Tuesday, February 16, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी को गवर्नर पद से दूर रखने के उद्देश्य से जितेंद्र ढींगरा के साथ सौदा करने का राजा साबू के नेतृत्व वाले खेमे का प्रयास सफल हो पायेगा क्या ?

चंडीगढ़ । जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी को समर्थन देने के बदले में टीके रूबी की उम्मीदवारी की बलि का फार्मूला लेकर राजेंद्र उर्फ राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी शतरंज में जो चाल चली है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तो गर्मी पैदा की ही है - साथ ही राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में दिलचस्पी रखने वाले रोटेरियंस को भी उत्सुक और सतर्क कर दिया है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले इस वर्ष के चुनाव में जो भी उम्मीदवार हैं, उनमें एक जितेंद्र ढींगरा को छोड़ कर बाकी सभी राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के समर्थन के भरोसे अपनी अपनी नैय्या पार लगाने का जुगाड़ बैठा रहे हैं; नवजीत औलख को मधुकर मल्होत्रा का तथा प्रवीन चंद्र गोयल को शाजु पीटर का खुला समर्थन तक देखा जा रहा था - किंतु सत्ता खेमे की तरफ से जितेंद्र ढींगरा को समर्थन के संकेत भेजे/दिए जा रहे हैं । इन संकेतों में हालाँकि यह भी स्पष्ट कर दिया जा रहा है कि जितेंद्र ढींगरा को यह समर्थन मुफ्त में नहीं दिया जायेगा, उन्हें इसकी 'कीमत' चुकानी होगी । कीमत के रूप में वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव से टीके रूबी के दूर रहने/हटने की बात भी स्पष्ट कर दी गई है । यहाँ मजेदार तथ्य यह है कि जितेंद्र ढींगरा भी अभी पिछले वर्ष तक राजा साबू के नेतृत्व वाले खेमे के ही सदस्य हुआ करते थे; पिछले वर्ष हुए चुनाव के फजीहत भरे किस्से के लिए लेकिन चूँकि जितेंद्र ढींगरा को ही जिम्मेदार माना जा रहा है, इसलिए जितेंद्र ढींगरा को विरोधी के रूप में देखा जाने लगा है । सत्ता खेमे के कुछेक लोग जितेंद्र ढींगरा को वापस सत्ता खेमे में लाने के इच्छुक रहे हैं, और इस वर्ष के चुनाव में प्रस्तुत हुई जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी में उन्हें अपनी इच्छा को पूरा करने का मौका भी दे दिया है । उनकी इच्छा और मौके में सत्ता खेमे के दूसरे लोगों को चूँकि अपनी फजीहत से पिंड छुड़ाने का अवसर नजर आ रहा है, इसलिए उन्हें भी जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी का समर्थन करने से परहेज नहीं है - लेकिन 'कीमत' के साथ ।
राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के लिए दरअसल वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव का ज्यादा महत्व है, जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के चलते दोबारा होना है । वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव को मनमाने व षड्यंत्रपूर्ण तरीके से मैनेज करने की राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे की तमाम तमाम कोशिशों को जो पलीता लगा है, और उसके चलते रोटरी में उनकी जो भारी फजीहत हुई है - उसके बाद उनके लिए वर्ष 2017-18 के गवर्नर का चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है । राजा साबू के नेतृत्व वाले खेमे के अधिकतर नेता वर्ष 2017-18 में टीके रूबी को गवर्नर बनते हुए नहीं देखना चाहते हैं । इसके लिए वह जितेंद्र ढींगरा से सौदा करना चाहते हैं - जिसके अनुसार वर्ष 2018-19 के लिए वह जितेंद्र ढींगरा को चुनवाएँ/जितवाएँ, और इसके बदले में जितेंद्र ढींगरा उन्हें आश्वस्त करें कि 2017-18 के लिए होने वाले चुनाव में टीके रूबी की उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं होगी । राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे को लगता है कि इस सौदेबाजी के जरिए ही वह वर्ष 2018-19 में टीके रूबी को गवर्नर बनने से रोक सकते हैं; और उन्हें गवर्नर बनने से रोकने के लिए अभी तक की गईं अपनी कारस्तानियों पर और ज्यादा शर्मसार होने से बच सकते हैं । राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के लिए मुसीबत तथा चुनौती की बात यह है कि टीके रूबी को गवर्नर न बनने देने के लिए उनके द्वारा चली गई हर चाल पिटती ही गई है, और उनके हिस्से में बदनामी व फजीहत ही जोड़ती गई है । यह ठीक है कि उनकी कोशिशों के चलते टीके रूबी गवर्नर नहीं बन सके हैं, लेकिन उनके लिए रास्ते पूरी तरह अभी भी बंद नहीं हुए हैं - और इस सारे तमाशे में राजा साबू तथा डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स की भारी थुक्का-फजीहत हुई है । 
