इंदौर । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की इंदौर ब्राँच
के चेयरमैन के चुनाव को लेकर घटनाओं का जो अप्रत्याशित और नाटकीय चक्र
घूमा, उसने किसी भी थ्रिलर फिल्म को मात देने का काम किया है । इंदौर ब्राँच
के चेयरमैन के चुनाव - नाम की जिस थ्रिलर ने इस समय इंदौर के चार्टर्ड
एकाउंटेंट्स को रोमांचक रूप में चौंकाया हुआ है, उसकी पटकथा लिखने से लेकर
निर्देशन करने तक के काम के लिए केमिशा सोनी को जिम्मेदार माना/बताया जा
रहा है । जैसे फिल्म को एक्टर की बजाए निर्देशक के उपक्रम के रूप में
देखा/पहचाना जाता है - नाम/दाम भले ही एक्टर भी कमाता हो; लेकिन फिल्म
निर्देशक के 'काम' के रूप में ही देखी/पहचानी जाती है : ठीक उसी तर्ज पर
चेयरपरसन का पद जीता भले ही गर्जना राठौर ने हो, लेकिन उनकी इस जीत को
उनकी नहीं बल्कि केमिशा सोनी की जीत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
जैसे जीत गर्जना राठौर की नहीं है, वैसे ही हार अभय शर्मा की नहीं है - अभय
शर्मा को हरवा कर केमिशा सोनी ने वास्तव में विष्णु झावर व मनोज फडनिस को
'हराया' है । पिछले तीन महीनों में जितने जो चुनाव हुए हैं, उनके नतीजे
इंदौर की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति की बदलती हवा की कहानी
तो कहते ही हैं - लेकिन उसमें भी कुछ परस्पर-विरोधी बातें कहते हैं,
जिन्हें सफलता की खुशी और असफलता की निराशा में दोनों ही पक्ष अनसुना किए
हुए हैं ।
उल्लेखनीय है कि इंदौर में हर कोई मान रहा था और कह भी रहा था कि इंदौर ब्राँच के चेयरमैन पद पर अभय शर्मा ही बैठेंगे । इसका कारण भी था । इंदौर ब्राँच
की मैनेजिंग कमेटी में अभय शर्मा अकेले सदस्य हैं, जिनकी मैनेजिंग कमेटी
में दूसरी टर्म है और इस लिहाज से वह वरिष्ठ हैं और अनुभवी हैं । इसके
आलावा, इंदौर ब्राँच के चुनाव में अभय शर्मा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे - सिर्फ सबसे ज्यादा नहीं, दूसरे उम्मीदवारों से बहुत ज्यादा वोट मिले थे ।
चुनावी राजनीति के खिलाड़ी जानते हैं कि इस तरह के तथ्य किसी भी उम्मीदवार
का हौंसला तो बढ़ाते हैं, उसकी उम्मीदवारी में 'वज़न' तो पैदा करते हैं -
लेकिन उसकी जीत की संभावना में निर्णायक तत्व नहीं बनते हैं । अभय शर्मा के
चेयरमैन पद की दावेदारी में इन तथ्यों का महत्व तो था, लेकिन उनकी
दावेदारी को सफल बनाने में निर्णायक भूमिका निभाने का काम जो तथ्य कर रहा
था, वह था इंदौर ब्राँच की मैनेजिंग कमेटी के नवनिर्वाचित आठ सदस्यों में उन्हें मिलते दिख रहे छह सदस्यों का समर्थन । अभय
शर्मा को पंकज शाह, कीर्ति जोशी, गर्जना राठौर, विपुल पदलिया और आनंद जैन
का समर्थन मिलता नजर आ रहा था । इसी बिना पर अभय शर्मा को चेयरमैन के रूप
में देखा जाने लगा था । प्रत्येक तथ्य और प्रत्येक संकेत चेयरमैन पद पर अभय
शर्मा की ताजपोशी करवा रहा था । लेकिन केमिशा सोनी ने सारा सीन पलट दिया और इंदौर की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में वह कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था ।
केमिशा
सोनी ने इससे पहले, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल
काउंसिल का चुनाव जीत कर भी विष्णु झावर और मनोज फडनिस को खासा तगड़ा वाला
झटका दिया था, और इंदौर की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में सभी
