Monday, February 8, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में चंद्रशेखर चितले के लिए 'जमीन' तैयार करने की एसबी जाबरे की कोशिशों को पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के चुनाव में अरुण गिरी से तगड़ा झटका लगा

पुणे । पुणे ब्रांच की आठ सदस्यीय मैनेजमेंट कमेटी का चुनाव जोरदार तरीके से जीतने के बावजूद अरुण गिरी के लिए पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को साधने की योजना चुनौतियों से आजाद नहीं हुई है । यह ठीक है कि पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के चुनाव में एसबी जाबरे को खासा तगड़ा झटका लगा है, और उनके बड़े खास उम्मीदवारों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है; लेकिन इस झटके के बावजूद एसबी जाबरे ने जोड़-तोड़ करके पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी पर अपना कब्जा ज़माने के लिए जो प्रयास शुरू किए हैं - उससे दिख रहा है कि पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति खासी दिलचस्प होने जा रही है । उल्लेखनीय है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के इस बार के चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं थे; अरुण गिरी की अप्रत्याशित उम्मीदवारी तथा एसबी जाबरे की अति अति सक्रियता ने इस बार के चुनाव को बहुत बहुत खास बना दिया था । पुणे ब्रांच के इस बार के चुनाव को वर्ष 2018 में होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव की 'तैयारी' के रूप में इस्तेमाल किया गया । उल्लेखनीय है कि एसबी जाबरे पहले ही चंद्रशेखर चितले को वर्ष 2018 में सेंट्रल काउंसिल के लिए अपने उम्मीदवार के रूप में घोषित कर चुके हैं, और चंद्रशेखर चितले की प्रस्तावित उम्मीदवारी को मजबूती दिलाने के लिए वह पुणे ब्रांच पर अपना 'कब्जा' चाहते हैं । इस 'कब्जे' के लिए ही उन्होंने पुणे ब्रांच के चुनाव में अपनी सारी ताकत झोंकी और अपने उम्मीदवारों को समर्थन दिलवाने के लिए दिन-रात एक किया । 
पुणे ब्रांच के इस बार के चुनाव की खासियत को पहचानने व रेखांकित करने के लिए यही एक तथ्य काफी है कि एसबी जाबरे को अपना जो समय और अपनी जो एनर्जी इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए खर्च करना चाहिए थी, उसे उन्होंने पुणे ब्रांच के चुनाव में खर्च किया । उनके नजदीकियों व उनके समर्थकों को भी हैरानी हुई कि एसबी जाबरे वाइस प्रेसीडेंट पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बजाए पुणे ब्रांच के चुनाव के उम्मीदवारों के लिए काम करने में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं ? यह बात शायद अकेले एसबी जाबरे ही जानते थे कि उनका 'राजनीतिक जीना-मरना' वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव से नहीं, बल्कि पुणे ब्रांच के चुनाव से तय होगा । पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के लिए प्रस्तुत हुई अरुण गिरी की अप्रत्याशित उम्मीदवारी ने एसबी जाबरे के लिए पुणे ब्रांच के चुनाव में सारा दम लगाना और जरूरी बना दिया । अरुण गिरी ने वर्ष 2009 में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था - चुनाव जीतने में तो वह असफल रहे थे, किंतु उनकी कुल परफॉर्मेंस ने चुनावी राजनीति के जानकारों को चकित जरूर किया था । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य में अरुण गिरी के नाम कोई बड़ी उपलब्धियाँ तो नहीं हैं, लेकिन फिर भी चुनावी राजनीति में उनकी खासी धाक है । इस धाक के कारण ही पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के लिए प्रस्तुत हुई उनकी उम्मीदवारी ने लोगों को चौंकाया । हर किसी को इस सवाल ने परेशान किया कि अरुण गिरी को पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के चुनाव में कूदने की आखिर क्या जरूरत पड़ी ?