राजा साबू तथा उनके संगी-साथी गवर्नर्स को डर यह है कि इस बार के चुनाव में यदि जितेंद्र ढींगरा जीत गए, तो फिर वर्ष 2017-18 के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में टीके रूबी को जीतने से रोक पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । उनके लिए समस्या की बात यह है कि इस बार के चुनाव में जो भी उम्मीदवार हैं, उनमें जितेंद्र ढींगरा का ही पलड़ा भारी नजर आ रहा है । पहले तो कोशिश की गई कि किसी और उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाई जाए और उसे जितवाने का प्रयास किया जाए - लेकिन कोई उम्मीदवार इस लायक नहीं लगा कि उसके नाम पर सहमति बन पाए । दरअसल कोई भी उम्मीदवार इस तरह से सक्रिय ही नहीं हो सका कि वह लोगों के बीच अपनी पैठ बना पाता । मजे की बात यह है कि सत्ता खेमे के सबसे ज्यादा नजदीक समझे जाने वाले उम्मीदवार नवजीत औलख तथा प्रवीन चंद्र गोयल खेमे के नेताओं की यह कहते हुए शिकायत कर रहे हैं कि नेताओं ने इन्हें अकेला छोड़ दिया है, और वह इनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं । प्रवीन चंद्र गोयल का रोना तो और ज्यादा है - पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा उनके अपने क्लब के हैं, लेकिन मधुकर मल्होत्रा उनकी मदद करने की बजाए उनका काम बिगाड़ने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं । प्रवीन चंद्र गोयल का काम बिगाड़ने के लिए ही मधुकर मल्होत्रा ने नवजीत औलख को उम्मीदवार बनवा दिया है । नवजीत औलख की शिकायत किंतु यह है कि मधुकर मल्होत्रा ने उन्हें उम्मीदवार तो बनवा दिया है, लेकिन उनकी मदद नहीं कर रहे हैं । नवजीत औलख के एक नजदीकी ने मधुकर मल्होत्रा से यह शिकायत दोहराई, तो मधुकर मल्होत्रा ने यह कहकर उन्हें चुप कर दिया कि नवजीत औलख अपनी उम्मीदवारी के लिए खुद तो कुछ नहीं करेंगे - तो मैं ही क्या करूँगा ?
राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के नेताओं को लगता है कि जब चुनावी दौड़ में जितेंद्र ढींगरा आगे दिख रहे हैं, तो क्यों न उन्हीं के साथ हो लिया जाए ? वह अभी पिछले वर्ष तक साथ ही तो थे । जितेंद्र ढींगरा का समर्थन करके सत्ता खेमे के नेता एक तीर से दो शिकार कर लेना चाहते हैं : एक तो वह यह दिखाना चाहते हैं कि जीतता वही है, जिसका वह समर्थन करते हैं; और दूसरे जितेंद्र ढींगरा के साथ समर्थन की सौदेबाजी करके वह टीके रूबी के कारण हो सकने वाली फजीहत से भी छुटकारा पा लेंगे । समस्या, बड़ी समस्या उनके सामने लेकिन यह है कि जितेंद्र ढींगरा इस सौदेबाजी के लिए तैयार होंगे क्या ? अधिकतर लोगों का मत है कि वह तैयार नहीं होंगे । इसी संभावना को ध्यान में रखते हुए राजा साबू के नेतृत्व वाले खेमे के नेताओं की तरफ से जितेंद्र ढींगरा को साथ साथ यह संदेश भी दिया गया है कि वह यदि सौदे के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो फिर टीके रूबी की तरह उन्हें भी गवर्नर बनने नहीं दिया जायेगा - इसके लिए फिर चाहे जो करना पड़े । सत्ता खेमे के नेताओं की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि भले ही चुनाव में अब ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं, और भले ही अभी वह किसी उम्मीदवार के साथ नहीं दिख रहे हैं; लेकिन यदि जितेंद्र ढींगरा की राह में रोड़े डालने की जरूरत पड़ी - तो फिर कुछ भी किया जायेगा । सत्ता खेमे के नेताओं का कहना है कि वर्ष 2017-18 के गवर्नर का फैसला यदि हो गया होता, तो वर्ष 2018-19 के गवर्नर के चुनाव के पचड़े में वह पड़ते ही नहीं; किंतु चूँकि वर्ष 2017-18 के गवर्नर का मामला अभी फँसा हुआ है, और वह टीके रूबी को रोकने का अपना प्रयास जारी रखेंगे - इसलिए वर्ष 2018-19 के चुनाव में उन्हें दिलचस्पी लेना पड़ रहा है । राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के नेताओं की इस 'दिलचस्पी' के चलते वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए सत्ता खेमे के नेताओं के भरोसे उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों को तो अपने अपने लिए उम्मीद दिख रही है; और साथ साथ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य भी खासा रोचक हो गया है ।