Thursday, November 12, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार रतन सिंह यादव अपने चुनाव अभियान में किए गए झूठे दावे के 'पकड़े जाने' के कारण मुसीबत में फँसे

नई दिल्ली । रतन सिंह यादव अपने एक घनघोर किस्म के समर्थक जयदीप सिंह गुसाईं के कारण भारी फजीहत का शिकार हो गए हैं - जिसके चलते उन्हें और उनके समर्थकों को लोगों के बीच से भागना/छिपना पड़ रहा है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार रतन सिंह यादव तथा उनके घनघोर समर्थक जयदीप सिंह गुसाईं दरअसल उस 'सोच' के शिकार हो गए जिसमें चुनावी जोश में उम्मीदवार और उनके समर्थक लंबी-लंबी फेंकने लगते हैं - वह समझते हैं कि लोग मूर्ख हैं और कुछ जानते/समझते नहीं हैं; तथा उन्हें अपनी झूठी बातों से उल्लू बनाया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि इसी सोच के चलते जयदीप सिंह गुसाईं ने ऊँची ऊँची बातों से रतन सिंह यादव की तारीफों के पुल बाँधते हुए दावा किया कि रतन सिंह यादव इंस्टीट्यूट की 'कई' कमेटियों में रहे हैं । उनके इस दावे पर सवाल उठे और उनसे पूछा गया कि रतन सिंह यादव इंस्टीट्यूट की कौन कौन सी कमेटियों में कब कब रहे ? यह सीधा सा और आसान सा सवाल सुनकर जयदीप सिंह गुसाईं के होश उड़ गए । इस सवाल की उन्हें उम्मीद ही नहीं थी । उन्होंने तो सोचा यह था कि वह जो कुछ भी अंटशंट बकेंगे, लोग उसे चुपचाप सुन लेंगे और मान लेंगे । उनकी बदकिस्मती से किंतु ऐसा नहीं हुआ । उनके दावे के झूठ को लोगों ने तुरंत 'पकड़' लिया । 
जयदीप सिंह गुसाईं ने हालाँकि शुरू में साहस दिखाया और वह सवाल का सामना करते हुए दिखे भी - उन्होंने घोषणा की कि वह दो-तीन दिन में इंस्टीट्यूट की उन कमेटियों के नाम बतायेंगे, जिनमें रतन सिंह यादव रहे हैं । यह घोषणा करते हुए वह फिर लोगों को मूर्ख समझने वाली सोच का शिकार हुए । दरअसल उन्होंने सोचा कि दो-तीन में लोग बात भूल जायेंगे और उनका झूठ बेनकाब होने से बच जायेगा । उनकी बदकिस्मती लेकिन उनके पीछे पीछे चल रही थी । लोग बात को भूले ही नहीं, और सवाल दोहराते रहे । बात बढ़ती देख रतन सिंह यादव ने खुद मोर्चा सँभाला, लेकिन सँभालने की बजाये उन्होंने बात को और बिगाड़ दिया । बात को रफा-दफा करने के उद्देश्य से रतन सिंह यादव ने कहा कि अभी मैं चुनाव अभियान में व्यस्त हूँ, चुनाव पूरा होने पर मैं उन कमेटियों के नाम बतायूँगा जिनमें मैं रहा हूँ । रतन सिंह यादव से यह सुनकर मामला और भड़क गया । लोगों ने रतन सिंह यादव और जयदीप सिंह गुसाईं को बुरी तरह हड़काया कि लोगों को मूर्ख समझते हो तथा झूठे दावे करते हो । लोगों की नाराजगी और अपनी फजीहत देख कर जयदीप सिंह गुसाईं ने सोशल साइट पर से उक्त दावा करने वाली अपनी पोस्ट को हटा लिया । अपने दावे से भागने/छिपने की उनकी इस कार्रवाई से लोगों के बीच नाराजगी और बढ़ी । लोगों का कहना है कि जयदीप सिंह गुसाईं और रतन सिंह यादव को या तो इंस्टीट्यूट की उन 'कई' कमेटियों के नाम बताने चाहिये जिनमें रतन सिंह यादव के होने/रहने के दावे किए गए, अन्यथा अपनी इस हरकत के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से माफी माँगनी चाहिए तथा वायदा करना चाहिए कि अपनी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान में वह कोई झूठा दावा नहीं करेंगे । रतन सिंह यादव और जयदीप सिंह गुसाईं अभी तक इन दोनों में से कोई भी काम नहीं कर सके हैं, तथा छिप-छिपाकर यह उम्मीद बनाये हुए हैं कि जल्दी ही यह बबाल अपने आप थम जायेगा । 
जयदीप सिंह गुसाईं के जोशो-खरोश ने रतन सिंह यादव को जैसा फँसाया है, उसने लोगों को सुधीर कत्याल द्वारा हरित अग्रवाल को फँसाए जाने का मामला याद दिला दिया है । सुधीर कत्याल ने जीएमसीएस के मुद्दे को लेकर बेबकूफ़ाना तरीके से बड़ी उछल-कूद मचाई थी । उन्होंने इस बात पर गौर ही नहीं किया कि उनकी इस उछल-कूद से उनके ही उम्मीदवार हरित अग्रवाल का ही बंटाधार हो रहा है । हरित अग्रवाल ने जब उनके कान उमेंठे, तब जीएमसीएस के मुद्दे को उन्होंने छोड़ा । सुधीर कत्याल जैसे समर्थक की बेबकूफ़ाना हरकत से हरित अग्रवाल का जितना जो नुकसान हुआ, वह तो एक अलग बात है; अब लेकिन यह दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है कि सुधीर कत्याल जैसे 'महान नेता' की महानता अब सिर्फ गेट-टु-गेदर की सूचना देने लायक ही बची रह गई है । 
पहले हरित अग्रवाल और अब रतन सिंह यादव अपने अपने घनघोर समर्थक के बेबकूफ़ाना जोश-खरोश के कारण जिस फजीहत का शिकार बने हैं, उसे देख कर दूसरे उम्मीदवारों को अपने अपने समर्थकों पर निगाह रखने की जरूरत महसूस हुई है । हरित अग्रवाल और रतन सिंह यादव की हालत देख कर लगता है कि जोशीले समर्थक मदद कम करते हैं, मुसीबत ज्यादा पैदा करते हैं ।