Thursday, February 4, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल के आखिरी कुछ महीने पाने वाले दीपक बाबु, सुनील गुप्ता के साथ जो हुआ उससे सबक भी लेंगे क्या ?

मेरठ । जाते जाते बचते दिख रहे सुनील गुप्ता को आखिरकार जाना ही पड़ा । उनके लिए फजीहत की बात सिर्फ यही नहीं रही कि अपना गवर्नर-काल पूरा किए बिना, अपने गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस किए बिना ही उन्हें अपनी गवर्नरी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा - इससे भी ज्यादा बुरी बात उनके लिए यह रही कि इस बिदाई-बेला में वह पूरी तरह अकेले ही नजर आ रहे हैं, और इतने बड़े डिस्ट्रिक्ट में कोई भी उनके साथ हमदर्दी दिखाता नहीं नजर आ रहा है । अपनी कारस्तानियों से सुनील गुप्ता ने रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को ही अपने खिलाफ नहीं कर लिया था, बल्कि अपने संगी-साथियों को भी अपने से दूर कर लिया था - जिसका नतीजा यह है कि आज वह डिस्ट्रिक्ट में इतने अकेले पड़ गए कि उन्हें सच्चे हमदर्द का भी टोटा पड़ गया है । सबसे हैरान कर देने वाला रवैया राजीव सिंघल और उनके संगी-साथियों का देखने/सुनने को मिला है । राजीव सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं, और सुनील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहने के क्षण तक उनके परम भक्त थे । राजीव सिंघल दरअसल सुनील गुप्ता की 'मदद' से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पाने की जुगाड़ में थे और इसलिए वह सुनील गुप्ता को 'राम' मानकर उनके सुग्रीव बने हुए थे । लेकिन सुनील गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न रहने के बाद वह सबसे ज्यादा प्रसन्न दिख और सुने जा रहे हैं । उनकी प्रसन्नता का कारण हालाँकि यह है कि सुनील गुप्ता से छिनी गवर्नरी दीपक बाबु को मिल गई है । दीपक बाबु की गवर्नरी में राजीव सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का पद अपने और पास आता दिख रहा है । उन्हें विश्वास है कि दिवाकर अग्रवाल के प्रति दीपक बाबु के मन में जो खुन्नस है, उसके चलते दीपक बाबु उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने/बनवाने का हर संभव प्रयास करेंगे - और इसी उम्मीद में राजीव सिंघल अब सुनील गुप्ता को भूल/छोड़ कर दीपक बाबु के सुग्रीव 'बनने' की तैयारी में जुट गए हैं । 
सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल के बाकी बचे जो महीने दीपक बाबु को मिले हैं, उससे दीपक बाबु और उनके समर्थक तो बल्ले-बल्ले वाले मूड में हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट के कई लोगों को रोटरी इंटरनेशनल का यह फैसला 'आसमान से गिरे और खजूर में अटके' वाली फीलिंग दे रहा है । ऐसे लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में इस समय जो संकट है और लोगों के बीच परस्पर विश्वास का जो अभाव है - उसे देखते हुए सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल के बचे महीनों का चार्ज किसी अनुभवी व सुलझे व्यवहार व विवादों से दूर रहे पूर्व गवर्नर को देना चाहिए था । ऐसे लोगों का मानना और कहना है कि समझ, व्यवहार, नीयत व तौर-तरीकों के मामले में दीपक बाबु चूँकि सुनील गुप्ता के 'मौसेरे' भाई जैसे ही हैं - इसलिए मौजूदा संकटपूर्ण स्थिति को संभाल पाने की उनसे उम्मीद करना उनके साथ 'अन्याय' करने जैसा मामला भी हो जायेगा । सुनील गुप्ता की बरबादी का एक बड़ा कारण राजीव सिंघल भी रहे हैं; जिन राजीव सिंघल के जाल में फँसने से सुनील गुप्ता खुद को रोक नहीं पाए - और गवर्नरी से हाथ धो बैठे हैं; उन्हीं राजीव सिंघल ने दीपक बाबु के लिए भी जाल बिछाने की तैयारी कर ली है - और राजीव सिंघल के समर्थकों को पूरा पूरा विश्वास है कि दीपक बाबु भी उनके जाल में फँसने से बच नहीं पायेंगे । प्रतीकों का यदि कोई महत्व होता है तो यह तथ्य ध्यान रखने योग्य है कि मात्र ढाई-तीन वर्ष पहले ही डिस्ट्रिक्ट ने दीपक बाबु की बजाए सुनील गुप्ता को तवज्जो दी थी, जिसके चलते सुनील गुप्ता के सामने दीपक बाबु को पीछे हटना पड़ा था । जो डिस्ट्रिक्ट ढाई-तीन वर्ष पहले दीपक बाबु की बजाए सुनील गुप्ता को तवज्जो दे रहा था, वही डिस्ट्रिक्ट आज सुनील गुप्ता के खिलाफ खड़ा दिख रहा है - तो इसमें दीपक बाबु के लिए यही संदेश है कि स्थितियाँ किसी समय यदि आपको तवज्जो देती हैं, तो स्थितियाँ आपको जमीन पर पटकने में भी जरा सी भी देर नहीं लगाती हैं । 
दीपक बाबु को जानने वाले कुछेक लोगों का हालाँकि यह भी कहना है कि बहुत सी नकारात्मक बातों के मामले में दीपक बाबु भले ही सुनील गुप्ता जैसे ही हों, किंतु सुनील गुप्ता के मुकाबले व्यावहारिकता उनमें ज्यादा है - जिसका उपयोग करेंगे 'तो' वह सुनील गुप्ता जैसी दशा को प्राप्त होने से बच सकेंगे । यहाँ 'तो' बहुत महत्वपूर्ण है । लोगों को यह भी लगता है कि सुनील गुप्ता की हुई दशा को देख कर भी दीपक बाबु सबक लेंगे और ऐसे कोई काम करने से बचेंगे, जो उन्हें सुनील गुप्ता के रास्ते पर ले जाएँ । दीपक बाबु का रास्ता इसलिए और भी ज्यादा काँटों भरा हो गया है, क्योंकि सुनील गुप्ता के हुए हाल से डिस्ट्रिक्ट के लोगों में खासा जोश भर गया है - उन्हें विश्वास हो चला है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की मनमानियों का विरोध करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को जमीन सुँघाई जा सकती है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पैदा हुए इस विश्वास ने दीपक बाबु के काम को खासा चुनौतीपूर्ण बना दिया है । दीपक बाबु अपने से पहले के दोनों गवर्नर्स - संजीव रस्तोगी तथा सुनील गुप्ता के अनुभव से सीख ले सकते हैं : संजीव रस्तोगी के सामने भी मुश्किलें कम नहीं थीं; किंतु अपने विवेकपूर्ण व्यवहार से अपने कामकाज में संतुलन बना कर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाने का जो लक्ष्य पूरा किया - उसके लिए संपूर्ण रोटरी समाज से उन्हें प्रशंसा मिली; जबकि दूसरी तरफ सुनील गुप्ता के लिए अपने गवर्नर-काल को पूरा कर पाना ही संभव नहीं हो सका । यह देखना दिलचस्प होगा कि दीपक बाबु, संजीव रस्तोगी की राह पर चलते हैं और या अपने आप को सुनील गुप्ता का 'मौसेरा' भाई ही साबित करते हैं ?