नई दिल्ली । संजीव चौधरी को डेलॉयट के रवैये से खासा झटका लग रहा है, और मजे की बात यह है कि इसके लिए उनकी अपनी फर्म केपीएमजी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । समस्या दरअसल यह हुई है कि वेस्टर्न रीजन में डेलॉयट के उम्मीदवार एनसी हेगड़े को केपीएमजी से चूँकि उचित समर्थन नहीं मिल रहा है, इसलिए बदले की करवाई करते हुए नॉर्दर्न रीजन में डेलॉयट ने केपीएमजी के उम्मीदवार संजीव चौधरी के समर्थन से हाथ खींच लिए हैं । इस तरह, स्थिति यह बनी है कि वेस्टर्न रीजन की राजनीति ने नॉर्दर्न रीजन में संजीव चौधरी की मुसीबत बढ़ाने का काम किया है । दरअसल वेस्टर्न रीजन में बिग फोर कंपनियों से दो उम्मीदवार हैं - डेलॉयट से एनसी हेगड़े और ईवाई से दीनल शाह । एनसी हेगड़े पिछले चुनाव में भी उम्मीदवार थे, लेकिन सफल नहीं हो सके थे; और दीनल शाह इस बार तीसरी टर्म के लिए उम्मीदवार हैं । पिछली बार दीनल शाह को वेस्टर्न रीजन में सबसे ज्यादा वोट मिले थे; और उनकी इस जोरदार सफलता में कुछेक स्थानीय फैक्टर्स के साथ साथ डेलॉयट के विरोधी खेमे से मिले सहयोग/समर्थन की भी बड़ी भूमिका थी । एनसी हेगड़े की पराजय से डेलॉयट को पिछली बार जो चोट लगी थी, उसके घाव को याद करते/रखते हुए डेलॉयट प्रबंधन इस बार अतिरिक्त रूप से सावधान और सक्रिय है । बिग फोर कंपनियों का प्रबंधन कभी भी अपने उम्मीदवारों को लेकर इतना सक्रिय नहीं दिखा है, जितना इस बार डेलॉयट प्रबंधन दिख रहा है ।
एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी को डेलॉयट प्रबंधन ने अपने लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है । एनसी हेगड़े की चुनावी जीत को सुनिश्चित करने के लिए डेलॉयट प्रबंधन ने केपीएमजी प्रबंधन के साथ एक अंडरस्टैंडिंग यह की कि नॉर्दर्न रीजन में डेलॉयट उनके उम्मीदवार संजीव चौधरी को सहयोग/समर्थन देगा, और बदले में केपीएमजी वेस्टर्न रीजन में एनसी हेगड़े को सहयोग/समर्थन देंगे । दोनों बिग फोर कंपनियों के प्रबंधन के बीच अंडरस्टैंडिंग तो बन गई, लेकिन वह क्रियान्वित नहीं हो सकी । दरअसल केपीएमजी प्रबंधन संजीव चौधरी की उम्मीदवारी को लेकर उतना सेंसेटिव नहीं है, जितना डेलॉयट प्रबंधन एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी लेकर है । वेस्टर्न रीजन में केपीएमजी में दूसरे दूसरे उम्मीदवारों ने सेंध लगाई हुई है, और केपीएमजी प्रबंधन वहाँ एनसी हेगड़े के लिए कुछ ठोस करता हुआ नहीं दिख रहा है । डेलॉयट प्रबंधन यह देख कर उखड़ गया, और बदले में - तथा दबाव बनाने की कोशिश में - उसने नॉर्दर्न रीजन में केपीएमजी के उम्मीदवार संजीव चौधरी के समर्थन से पीछे हटने के संकेत दे दिए । संजीव चौधरी की उम्मीदवारी को लेकर डेलॉयट प्रबंधन ने इतना कड़ा रवैया अख्तियार कर लिया है कि डेलॉयट के लोगों के साथ संजीव चौधरी के लिए मीटिंग तक करना मुश्किल हो गया है ।
इस तरह, केपीएमजी प्रबंधन ही संजीव चौधरी की उम्मीदवारी का 'दुश्मन' बन गया है । संजीव चौधरी पिछली बार एससी वासुदेवा ग्रुप के समर्थन की बदौलत ही चुनाव जीते थे, लेकिन इस बार एससी वासुदेवा के बेटे संजय वासुदेवा के उम्मीदवार होने से वह पहले ही दबाव महसूस कर रहे थे - ऐसे में बिग फोर कंपनियों का चुनावी झगड़ा संजीव चौधरी के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया है । संजीव चौधरी के लिए यह मुसीबत इसलिए ज्यादा बड़ी है, क्योंकि इसके कारण वह परस्पर विरोधी परिस्थिति में फँस गए हैं । उन्हें एक तरफ बिग फोर कंपनियों का समर्थन जुटाना है, और चूँकि सिर्फ उनके समर्थन से तो उनकी