को चौंकाया था । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में विष्णु झावर और मनोज
फडनिस के खुले समर्थन के बावजूद विकास जैन के हार जाने की उम्मीद तो बहुतों
को थी, किंतु केमिशा सोनी के जीतने की उम्मीद किसी को नहीं थी । ऐसे में,
केमिशा सोनी की जीत - सिर्फ जीत नहीं, बड़ी जीत ने उनका कद तो बढ़ाया ही -
वास्तव में विष्णु झावर व मनोज फडनिस का कद घटाने का काम ज्यादा किया ।
किंतु सेंट्रल काउंसिल के चुनाव से भी 'बड़ा' चुनाव इंदौर ब्राँच का चुनाव
था । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में तो मान लिया गया था कि विष्णु झावर व
मनोज फडनिस ने विकास जैन जैसे बेकार-से उम्मीदवार पर दाँव लगाया, और उसकी
सजा पाई; इंदौर ब्राँच का चुनाव छोटा होने के बावजूद 'बड़ा' इसलिए था,
क्योंकि विष्णु झावर व मनोज फडनिस का असली असर तो यहीं है । अभय शर्मा की
जोरदार जीत से यह असर दिखा भी । चेयरमैन का चुनाव और छोटा हो जाने के
कारण और ज्यादा 'बड़ा' हो गया । इस चुनाव में मिली 'जीत' इसीलिए ही केमिशा
सोनी के लिए सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में मिली जीत से भी बड़ी जीत है ।
दरअसल यही एक ऐसा पहला चुनाव था जिसमें केमिशा सोनी का विष्णु झावर व मनोज
फडनिस से आमने-सामने का सीधा मुकाबला था ।
सारे तथ्य,
सारे समीकरण, सारी परिस्थितियाँ हालाँकि चेयरमैन पद के चुनाव में अभय शर्मा
की जीत की तरफ इशारा कर रही थीं - किंतु अभय शर्मा और उनके समर्थकों व
शुभचिंतकों ने इंदौर में बदल रही हवा के रुख को पहचानने/समझने में चूक कर
दी । इस बदल रही हवा का संकेत सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल के चुनाव
में तो स्पष्ट रूप से मिला ही; इंदौर ब्राँच के चुनाव में भी दिखा/मिला - जब
अभय शर्मा की बड़ी जीत को बेईमानी व हेराफेरी से मिली जीत के रूप में
प्रचारित किया गया । इस बात को जिस तरह से हवा मिली, उससे यह साबित हुआ कि
इंदौर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स 'नेताओं' के बीच विष्णु झावर व मनोज फडनिस
खेमे के खिलाफ भारी नाराजगी है । इस तथ्य को केमिशा सोनी ने पहचाना और इसे अपनी राजनीति में इस्तेमाल करने की उन्होंने तैयारी की । इंदौर ब्राँच
में चुने गए नवनिर्वाचित सदस्य चूँकि अलग-अलग नेताओं के नजदीकी के रूप में
या संपर्क में पहचाने गए, इसलिए उन्हें इकट्ठा करने में केमिशा सोनी को कोई
बहुत मशक्कत नहीं करना पड़ी । इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की
चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले नेताओं को केमिशा सोनी को सिर्फ यह
समझाना पड़ा कि अभय शर्मा के चेयरमैन बनने से इंदौर ब्राँच पर विकास जैन का
कब्जा हो जायेगा, और फिर विकास जैन मनमानी करेंगे । विकास जैन की मनमानी का
डर दिखा कर और पदों का ऑफर देकर केमिशा सोनी ने गर्जना राठौर, विपुल
पदलिया और आनंद जैन को अभय शर्मा के समर्थन से अलग कर दिया । चेयरमैन का पद अभय शर्मा से जिस तरह से 'छीन' लिया गया है, उसके जरिए दरअसल उन्हें विकास जैन के नजदीक होने तथा विष्णु झावर व मनोज फडनिस के 'आदमी' होने की सजा दी गई है - और इस कार्रवाई से केमिशा सोनी ने इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में अपनी धाक को और मजबूत बनाया है ।