Sunday, February 28, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन पद पाने वाले दीपक गर्ग को साथ में कई तरह की मुश्किलें भी मिली हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में इस बार जो राजनीति हुई, उसने जीतने वाले लोगों को जीत का लडडू तो थमा दिया है - लेकिन इस लडडू को इच्छानुसार खा सकने का अधिकार उन्हें नहीं दिया है । ऐसे में जीतने वाले असमंजस में हैं कि वह जीत के लडडू को पाने की खुशी मनाएँ या उसे इच्छानुसार खा न सकने का दुःख झेले । दीपक गर्ग चेयरमैन बनने में तो कामयाब रहे, किंतु विरोधी खेमे के जिन लोगों को 'बाहर' रख कर उन्होंने चेयरमैन बनने की बिसात बिछाई थी - विरोधी खेमे के उन लोगों के एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल हो जाने से मनमाने तरीके से चेयरमैनी कर सकने का उनका सपना ध्वस्त हो गया है । सिर्फ इतना ही नहीं, जिन राजेश अग्रवाल और राकेश मक्कड़ के साथ मिल कर उन्होंने चेयरमैन का पद पाने की तिकड़में की थीं - उन्हें चूँकि बाबा जी का ठुल्लू मिला है, इसलिए दीपक गर्ग को उन दोनों की तरफ से भी टाँग-खिंचाई का डर है । जाहिर है कि दीपक गर्ग के सामने डर डर कर ही चेयरमैनी करने का विकल्प बचा है । राजेश अग्रवाल और राकेश मक्कड़ के साथ वास्तव में बहुत ही बुरा हुआ है - इन दोनों ने ही साथ मिल कर चेयरमैन पद की तरफ दौड़ शुरू की थी, किंतु इन्हें चेयरमैन का पद तो छोड़िए - बाकी तीन प्रमुख पदों में से भी कोई पद नहीं मिल सका । रीजनल काउंसिल को अपनी मुट्ठी में करने के लिए सेंट्रल काउंसिल के विजय गुप्ता और राजेश शर्मा ने जो मेहनत की, उस पर सेंट्रल काउंसिल के संजय अग्रवाल ने जिस तरह से पानी फेर दिया - उससे विजय गुप्ता और राजेश शर्मा को जो झटका लगा, वह एक अलग दिलचस्प नजारा है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई को नियंत्रित करने के लिए राजेश अग्रवाल और राकेश मक्कड़ ने शुरुआती चाल चली थी । शुरुआती चाल के समय यह छह लोगों का ग्रुप था - राजेश अग्रवाल, सुमित गर्ग, राकेश मक्कड़, विवेक खुराना, नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा । ग्रुप आगे बढ़ा, तो सातवें सदस्य के रूप में इन्होंने आलोक जैन को तथा आठवें सदस्य के रूप में पूजा अग्रवाल को जोड़ा । यहाँ तक आते आते लग रहा था कि इन आठ लोगों की एक्जीक्यूटिव कमेटी बन जाएगी और चेयरमैन राजेश अग्रवाल व राकेश मक्कड़ में से कोई एक हो जायेगा । लेकिन ऐसा हो पाता उससे पहले विजय गुप्ता और राजेश शर्मा इनके बीच कूद पड़े - जिन्होंने राजेश अग्रवाल को समझाया कि राकेश मक्कड़ पहले वर्ष में चेयरमैन बनने की जिद करेंगे, इसलिए उन्हें छोड़ो और दीपक गर्ग व पंकज पेरीवाल को लेकर ग्रुप बनाओ । चेयरमैन पद का चुनाव राजेश अग्रवाल और दीपक गर्ग के नाम की पर्ची डाल कर हो जायेगा । राजेश अग्रवाल को इस ऑफर में चेयरमैन बनने के चांस फिफ्टी फिफ्टी दिखे, तो उन्होंने राकेश मक्कड़ से किनारा करने में देर नहीं लगाई । किंतु यह फार्मूला अपनाया जाता, उससे पहले राजेश अग्रवाल को चेयरमैन बनने के अपने चांस को फिफ्टी से बढ़ा कर हंड्रेड करने का जुगाड़ समझ में आया, जिसके तहत उन्होंने बाकी बचे तीन सदस्यों - राजिंदर नारंग, योगिता आनंद व स्वदेश गुप्ता वाले ग्रुप से संपर्क साधा । राजेश अग्रवाल की इस सक्रियता की पोल लेकिन खुल गई, और तब विजय गुप्ता व राजेश शर्मा ने उनके साथ की जाने वाली डील राकेश मक्कड़ के साथ कर ली । राजेश अग्रवाल को इसकी भनक लगी, तो उन्होंने पलटी तो मारी - किंतु तब तक वह घर और घाट दोनों खो चुके थे ।
