फरीदाबाद/नई दिल्ली । फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग के घपले की जाँच कराये जाने की माँग करते हुए विजय गुप्ता ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को जो पत्र लिखा है, उसने पंकज त्यागी तथा अतुल गुप्ता को बुरी तरह बेचैन कर दिया है । विजय गुप्ता के उक्त पत्र को सरसरी तौर पर पढ़ने वालों को तो उक्त पत्र के पीछे विजय गुप्ता की अपने को बचाने व पाक-साफ दिखाने की कोशिश नजर आती है; लेकिन पंकज त्यागी तथा अतुल गुप्ता ने पत्र की बिटविन-द-लाइंस को पढ़ा है, और यह समझने में देर नहीं की है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को लिखे इस पत्र के जरिए विजय गुप्ता ने दरअसल उन्हें निशाने पर लेने का प्रयास किया है । मजे की बात यही है कि विजय गुप्ता ने अपने पत्र में इनका कहीं कोई जिक्र नहीं किया है, लेकिन फिर भी विजय गुप्ता के उक्त पत्र के सार्वजनिक होने के बाद से इन दोनों के होश उड़े हुए हैं । अपने पत्र में विजय गुप्ता ने इस तथ्य को खास तौर से रेखांकित करके बाजी पलटने तथा पंकज त्यागी व अतुल गुप्ता को निशाने पर लाने की जमीन तैयार की है कि 2010 से 2012 के बीच जब ब्रांच बिल्डिंग का काम हुआ था, तब वह न तो काउंसिल के सदस्य थे और न ही किसी अन्य रूप में ब्रांच में संबद्ध थे - यानि बिल्डिंग के काम से उनका किसी भी तरह का कोई लेना-देना नहीं था । इस तथ्य के जरिए विजय गुप्ता दरअसल फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग के घपले में दिलचस्पी लेने वाले लोगों के बीच इस सवाल को उकसाने की कोशिश करते नजर आते हैं कि वर्ष 2010 से 2012 के बीच हुए ब्रांच बिल्डिंग के काम को इंस्टीट्यूट की तरफ से कौन सुपरवाइज कर रहा था ? इस सवाल में ही पंकज त्यागी और अतुल गुप्ता के लिए फजीहत के मौके छिपे हैं । फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग के घपले में दिलचस्पी लेने तथा सवाल उठाने वाले लोगों में से किसी ने भी अभी तक इस सवाल पर चूँकि गौर नहीं किया था, इसलिए पंकज त्यागी व अतुल गुप्ता इस मामले में मजे ले रहे थे और फरीदाबाद में विजय गुप्ता की मुसीबत के बीच वह अपनी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने व बढ़ाने के काम में लगे थे ।
विजय गुप्ता के मनोज फडनिस को लिखे पत्र ने लेकिन उनके मजे को अब किरकिरा कर दिया है । विजय गुप्ता तो अपने पत्र के जरिए सवाल उकसा कर किनारे हो गए, सवाल का जबाव दूसरों ने प्राप्त कर लिया और पाया/जाना कि उस दौरान हुए ब्रांच बिल्डिंग के काम को इंस्टीट्यूट की तरफ से सुपरवाइज करने की जिम्मेदारी पंकज त्यागी को सौंपी गई थी, और उस दौरान पंकज त्यागी बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन थे । ऐसे में, उस दौरान हुए घपले की जिम्मेदारी और जबावदेही क्या पंकज त्यागी की नहीं बनती है ? मजे की और पंकज त्यागी के लिए खुशकिस्मती की बात यह रही कि फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग में घपले को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों के मोटे तौर पर जो दो खेमे बने नजर आये, उनमें से किसी ने भी घपले में पंकज त्यागी की भूमिका को लेकर सवाल नहीं उठाया । ब्रांच बिल्डिंग में घपले को लेकर जो लोग विजय गुप्ता