Friday, November 6, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की फरीदाबाद ब्रांच में विजय गुप्ता, दीपक गर्ग और तेजेंद्र भारद्वाज को क्लीन चिट देने की गुमनाम कोशिश से साबित है कि बेईमान लोग कायर भी हैं

फरीदाबाद । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की फरीदाबाद ब्रांच में ऑडीटोरियम बनाने में हुए घपले की जिम्मेदारी थोपने को लेकर फरीदाबाद में आरोपों-प्रत्यारोपों का जो खेल चल रहा है, वह अब उस मुकाम तक जा पहुँचा है - जहाँ 'नंगे' हुए लोग यह साबित करने का प्रयास करने में जुट गए हैं कि 'हमाम में तो सभी नंगे थे'; और अपने इस प्रयास में वह हमाम से बाहर आने को भी तैयार हो गए हैं - यानि उनका जो नंगापन अभी तक दूसरे लोग दिखा रहे थे, उसे अब वह खुद ही दिखाने को तैयार हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि फरीदाबाद ब्रांच में आर्थिक घपलों को लेकर अभी तक विजय गुप्ता, दीपक गर्ग और तेजेंद्र भारद्वाज निशाने पर थे; लेकिन अभी हाल में सामने आए एक गुमनाम पत्र में दावा किया गया है कि इन बेचारों ने तो इंस्टीट्यूट की गाइडलाइंस के अनुसार ही काम किया था, और घपलों के लिए वास्तव में जिम्मेदार तो विपिन शर्मा हैं । गौर करने वाला तथ्य यह है कि फरीदाबाद ब्रांच में घपलों के लिए जो लोग विजय गुप्ता, दीपक गर्ग और तेजेंद्र भारद्वाज को जिम्मेदार ठहराते हैं - वह जाने/पहचाने लोग हैं और जो अपनी पहचान के साथ आरोप लगाते रहे हैं तथा सुबूत पेश करते रहे हैं; किंतु जिन लोगों ने घपलों के लिए विपिन शर्मा को जिम्मेदार ठहराया है, उन्होंने अपनी पहचान छिपा कर यह काम किया है । यानि उनमें न तो अपनी पहचान बताने का साहस है, और न उन्होंने सीधे विपिन शर्मा का नाम लिया है । इस तरह से उन्होंने साबित किया है कि जो बेईमान और कायर थे, वह बेईमान और कायर ही रहेंगे । यह कौन लोग हैं ? गुमनाम पत्र में जिस तरह से विजय गुप्ता, दीपक गर्ग और तेजेंद्र भारद्वाज को क्लीन चिट देने की फूहड़ सी कोशिश की गई है, उससे स्पष्ट रूप से जाहिर/साबित है कि इस गुमनाम पत्र के पीछे यही लोग हैं ।
उल्लेखनीय बात यह भी है कि इन चारों लोगों में विजय गुप्ता सेंट्रल काउंसिल की तथा दीपक गर्ग रीजनल काउंसिल की सीट बचाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं, और यह दोनों गुरु-चेले के रूप में पहचाने जाते हैं; तेजेंद्र भारद्वाज और विपिन शर्मा रीजनल काउंसिल में प्रवेश करने के लिए प्रयासरत हैं । तेजेंद्र भारद्वाज एक समय विजय गुप्ता गिरोह के सदस्य हुआ करते थे, लेकिन गिरोह में नंबर दो की दौड़ में दीपक गर्ग से पिछड़ जाने के कारण वह हालाँकि गिरोह से अलग हो गए थे, किंतु ब्रांच में मची लूट में चूँकि उनकी भी भागीदारी को रेखांकित किया जाता है, इसलिए उन्हें भी विजय गुप्ता गिरोह के साथ ही देखा जाता है ।  विपिन शर्मा अपने आप को प्रोफेशन में 'ट्रू सेवक' के रूप में प्रस्तुत करते हैं । मजे की बात यह है कि फरीदाबाद में जो लोग विजय गुप्ता गिरोह की कारस्तानियों को उद्घाटित करते हैं, उन्हें विपिन शर्मा के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विजय गुप्ता और उनके गिरोह के सदस्यों के लिए मुसीबत की बात यह है कि करीब दो हजार की सदस्यता वाली फरीदाबाद ब्रांच में उन्हें एक व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जो अपनी पहचान के साथ उनकी करतूतों की वकालत कर सके, और इसलिए ही उन्हें गुमनाम पत्र का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । यानि जिन लोगों पर बेईमान और कायर होने के आरोप रहे, वह बेईमान और कायर ही साबित हुए । 
फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग में घपलों का मामला मुख्य रूप से पिछली टर्म से शुरू हुआ, जबकि ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में दूसरे कुछेक लोगों के साथ विजय गुप्ता के पार्टनर महेश गोयल, दीपक गर्ग, तेजेंद्र भारद्वाज व विपिन शर्मा भी होते थे । ब्रांच बिल्डिंग कमेटी के अध्यक्ष विजय गुप्ता रहे हैं । ऑडिट रिपोर्ट में ब्रांच बिल्डिंग में अनियमितता/फ्रॉड बताया गया । एक तर्क यह बनता है कि ब्रांच बिल्डिंग में यदि घपला हुआ, तो ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सभी सदस्य उसके लिए जिम्मेदार