चुनावी नैय्या पार होगी नहीं; इसलिए दूसरी तरफ उन्हें आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी अपनी पैठ बनानी है । इसमें समस्या यह है कि वह एक को 'पटाने' का प्रयास करने के चक्कर में कुछ कहते हैं, तो दूसरा बिदक जाता है - क्योंकि एक के हित में कही गई बात दूसरे को अपने खिलाफ दिखती/लगती है । जैसे पीछे उन्होंने बिग फोर के लोगों को पटाने के लिए दावा किया कि उनका सेंट्रल काउंसिल में पहुँचना/होना इसलिए जरूरी है, जिससे कि इंस्टीट्यूट में बिग फोर के हितों की सुरक्षा की जा सके । अब यह बात आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पहुँची - या दूसरे उम्मीदवारों ने पहुँचाई; तो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनकी नकारात्मक छवि बनी । दूसरे उम्मीदवारों ने भी अपने अपने तरीके से आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच संजीव चौधरी की छवि को बिग फोर समर्थक बनाने का काम किया । उल्लेखनीय है कि प्रोफेशन का ताना-बाना कुछ ऐसा बना हुआ है कि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच बिग फोर विरोधी भावना मजबूती से बनी हुई है । ऐसे में संजीव चौधरी को जब बिग फोर के हितों को सुरक्षित रखने की बात करते सुना जाता है - या सुनाया जाता है, तो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनके खिलाफ माहौल बनता ही है । संजीव चौधरी के खिलाफ यह माहौल बनाना इसलिए भी आसान हो जाता है, क्योंकि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ उनके सहज संबंध न तो कभी रहे, और न ही उन्होंने बनाने के प्रयास किए । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें 'सूट-बूट' वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के रूप में ही जाना पहचाना जाता है ।
अपने व्यवहार और रवैये के चलते संजीव चौधरी बिग फोर में काम करने वाले युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ भी कोई भरोसे वाला संबंध नहीं बना सके हैं । बिग फोर में नौकरी करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को मुख्यतः दो धाराओं में बंटा हुआ देखा/पाया जाता है : एक धारा वाले लोग तड़क-भड़क के साथ शो-ऑफ करने में तथा विजिबिलिटी बनाने/दिखाने में विश्वास करते हैं, और दूसरी धारा के लोग पढ़ने-लिखने में तथा एकेडेमिक रूप से स्ट्रॉंग होने में यकीन करते हैं । नॉर्दर्न रीजन में हाल के वर्षों में बिग फोर के पहली धारा वाले लोगों के बीच विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता ने अपने अपने आयोजनों के जरिए पैठ बनाने का प्रयास किया है, तो दूसरी धारा के लोगों को संजय अग्रवाल ने प्रभावित किया है । प्रोफेशन में भारी प्रतिष्ठा प्राप्त गिरीश आहूजा का संजय अग्रवाल के प्रति जिस तरह का स्नेह और सहयोग समय समय पर दिखता रहा है, उसके कारण भी संजय अग्रवाल के लिए पढ़ने-लिखने तथा एकेडेमिक रूप से स्ट्रॉंग बनने की इच्छा रखने वाले लोगों के बीच पैठ बनाना आसान हुआ है । एक तरह से कहा जा सकता है कि विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और संजय अग्रवाल ने अपने अपने तरीकों से तथा अलग अलग कारणों से संजीव चौधरी के वोट बैंक में सीधी सेंध लगाई है । सेंट्रल काउंसिल की अपनी सदस्यता बचाने के लिए इन तीनों द्वारा खड़ी की गई चुनौती तथा एससी वासुदेवा ग्रुप से मिले झटके से निपटने के लिए संजीव चौधरी जो प्रयास कर रहे थे, उन्हें डेलॉयट के रवैये से लेकिन खासा जोर का करंट लगा है - जिसके चलते उनके लिए चुनावी मुकाबला और ज्यादा मुश्किलों भरा हो गया है ।