मुरादाबाद । दीपक बाबु को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन से जो हिदायतें मिली हैं, उनका पालन करने में गजेंद्र सिंह धामा जिस तरह रोड़ा बनते दिख रहे हैं - उससे दीपक बाबु के सामने खासी दुविधा पैदा हो गई है । उल्लेखनीय है कि केआर रवींद्रन अभी पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट 3012 के आयोजनों के सिलसिले में दो दिन दिल्ली में थे, जहाँ उन्होंने दीपक बाबु को बुलाया । दीपक बाबु उनसे मिलने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाली 'अदा' के साथ गए - केआर रवींद्रन ने लेकिन उनकी अदा की सारी हवा निकाल दी । दीपक बाबु भारी तैयारी के साथ गए थे, कि वह कई विषयों पर उनसे बात करेंगे; केआर रवींद्रन ने लेकिन उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी और न किसी विषय पर बात करने में उन्होंने कोई दिलचस्पी ही दिखाई - उन्होंने दीपक बाबु को कुछेक हिदायतें दीं और आठवाँ मिनट पूरा होते होते उन्हें चलता कर दिया । केआर रवींद्रन ने दीपक बाबु से जो कहा, उनमें प्रमुख बातें रहीं : दीपक बाबु इस रोटरी वर्ष के बाकी बचे महीनों के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं हैं, वह सिर्फ केयरटेकर हैं; वह क्लब्स की ऑफिसियल विजिट नहीं करेंगे और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस नहीं करेंगे; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय करवायेगा । केआर रवींद्रन ने दीपक बाबु को एक बड़ा काम यह सौंपा कि जो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ज्यादा राजनीति करते दिखें, उनके नाम मुझे भेजो । दीपक बाबु को केआर रवींद्रन से जो हिदायतें मिलीं, और जो 'व्यवहार' मिला - उसने उनके कान गर्म कर दिए हैं और मौजूदा रोटरी वर्ष के बाकी बचे महीनों में गवर्नरी करने के उनके जोश और उनकी तैयारी पर पानी बिखेर दिया है । दिल्ली में केआर रवींद्रन के सामने बिताए गए करीब आठ मिनट के समय ने दीपक बाबु को यह बात अच्छे से समझा दी है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन ने डिस्ट्रिक्ट 3100 को अपनी कड़ी निगरानी में रखा हुआ है, और जिस कारण उनकी जरा सी चूक उन्हें सुनील गुप्ता वाली दशा में पहुँचा सकती है ।
दीपक बाबु के लिए मुसीबत की बात यह है कि जिन गजेंद्र सिंह धामा को उन्होंने अपने अधिकृत गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है, वही गजेंद्र सिंह धामा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेते देखे जा रहे हैं - और इस तरह उन्हें सुनील गुप्ता की राह पर धकेलते दिख रहे हैं । दरअसल दीपक बाबु जिस दिन केआर रवींद्रन के कठोर व्यवहार का सामना करके लौटे, उसके बाद डिस्ट्रिक्ट में तेजी से घटनाचक्र चला । पहले गजेंद्र सिंह धामा ने मेरठ के पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग बुलाई, जिसमें उन्होंने राजीव सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने की जरूरत बताते हुए रणनीति बनाने की बात की । उनकी बात पर मीटिंग में मौजूद लोगों ने कोई उत्साह तो नहीं दिखाया, लेकिन चूँकि किसी ने कोई विरोध भी नहीं किया - तो गजेंद्र सिंह धामा ने इसे अपनी बात के चल निकलने के रूप में देखा/पहचाना । इसके बाद नीरज अग्रवाल ने मुरादाबाद के पूर्व गवर्नर्स की मीटिंग बुलाई, जिसमें उन्होंने बड़ी सोच व बड़ी चिंता को प्रदर्शित किया - और डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा स्थिति पर विचार-विमर्श को आमंत्रित किया । विचार-विमर्श में आमराय यह बनी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के कारण डिस्ट्रिक्ट में झगड़े होते हैं और डिस्ट्रिक्ट की बदनामी होती है । नीरज अग्रवाल ने कुछेक डिस्ट्रिक्ट में बनी व्यवस्था का हवाला देते हुए सुझाव रखा कि डिस्ट्रिक्ट को यदि तीन जोन में बाँट दिया जाए और वहाँ बारी बारी से गवर्नर चुने जाएँ, तो चुनावी झगड़ों पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है । नीरज अग्रवाल का यह सुझाव मीटिंग में उपस्थित सभी को पसंद आया और सभी ने इसे अपनाने की वकालत की ।
