Saturday, February 6, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में बनने वाला रोटरी वरदान ब्लड बैंक जेके गौड़ की निगरानी में होने वाली पैसों की हेराफेरी के आरोपों के चलते खतरे में फँसा

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ की देखरेख में होने वाली पैसों की हेराफेरी के चलते गाजियाबाद में बनने वाला रोटरी वरदान ब्लड बैंक खतरे में पड़ता नजर आ रहा है । योजनानुसार 10 फरवरी को रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के हाथों इसका उद्घाटन होना था, किंतु पैसों की हेराफेरी के आरोपों के कारण रोटरी इंटरनेशनल फाउंडेशन से पैसा रिलीज न होने के कारण मशीनों की खरीद लटक गई है - और अब यह पूरी तरह तय हो गया है कि केआर रवींद्रन को इसका उद्घाटन किए बिना बैरंग ही वापस लौटना पड़ेगा । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए करीब एक-सवा करोड़ रुपए की आवश्यक रकम महीनों पहले ही जुटा ली गई है, और यह रोटरी इंटरनेशनल फाउंडेशन में जमा है; इस प्रोजेक्ट के लिए जो मशीनें खरीदी जानी हैं, वह भी देखभाल कर तय कर ली गई हैं - और उनके सप्लायर से सौदा तय हो गया है । रोटरी इंटरनेशनल फाउंडेशन को इसकी जानकारी देते हुए सप्लायर के लिए रकम का आवेदन किए हुए कुछेक महीने बीत गए हैं । इसके बाद का जो काम कुछ घंटों में हो जाना चाहिए था, उसके कुछेक महीने बीत जाने के बाद भी न हो पाने के कारण मशीनों का आना/पहुँचना टल गया है - और इसके चलते 10 फरवरी को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन द्वारा उद्घाटित होने का प्रोग्राम खटाई में पड़ गया है ।
जेके गौड़, उनके 'पथ-प्रदर्शक' और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर रमेश अग्रवाल तथा ब्लड बैंक को स्थापित करने में भूमिका निभा रहे कुछेक दूसरे लोग इसका ठीकरा मुकेश अरनेजा के सिर फोड़ रहे हैं । इनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी हार की खीज मिटाने/निकालने के लिए मुकेश अरनेजा इसमें रोड़ा अटका रहे हैं; और डीआरएफसी के रूप में अपने पद का दुरूपयोग करते हुए रोटरी फाउंडेशन से पैसा रिलीज नहीं होने दे रहे हैं - जिसके चलते प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है । मुकेश अरनेजा का कहना है कि डीआरएफसी के रूप में उनका काम यह देखना है कि आम रोटेरियंस द्वारा इकट्ठा किए गए तथा रोटरी फाउंडेशन द्वारा खर्च किए जाने वाले पैसे का सही सही उपयोग हो रहा है या नहीं - और वह अपनी यही जिम्मेदारी निभा रहे हैं । मुकेश अरनेजा का कहना है कि मशीनों की खरीद से संबंधित जो विवरण दिए गए हैं, वह आधे-अधूरे हैं और पूरे विवरण देने की उनकी माँग को तरह तरह की बहानेबाजी करके लगातार टाला जा रहा है । मुकेश अरनेजा का कहना है कि मशीनों की खरीद से संबंधित सामान्य सी जानकारियों को पाने के लिए उन्होंने बार बार जो भी ईमेल-पत्र लिखे, उसके उन्हें उचित जबाव नहीं मिले । मुकेश अरनेजा का कहना है कि मशीनों के लिए जिस सप्लायर को करीब एक करोड़ रुपए की रकम देनी है - उसके पते व फोन नंबर तथा उसके पदाधिकारियों के नाम व उनके पते छिपाने की जो कोशिश की जा रही है, उससे मशीनों की खरीद का सारा मामला संदेहास्पद हो गया है । मुकेश अरनेजा के अनुसार, हद तो यह है कि खरीदी जा रही मशीनों की निर्माता कंपनी का नाम तक छिपाया जा रहा है - जिससे कि बाजार से उनकी असली कीमत न पता की जा सके । मुकेश अरनेजा का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों ने ही उन्हें इशारों इशारों में 'बताया' है कि मशीनों की कीमतें खूब बढ़ा-चढ़ा कर - किन्हीं मामलों में तो दुगनी तक 'दिखाई' गई हैं । मुकेश अरनेजा ने स्पष्ट कर दिया है कि घपलेबाजी की इस तरह की बातों/चर्चाओं के बीच, मशीनों की खरीद से संबंधित पूरे डिटेल्स मिले बिना उनके लिए रकम रिलीज करने का ऑर्डर पास करना संभव नहीं होगा ।
जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के साथ मिलकर इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता से भी मदद की गुहार लगाई और उम्मीद की कि यह लोग मुकेश अरनेजा को प्रोजेक्ट के लिए पैसा रिलीज करने/कराने के लिए राजी करें । इन्होंने लेकिन मुकेश अरनेजा का पक्ष सुन/जान कर मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है । मनोज देसाई व सुशील गुप्ता के इस इंकार से मुकेश अरनेजा को और बल मिला है; इस इंकार में उन्हें दरअसल अपना पक्ष मजबूत होता हुआ दिखा है । मामले को गंभीर होता देख जेके गौड़ व रमेश अग्रवाल को अपना रुख लचीला करने के लिए मजबूर होना पड़ा । उनकी तरफ से मुकेश अरनेजा को समझाने की कोशिश की गई कि कुछ ऊपर के और कुछ दो नंबर के काम के खर्चे जुटाने के लिए मशीनों की कीमतें थोड़ी ज्यादा 'दिखाई' गई हैं, और इस मामले को उन्हें ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए । मुकेश अरनेजा का कहना है कि इस बात को वह भी जानते/समझते हैं, लेकिन यह खर्च कुल खर्च का मुश्किल से पाँच-सात प्रतिशत ही होता है - इसके लिए मशीनों की खरीद से जुड़े सामान्य से विवरणों को देने/बताने में आनाकानी क्यों की जा रही है ? जेके गौड़ और रमेश अग्रवाल द्वारा मशीनों की खरीद से जुड़े विवरणों को देने/बताने की बजाए ब्लड बैंक प्रोजेक्ट को लेट करना मंजूर करने से मशीनों की खरीद में बड़े घोटाले का शक और बढ़ा है ।
इस शक ने मुकेश अरनेजा को और उत्साहित किया है; इस उत्साह में उन्होंने जेके गौड़ व रमेश अग्रवाल को चुनौती दी है कि डीआरएफसी की उनकी भूमिका व उनके काम से यदि वह संतुष्ट नहीं हैं तो उन्हें उनकी शिकायत रोटरी फाउंडेशन तथा रोटरी इंटरनेशनल में कर देनी चाहिए - वहीं तय हो जायेगा कि कौन सही है और कौन गलत । जेके गौड़ और रमेश अग्रवाल इस मामले में मुकेश अरनेजा को कोस तो रहे हैं, किंतु मुकेश अरनेजा की चुनौती को स्वीकार करने से हिचक रहे हैं । दरअसल अभी पिछले दिनों ही पड़ोसी डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर सुनील गुप्ता को पैसों की हेराफेरी के आरोपों के चलते इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की पहल पर जिस तरह से गवर्नर पद से हटाया गया है, उसे देख/जान कर जेके गौड़ को डर हुआ है कि कहीं उनका हाल भी सुनील गुप्ता जैसा न हो । सुनील गुप्ता का जो हाल हुआ है, उससे संकेत गया/मिला है कि रोटरी में पैसों की घपलेबाजी पर केआर रवींद्रन का रवैया बड़ा सख़्त है । केआर रवींद्रन की सख़्ती को देखते/भाँपते हुए ही जेके गौड़ रोटरी वरदान ब्लड बैंक के मामले में मुकेश अरनेजा की भूमिका को कोसने के बावजूद उनकी शिकायत रोटरी इंटरनेशनल में नहीं कर रहे हैं । जेके गौड़ को डर है कि ऐसा करने पर कहीं वह खुद ही न फँस जाएँ । इसीलिए जेके गौड़ इस मामले को जैसेतैसे करके डिस्ट्रिक्ट में ही निपटा लेना चाहते हैं; इसके लिए भी लेकिन वह मशीनों की खरीद से संबंधित जानकारियाँ देने को तैयार नहीं हो रहे हैं । जेके गौड़ के इस रवैये ने रोटरी वरदान ब्लड बैंक को खतरे में डाल दिया है ।