विजय गुप्ता और राजेश शर्मा को रीजनल काउंसिल की राजनीति में दिलचस्पी लेते देख सेंट्रल काउंसिल के संजय अग्रवाल भी सक्रिय हुए और उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के बाकी सदस्यों को साथ लेकर रीजनल काउंसिल के सदस्यों के सामने एक ऐसा फार्मूला पेश किया - जिसे सुनकर रीजनल काउंसिल पर कब्जे को लेकर उछल-कूद मचा रहे लोगों को साँप सूँघ गया और उनकी सारी राजनीति हवा हो गयी । संजय अग्रवाल ने फार्मूला दिया कि एक्जीक्यूटिव कमेटी में सभी तेरह सदस्य होंगे तथा रीजनल काउंसिल की मीटिंग हर दो माह में होगी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की तरफ से संजय अग्रवाल ने स्पष्ट कर दिया कि यदि यह फार्मूला नहीं माना गया तो फिर चुनाव में सेंट्रल काउंसिल सदस्य भी वोट डालेंगे । रीजनल काउंसिल पर कब्जा जमाने के लिए तिकड़म पर तिकड़म लगा रहे विजय गुप्ता और राजेश शर्मा ने यह समझने में गलती नहीं की कि उन्होंने यदि संजय अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत किए गए सुझाव नहीं माने तो दीपक गर्ग को चेयरमैन बनवाने की उनकी कोशिशों पर पानी फिर जायेगा । वह भी यह तो समझ ही रहे हैं कि एक्जीक्यूटिव कमेटी में तेरह सदस्यों के रहते चेयरमैन का पद बस एक दिखावा भर है, लेकिन ठीक है - दिखावा तो है ! यह ऐसा ही हुआ है कि दीपक गर्ग को चेयरमैनरूपी बंदूक तो मिल गई है, लेकिन गोलियाँ नहीं मिली हैं ।
राजेश अग्रवाल और राकेश मक्कड़ के साथ लेकिन सबसे ज्यादा बुरा हुआ - कहाँ तो यह दोनों चेयरमैन बनने की दौड़ में थे, और कहाँ नौबत यह आई कि चेयरमैन तो दूर की बात - बाकी तीन महत्वपूर्ण पदों में भी इन्हें जगह नहीं मिली । जो हुआ, उसे हालाँकि इस तर्क के सहारे एक अच्छे उदाहरण के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है कि रीजनल काउंसिल की फंक्शनिंग में सभी की भागीदारी रहेगी तो एक अच्छा माहौल बनेगा और वास्तव में उपयोगी काम हो सकेंगे । यह एक ऐसी उम्मीद है - जिसे हर कोई पूरी होते हुए तो देखना चाहेगा, किंतु कम लोग हैं जिन्हें यह उम्मीद पूरी हो सकने का भरोसा है । चेयरमैन के चुनाव को लेकर इस बार जो राजनीति हुई और हालात ने बार-बार पलटी खाई और कुछेक लोगों के सपने जिस तरह से चकनाचूर हुए - उससे हालात विस्फोटक बने हैं; जो अभी भले ही शांत दिख रहे हों, लेकिन जो धमाके करने के लिए जमीन तैयार किए हुए हैं । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि दीपक गर्ग ने यदि होशियारी से काम किया, तो उन्हें सबके साथ मिलकर काम करने का जो सुनहरा मौका मिला है उसका फायदा उठाते हुए वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में एक नया इतिहास भी बना सकते हैं । दीपक गर्ग को जो लोग जानते हैं, उनका कहना लेकिन यह है कि दीपक गर्ग से ऐसी होशियारी की उम्मीद करना उचित नहीं होगा - और रीजनल काउंसिल में पटाखेबाजी देखने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए ।