Sunday, November 29, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए राज चावला की सक्रियता व संलग्नता तथा विजय गुप्ता की सुरक्षित होती दिख रही स्थिति ने हंसराज चुग के लिए मुकाबले को मुश्किल बनाया

नई दिल्ली । राज चावला की चौतरफा सक्रियता और विजय गुप्ता की स्थिति को संभालने की कोशिशों ने हंसराज चुग के सामने गंभीर मुसीबत खड़ी कर दी है । हंसराज चुग के लिए परेशानी की बात यह हुई है कि उनकी इस मुसीबत के लिए उन्हें ही जिम्मेदार भी ठहराया जा रहा है । हंसराज चुग के कुछेक समर्थक ही कहने लगे हैं कि हंसराज चुग यदि कामयाब नहीं हुए तो इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि वह खुद ही जिम्मेदार होंगे । इसमें कोई शक नहीं कि हंसराज चुग को शुरू से ही संभावित विजेताओं में गिना/पहचाना जाता रहा है । लेकिन जैसे जैसे चुनाव में गर्मी आती गई, वैसे वैसे हंसराज चुग की स्थिति को पीछे खिसकता हुआ पाया गया है । उम्मीदवारों की सक्रियता और उनके तौर-तरीकों पर नजर रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि अपनी उम्मीदवारी के अभियान में हंसराज चुग कभी भी एक लीडर वाला प्रभाव पैदा नहीं कर सके और वह सिर्फ एक कार्यकर्त्ता और एक अच्छे दोस्त की छवि ही बनाए रख पाए । एक कार्यकर्त्ता और एक अच्छे दोस्त की छवि किसी भी उम्मीदवार के लिए आधार तैयार करने और/या नींव बनाने का काम तो करती है, लेकिन इस आधार/नींव पर 'इमारत' खड़ी करने के लिए उम्मीदवार को उक्त छवि का अतिक्रमण करना होता है - हंसराज चुग जिसे नहीं कर पाए । इसी कारण से हंसराज चुग की स्थिति को डांवाडोल होते हुए देखा जा रहा है ।
हंसराज चुग और उनके समर्थक एक अच्छे कार्यकर्त्ता और एक अच्छे दोस्त की छवि के भरोसे चुनाव में जीतने की उम्मीद करते रहे, लेकिन इस छवि के मामले में उन्हें राज चावला से तगड़ी चुनौती मिली । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के जानकारों का कहना है कि जो लोग एक अच्छे कार्यकर्त्ता और एक अच्छे दोस्त के आधार पर मूल्यांकन करते हुए वोट देने का फैसला करेंगे, उनमें से ज्यादातर हंसराज चुग की बजाए राज चावला के साथ जाना चाहेंगे । लोगों के साथ संपर्क बनाए रखने तथा उनके बीच सक्रिय रहने के मामले में राज चावला का पलड़ा ज्यादा भारी है । हंसराज चुग के समर्थकों ने भी इस तथ्य को पहचाना तथा इससे निपटने के लिए प्रचारित किया कि राज चावला कभी किसी के काम नहीं आए, जबकि हंसराज चुग ने कई लोगों को बैंक ऑडिट दिलवाएँ हैं - और इस तरह से लोगों के काम आए हैं । इस प्रचार ने लेकिन उल्टा काम किया । हंसराज चुग के समर्थकों के दावे को एंडोर्स करने के लिए तो कोई भी आगे नहीं आया, कई लोगों की यह शिकायतें जरूर सामने आईं कि वायदा करने के बाद भी हंसराज चुग ने छोटे छोटे मामलों में भी उनकी कोई मदद नहीं की । इस तरह समर्थकों का प्रचार उल्टा पड़ा, और इससे भी हंसराज चुग की उम्मीदवारी को झटका लगा । राज चावला की तरफ से चूँकि किसी झूठे और/या अतिरेकी प्रचार का सहारा नहीं लिया गया, इसलिए उनकी उम्मीदवारी के अभियान को कोई झटका लगने वाली स्थिति नहीं बनी । हंसराज चुग के प्रचार अभियान की तरह राज चावला के प्रचार अभियान में भी हालाँकि आक्रामकता का अभाव रहा/दिखा, और इस तरह खूबियों व कमियों के मामले में यह दोनों एक ही धरातल पर खड़े दिखे/मिले । 
