गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद में कई वरिष्ठ और प्रमुख सदस्यों के विरोध के कारण दीपक गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन को चेलैंज करने के फैसले को व्यवहार में लाना चुनौतीपूर्ण बन गया है । विरोध करने वाले इन वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों का कहना है कि उन्होंने दीपक गुप्ता को सलाह दी है कि लोगों का समर्थन प्राप्त करने के मामले में वह लगातार दूसरे वर्ष जिस तरह से असफल रहे हैं तथा जिस बड़े अंतर से असफल रहे हैं, उसके कारणों का उन्हें गहराई से विश्लेषण करना चाहिए; अपनी कमजोरियों को पहचानना चाहिए तथा ईमानदारी से उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए - और फिर उसके बाद उन्हें अपनी उम्मीदवारी के बारे में सोचना चाहिए । इन वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों ने दीपक गुप्ता को साफ साफ बता दिया है कि डिस्ट्रिक्ट में इस समय लोगों का जो मूड है, उसे देखते हुए चुनाव में जाने के फैसले में कोई अक्लमंदी नहीं है; नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले में सुंभाष जैन के साथ उनका जो अंतर रहा है, उसे देखते/समझते हुए कोई भी बता सकता है कि चुनाव में भी दीपक गुप्ता को असफलता ही हाथ लगेगी - और वह असफलता रोटरी की राजनीति के संदर्भ में दीपक गुप्ता के लिए ज्यादा बड़ी चोट होगी । कुछेक सदस्यों ने दीपक गुप्ता को आगाह किया है कि सुभाष जैन चूँकि गाजियाबाद/उत्तरप्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, इसलिए उनकी अधिकृत उम्मीदवारी को चेलैंज करने से उन्हें गाजियाबाद/उत्तरप्रदेश में आगे रोटरी से जुड़े रहने में मुश्किल होगी - दिल्ली का कोई उम्मीदवार होता, तो उसे चेलैंज करना एक अलग बात होती । इसी तथ्य का वास्ता देकर क्लब के कुछेक सदस्यों का तो यहाँ तक कहना है कि दीपक गुप्ता चुनाव में गए - तो उसमें मिली पराजय सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि क्लब के लिए भी बड़ी चोट होगी । दीपक गुप्ता के क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों का ही दो-टूक कहना है कि खुद अपनी और क्लब की साख व प्रतिष्ठा के लिए जरूरी है कि दीपक गुप्ता नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले के प्रति मैच्योर तरीके से सम्मान व्यक्त करें और उसे स्वीकार करें ।
दीपक गुप्ता ने अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों को हालाँकि यह भरोसा दिलाने का भरसक प्रयास किया है कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले से उनकी चुनावी स्थिति जितनी बुरी और कमजोर दिख रही है, वह वास्तव में उतनी बुरी और कमजोर है नहीं; तथा नोमीनेटिंग कमेटी के कुछेक सदस्यों ने उनके साथ यदि धोखा नहीं किया होता तो अधिकृत उम्मीदवार वही चुने जाते - और यदि नहीं भी चुने जाते, तो इतने बड़े अंतर से तो पीछे नहीं ही रहते ! दीपक गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि उनकी इस थ्योरी पर उनके अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख लोगों को ही भरोसा नहीं हुआ है । इन्हीं वरिष्ठ व प्रमुख लोगों में से जिन कुछेक से इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उन सभी ने एक उल्लेखनीय बात यह बताई है कि नोमीनेटिंग कमेटी को जैसा जो फैसला आया है, उन्हें उसका पूरा आभास था और उन्होंने दीपक गुप्ता को इसे लेकर आगाह भी किया था; लेकिन दीपक गुप्ता ने उनकी बातों पर जरा सा भी गौर ही नहीं किया । इनका तर्क रहा कि दीपक गुप्ता की इस बात को यदि सच मान भी लिया जाए कि नोमीनेटिंग कमेटी के कुछेक सदस्यों ने उनके साथ धोखा किया है; तो उन्हें यह विचार तो करना ही चाहिए कि उन सदस्यों ने उनके साथ धोखा आखिर किया क्यों ? और इस बात की आखिर क्या गारंटी है कि आगे चुनाव में लोग उनके साथ एक बार फिर ऐसा ही धोखा नहीं करेंगे ?