को घेरने की कोशिशों में जुटे, उन्होंने तो पंकज त्यागी की भूमिका पर गौर नहीं ही किया और पंकज त्यागी के 'अपराध' भी विजय गुप्ता के सिर मढ़ दिए; मजे की तथा हैरान करने की बात लेकिन यह रही कि विजय गुप्ता और उनके समर्थकों की तरफ से भी जो सफाईयाँ आईं, उनमें भी इस तथ्य का कोई जिक्र नहीं हुआ । पर अब जब इस मामले में बात काफी आगे बढ़ गई है, तब इस मामले की अभी तक ढकी/छिपी परतें खुलने लगीं हैं और इस प्रक्रिया में पंकज त्यागी की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है । फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग का ऑडिट करने के लिए इंस्टीट्यूट द्वारा नियुक्त की गई एलसी कैलाश एंड कंपनी ने जिन वित्तीय अनियमितताओं को रेखांकित किया है, उसके लिए बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन के नाते पंकज त्यागी भी जिम्मेदार और जबावदेह हैं । इस तथ्य के खुल जाने से पंकज त्यागी के लिए समस्या और मुसीबत की बात यह हो गई है कि उनके जिस 'अपराध' के लिए अभी तक विजय गुप्ता को 'पीटा' जा रहा था, उसके लिए अब उन्हें लपेटे में लिया जायेगा ।
फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग के घपले से जुड़ी यह परत खुली है तो इसके पीछे की राजनीति की परतें भी खुलने लगी हैं । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 से 2012 के बीच फरीदाबाद ब्रांच पर प्रमोद माहेश्वरी, एमएस लड्ढा, संजय चांडक, संतोष गुप्ता ग्रुप का कब्जा था - जो ब्रांच के पदाधिकारियों का चुनाव करने से लेकर ब्रांच में क्या/कैसे होगा तक के फैसले कर रहे थे । वर्ष 2009 के चुनाव में इस ग्रुप ने पंकज त्यागी का समर्थन किया था । उस चुनाव में पंकज त्यागी जीत गए थे, और विजय गुप्ता हार गए थे । इसका नतीजा यह रहा कि वर्ष 2010 से 2012 के बीच फरीदाबाद ब्रांच में इस ग्रुप का कब्जा पूरी तरह रहा, और इन्होंने विजय गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को पीछे धकेले रखा । पंकज त्यागी ने ब्रांच बिल्डिंग कमेटी के चेयरमैन पद की जिम्मेदारी लेकर इस ग्रुप के साथ अपनी मिलीभगत का रिश्ता और मजबूत कर लिया; ब्रांच बिल्डिंग के घपले की बंदरबाँट में मिलीभगत का यह रिश्ता भी सवालों के घेरे में है । वर्ष 2010 से 2012 के बीच फरीदाबाद ब्रांच की बिल्डिंग का निर्माण हो गया, उसमें घपला हो गया और उसकी बंदरबाँट भी हो गयी - लेकिन इस ग्रुप के साथ बदकिस्मती यह हुई कि 2012 के चुनाव में इनके समर्थन के बावजूद पंकज त्यागी चुनाव हार गए और विजय गुप्ता चुनाव जीत गए । इनकी बदकिस्मती ने इनका और पीछा किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2013 में ब्रांच बिल्डिंग में हुए घपले की पोल खुल गई । ऐसे में, घपले के लिए जिम्मेदार लोगों को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में एक मददगार की जरूरत महसूस हुई । यह जरूरत इन्हें अतुल गुप्ता के पास ले गई । अतुल गुप्ता को फरीदाबाद में अपनी राजनीतिक जमीन बढ़ाने की जरूरत थी ही, लिहाजा वह इनके साथ तालमेल बनाने के लिए तुरंत तैयार हो गए ।
