी भलाई देख रहे हैं । डीके अग्रवाल और अजय बुद्धराज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ रहने के फायदे तो उठाना चाहते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की राजनीति के साथ जुड़ कर कोई नुकसान उठाने के लिए तैयार नहीं हैं । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजीव अग्रवाल के साथ भी संबंधों के बिगड़ जाने से वीके हंस की हालत और पतली हो गयी है । राजीव अग्रवाल ने हालाँकि काफी समय तक तो वीके हंस की हरकतों और उनकी हरकतों के चलते उनकी होने वाली बदनामी को अनदेखा किया, लेकिन फिर उनके साथ उन्होंने दूरी बना ली है । दरअसल राजीव अग्रवाल ने समझ लिया कि वीके हंस के वह ज्यादा चक्कर में रहे, तो उनकी हरकतों व उनकी बदनामी के चलते वह डिस्ट्रिक्ट में अपने दुश्मन व विरोधी और बना लेंगे और तब उनके लिए गवर्नरी कर पाना मुश्किल हो जायेगा । 
वीके हंस से डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह से लोग दूर होते जा रहे हैं, उससे आरके शाह को बड़ी राहत मिल रही है । आरके शाह के लिए खुशकिस्मती की बात यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि उनके विरोधियों की संख्या भी कम नहीं है, और डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोग हैं जो उन्हें (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते नहीं देखना चाहते हैं - लेकिन वीके हंस के कारण उनके विरोधियों के बीच कोई एकता नहीं हो पा रही है; और उनके लिए रास्ता साफ होता जा रहा है । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट में उनके सबसे बड़े विरोधी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस ही उनके सबसे बड़े मददगार साबित हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में आरके शाह के विरोधियों का कहना यही है कि आरके शाह को जिस तरह से अधिकतर पूर्व गवर्नर्स की तरफ से समर्थन का आश्वासन मिल गया है, उसके चलते उन्होंने अपने आपको (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मान लिया है, और इस कारण उनके व्यवहार व रवैये में भी परिवर्तन आ गया है । आरके शाह के व्यवहार व रवैये में आए परिवर्तन के कारण कई लोग उनके विरोधी हो गए हैं, और इसके चलते उनके लिए चुनावी मुकाबले की स्थिति बनाई जा सकती थी और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने से रोका जा सकता था - लेकिन वीके हंस के कारण आरके शाह को अभयदान मिलता दिख रहा है । आरके शाह का जो विरोध - आरके शाह के विरोधियों के बीच एकता का कारण बन सकता था, वीके हंस की हरकतों के वह एकता लेकिन नहीं बन पा रही है - और इसके चलते आरके शाह तमाम विरोध व विरोधियों के होने के बावजूद मजे में हैं ।

Friday, November 2, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में अपने साथियों व समर्थकों के साथ अशोक अग्रवाल द्वारा निभाई/दिखाई गई व्यापक सक्रियता के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में अशोक अग्रवाल को अच्छी बढ़त मिलती हुई नजर आई

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में अशोक  अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए जैसे जो प्रयास किए, उनके चलते लोगों के बीच वह अपना प्रभाव और बनाने/जमाने में सफल होते हुए दिखे, तथा लोगों को वह दूसरे उम्मीदवारों से काफी आगे बढ़े हुए नजर आए । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की जोरदार कामयाबी तथा उसमें लोगों की बड़ी संख्या में हुई भागीदारी ने अशोक अग्रवाल के काम और उनके 'लक्ष्य' पाने के प्रयासों को और आसान कर दिया । यहाँ दरअसल अशोक अग्रवाल का अनुभव काम आया । पिछले कई वर्षों से वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की भूमिका देख भी रहे हैं, और किसी न किसी उम्मीदवार के लिए उस भूमिका का लाभ उठाने के प्रयासों में शामिल भी रहे हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में डिस्ट्रिक्ट के सभी आम और खास लोगों की अलग अलग भूमिका होती है; और इससे कई लोगों की पहचान और प्रतिष्ठा जुड़ी होती है । सबसे पहले तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए ही यह मेला प्रतिष्ठा का विषय होता है । प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की इच्छा होती है और वह अपनी सामर्थ्यानुसार