अरुण गिरी की तरफ से तो उनकी 'भविष्य की राजनीति' की कोई बात सुनने को नहीं मिली है, किंतु लोगों को लग रहा है कि अरुण गिरी पुणे ब्रांच के 'रास्ते' से वर्ष 2018 में सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बना रहे हैं । लोगों को लग रहा है कि पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी में अपनी उपस्थिति के जरिए अरुण गिरी को लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने तथा पहचान को और गाढ़ा करने का अवसर मिलेगा, और इस तरह उनके लिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने में मदद मिलेगी । अरुण गिरी की इस 'योजना' ने एसबी जाबरे को वाइस प्रेसीडेंट पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बजाए पुणे ब्रांच के चुनाव में 'उतरने' के लिए मजबूर किया । वर्ष 2018 के चुनाव में 'अपने उम्मीदवार' चंद्रशेखर चितले के लिए स्थिति को सुरक्षित करने/बनाने के लिए उन्हें अरुण गिरी की योजना में पंक्चर करना जरूरी लगा - और इसी जरूरत के चलते एसबी जाबरे ने पुणे ब्रांच के चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया । चुनावी नतीजों से लेकिन एसबी जाबरे को तगड़ा वाला झटका लगा । उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद उनके दो-तीन बड़े खास उम्मीदवार चुनाव हार गए । जीतने वाले आठ सदस्यों में दो - सचिन परकाले व अभिषेक धामने को एसबी जाबरे के उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना गया है । इनमें भी सचिन परकाले ब्रांच में दोबारा चुने गए हैं - जाहिर है कि उनकी जीत का श्रेय एसबी जाबरे को नहीं दिया जा सकता है । इस तरह एसबी जाबरे की कामयाबी अपने सिर्फ एक उम्मीदवार को जितवाने के रूप में देखी जा रही है । उनके विरोधी खेमे के चार उम्मीदवार जीते हैं - जिनमें एक, रेखा धमनकर का ब्रांच में तीसरा टर्म होगा । उनकी जीत को यदि खेमे की जीत के रूप में यदि न भी देखें, तो भी विरोधी खेमे के तीन लोगों की जीत से एसबी जाबरे को झटका तो लगा ही है । विरोधी खेमे में अरुण गिरी की रिकॉर्ड जीत तो एसबी जाबरे के लिए भारी मुसीबत की बात है । 
पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी के चुनाव को वर्ष 2018 के सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखें, तो इस चुनाव के नतीजे ने एसबी जाबरे तथा उनके होने/रहने वाले उम्मीदवार चंद्रशेखर चितले के लिए गंभीर समस्या खड़ी कर दी है । इस समस्या को हल्का व हल करने के लिए एसबी जाबरे ने पुणे ब्रांच के चेयरमैन पद पर अपने किसी 'आदमी' को बिठाने की तैयारी शुरू कर दी है । एसबी जाबरे को उम्मीद है कि उन्हें चारुहास उपासनी तथा आनंद जखोटिया का समर्थन तो आसानी से मिल जायेगा, और उसके बाद उन्हें अरुण गिरी खेमे से एक सदस्य को तोड़ने की जरूरत रह जाएगी । उनके सामने समस्या लेकिन यह है कि उनके दोनों समर्थक सदस्य सचिन परकाले तथा अभिषेक धामने चेयरमैन बनने की दौड़ में हैं । राजनीतिक तिकड़म करके पाँच सदस्यों को जोड़ने की कोशिश लेकिन इन दोनों की चेयरमैनी को बलि चढ़ा कर ही प्राप्त हो सकेगी । एसबी जाबरे को डर है कि इससे कहीं मामला और न बिगड़ जाए । उनके सामने एक विकल्प यह भी है कि एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में चेयरमैन के चुनाव में वह अपने वोट का भी इस्तेमाल करें और अपने किसी 'आदमी' को चेयरमैन चुनवा लें । उन्हें उम्मीद है कि एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में उन्हें सत्यनारायण मूंदड़ा का समर्थन भी मिल जायेगा । इस विकल्प का इस्तेमाल करने को लेकर उनका डर यह है कि इससे बदनामी बहुत होगी । उनके पास एक और विकल्प यह है कि वह विरोधी खेमे की रेखा धमनकर को चेयरमैन बन जाने दें, और इसका श्रेय खुद लेने की कोशिश करें । एसबी जाबरे के लिए राहत की बात सिर्फ यह है कि चुनावी मुकाबले में उनके उम्मीदवारों को धूल चटा देने के बावजूद अरुण गिरी खुद भी चेयरमैन चुनने/चुनवाने को लेकर बहुत कंफर्टेबल नहीं हैं । अरुण गिरी की इस लाचारी में एसबी जाबरे को अपने लिए पुणे ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी में वापसी करने का मौका नजर आ रहा है । उनका यही मौका अरुण गिरी के लिए चुनौती बना है । अरुण गिरी और चंद्रशेखर चितले के लिए 'जमीन' तैयार करने में लगे एसबी जाबरे के बीच की इस होड़ ने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।