हुए । यह तर्क घपले के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाने का काम करता है; क्योंकि जब सभी को जिम्मेदार बता दिया गया तो मामले को रफा-दफा करना आसान हो जाता है । और यदि इस तर्क को सच मान भी लिया जाए, तो यह सवाल तो फिर भी बचा रह जाता है कि घपले के जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की/करवाई गई ? इसलिए देखने/समझने की बात यह है कि जब घपले का मामला सामने आया, तो किस किस का क्या क्या रवैया था ? कौन मामले को छिपाना/दबाना चाहता था, और कौन घपलेबाजों को पकड़ना/पकड़वाना चाहता था ? इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में फरीदाबाद ब्रांच की बिल्डिंग के घपले का मामला संजीव चौधरी ने उठाया था, और उन्होंने फंड रोक देने की सिफारिश की थी - जिसका विजय गुप्ता ने जोरदार तरीके से विरोध किया था । विजय गुप्ता का कहना था कि ऑडिट रिपोर्ट में जिसे अनियमितता कहा गया है - उसका संबंध पैसों की हेराफेरी से नहीं है, बल्कि व्यवस्थासंबंधी ऊँच-नीच से है; और इस आधार पर फंड रोकना अन्याय होगा । 
यह विजय गुप्ता ही हैं, जिनकी शह पर ब्रांच के फंड इस्तेमाल करने की प्रक्रिया से ट्रेजरर को बाहर करने/रखने के काम हुए । तेजेंद्र भारद्वाज के चेयरमैन-काल में ट्रेजरर रहे विपिन मंगला ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को लिख कर आरोप लगाया था कि उन्हें ट्रेजरर की जिम्मेदारी नहीं निभाने दी जा रही हैं । विजय गुप्ता की लॉबीइंग के चलते तत्कालीन प्रेसीडेंट ने इस शिकायत पर कान नहीं दिया । उसके अगले वर्ष, सेक्रेटरी के रूप में विपिन मंगला ने ऑडिटोरियम के खर्चे का स्पेशल ऑडिट करने की माँग करते हुए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को फिर एक पत्र लिखा था, लेकिन विजय गुप्ता ने उसकी भी कोई सुनवाई नहीं होने दी । उल्लेखनीय है कि फरीदाबाद ब्रांच में मोटे तौर पर दो ग्रुप बन गए थे - एक ग्रुप का नेतृत्व विजय गुप्ता के हाथ में था; और विजय गुप्ता ने हमेशा यह प्रयास किया कि चेयरमैन पद उनके गिरोह के पास ही रहे, जिससे कि वह अपनी बेईमानियों पर पर्दा डाले रह सकें और बेईमानियों को करने का मौका बनाए रख सकें । दूसरे ग्रुप में वह लोग थे जो समय समय पर आरोप लगाते रहे और जाँच कराए जाने की माँग करते रहे । विपिन शर्मा इस दूसरे ग्रुप में थे । चेयरमैन पद अपने हाथ में रखने के लिए विजय गुप्ता को जब भी जरूरी लगा, एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में उन्होंने अपने वोट का इस्तेमाल किया । अपने वोट का इस्तेमाल करते हुए विजय गुप्ता ने विपिन शर्मा को दरअसल इसीलिए चेयरमैन नहीं बनने दिया, क्योंकि उन्हें डर रहा कि विपिन शर्मा चेयरमैन बन गए तो ब्रांच बिल्डिंग के घपले सामने आ जायेंगे, और वह तथा उनके साथी फँसेंगे । विजय गुप्ता को चूँकि पत्थर पर अपना नाम लिखवाना था, इसलिए उन्होंने हर धतकर्म किया और अपने साथियों से साथ भी फरेब करने से नहीं चूके । विजय गुप्ता, दीपक गर्ग, तेजेंद्र भारद्वाज की तिकड़ी ने ब्रांच बिल्डिंग के घपले के मामले को कभी भी ब्रांच की एजीएम में नहीं उठने/आने दिया; और विजय गुप्ता ने सेंट्रल काउंसिल में कभी इस मामले को उठाने का प्रयास तक नहीं किया । जैसा कि पहले बताया गया है कि सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग में संजीव चौधरी ने मामला उठाया भी, तो विजय गुप्ता ने उनका विरोध किया ।  
इन तथ्यों से जाहिर है कि विजय गुप्ता और उनके गिरोह के लोगों ने न सिर्फ ब्रांच बिल्डिंग में घपला किया, बल्कि घपले को छिपाने व दबाए रखने के लिए अनैतिक किस्म की राजनीति भी की; और अब कायरों की तरह अपनी पहचान छिपा कर लोगों को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि घपला तो उन्होंने किया था, जो बार-बार जाँच कराए जाने की माँग करते रहे हैं । विपिन शर्मा, विपिन मंगला आदि का यह दोष तो माना जा सकता है कि उन्होंने घपलेबाजों को रोकने/पकड़ने का और और ज्यादा प्रयास नहीं किया - उन्हें और ज्यादा प्रयास करना चाहिए था; लेकिन इस दोष के कारण उन्हें घपलेबाजों से भी बड़ा दोषी मानना घपलेबाजों को सम्मान देने जैसा काम है । यह काम भी लेकिन जिस तरह गुमनाम रह कर किया जा रहा है, उससे साबित है कि बेईमान लोग कायर भी हैं ।