प्रयास करता है कि उसके गवर्नर-काल का डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेला पिछले वर्षों के मेलों की तुलना में ज्यादा भीड़भाड़ वाला हो तथा ज्यादा भव्य व आकर्षक हो । इसके बाद डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के आयोजन की जिम्मेदारी लेने वाले डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी और आयोजक/मेजबान क्लब के पदाधिकारियों का सम्मान इससे जुड़ जाता है; उनकी भी इच्छा होती है और वह इसके लिए अपनी समझ के अनुसार अथक प्रयास भी करते हैं कि मेला बढ़िया हो और इसके लिए सभी से उन्हें प्रशंसा के शब्द सुनने को मिलें । आयोजन से जुड़े प्रमुख लोगों की यह इच्छा/चाहत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को इनकी 'गुड बुक' में शामिल होने का एक मौका देती है । 
अशोक अग्रवाल ने अपने अनुभव से इस मौके को पहचाना और इसका फायदा उठाने के लिए पहले से तैयारी की । दरअसल पहले से की गई तैयारी के कारण ही डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में अशोक अग्रवाल का पलड़ा भारी नजर आया । असल में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले की महत्ता तो सभी उम्मीदवार समझते हैं, और वह उसका फायदा उठाने का प्रयास भी करते हैं - लेकिन प्रायः सीमित अर्थों में ही । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा भारी इसलिए नजर आया क्योंकि उन्होंने इसका बड़ी बारीकी से तथा व्यापक रूप में फायदा उठाने का पहले से इंतजाम किया हुआ था । इंतजाम करने से भी पहले, अपनी निरंतर बनाई गई सक्रियता व संलग्नता से प्राप्त अपने अनुभव से मिली सीख से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में फायदा उठाने के बारीक व व्यापक मौकों को पहचाना व रेखांकित किया । दरअसल आमतौर पर उम्मीदवार फायदा उठाने के लिए दीवाली मेले को अपनी तरफ से स्पॉन्सर करने तक सीमित मान लेते हैं, और स्पॉन्सर के नाम पर पैसे देकर संतुष्ट हो जाते हैं । इससे ज्यादा और इसके अलावा क्या और कैसे फायदा उठाया जा सकता है, इसकी समझ अनुभव से मिलती है । अपने अनुभव से यही फायदा उठाते हुए अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के आयोजन से जुड़ी 'व्यवस्था' में अपनी पैठ बनाई और लोगों के बीच अपनी पहुँच को व्यापक व असरदार बनाते हुए डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले का भरपूर फायदा उठाया । 
अशोक अग्रवाल यह फायदा इसलिए भी उठा सके, क्योंकि उन्हें एक टीम के रूप में अपने साथियों व समर्थकों का पूरा पूरा सहयोग प्राप्त था । यहाँ फिर कहना/दोहराना पड़ेगा कि अपने साथियों व समर्थकों का सहयोग उन्हें इसलिए प्राप्त था - क्योंकि उन्होंने इस बात को समझा हुआ था कि अपने साथियों व समर्थकों का उन्हें कहाँ और किस तरह से सहयोग चाहिए होगा, और इसके लिए उन्होंने पहले से ही 'फील्डिंग' सजाई हुई थी । साथी और समर्थक दूसरे उम्मीदवारों के पास भी हैं, लेकिन उनसे काम/फायदा लेने की योजना या रणनीति के अभाव में वह उनका बेहतर तरीके से प्रभावी उपयोग ही नहीं कर पाए ।अशोक अग्रवाल ने एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले के आयोजन से जुड़ी व्यवस्था में भूमिका निभाते हुए अपने लिए अवसर बनाया, और दूसरी तरफ अपने साथियों व समर्थकों के जरिये आम लोगों के बीच अपनी सक्रियता व भागीदारी दिखाई । भीड़भाड़ व भव्यता के मामले में इस वर्ष का दीवाली मेला चूँकि लोगों के बीच चर्चा और तारीफ का विषय बना, तो सक्रियता व भागीदारी के चलते उक्त चर्चा व तारीफ में खुद ब खुद अशोक अग्रवाल का नाम भी आ ही गया । साथियों और समर्थकों की लोगों के बीच ली गई 'पोजीशंस' व अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए 'काम' करने की उनकी दिलचस्पी व तत्परता ने अशोक अग्रवाल का काम आसान भी किया, और उसके असर को कई गुना बढ़ाया भी । डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में चूँकि डिस्ट्रिक्ट के प्रायः सभी आम और खास लोग उपस्थित थे; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका रखने तथा निभाने वाले प्रायः सभी लोग इस मेले में थे - इसलिए लोगों के बीच अपने साथियों व समर्थकों के साथ अशोक अग्रवाल की सक्रियता ने सभी का ध्यान खींचा; और इसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में उन्हें अच्छी बढ़त मिलती हुई नजर आई ।