दीपक गुप्ता के क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों ने नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों से मिले धोखे की दीपक गुप्ता की थ्योरी को पूरी तरह खारिज करते हुए साफ कहा है कि दीपक गुप्ता को समझना चाहिए कि उन्हें धोखा उन लोगों से नहीं मिला है जिन्होंने उनका साथ नहीं दिया; बल्कि धोखा उन्हें उन लोगों से मिला है जो उनके साथ हैं - और जिन्हें वह अपना समर्थक व सहयोगी मान रहे हैं । उनके समर्थक व उनके साथ सहयोग करने वाले लोगों ने सच्चाई को उनतक पहुँचने ही नहीं दिया और उनकी आँखों पर ऐसी पट्टी बाँध दी कि खुद दीपक गुप्ता को भी सच्चाई दिखना बंद हो गई । इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई कि जिस किसी ने दीपक गुप्ता को सच्चाई दिखाने/बताने का प्रयास भी किया, दीपक गुप्ता उसे अपना दुश्मन मानने लगे । यही कारण रहा कि चुनाव से कुछ पहले तक दीपक गुप्ता अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख लोगों से पूरी तरह कट गए थे, और उन लोगों पर भरोसा कर रहे थे जो नोमीनेटिंग कमेटी में उन्हें ग्यारह में से आठ वोट तो पक्के तौर पर मिलने का दावा कर रहे थे । उनके यही समर्थक अभी भी दीपक गुप्ता के 'दुश्मन' बने हुए हैं । दीपक गुप्ता के क्लब के कुछेक सदस्यों ने ही बताया कि उन्हें कई लोगों से सुनने को मिला है कि उन्होंने तो मुकेश अरनेजा के फोन उठाना ही बंद कर दिया है । इसके बाद भी मुकेश अरनेजा यदि दीपक गुप्ता को चुनाव जितवाने का दावा कर रहे हैं, तो जाहिर है कि वह दीपक गुप्ता को उकसा कर सिर्फ अपनी राजनीति करने का मौका बना रहे हैं । दीपक गुप्ता के क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों ने इधर-उधर कई लोगों से शिकायत के अंदाज में कहा/बताया है कि दीपक गुप्ता को उन्होंने जब उनकी चुनावी स्थिति के बारे में बताया, तो उसके बाद दीपक गुप्ता ने उनसे बात करना ही बंद कर दिया था ।
दीपक गुप्ता ने लेकिन अब फिर अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों का दरवाजा खटखटाया है और उनसे मदद की गुहार लगाई है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हुई है कि उनके क्लब के हर उस सदस्य ने, जिनसे उन्होंने मदद माँगी है, उन्हें यही सलाह दी है कि उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को स्वीकार कर लेना चाहिए तथा अगले वर्षों में अपनी चुनावी स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए काम करना चाहिए । दीपक गुप्ता के क्लब के जिन कुछेक वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों से इन पंक्तियों के लेखक की बात हुई है, उनका कहना है कि उन्होंने दीपक गुप्ता को साफ साफ बता दिया है कि इस बार के चुनाव में अपनाए गए उनके तरीके तथा उनके व्यवहार ने - तथा उनके समर्थक नेताओं के रवैये ने उनको लोगों की पसंद से इतना दूर कर दिया है कि उस दूरी को जल्दी से व आसानी से पाटना संभव नहीं है; इसलिए चुनाव में जाने का उनका फैसला उनकी स्थिति को और खराब ही करेगा । कुछेक सदस्यों का तो यहाँ तक कहना है कि अभी जिन लोगों को उनकी हार के चलते उनसे हमदर्दी हुई भी है, चुनाव में जाने पर वह लोगों की उस हमदर्दी को भी खो देंगे । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि एक तरफ तो मुकेश अरनेजा उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार सुभाष जैन को चेलैंज करने के लिए उकसा रहे हैं, और दूसरी तरफ उनके क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्य उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का सम्मान करने व उसे स्वीकार करने का सुझाव दे रहे हैं । दीपक गुप्ता के सामने समस्या यह खड़ी हुई है कि वह किसकी बात मानें : मुकेश अरनेजा के उकसावे में आने तथा अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख सदस्यों की सलाह को अनसुना करने का परिणाम उन्होंने एक बार देख लिया है - ऐसे में क्या एक बार फिर वह मुकेश अरनेजा की झूठी और बड़बोली पट्टी को अपनी आँखों पर बँधा रहने दें और अपने क्लब के वरिष्ठ व प्रमुख लोगों की सलाह को अनसुना कर दें ?