इसके बाद कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग हुई - और उस मीटिंग में नीरज अग्रवाल ने मुरादाबाद के पूर्व गवर्नर्स की तरफ से तीन जोन वाले फार्मूले को रखा; उन्होंने दीपक बाबु को संबोधित करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव न होने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से किया जा सकता है । इस संदर्भ में उन्होंने अपने और संजीव रस्तोगी के गवर्नर-काल की कॉन्फ्रेंस का उदाहरण दिया । ऐसा लगा कि दीपक बाबु भी बात समझ रहे हैं । नीरज अग्रवाल की बातों पर सभी को सहमत होता देख गजेंद्र सिंह धामा को अपना खेल बिगड़ता हुआ दिखा, तो उन्होंने तीन जोन वाले फार्मूले को पटरी से उतारने की कोशिश तो बहुत की - लेकिन उनकी चली नहीं । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में अभी कोई अंतिम फैसला तो नहीं हुआ है, लेकिन एक मोटा-मोटी सहमति यह बनी है कि तीन जोन वाले फार्मूले को अमल में लाने की तैयारी की जाए - और इसके तहत दोनों उम्मीदवारों, राजीव सिंघल व दिवाकर अग्रवाल को राजी किया जाए तथा उम्मीदवारी से उनके इस्तीफे लिए जाएँ । दिवाकर अग्रवाल की तरफ से कॉलिज ऑफ गवर्नर्स को संदेश दे दिया गया है कि रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के भले के लिए उनसे जो भी कुछ करने के लिए कहा जायेगा, वह करेंगे । राजीव सिंघल की तरफ से संदेश दिया गया है कि इस बारे में वह अपने समर्थकों/शुभचिंतकों से सलाह करके फैसला करेंगे । राजीव सिंघल के नजदीकियों का ही कहना है कि गजेंद्र सिंह धामा ने राजीव सिंघल को समझाया है कि उन्हें किसी फार्मूले के तहत इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है ।
गजेंद्र सिंह धामा की तरफ से सुनने को मिला है कि रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस द्वारा चुनाव कराने की स्थिति में तो राजीव सिंघल की जीत और भी पक्की है । गजेंद्र सिंह धामा के अनुसार, रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया के पदाधिकारी भी जानते हैं कि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई का समर्थन है, इसलिए वह राजीव सिंघल को ही चुनाव जितवायेंगे । गजेंद्र सिंह धामा की इस तरह की बातें दीपक बाबु के लिए मुसीबत का सबब बनी हैं । केआर रवींद्रन ने दीपक बाबु को राजनीति करने वाले पूर्व गवर्नर का नाम भेजने का जो काम सौंपा है, उसे करने के तहत उन्हें गजेंद्र सिंह धामा का नाम भेजना चाहिए; पर कैसे भेजें - गजेंद्र सिंह धामा उनके बड़े खास हैं, उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं । नहीं भेजते हैं, तो डर यह है कि केआर रवींद्रन तक जानकारी पहुँच तो जाएगी ही - और तब केआर रवींद्रन के गुस्से का शिकार उन्हें होना पड़ेगा । राजीव सिंघल व गजेंद्र सिंह धामा की तरफ से दीपक बाबु को आश्वस्त किया जा रहा है कि उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई से बड़े अच्छे संबंध हैं, इसलिए उन्हें फिक्र करने की जरा भी जरूरत नहीं है । इनकी तरफ से यही आश्वासन सुनील गुप्ता को भी था । इनके चक्कर में बेचारे सुनील गुप्ता की जो फजीहत हुई, उसे देखते हुए दीपक बाबु के लिए इनके आश्वासन पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है । दीपक बाबु के कुछेक शुभचिंतक उन्हें समझा भी रहे हैं कि राजीव सिंघल और गजेंद्र सिंह धामा जैसे उनके समर्थकों के चक्कर में पड़ोगे, तो सुनील गुप्ता की दशा को प्राप्त होगे । राजीव सिंघल के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि राजीव सिंघल और गजेंद्र सिंह धामा को पूरा पूरा भरोसा है कि दीपक बाबु पूरी तरह से उनकी 'पकड़' में हैं, और वही करेंगे - जो करने के लिए उनसे कहा जायेगा ।
इस तरह के भरोसों व दावों के बीच दीपक बाबु के लिए सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह डिस्ट्रिक्ट को झगड़ों से मुक्ति दिलाने के लिए सुझाए गए डिस्ट्रिक्ट को तीन जोन में बाँटने के सुझाव पर आगे बढ़ें या गजेंद्र सिंह धामा का कहना मानें और चुनाव की तरफ बढ़ें ?