Wednesday, October 31, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में 'तटस्थ' रहने के चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर पैदा हुई विनोद बंसल की मुसीबत रंजन ढींगरा या अशोक गुप्ता को सचमुच फायदा पहुँचा सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । अनूप मित्तल की चुनावी जीत के रूप में मिले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी नतीजे ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट में बन सकने वाले समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है, जिसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में दीपक कपूर और विनोद बंसल के लिए चुनौती तथा रंजन ढींगरा व अशोक गुप्ता के लिए लाभ की स्थिति देखी/पहचानी जा रही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक कंतूर को जितवाने में जो लोग लगे थे, उन्हें खेमेबाजी के लिहाज से दीपक कपूर के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । दीपक कपूर का डिस्ट्रिक्ट में यूँ तो कोई समर्थन नहीं है, लेकिन माना/समझा जा रहा है कि वह यदि राजा साबू खेमे के उम्मीदवार 'बने' तो फिर डिस्ट्रिक्ट के कुछेक 'उन' लोगों का समर्थन उन्हें मिलेगा - जो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के पीछे थे । उन लोगों के बीच तो यहाँ तक चर्चा रही कि दीपक कपूर की तरफ से रवि चौधरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार होंगे । समझा जाता है कि अपनी 'उक्त' उम्मीदवारी के लिए अपने दावे को मजबूत करने के उद्देश्य से ही रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था । अशोक कंतूर की हार से लेकिन रवि चौधरी की उक्त उम्मीदवारी पर सवालिया निशान लग गया है, और यह स्थिति दीपक कपूर के लिए मुसीबत भरी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले वह लोग थे, जिन्हें इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के खेमे में देखा/पहचाना जाता है । अनूप मित्तल की चुनावी जीत से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में स्वाभाविक रूप से इस खेमे का 'वजन' बढ़ा है । इस बढ़े 'वजन' का फायदा जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में लेकिन किसे मिलेगा - यह बड़ा सवाल है ? 
बड़ा सवाल इसलिए, क्योंकि सुशील गुप्ता के खेमे के समर्थन की उम्मीद तीन अन्य संभावित उम्मीदवार - रंजन ढींगरा, विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट 3054 के अशोक गुप्ता कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल की भूमिका चूँकि संदेहास्पद रही, इसलिए सुशील गुप्ता के खेमे का समर्थन उन्हें मिल पाना चुनौतीपूर्ण बन गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल ने अपने आप को तटस्थ 'दिखाया' हुआ था । चुनावी राजनीति में वास्तव में तटस्थता जैसी कोई चीज होती नहीं है, उसे बहानेबाजी के रूप में ही लिया/देखा जाता है । सुशील गुप्ता के खेमे के लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में खेमे को जब उनकी मदद की जरूरत थी, विनोद बंसल तब तटस्थ हो गए; इसी तर्ज पर जब विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए मदद की जरूरत होगी, तब यदि खेमे के लोग तटस्थ हो गए - तो क्या होगा ? विनोद बंसल की तटस्थता संदेहास्पद इसलिए भी बनी, क्योंकि विनोद बंसल के नजदीकी अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय थे । इससे लोगों के बीच संदेश यह गया कि विनोद बंसल दोनों तरफ तार जोड़े हुए थे, और यह संदेश इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी उम्मीदवारी की तैयारी को नुकसान पहुँचाने का काम करता है । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि विनोद बंसल को होता दिख रहा यह नुकसान तात्कालिक ही है; क्योंकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी घमासान में रंजन ढींगरा इस स्थिति का फायदा उठा नहीं सकेंगे - और तब  विनोद बंसल इस नुकसान की भरपाई कर लेंगे ।
