Tuesday, November 3, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी को मिल रहा जयपुर की बड़ी फर्मों का समर्थन श्याम लाल अग्रवाल की सीट के लिए सचमुच खतरा बनेगा क्या ?

जयपुर । श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों ने प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी को पहले भले ही गंभीरता से नहीं लिया हो, लेकिन अब उन्हें समझ में आने लगा है कि प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में उनकी वापसी को मुश्किल बना सकती है । दरअसल यह दोनों एक ही खेमे के हैं; और खेमे की तरफ से श्याम लाल अग्रवाल पिछली बार इस समझौते के तहत ही उम्मीदवार बने थे - कि अबकी बार श्याम लाल अग्रवाल और अगली बार प्रकाश शर्मा उम्मीदवार होंगे । उक्त समझौते के तहत इस बार प्रकाश शर्मा को उम्मीदवार होना था । श्याम लाल अग्रवाल ने लेकिन पिछली बार हुए समझौते को मानने से इंकार दिया और अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर दी । श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों को विश्वास रहा कि मौजूदा सेंट्रल काउंसिल में उनकी जो सक्रियता रही है, उससे उनका अपना एक खेमा बन गया है और इसलिए उन्हें अब पहले वाले खेमे के लोगों के सहयोग/समर्थन की कोई जरूरत नहीं है । इसके अलावा, उन्होंने यह भी माना/समझा कि पहले वाले खेमे के अधिकतर लोग भी उनके साथ सीधे जुड़ गए हैं - इसलिए उन्हें खेमे के नेताओं की परवाह करने की जरूरत नहीं है । श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों ने यह भी माना और कहा/बताया कि पिछली बार हुए समझौते का नाम लेकर खेमे के जो तथाकथित नेता प्रकाश शर्मा को उम्मीदवार बनाने की जिद पर अड़े हैं, उन्हें जल्दी ही वास्तविकता का अहसास हो जायेगा और फिर वह भी प्रकाश शर्मा का साथ छोड़ कर उनके समर्थन में आ जायेंगे । 
श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थक लेकिन यह देख/जान कर परेशान हो रहे हैं कि उन्होंने जैसा जो कुछ सोचा था, वैसा कुछ तो हो नहीं रहा है - बल्कि उल्टा ही हो रहा है । उम्मीदवार के रूप में प्रकाश शर्मा ने भी अपनी अच्छी सक्रियता दिखाई है, और खेमे के नेताओं की तरफ से भी उन्हें उम्मीद से ज्यादा सहयोग व समर्थन मिलता हुआ दिख रहा है । श्याम लाल अग्रवाल के ही कुछेक समर्थकों का कहना है कि पिछली बार हुए समझौते की श्याम लाल अग्रवाल ने जिस तरह से अवमानना की और खेमे के नेताओं को नीचा समझने/दिखाने का एटीट्यूड प्रदर्शित किया, उससे खेमे के नेताओं ने अपने आप को हर्ट व अपमानित महसूस किया है - और इसी की प्रतिक्रिया में वह अब श्याम लाल अग्रवाल को सबक सिखाने के लिए सक्रिय हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि खेमे की पहचान जयपुर की कुछेक बड़ी फर्म से है और जयपुर ही नहीं, बल्कि राजस्थान में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इन्हीं फर्मों का दबदबा रहा है । इन्हीं फर्मों ने प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी की कमान जिस तरह से सँभाल ली है, उसके कारण ही श्याम लाल अग्रवाल के लिए मामला गंभीर हो गया है । श्याम लाल अग्रवाल के ही नजदीकियों व समर्थकों का मानना/कहना है कि पिछली बार इन्हीं फर्मों का समर्थन श्याम लाल अग्रवाल की जीत का प्रमुख कारण था - इसलिए इस बार यदि इनका समर्थन नहीं मिल रहा है, तो श्याम लाल अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए मुश्किल पैदा होना स्वाभाविक ही है । 
प्रकाश शर्मा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय बड़ी फर्मों से श्याम लाल अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए जो चुनौती खड़ी हुई है, वह सेंट्रल काउंसिल के लिए राजस्थान के छह उम्मीदवार होने के कारण और गंभीर हो गई है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार राजस्थान से कुल तीन उम्मीदवार थे, और तीनों जयपुर के थे । इस बार जयपुर के चार उम्मीदवारों के साथ राजस्थान के छह उम्मीदवार हैं । इससे श्याम लाल अग्रवाल को दोहरा नुकसान है - एक तरफ तो उन्हें अपने ही खेमे के प्रमुख लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है; और दूसरी तरफ ज्यादा उम्मीदवार होने से वोट बँटने की जो स्थिति बनेगी, उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा । इससे भी बड़ी समस्या यह है कि राजस्थान की अधिकतर ब्रांचेज के लोगों में ऐंटी-जयपुर वाली जो भावना रहती है, उसका फायदा उठाने के लिए जयपुर से बाहर के दो उम्मीदवार हैं; और इसलिए राजस्थान की दूसरी ब्रांचेज के लोगों के लिए ऐंटी-जयपुर वाली भावना के बावजूद जयपुर के उम्मीदवारों के साथ जाने की मजबूरी नहीं है - और इससे जयपुर के उम्मीदवारों को नुकसान होना लाजिमी ही है । यहाँ श्याम लाल अग्रवाल के लिए समस्या की बात यह है कि दूसरी ब्रांचेज के जो लोग ऐंटी-जयपुर वाली भावना में नहीं भी पड़ेंगे/फँसेंगे, वह भी प्रोफेशनल कारणों से जयपुर की बड़ी फर्मों के कहे के अनुसार ही वोट देना चाहेंगे - और जहाँ श्याम लाल अग्रवाल की तुलना में प्रकाश शर्मा का पलड़ा भारी पड़ता है । 
श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों का हालाँकि दावा है कि प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन 'दिख' चाहें जो रहा हो, उस समर्थन को वोट में बदलने का मैनेजमेंट चूँकि उनके पास नहीं है - इसलिए वह उनके लिए कोई खतरा नहीं खड़ा कर पायेंगे । श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों का यह भी दावा है कि बड़ी फर्मों के लोग पार्टियों में तो इकट्ठा हो सकते हैं, लेकिन अपने उम्मीदवार को वोट नहीं दिला सकते । अपने इन दावों को तर्कपूर्ण बनाने हेतु उनका तर्क है कि प्रकाश शर्मा को आज जिन बड़ी फर्मों का समर्थन मिल रहा है, उनका समर्थन उन्हें वर्ष 2009 में भी मिला था - किंतु फिर भी प्रकाश शर्मा चुनाव में जीत नहीं पाए थे । जयपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के अनुसार, श्याम लाल अग्रवाल और उनके समर्थकों के इन तर्कों में सच्चाई हो सकती है - लेकिन सवाल प्रकाश शर्मा के जीतने या हारने को लेकर नहीं है; सवाल प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी के कारण श्याम लाल अग्रवाल की चुनावी संभावना पर पड़ने वाले असर को लेकर है । श्याम लाल अग्रवाल के ही समर्थकों के बीच चर्चा और स्वीकारोक्ति है कि प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी के कारण श्याम लाल अग्रवाल के लिए चुनावी मुकाबला खासा मुश्किल हो गया है । मजे की बात यह हुई है कि काउंसिल के सदस्य होने के नाते जिन श्याम लाल अग्रवाल की जीत को आसान और सुनिश्चित माना जा रहा था, प्रकाश शर्मा की उम्मीदवारी की हवा बनने के चलते उन्हीं श्याम लाल अग्रवाल की जीत को लेकर संदेह बनने लगा है ।