गाजियाबाद । सुभाष जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मिली जीत की खुशी मनाने के उद्देश्य से हुई पार्टी में सतीश सिंघल की मौजूदगी पर वहाँ मौजूद लोगों को खासी हैरानी हुई, और अपनी अपनी हैरानी को प्रकट करने के लिए लोगों ने मजे मजे की बातें की तथा चुस्कियाँ लीं । यह इसलिए हुआ क्योंकि सतीश सिंघल को शुरू से ही सुभाष जैन की उम्मीदवारी के विरोध में देखा/पहचाना जा रहा था । उन्होंने सुभाष जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों को तोड़ने तथा उन्हें पहले अशोक गर्ग तथा बाद में दीपक गुप्ता के समर्थन में लाने का हर संभव प्रयास किया था । मजे की बात हालाँकि यह भी थी कि सतीश सिंघल को सुभाष जैन से कोई खास शिकायत नहीं थी; और उन्होंने कई एक लोगों से कहा भी कि उन्हें तो रमेश अग्रवाल से बदला लेना है, और सुभाष जैन चूँकि रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं इसलिए उन्हें सुभाष जैन का विरोध करना है । सुभाष जैन ने उन्हें अपने साथ/समर्थन में लाने के लिए काफी पापड़ बेले, लेकिन सतीश सिंघल उनके समर्थन में आने के लिए तैयार नहीं हुए । सुभाष जैन के नजदीकियों का कहना है कि उम्मीदवार के रूप में सुभाष जैन ने सबसे ज्यादा सतीश सिंघल पर ही 'काम' किया, लेकिन सतीश सिंघल ने उनके काम का कोई मान नहीं रखा । वही सतीश सिंघल लेकिन जीत का नतीजा आने के कुछ ही घंटों के भीतर हुई जीत की पार्टी में शामिल होने पहुँचे तो सुभाष जैन के समर्थकों को जैसे मजा लेने का मौका मिल गया ।
सुभाष जैन की जीत की पार्टी में सतीश सिंघल की उपस्थिति को लेकर पार्टी में मौजूद कई लोगों ने जहाँ मजे लिए, वहाँ कुछेक ने उनकी उपस्थिति को संदेह से भी देखा । पार्टी में सतीश सिंघल की उपस्थिति को संदेह से देखने वाले लोगों का कहना रहा कि यहाँ सतीश सिंघल कहीं सुभाष जैन की 'चुनावी ताकत' का अंदाजा करने तो नहीं आए हैं ? यह संदेह इसलिए भी पैदा हुआ क्योंकि जिस समय सुभाष जैन की जीत की पार्टी चल रही थी, ठीक उसी समय मुकेश अरनेजा के कुछेक नजदीकी आगे की राजनीति को लेकर माथापच्ची कर रहे थे । वह दो विकल्पों को लेकर आपस में उलझे हुए थे - कभी उन्हें लगता कि सुभाष जैन को अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चेलैंज किया जाए और चुनाव की स्थितियाँ बनाई जाएँ; लेकिन कभी उन्हें लगता कि चुनाव में भी उन्हें हारना ही पड़ेगा, इसलिए बेहतर होगा कि चुनावी प्रक्रिया में बरती गई कुछेक अनियमितताओं का सहारा लेकर सुभाष जैन के चुने जाने के फैसले को निरस्त कराने की लड़ाई में उतरा जाए । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में मुकेश अरनेजा को कुछ न कुछ करना जरूरी लग रहा है; और यह समझने की कोशिश में कि क्या किया जाए, मुकेश अरनेजा तथा उनके नजदीकियों ने कुछेक लोगों से बात भी की । मुकेश अरनेजा तथा उनके नजदीकियों की इस सक्रियता की पृष्ठभूमि में सुभाष जैन की जीत की पार्टी में सतीश सिंघल की उपस्थिति को लेकर संदेह बना ।
सतीश सिंघल को नजदीक से जानने/पहचानने वाले कुछेक लोगों का हालाँकि यह भी कहना रहा कि रमेश अग्रवाल से निजी खुंदक रखने के चलते सतीश सिंघल ने मुकेश अरनेजा के साथ तार भले ही जोड़ लिए हों, लेकिन मुकेश अरनेजा की हर हरकत में वह शामिल नहीं हो सकते हैं । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के बीच भी सतीश सिंघल की स्थिति विश्वसनीय नहीं रह गई है । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों ने दीपक गुप्ता की इस बुरी हार के लिए सतीश सिंघल की तरफ से मिले धोखे को जिम्मेदार ठहराया है । उनका आरोप है कि सतीश सिंघल ने उन्हें उल्लू बनाया : वह उन्हें दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का सहयोग व समर्थन करने का भरोसा तो देते रहे, लेकिन वास्तव में उनके लिए किया कुछ नहीं । इस तरह की बातों से लगता है कि सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच हुए चुनाव में सबसे ज्यादा फजीहत बेचारे सतीश सिंघल की ही हुई है । सुभाष जैन के समर्थक मानते/जानते और कहते हैं कि सतीश सिंघल ने दीपक गुप्ता का समर्थन किया; और दीपक गुप्ता के समर्थक उन पर धोखा करने का आरोप मढ़ते हैं ।
सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि स्पष्ट फैसला न करने तथा ज्यादा चतुराई दिखाने के चक्कर में सतीश सिंघल ने अपनी ऐसी दशा बना ली है कि वह किसी का भी विश्वास नहीं जीत सके, और हर कोई उन्हें और उनकी भूमिका को संदेह से देखता है । उनकी यह दशा इसलिए भी बनी, क्योंकि उन्होंने नकारात्मक सोच रखी । वह वास्तव में न अशोक गर्ग के साथ थे, और न दीपक गुप्ता के साथ थे; वह इनके समर्थन में सिर्फ इस कारण से दिख रहे थे क्योंकि वह सुभाष जैन के खिलाफ थे - और सुभाष जैन के भी वह इसलिए खिलाफ थे क्योंकि उन्हें रमेश अग्रवाल से बदला लेना था । नजदीकियों के अनुसार ही, सतीश सिंघल को लेकिन जब समझ में आ गया कि उनके लिए सुभाष जैन के समर्थकों को तोड़ पाना संभव नहीं होगा, तो उन्होंने उस संबंध में प्रयास करना ही छोड़ दिया । दीपक गुप्ता के समर्थक उनके खिलाफ दरअसल इसीलिए भड़के हुए हैं, क्योंकि उन्होंने सुभाष जैन के समर्थकों के बीच सेंध लगाने में कोई खास दिलचस्पी ली ही नहीं । सतीश सिंघल बेचारे उन्हें यह कैसे बताते कि वह दिलचस्पी तो खूब ले रहे हैं, लेकिन उनकी चल नहीं रही है; उनकी कोई सुन/मान नहीं रहा है । सतीश सिंघल अंत तक लेकिन दीपक गुप्ता के समर्थकों को दीपक गुप्ता के साथ बने रहने के लिए जरूर प्रोत्साहित करते रहे । सुभाष जैन के समर्थक कारण उन्हें अपने विरोध में मानते/देखते रहे । वास्तव में इसीलिए, सुभाष जैन की जीत की पार्टी में सतीश सिंघल को शामिल देख कर सुभाष जैन के समर्थकों को हैरानी हुई । इस हैरानी में हालाँकि उन्होंने मजे खूब लिए, और यह समझने की कोशिश कि सुभाष जैन को हरवाने की कोशिशों में जुटे रहने वाले सतीश सिंघल - सुभाष जैन की जीत की पार्टी में आखिर आए क्या करने थे ?