राज चावला ने सक्रियता और संलग्नता का जो स्तर प्रदर्शित किया, वह भी हंसराज चुग के लिए चुनौती बना । एक उम्मीदवार के रूप में राज चावला ने सघन अभियान चलाया और प्रत्येक ब्रांच में लोगों के बीच अपनी उपस्थिति व सक्रियता को जिस तरह से संभव बनाया, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी ने ऊँची छलाँग लगाई है - और उनकी यही ऊँची छलाँग हंसराज चुग के लिए मुसीबत बन गई है । राज चावला ने पंजाब और हरियाणा में जो काम किया है, उसके भरोसे यहाँ की ब्रांचेज में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अच्छा समर्थन जुटाया है । राज चावला की उम्मीदवारी के बारे में लोगों के बीच जोरदार चर्चा यह है कि उन्हें मिलने वाले पहली वरीयता के वोटों की गिनती को लेकर भले ही संशय हो, लेकिन दूसरी वरीयता के वोट उन्हें थोक में मिलने जा रहे हैं । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना/कहना है कि राज चावला को प्रायः प्रत्येक उम्मीदवार के दूसरी वरीयता के वोट मिल रहे हैं - और यही दूसरी वरीयता के वोट राज चावला की उम्मीदवारी की ताकत बन रहे हैं । राज चावला की उम्मीदवारी को मिलती दिख रही यह ताकत हंसराज चुग के लिए मुसीबत बन गई है । 
हंसराज चुग के लिए इससे भी बड़ी मुसीबत विजय गुप्ता की सुधरती दिख रही स्थिति से भी बनी है । अभी कुछ समय पहले तक विजय गुप्ता की स्थिति को बहुत ही खराब रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । विजय गुप्ता की खराब स्थिति में हंसराज चुग के लिए अच्छा मौका बनता देखा जा रहा था, लेकिन अब जब विजय गुप्ता की स्थिति सुधरती नजर आ रही है - तो हंसराज चुग की उम्मीदवारी पर ही तलवार लटकती दिख रही है । इसे चंडीगढ़ के उदाहरण से समझा/पहचाना जा सकता है । चंडीगढ़ में पिछली बार जिन लोगों ने विजय गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन किया था, उनमें से कुछेक लोग इस बार हंसराज चुग के साथ देखे जा रहे हैं - इस आधार पर उम्मीद की गई थी कि जिन लोगों ने पिछली बार विजय गुप्ता को समर्थन और वोट दिया था, इस बार उनका समर्थन और वोट हंसराज चुग को मिलेगा । किंतु देखने में यह आया है कि हंसराज चुग उन सभी का समर्थन और वोट जुटाने में असफल रहे और कई लोगों को विजय गुप्ता के समर्थन में लौटते हुए देखा/पहचाना गया । विजय गुप्ता की राजनीति को नजदीक से देखने/जानने वाले लोगों का मानना और कहना भी है कि विजय गुप्ता चुनाव अभियान के अंतिम दौर में जो रणनीति अपनाते हैं, उससे माहौल को अपने पक्ष में कर ही लेते हैं । इस बार विजय गुप्ता  को इस बात का भी फायदा मिलता दिख रहा है कि जिन उम्मीदवारों की जीतने की उम्मीद दिख भी रही है, उनमें से किसी की भी जीत के बारे में विश्वास के साथ दावा किए जाने की स्थिति नहीं बनी है । उल्लेखनीय है कि हंसराज चुग, राज चावला, संजय वासुदेवा, सुधीर अग्रवाल, एसएस शर्मा, विशाल गर्ग आदि जिन उम्मीदवारों में संभावित विजेताओं को देखा/पहचाना जा रहा है - उनमें किसी की भी स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि उसकी जीत को सुनिश्चित माना जाए । इस तरह कोई भी नया उम्मीदवार विजय गुप्ता के लिए चुनौती बनता नहीं दिख रहा है - और यही स्थिति विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को सुरक्षित किए दे रही है । विजय गुप्ता की स्थिति के सुरक्षित होते जाने ने नए उम्मीदवारों के लिए मुकाबले को और मुश्किल बना दिया है । मुश्किल बने मुकाबले के कारण हंसराज चुग के लिए मुसीबत और बढ़ गई है ।