मजे की बात यह रही कि फरीदाबाद बिल्डिंग के घपलों के लिए जिम्मेदार लोगों को अतुल गुप्ता से जिस मदद की दरकार थी, उनकी वह मदद विजय गुप्ता ने ही कर दी । घपले के जिम्मेदार लोगों पर इंस्टीट्यूट की जो तलवार गिर सकती थी, उसे विजय गुप्ता ने ही गिरने से रोक लिया । कुछेक लोगों को लगता है कि विजय गुप्ता ने ऐसा होशियारी के चलते किया, जो अंततः उनकी बेवकूफी साबित हुआ; अन्य कुछेक लोगों का मानना/कहना लेकिन यह है कि विजय गुप्ता ने जो किया वह उनका बेवकूफीभरा फैसला ही था और वह अंततः वही साबित भी हुआ । फरीदाबाद की राजनीति को नजदीक से देखने/समझने वाले लोगों का मानना/कहना है कि विजय गुप्ता दूसरों के 'अपराधों' के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने की राजनीति के चलते आज जिस मुसीबत में फँसे हुए हैं, वह अपनी खुद की करनी से ही फँसे हैं । दिलचस्प नजारा यह है कि वर्ष 2010 से 2012 के बीच ब्रांच बिल्डिंग के काम में घपला करने वाले लोगों को संरक्षण तो पंकज त्यागी व अतुल गुप्ता दे रहे हैं, और आरोपों व सवालों का सामना विजय गुप्ता को करना पड़ रहा है । यह परिदृश्य देख कर विजय गुप्ता के विरोधियों को भी यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि राजनीतिक चतुराई के मामले में विजय गुप्ता के विरोधी उन पर भारी पड़े हैं; और विजय गुप्ता अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता की कीमत चुका रहे हैं । पर अब लगता है कि जैसे विजय गुप्ता के सितारे जाग रहे हैं । दरअसल उनके तमाम विरोधी जो अभी तक एकजुट थे, अब बिखरते दिख रहे हैं - और उनके बिखरने में ही विजय गुप्ता को अपने लिए उम्मीद की किरण नजर आ रही है ।
फरीदाबाद की राजनीति में विजय गुप्ता विरोधी जो लोग पहले पंकज त्यागी के साथ थे और फिर अतुल गुप्ता के साथ आ गए थे, उनमें से कुछ को पंकज त्यागी पुनः अपने साथ जोड़ने में सफल हुए हैं । इनमें कुछेक लोग राजेश शर्मा की वकालत करते हुए भी सुने/देखे गए हैं । इस तरह, फरीदाबाद ब्रांच बिल्डिंग के घपले से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग अतुल गुप्ता, पंकज त्यागी व राजेश शर्मा के साथ खड़े दिख रहे हैं - जो अभी तक तो विजय गुप्ता को ही निशाने पर लिए हुए थे; लेकिन जो अब एक-दूसरे को भी गिराने के प्रयत्नों में भी लग गए हैं । मनोज फडनिस को विजय गुप्ता द्वारा लिखे गए पत्र ने उनके विरोधियों के बीच जो खलबली मचाई है, उससे उनके बीच के अंतर्विरोध और तल्ख होने लगे हैं; तथा उन्होंने अपनी अपनी खाल बचाने के उद्देश्य से विजय गुप्ता को भूल/छोड़ कर एक दूसरे को निशाना बनाना शुरू कर दिया है । इससे विजय गुप्ता के लिए राहत की स्थिति बनी है; लेकिन देखने की बात यह होगी कि इस स्थिति का वह कोई फायदा सचमुच में उठा पाते हैं या नहीं ? फरीदाबाद में ब्रांच बिल्डिंग के घपले की आड़ को लेकर विजय गुप्ता, पंकज त्यागी, अतुल गुप्ता, राजेश शर्मा के बीच जो राजनीति हो रही है - उसमें नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के लिए मजे की स्थिति बनी हुई है । फरीदाबाद में इन दोनों का जो समर्थन-आधार है, वह चूँकि इस झमेले से अलग है - इसलिए इन्हें इस झमेले से नुकसान तो कुछ होना नहीं है; इस झमेले के कारण जो नए समीकरण बनेंगे उनमें फायदा बनाने का मौका उन्हें जरूर मिल सकता है । विजय गुप्ता के मनोज फडनिस को लिखे पत्र से इसीलिए पंकज त्यागी व अतुल गुप्ता के सामने समस्या आ खड़ी हुई है ।