कई लोगों का लेकिन यह भी मानना/कहना है कि यदि सचमुच रंजन ढींगरा अपनी तैयारी में 'कमजोर' पड़े या नजर आये तो इसका फायदा उठाने का प्रयास डिस्ट्रिक्ट 3054 के अशोक गुप्ता भी करेंगे - और यह स्थिति विनोद बंसल के लिए मुसीबत पैदा करेगी । डिस्ट्रिक्ट 3011 में अशोक गुप्ता के समर्थक भी हैं, जो उन लोगों के लिए अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में आने का रास्ता बना सकते हैं - जो खेमे में होने के बावजूद विनोद बंसल के समर्थन में किसी भी कारण से नहीं जाना चाहेंगे । किसी एक डिस्ट्रिक्ट में होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हालाँकि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के ही बनने/बिगड़ने का मौका होता है, और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को सीमित रूप में ही - ज्यादा से ज्यादा उसके लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए होने वाले चुनाव को - प्रभावित करने की क्षमता रखता है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 की बात जरा निराली है । अब तो यह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का डिस्ट्रिक्ट भी बन गया है; इस डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए तीन उम्मीदवारों की चर्चा तो अभी से ही - जो इस डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक उर्वरता को दर्शाती है । दरअसल इसी कारण से इस वर्ष यहाँ हुआ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा महत्त्वपूर्ण हो गया - और इसे राजा साबू व सुशील गुप्ता खेमे के बीच हुए चुनाव के रूप में देखा/पहचाना गया । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थक राजा साबू खेमे के नेताओं ने इस चुनाव की आड़ में वास्तव में बहुत ही आक्रामक तरीके से राजनीति की, जैसे उनके लिए यह चुनाव जीने/मरने का मामला हो - और उन्हें किसी भी तरह से इसे जीतना ही था । अनूप मित्तल की चुनावी जीत ने लेकिन उनके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया और इस स्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए दीपक कपूर और विनोद बंसल के लिए अलग अलग कारणों से मुसीबत पैदा कर दी है ।

Monday, October 29, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर की पराजय का ठीकरा विनोद बंसल व विनय भाटिया के सिर फोड़ने की रवि चौधरी की कोशिश ने अगले वर्ष में उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे अजीत जालान के लिए मुश्किलें बढ़ाईं

नई दिल्ली । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों का डर अंततः सही साबित हुआ और रवि चौधरी की बदनामी तथा लगातार जारी उनकी हरकतें अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के लिए विनाशकारी साबित हुईं । उल्लेखनीय है कि 'रचनात्मक संकल्प' की 24 सितंबर की रिपोर्ट में अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों के हवाले से बताया गया था कि रवि चौधरी की बदनामी तथा लगातार जारी उनकी हरकतों ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के अभियान को कभी भी 'उठने' नहीं दिया और अब जब चुनाव सिर पर आ गए हैं - तो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का अभियान संकट में फँसा दिख रहा है । अशोक कंतूर के नजदीकियों को अफसोस है कि समर्थकों की इतनी स्पष्ट चेतावनी के सामने आने के बाद भी अशोक कंतूर ने सावधानी नहीं बरती और वह लगातार रवि चौधरी के भरोसे ही बने रहे और आए नतीजे में हार को प्राप्त हुए । अशोक कंतूर ने दरअसल अपने समर्थकों की चेतावनी और हिदायतों की बजाये रवि चौधरी के उस दावे पर ज्यादा भरोसा किया, जिसमें रवि चौधरी ने घोषणा की हुई थी कि उन्हें चाहें जो करना पड़े - वह अशोक कंतूर को चुनाव जितवायेंगे ही । मजे की बात यह रही कि रवि चौधरी सिर्फ अशोक कंतूर को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं 'चुनवा/बनवा' रहे थे, बल्कि अपने आप को अशोक कंतूर के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में भी बता/दिखा रहे थे और ऐसा करते हुए उन्होंने लोगों को 'उस' वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम की पोस्ट देने/बाँटने का काम भी शुरू कर दिया था । रवि चौधरी की इस हरकत ने अशोक कंतूर की चुनावी संभावनाओं को खासी तगड़ी चोट दी, जिसका नतीजा उनकी हार के रूप में निकला । 
