नोएडा
। सतीश सिंघल रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के निमंत्रण को लेकर भारी
असमंजस में हैं, और उनके लिए यह फैसला कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वह
सुभाष जैन के स्वागत समारोह में जाएँ या न जाएँ ? रोटरी क्लब गाजियाबाद
सेंट्रल सुभाष जैन का ही क्लब है, और उनका क्लब उनकी जीत को सेलिब्रेट
करने का आयोजन कर रहा है । इस आयोजन में डिस्ट्रिक्ट के तमाम लोगों के साथ
साथ सतीश सिंघल को भी आमंत्रित किया गया है । सतीश सिंघल के लिए राहत की और
उपलब्धि की बात यह है कि खुद सुभाष जैन ने भी उन्हें फोन करके उक्त आयोजन
के लिए आमंत्रित किया है । अपने नजदीकियों से यह बताते हुए सतीश सिंघल ने सलाह माँगी है कि सुभाष जैन का फोन आने से निमंत्रण उनके लिए खास तो हो गया है - किंतु फिर भी आयोजन में जाने या न जाने को लेकर उनका असमंजस बना हुआ है । दरअसल उन्हें याद है कि सुभाष जैन के नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद हुई पार्टी में उनके जाने को लेकर खासा बाबेला मचा था,
और कहा गया था कि सतीश सिंघल उक्त पार्टी में वास्तव में सुभाष जैन के
समर्थन-आधार की जासूसी करने के उद्देश्य से गए थे । सतीश सिंघल ने लोगों को
बताने/दिखाने का भरसक प्रयास किया था कि उक्त पार्टी में शामिल होने के
लिए खुद सुभाष जैन ने उन्हें आमंत्रित किया था और उनके आमंत्रण के चलते ही
वह उक्त पार्टी में गए थे - किंतु उक्त पार्टी में उनके जाने को लेकर विवाद थमा नहीं था और उनकी भारी किरकिरी हुई थी । सतीश सिंघल के
सामने फिर से लगभग वैसे ही हालात हैं - सुभाष जैन की चुनावी जीत का जश्न
मनना है, और उसमें शामिल होने के लिए उन्हें एक बार फिर सुभाष जैन का
निमंत्रण भी है । सुभाष जैन से व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण मिलने के बावजूद
सतीश सिंघल जश्न समारोह में जाने को लेकर असमंजस में इसलिए हैं कि कहीं इस बार भी तो उनके जाने को लेकर उनकी किरकिरी नहीं होगी ?
यह
डर दरअसल इसलिए है क्योंकि सतीश सिंघल ने सुभाष जैन को चुनाव हरवाने की हर
संभव कोशिश की थी; सतीश सिंघल ने वह हर काम किया जिससे सुभाष जैन की
उम्मीदवारी को नुकसान हो सकता था । इस तथ्य को देखते हुए सुभाष जैन के
समर्थकों के बीच सतीश सिंघल के प्रति गहरे विरोध का भाव है, और सुभाष जैन
की पार्टी में सतीश सिंघल को देख कर उनकी तरफ से ही मजे लेने की संभावना है
। उल्लेखनीय है कि यूँ तो किसी भी चुनाव में पक्ष-विपक्ष बनते ही हैं,
और चुनावी नतीजा आने के बाद उनके बीच का फर्क मिट भी जाता है - और इस बात
को अच्छी भावना के साथ लिया/देखा भी जाता है । सुभाष जैन की उम्मीदवारी के
खिलाफ रहे कई लोगों को अब सुभाष जैन के साथ नजदीकी बनाते हुए देखा/सुना जा
सकता है - यह अच्छा ही है कि 'उम्मीदवार सुभाष जैन' से उनका जो विरोध था,
उसे उन्होंने 'डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी सुभाष जैन' के सामने तिलांजलि दे दी
है । किंतु सतीश सिंघल का मामला बिलकुल अलग है । सतीश सिंघल जिस समय
सुभाष जैन की उम्मीदवारी की खिलाफत करते हुए अपनी सारी ताकत झोंके हुए थे,
उस समय वह डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी थे - और डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी होने के
नाते उनसे उम्मीद की गई थी कि वह अपने पद की गरिमा बनाए रखते हुए चुनावी
राजनीति में खुल कर एक पक्ष नहीं बनेंगे । रोटरी की चुनावी राजनीति में हालाँकि देखा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी भी पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाते ही
हैं; सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच हुए चुनाव में भी सभी डिस्ट्रिक्ट
पदाधिकारियों की अपनी अपनी भूमिका थी ही - लेकिन सतीश सिंघल ने अपनी भूमिका
जिस खुल्लम-खुल्ला तरीके से चलाई, वह न रोटरी की प्रतिष्ठा के अनुरूप थी
और न उनके पद की गरिमा के अनुकूल थी ।
शिकायत की बात यह
नहीं रही कि सतीश सिंघल ने सुभाष जैन की उम्मीदवारी का विरोध किया । दूसरे
लोगों व पदाधिकारियों की तरह सतीश सिंघल को भी हक है कि चुनावी मुकाबले
में वह किसी एक उम्मीदवार का समर्थन करें, और इस नाते वह दूसरे उम्मीदवार
के खिलाफ नजर आएँ । यहाँ तक कोई समस्या नहीं है, कोई शिकायत नहीं है;
समस्या और शिकायत इसके आगे की कार्रवाई पर होती है - जहाँ वह चुनावी
मुकाबले में अपनी तमाम तिकड़में एक तरफ झोंके होते हैं । सतीश सिंघल अक्सर
बड़े गर्व से बताते हैं कि रोटरी में उन्हें 35 वर्ष हो गए हैं । इस बार के
चुनाव में लेकिन उनका जो रवैया रहा, उसे देखते/समझते हुए लोगों को यही लगा
जैसे कि उन्होंने इन 35 वर्षों में रोटरी को समझा/पहचाना नहीं है - रोटरी
का सम्मान करना/रखना तो उन्होंने जैसे बिलकुल ही नहीं सीखा । चुनाव में
सतीश सिंघल ने जो भूमिका निभाई - उसमें उन्होंने रोटरी की प्रतिष्ठा व पद
की गरिमा के तो चीथड़े उड़ाए ही; व्यावहारिकता के प्रति भी अपनी नासमझी का
परिचय दिया । उनके कुछेक नजदीकियों ने उन्हें समझाया भी था कि चुनाव में
सुभाष जैन के जीतने के चांस हैं, इसलिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी के विरोध
में इस हद तक मत जाओ कि फिर मुँह छिपाने की नौबत आए । सतीश सिंघल ने लेकिन
अपने नजदीकियों की भी नहीं सुनी । इसीलिए - दरअसल इसीलिए सतीश सिंघल को लोग जब सुभाष जैन को जीत की बधाई देते देखते/सुनते हैं, तो वह सतीश सिंघल का मजाक बनाते हैं । इस बात को जानने/समझने के कारण ही सतीश सिंघल के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि सुभाष जैन की चुनावी जीत का जश्न मनाने वाले आयोजन में वह जाएँ या न जाएँ ?
सतीश
सिंघल के साथ एक और समस्या है : सतीश सिंघल उन रोटेरियंस के प्रति अभी भी
बैर का भाव बनाए रखे हुए हैं, जिन्होंने उनके चुनाव में उनका साथ नहीं दिया
था । पिछले दिनों ही एक मौके पर रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरिटेज के वरिष्ठ
सदस्य रवींद्र सिंह को उनका कोप भाजन बनना पड़ा । रवींद्र सिंह का 'कसूर' यह है कि उन्होंने सतीश सिंघल की बजाए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी का समर्थन किया था । इस बात से सतीश सिंघल अभी तक इतने कुपित हैं कि जैसे ही उन्हें मौका मिला, रवींद्र सिंह के खिलाफ उन्होंने जमकर भड़ास निकाली । यानि सतीश सिंघल अपनी उम्मीदवारी के खिलाफ रहने
वालों को तो अपमानित करते रहना चाहते हैं, लेकिन अपने मामले में चाहते हैं
कि सुभाष जैन और उनके साथी इस बात को भूल जाएँ कि उनकी उम्मीदवारी के
प्रति उनका क्या रवैया था ?
मजे की बात यह भी है कि सुभाष
जैन के प्रति सतीश सिंघल का विरोध का भाव अभी भी खत्म नहीं हुआ है । अभी
हाल ही में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर
मनोज देसाई के संयुक्त रूप से डिस्ट्रिक्ट 3012 के दौरे के दौरान सुभाष जैन को मनोज देसाई का ऐड बनने का जो अवसर मिला, उसके प्रति भी सतीश सिंघल नाराजगी दिखाते सुने गए । दरअसल सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बने एक वर्ष हो जाने के बाद भी इस तरह का सुनहरा मौका नहीं मिला, जो सुभाष जैन को एक महीने के अंदर अंदर ही मिल गया । इसी कारण से सतीश सिंघल बुरी तरह बिफरे हुए नजर आए । सुभाष जैन को जिस तरह से कम समय में ही रोटरी के बड़े नेताओं के बीच पहचान और प्रतिष्ठा मिल रही है, वह रोटरी में कम ही लोगों/पदाधिकारियों को मिल पाती है । यह बात सतीश सिंघल को हजम नहीं हो पा रही है, और मौका मिलने पर वह अपनी भड़ास निकालने लगते हैं । इस तरह की बातें लोगों के बीच चर्चा का विषय बनती ही हैं - और इसीलिए सतीश सिंघल के लिए यह
तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि सुभाष जैन के व्यक्तिगत निमंत्रण के
बावजूद वह उनकी चुनावी जीत के जश्न-समारोह में शामिल हों या नहीं ?