रवि चौधरी ने हालाँकि 'चाहें जो करना पड़े' वाली अपनी घोषणा पर अमल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उन्होंने प्रेसीडेंट्स के साथ बदतमीजी करके, उन्हें धमकाने के जरिये और यहाँ तक कि उनके 'अपहरण' तक करके वोट जुटाने/बटोरने का प्रयास किया । हरियाणा के एक क्लब के प्रेसीडेंट को उसके घर से उठा/उठवा कर अपने सामने वोट डलवाने की कोशिश की पोल खुलने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया द्वारा कड़ा रवैया अपनाने के बाद रवि चौधरी की मुहिम को थोड़ा झटका तो लगा था, लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आए । रवि चौधरी की हरकतों के चलते अशोक कंतूर को सबसे बड़ा झटका पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच नाराजगी पैदा होने के चलते लगा । असल में, रवि चौधरी की बदतमीजीपूर्ण हरकतों को देखते हुए अधिकतर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को लगा कि वह यदि चुपचाप बैठे तमाशा देखते रहे तो रवि चौधरी की हरकतें डिस्ट्रिक्ट 3011 की पहचान व साख को कलंकित ही करेंगी । डिस्ट्रिक्ट की पहचान व साख को बचाए रखने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने सक्रियता दिखाई, तो उनकी सक्रियता अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का कारण बनी । अशोक कंतूर के लिए रवि चौधरी की बदनामी और हरकतें इस हद तक मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हुईं कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल जैसे उनके घनघोर समर्थक तक उनके विरोधी हो गए । उल्लेखनीय है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को शुरू से ही विनोद बंसल का समर्थन था; जिसके चलते विनोद बंसल ने अनूप मित्तल को रास्ते से हटाने के उद्देश्य से सुझाव भी दिया था कि उन्हें दो-तीन वर्ष लोगों के बीच मैच्योर तरीके से काम करना चाहिए और फिर उम्मीदवार के रूप में आना चाहिए । लेकिन अशोक कंतूर के समर्थक के रूप में रवि चौधरी की हरकतों को देखते हुए विनोद बंसल ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच लिया । विनोद बंसल ने अपनी तरफ से हालाँकि चुनाव से दूर रहने तथा तटस्थ होने का दावा किया, लेकिन अशोक कंतूर के समर्थकों/नजदीकियों का कहना रहा कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के समीकरणों को देखते/समझते हुए विनोद बंसल पाला बदल कर अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक हो गए हैं ।
रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की पराजय का ठीकरा विनोद बंसल और विनय भाटिया के सिर फोड़ते हुए उन पर धोखा देने का आरोप लगाया है । रवि चौधरी के लिए परेशानी और चिंता की बात दरअसल यह हो गई है कि अशोक कंतूर की पराजय के लिए यदि सचमुच उन्हें ही जिम्मेदार मान लिया गया, तो उनकी तो राजनीति ही चौपट हो जायेगी । इसलिए रवि चौधरी ने गिनाना/बताना शुरू किया है कि अशोक कंतूर को किन किन क्लब्स के और कितने वोट उनके कारण मिले हैं । रवि चौधरी का दावा है कि वह सहयोग और समर्थन यदि न करते तो अशोक कंतूर को आधे वोट भी नहीं मिल पाते । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल और विनय भाटिया यदि धोखा न देते तो अशोक कंतूर ही विजयी होते । डिस्ट्रिक्ट में मजेदार सीन यह बना दिख रहा है कि अधिकतर लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर की पराजय के लिए जहाँ रवि चौधरी की बदनामी और उनकी हरकतों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं रवि चौधरी दावा कर रहे हैं कि उनके कारण ही अशोक कंतूर को ठीक ठाक वोट मिल सके हैं, अन्यथा अशोक कंतूर की बहुत ही बुरी हालत होती । अशोक कंतूर की पराजय से अजीत जालान के लिए अजीब सी समस्या पैदा हो गई है । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने की मुहिम में रवि चौधरी के साथ बढ़चढ़ कर भूमिका निभाने वाले अजीत जालान को अगले रोटरी वर्ष के चुनाव में रवि चौधरी ने अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा की हुई है । रवि चौधरी की बदनामी और उनकी हरकतों के कारण अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के हश्र ने लेकिन अजीत जालान को डरा दिया है । अजीत जालान को लग रहा है कि रवि चौधरी के उम्मीदवार होने का ठप्पा लगने से कहीं उनका हाल भी अशोक कंतूर जैसा न हो । अजीत जालान के सामने समस्या की बात यह भी है कि अशोक कंतूर यदि अगले वर्ष फिर उम्मीदवार हुए तो उनकी उम्मीदवारी का क्या होगा ?